फेरबदल से क्या
अलीबाबा . . . . 4
अर्थव्यवस्था को
चाट चुकी है दीमक!
(लिमटी खरे)
भारत गणराज्य के
इतिहास में इक्कीसवीं सदी का पहला दशक सदा याद रखा जाएगा। इस दशक के आरंभ के साथ
ही भारत देश को जनसेवकों द्वारा लूटने का अनवरत सिलसिला आरंभ किया है। 2004 में भाजपानीत राजग
सरकार की बिदाई के उपरांत जब कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने देश की सत्ता को अपने
हाथों में लिया तो उन्हीं हाथों से देश को लूटना आरंभ हो गया। हालात देखकर लगने
लगा कि अब जनसेवक नहीं उद्योगपति, पूंजीपति, मुनाफाखोर ही सरकार
के संवाहक बन बैठे हैं।
2004 के उपरांत आज तक एक के बाद एक घपले घोटालों
और भ्रष्टाचार के जितने भी महाकांड सामने आए हैं उनके बाद तो कांग्रेस और भाजपा को
जनता से आंखें मिलाने का साहस ही नहीं करना था। वस्तुतः इस सबसे उलट इन नेताओं ने
रटा रटाया जबाव -‘‘यह विपक्ष
की साजिश है।‘‘ देकर अपने
आपको बरी करना आरंभ कर दिया। लुटी पिटी जनता बेचारी जाए तो जाए कहां, गुहार लगाए तो
किससे? सत्ता पक्ष
लूट में लगा है तो विपक्ष में बैठे नेता उनकी लूट के माल में सहभागी बन रहे हैं।
मंहगाई का दानव जिस
तरह लोगों को अपनी जद में ले रहा है उसे देखकर लगने लगा है कि जल्द ही देश में
अराजकता का शासन सर चढ़कर बोलेगा। लोगों के पास मोबाईल रिचार्ज करने और सुरापान के
पैसे आखिर आ कहां से रहे हैं। देश के हर छोटे जिले में अमूमन पांच करोड़ रूपए
प्रतिमाह के मोबाईल रिचार्ज बाउचर बिक रहे हैं। कोई दस रूपए तो कोई पांच सौ रूपए
के रिचार्ज डलवा रहा है।
चारों ओर लूट मची
है। नेता देश लूट रहे हैं, व्यापारी आम आदमी को लूट रहे हैं। कंपनियां अपने उत्पादों पर
नीचे एक छोटा सा स्टार लगाकर ‘शर्तें लागू‘ कर अपना हित साध
रही हैं। जगह जगह लूटपाट, राहजनी, नकबजनी, चोरी डकैती हो रही
है। बंग्लादेश से आए घुसपैठिए छुरे चाकू की नोक पर लोगों का जीना मुहाल किए हैं।
मां बेटियों की अस्मत सरे राह लूटी जा रही है। अब तो आलम यह हो गया है कि धार्मिक
आयोजनों की समाप्ति पर आयोजन के प्रांगड की सफाई में वहां कंडोम बहुतायत में मिल
रहे हैं।
इस तरह की अराजकता
को देखकर कोई भी कह देगा कि देश में सिस्टम ही नहीं बचा है। कांग्रेस की नजरों में
युवराज राहुल गांधी (वस्तुतः वे सांसद के योग्य भी नहीं हैं, क्योंकि कांग्रेस
और सहयोगियों द्वारा किए गए प्रमाणित भ्रष्टाचार और लूट पर भी उन्होंने अपना मुंह
बंद कर रखा है) भी इस लूट में बराबरी के सहभागी माने जा सकते हैं। वे बिना ब्याज
का लोन देते हैं, उनके बहनोई
राबर्ट वढेरा बिना ब्याज का लोन लेते हैं, पर राहुल अपना मुंह सिले रहते हैं। इसे क्या
समझा जाए? लूट में
राहुल गांधी की मौन सहमति?
देश में सारी
व्यवस्था सड़ गलकर सडांध मारने लगी है। फिर भी वजीरे आजम डॉ।मनमोहन सिंह और
कांग्रेस का झंडा डंडा उठाने वाले इस गंदी बदबूदार व्यवथा के बारे में यह टिप्पणी
कर सकते हैं कि देश के आधारभूत क्षेत्र की व्यवस्थाएं चाहे वह रेल्वे हो, नेशनल हाइवे और
राजमार्ग, जहाजरानी, टेलीकाम, मानव संसाधन विकास
या फिर उर्जा का क्षेत्र हो या कोई ओर क्षेत्र, का प्रबंधन कुशल, बुद्धिमान और सुघड
हाथों में पूरी तरह सुरक्षित है।
जमीनी हकीकत यह है
कि देश की अर्थव्यव्था स्वयंभू तथाकथित महान अर्थशास्त्री वजीरे आजम डॉक्टर मनमोहन
सिंह और वित्त मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बरम भी यह जानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था
को अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की दीमक पूरी तरह चाट चुकी है। यही कारण है कि मंहगाई
के आसमान छूते ग्राफ को कम करने के बजाए जनता को महज दिलासा ही देते हुए तारीख पर
तारीख देते आए हैं। जब ईमानदार मीडिया (सरकार के हाथों बिके लालची और घराना
पत्रकारिता वाले मीडिया को छोडकर) अपनी धार पजाता है तब पीएम कह उठते हैं कि मेरे
हाथ में जादुई छडी नहीं है, पैसा पेड़ पर नही उगता है।
मृत्यु शैया पर पड़ी
भारत की अर्थव्यवस्था को जिलाने (जिंदा करने) के लिए भगवान को अवतार लेना ही होगा।
कहते हैं बुराई के प्रतीक रावण के वध के भगवान को राम का, हिरणकश्यम के नाश
के लिए भगवान को प्रहलाद का तो कंस रूपी बुराई को समाप्त करने भगवान को कृष्ण का
रूप लेकर प्रकट होना पड़ा। भारत गणराज्य की जनता भगवान के चौथे रूप का इंतजार बड़ी
ही बेसब्री से कर रही है।
यह सच है कि मानव
की याददाश्त बेहद कम होती है। लोग जल्दी ही पुरानी बात भूलकर नई चर्चा में लग जाते
हैं। देश के राजनेता इस बात को बेहतर तरीके से जानते हैं। यही कारण है कि जब भी
कोई घपला या घोटाला सामने आता है उसके चंद दिनों बाद किसी ना किसी चीज की कीमत
मेें इजाफा कर दिया जाता है ताकि लोगों का ध्यान उस घोटाले से हट जाए। लाखों करोड
रूपयों के कामन वेल्थ घोटाले की चर्चा आज ना मीडिया करता है और ना ही आम आदमी जबकि
सारा का सारा धन आम आदमी की जेब से ही निकाला गया था।
प्रधानमंत्री ने
अपनी और सरकार की छवि को बचाए रखने के लिए परंपरा को बदला है। अब तक सूचना और प्रसारण
मंत्रालय के भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी ही पीएमओ में पीएम के मीडिया के प्रभारी
या एडवाईजर हुआ करते थे। मनमोहन सिंह ने इस परंपरा को बदलकर निजी तौर पर इसे कथित
रूप से ठेके पर दिया है। पीएम के मीडिया एडवाईजर का काम हरीश खरे के उपरांत अब
पंकज पचौरी निभा रहे हैं।
हम यह बात दावे के
साथ कह सकते हैं कि पंकज पचौरी भले ही एक लाख रूपए प्रतिमाह की पगार लेकर मनमोहन
सिंह सरकार के लिए मीडिया को साध रहे हों, पर इस बात का जवाब वे भी नहीं दे सकते हैं
कि देश के अधोसंरचना विकास, सड़क, बिजली, रेल, बंदरगाह, पानी, बांध, शिक्षा और
स्वास्थ्य आदि के लिए रकम कहां से जुटाई जाएगी? रीते पड़े खजाने से
तो यह संभव नहीं है। इस सच्चाई से मनमोहन सिंह और उनके दमाद (केंद्रीय मंत्री और
सांसद) एवं पंकज पचौरी भी वाकिफ होंगे कि सरकार ने ही देश की अर्थव्यवस्था को पूरी
तरह खोखला कर दिया है।
हमें यह कहने में
कोई संकोच नहीं कि देश में गैरजरूरी खैराती योजनाओं में पैसा पानी की तरह बह रहा
है। सांसद विधायकों और अन्य जनसेवकों और नौकरशाहों की विलासिता में जनता का पैसा
बहाया जा रहा है। यक्ष प्रश्न आज भी यही खड़ा है कि जब सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर
पाती है कि विकलांग और निशक्तजनों के लिए दी गई इमदाद को एक केंद्रीय मंत्री बिना
डकार के पचा जाता है और सरकार उसको हटाने के बजाए पदोन्नति दे देती है तब अन्य
योजनाओं में दिए गए धन की पहरेदारी कैसे संभव है? (साई फीचर्स)
(क्रमशः जारी)