पत्रकारों की पीड़ा
सुनेगा कौन?
(विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)।
जबसे मीडिया का स्वरूप भीमकाय होना शुरू हुआ है एक सामान्य शिकायत सामने आने लगी
है कि मीडिया के लोग अब ठीक से काम नहीं कर रहे हैं. मीडिया से हमारी शिकायतों की
कोई सीमा नहीं है. लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी यह है कि आज की तारीख में
लोकतंत्र की प्रक्रिया में पत्रकार शायद सबसे ज्यादा पीड़ित है. यही पीड़ा आज जंतर
मंतर पर दिखी जब पत्रकारों के एक संगठन ने एक छोटा सा धरना किया और बताया कि पिछले
कुछ समय में देशभर में पत्रकारों पर 190 हमले हुए हैं. ये वे आंकड़े हैं जो एफआईआर
में तब्दील हुए हैं. जो हमले एफआईआर तक नहीं पहुंच सके उनकी संख्या कितनी होगी कह
नहीं सकते.
पत्रकारों की पीड़ा
कोई ऐसी नहीं है कि वे सिर्फ एक ओर से मार खा रहे हैं. जनता की उम्मीदों और
शिकायतों के बीच मीिडया घरानों की ज्यादतियां और गुण्डा तत्वों की गुण्डागर्दी तो
अलग से उनके लिए मुसीबत हैं ही. नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट ने इसी के विरोध में
सोमवार को पूरे देश में एक विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था. पूरे देश का तो पता
नहीं लेकिन दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना हुआ जिसमें नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट के सदस्यों
के अलावा कुछ नामी पत्रकार भी सम्मिलित हुए. धरने के बाद प्रधानमंत्री को एक
ज्ञापन भी सौंपा गया.
पत्रकारों का धरना
देना वास्तव में थोड़ा असहज लगता है क्योंकि हमारी सामान्य सी उम्मीद यह होती है कि
उनके हाथ में कलम है और उस कलम का उपयोग करके जब वे दुनियाभर की समस्या सुलझा सकते
हैं तो अपनी समस्या क्यों नहीं सुलझा सकते? लेकिन यही पत्रकारिता की विडंबना है कि वह
पूरी दुनिया की समस्या का समाधान अपनी कलम से खोज लेता है लेकिन अपनी समस्या
सुलझाने के लिए उसे भी उन्हीं धरने प्रदर्शनों और ज्ञापनों का सहारा लेना पड़ता है
जिसका सहारा सामान्य जनता लेती है. और मीडिया में होने का तमाशा यह कि अक्सर ऐसा
हो जाता है कि खुद मीडिया के धरने प्रदर्शनों की खबर मीडिया से ही नदारद हो जाया
करती हैं.
बहरहाल, इस धरने के बाद
विस्फोट से बात करते हुए दिल्ली यूनियन आफ जर्नलिस्ट के अध्यक्ष मनोज वर्मा ने
बताया कि मुख्य रूप से उनकी तीन मांगे हैं. पहली मांग यह है कि सोशल मीडिया पर
प्रतिबंध की धमकियां देनी बंद हों और ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि सोशल मीडिया को
पूरी आाजादी से काम करने का मौका हमेशा मिला रहे. दूसरी मांग यह है कि पत्रकार
प्रोटेक्शन एक्ट लाया जाए और पत्रकारों के जान माल की सुरक्षा की जाए और तीसरी
मांग यह है कि एक मीडिया काउंसिल का गठन किया जाए ताकि प्रेस काउंसिल के आगे जाकर
मीडिया की नयी नयी विधाओं को इस मीडिया काउंसिल में शामिल किया जा सके.
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