गुरुवार, 8 नवंबर 2012

पटना में चल रहा चरवाहा विश्वविद्यालय


पटना में चल रहा चरवाहा विश्वविद्यालय

(नवल कुमार)

पटना (साई)। जी हां, राजधानी पटना में बड़े शान के साथ चल रहा है एक चरवाहा विश्वविद्यालय। वैसे इस विश्वविद्यालय का नाम मौलाना म्जहरूल हक अरबी फ़ारसी विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 1992 में किया गया था। निश्चित तौर पर इसकी शुरुआत करने का श्रेय तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को जाता है। इस विश्वविद्यालय को खोले जाने का मकसद अरबी, फ़ारसी और उर्दू भाषा को संरक्षित करना था। इसके अलावा अल्पसंख्यक छात्रों को उच्च शिक्षा मुहैया कराना भी इसके अहम उद्देश्यों में शामिल था।
आप खुद अपनी आंखों से इसकी बदहाली देख सकते हैं। वर्तमान में यह बेली रोड में पटना हाईकोर्ट के बगल में एक खंडहरनुमा सरकारी बंगले में चल रहा है। इसकी खासियत यह है कि यहां बहुत थोड़े से छात्र ज्ञान अर्जन करने आते हैं और उनका साथ देने के लिए मवेशी भी परिसर में बेतरतीब उगी घास के मजे उड़ाते हैं। क्लासरुम भी किसी तबेले यानी गोशाला से कमतर नहीं। इस विश्वविद्यालय में बीबीए संकाय में अर्थशास्त्र पढाने वाली नीलम बताती हैं कि जब बिजली चली जाती है तो पूरा क्लासरुम अंधेरे में डूब जाता है। इसके अलावा बाहर से खुला रहने (दरवाजे के नाम पर बांस की ढड्ढी) के कारण छात्रों का ध्यान केन्द्रित नहीं रह पाता। लाइब्रेरी की हालत जर्जर है। किताब खरीदगी के नाम पर बड़े-बड़े खेल होते हैं।
वही बीसीए की पढाई करने वाली छात्रा हिना कौसन खान बताती हैं कि उन्हें यहां दाखिला लिए अभी केवल दो महीने ही हुए हैं। क्लासरुम देखकर हैरानी होती है। प्रैक्टिकल करने के लिए कम्प्यूटर लैब तो है लेकिन प्रैक्टिकल कराने वाले शिक्षक नहीं हैं। विकलांग छात्र मुन्ना रजक बताते हैं कि उन्होंने बीबीए में दाखिला लिया है। शिक्षक अच्छे हैं। सभी अनुभवी हैं। लेकिन क्लासरुम नहीं है। दो झोपड़ियां हैं, उसी में क्लास होता है। बरसात के दिनों में क्लास नहीं होता। क्योंकि पानी रोकने का कोई इंतजाम नहीं है।
बताते चलें कि इस विश्वविद्यालय के जिम्मे कुल 20 हजार छात्र-छात्राओं का भविष्य है। विश्वविद्यालय के कुलपति डा एस जोहा बताते हैं कि पहले इस विश्वविद्यालय को पोलो रोड के एक बंगले में जगह दी गयी थी। करीब एक दशक के बाद इसे बेली रोड में शिफ़्ट किया गया। करीब दो वर्ष पहले राज्य सरकार ने नोटिस दिया कि जिस जगह पर अभी यह विश्वविद्यालय चल रहा है, वहां एक अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय बनाया जाना है। सरकार की ओर से पहले बिहटा प्रखंड के नेऊरा गांव में जमीन देने की बात कही गयी थी। लेकिन जमीन अधिग्रहण विवादास्पद (गांव वाले किसी मुस्लिम संस्थान के लिए जमीन देने के पक्ष में नहीं थे) होने के कारण यह नहीं हो सका। बाद में सरकार की ओर से कहा गया कि विश्वविद्यालय को हज भवन में स्थापित किया जाय। सरकार की ओर से केवल दो फ़्लोर दिये जाने की बात कही गयी है। जबकि विश्वविद्यालय की जरूरत के हिसाब से यह पर्याप्त नहीं है। इसके अलावा हज भवन का वातावरण भी पठन-पाठन के लिए उपयुक्त नहीं है।
बहरहाल, बिहार में मुसलमान हमेशा राजनीति के शिकार होते आये हैं। इसका एक प्रमाण यह कि राज्य सरकार ने चाणक्या विधि विश्वविद्यालय और आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय जैसे नवस्थापित विश्वविद्यालयों को जमीन देने के साथ आलीशान इमारत बनाकर दिया गया है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि मौलाना मजहरुल हक अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय की उपेक्षा क्यों? वैसे इससे बड़ा सवाल यह कि जिस तरीके से यह विश्वविद्यालय अपनी गतिविधियां चलाने को मजबूर है, वैसे में उन हजारों छात्र/छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की जिम्मेवारी कौन लेगा?

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