सोमवार, 27 अगस्त 2012

अमलतास विरेचक प्रवत्ति वाली औषधि


हर्बल खजाना ----------------- 15

अमलतास  विरेचक प्रवत्ति वाली औषधि

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। झूमर की तरह लटकते पीले फ़ूल वाले इस पेड को सुंदरता के लिये अक्सर बाग-बगीचों में लगाया जाता है हलाँकि जंगलों में भी इसे अक्सर उगता हुआ देखा जा सकता है। अमलतास का वानस्पतिक नाम केस्सिया फ़िस्टुला है। अमलतास के पत्तों और फूलों में ग्लाइकोसाइड, तने की छाल टैनिन, जड़ की छाल में टैनिन के अलावा ऐन्थ्राक्विनीन, फ्लोवेफिन तथा फल के गूदे में शर्करा, पेक्टीन, ग्लूटीन जैसे रसायन पाए जाते है।
इस पेड की छाल का काढा पीलिया, सिफ़लिस और हृदय रोगों में दिया जाता है। पघ्ट दर्द में इसके तने की छाल को कच्चा चबाया जाए तो दर्द में काफ़ी राहत मिलती है। इसकी फ़ल्लियों के गूदे का सेवन दस्तकारक होता है और गर्भवती स्त्रियों को विरेचक औषधि के रूप में यह दिया जाता है।
वैसे संतुलित मात्रा में यह मधुमेह में भी हितकर है। फ़ल्लियों के गूदे का काढा आवाज की खरखराहट, गला बैठना जैसी शिकायत आदि में गुणकारी है। पातालकोट के आदिवासी बुखार और कमजोरी से राहत दिलाने के लिए कुटकी के दाने, हर्रा, आँवला और अमलतास के फ़लों की समान मात्रा लेकर कुचलते है और इसे पानी में उबालते है, इसमें लगभग ५ मिली शहद भी डाल दिया जाता है और ठंडा होने पर रोगी को दिया जाता है। डाँग गुजरात के आदिवासी कहते है कि इसके पत्ते मल को ढीला और कफ को दूर करते हैं। फूल भी कफ और पित्त को नष्ट करते हैं। (साई फीचर्स)

(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ हैं)

हरदिल अजीज आम भारतीय की छवि वाले थे शोले के इमाम साहब


हरदिल अजीज आम भारतीय की छवि वाले थे शोले के इमाम साहब

(दीपक अग्रवाल)

मुंबई (साई)। अवतार किशन हंगल, यानी ए. के. हंगल को रूपहले पर्दे पर देखकर लोगों को अहसास होता था कि यह सूरत उनके आसपास की ही है। हंगल में आम आदमी अपने आप को पाता था। निम्न मध्य वर्गीय परिवार के दृश्यों में जब हंगल साहेब पायजामा या धोती पहनकर घर के अंदर होते तो लगता मानो पड़ोसी का ही घर हो। एक छाता टांगे आफिस के बड़े बाबू के रोल में वे बेहद जंचते।
हंगल के पास कभी स्टार का रुतबा नहीं रहा। वह हीरो या विलेन न होकर एक चरित्र अभिनेता थे। 55 की उम्र में फिल्म लाइन में एंट्री मारने वाले हंगल को उनकी उम्र की वजह से ज्यादातर बड़े बुजुर्गों के ही किरदार निभाने को मिले। पर्दे पर पिता, दादा, चाचा, दोस्त नौकर के तमाम किरदारों में मजबूर और निरीह दिखने वाले हंगल की असल जिंदगी भी आखिरी वक्त में कुछ वैसी ही हो चली थी। उन्होंने बॉलिवुड में नाम तो बहुत कमाया लेकिन पैसा नहीं कमा सके। अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने का संघर्ष करते हंगल इस दुनिया से 95 की उम्र में रुखसत हो लिए। बॉलिवुड के इस शोर-शराबे और चमक दमक में हंगल के गुजर जाने का सन्नाटा कहीं दब गया है, शायद तभी उनके आखिरी सफर पर बॉलिवुड के बड़े नामों की मौजूदगी नदारद थी।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सियालकोट के एक कश्मीरी पंडित परिवार में 1917 में जन्मे ए. के. हंगल ऐक्टर बनने से पहले एक बेहतरीन टेलर थे। अपनी आत्मकथा लाइफ ऐंड टाइम्स ऑफ ए. के. हंगलमें उन्होंने बताया है कि मेरे पिता के एक दोस्त ने मुझे दर्जी बनने का सुझाव दिया था। खास बात ये है कि शुरू में हंगल को बटन टांकना भी नहीं आता था। बाद में नवंबर 1949 में वह अपनी पत्नी सहित मुंबई यानी भारत पहुंचे। नरीमन रोड की एक टेलरिंग की दुकान में नौकरी भी की।
हंगल साहब की पहली फिल्म थी, बासु भट्टाचार्य निर्देशित 1966 में बनी फिल्म तीसरी कसम, रंगमंच पर हंगल के एक्टिंग से प्रभावित होकर मशहूर डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें अपनी फिल्मों में मौका दिया। शोलेमें अंधे इमाम साहब का किरदार और उनके डायलॉग इतना सन्नाटा क्यों है भाई को कौन भूल सकता है। शौकीन के रंगमिजाज बुजुर्ग इंदरसेन उर्फ एंडरसन के रोल में हंगल बेमिसाल थे। अवतार, शौकीन, गुड्डी, नमक हराम, बावर्ची, अर्जुन, शौकीन, 7 हिंदुस्तानी में अपनी एक्टिंग से अलग पहचान बनाने वाले हंगल ने 45 साल लंबे करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया। हाल के सालों में हंगल साहब लगान, ये दिल मांगे मोर जैसी फिल्मों में दिखे। अमोल पालेकर निर्देशित पहेली (2005) हंगल साहब की आखिरी फिल्म थी। साल 2006 में हंगल को पद्म विभूषण दिया गया।
हंगल ने 74 साल के बेटे विजय ने मीडिया को बताया था कि किडनी और अस्थमा की बीमारियों से जूझ रहे हंगल की दवाएं बहुत महंगी थीं। उनके अस्पताल और अटेंडेंट का खर्च भी इतना ज्यादा था कि जिसे मैं अपनी 15 हजार रुपये महीने की पगार में पूरा नहीं कर सकता।
पिछले साल ए. के. हंगल एक फैशन शो में दिखे जहां रैंप पर वह शो स्टॉपर की भूमिका में पहुंचे। शोले के बैकग्राउंड म्यूजिक पर वील चेयर पर बैठे हंगल ने शो के बाद आयोजकों के काम को बहुत सराहा लेकिन इस अवस्था में हंगल को रैंप पर लाने के लिए आयोजकों को काफी आलोचना झेलनी पड़ी। बाद में डिजाइनर रियाज गंजी ने सफाई दी कि यह शो आर्थिक दुश्वारियों से जूझ रहे हंगल की मदद के लिए फंड रेजिंग का एक जरिया था।
कहा जाता है कि महात्मा गांधी भारत में जो अहिंसक आंदोलन चला रहे थे, सरहद पार उसकी अगुवाई हंगल कर रहे थे। उन्होंने संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भी भाग लिया जिसकी वजह से उन्हें अपनी पत्नी मनोरमा के साथ जेल जाना पड़ा। हंगल ने ब्रिटिश टीवी सीरीज लॉर्ड माउंटबेटनरू द लास्ट वायसराय में सरदार पटेल के किरदार को निभाया। हाल में कलर्स चौनल पर शुरू हुए सीरियल मधुबाला में भी वह एक छोटे से सीन में एक्टिंग करते नजर आए।
एक समय थियेटर की दुनिया के बेताज बादशाह ए के हंगल को फिल्मों में अभिनय करना कुछ खास पसंद नहीं था, लेकिन धीरे धीरे रूपहले पर्दे की यह दिलफरेब दुनिया उन्हें इतनी रास आई कि वह बहुत सी फिल्मों में कभी पिता, कभी दादा तो कभी नौकर का किरदार निभाते नजर आए।
रंगमंच से जुड़े होने के कारण हंगल के अभिनय में एक सहजता थी, जिसकी वजह से वह हर किरदार में ढल जाया करते थे। शोले फिल्म के एक डायलॉग इतना सन्नाटा क्यों है भाईसे हंगल को नई पीढ़ी भी बखूबी पहचानती है। हालांकि उन्होंने नयी पुरानी दर्जनों फिल्मों में छोटे बड़े किरदार निभाए।
फिल्मी दुनिया के इस बुजुर्ग अभिनेता को 1993 में राजनीतिक विवाद का कारण भी बनना पड़ा। दरअसल उन्होंने अपने जन्मस्थल की यात्रा करने के लिए पाकिस्तान का वीजा मांगा। उन्हें मुंबई स्थित पाकिस्तानी वाणिज्य दूतावास से पाकिस्तानी दिवस समारोहों में भाग लेने का निमंत्रण मिला और उन्होंने इसमें भाग लेकर शिव सेना के गुस्से को निमंत्रण दे डाला।
शिवसेना प्रमुख ने उन्हें देशद्रोही तक कह डाला। इनमें पुतले फूंके गए और इनकी फिल्मों के बहिष्कार की बात कही गई। हालात ऐसे बने कि फिल्मों से उनके दृश्य काट डाले गए। दो वर्ष बाद वह अमिताभ बच्चन की कंपनी द्वारा बनाई गई फिल्म तेरे मेरे सपनेऔर आमिर खान की लगानसे दोबारा रूपहले पर्दे पर उतरे। शाहरूख खान की 2005 में आई फिल्म पहेलीउनकी अंतिम फिल्म थी। उन्हें वर्ष 2006 में हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
हालांकि अंतिम दिनों में हंगल ने मुफलिसी में दिन गुजारे और उनके पुत्र विजय ने उनके इलाज के लिए मदद मांगी। अमिताभ बच्चन, विपुल शाह, मिथुन चक्रवर्ती, आमिर खान और सलमान खान जैसी बॉलीवुड की कई हस्तियों ने उनके इलाज के योगदान दिया। करीब सात वर्ष के अंतराल के बाद उन्होंने टेलीविजन धारावाहिक मधुबालाके लिए एक बार फिर कैमरे का सामना किया, जो उनके जीवन की अंतिम कड़ी साबित हुआ।
हंगल के बेटे विजय ने कहा, ‘‘यह बहुत बडी क्षति है। मैं उनके निधन से दुखी हूं। वह अपने काम और जिंदगी को लेकर बहुत खुश और जिंदादिल थे। मैं अभी इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।’’ फिल्मों में दादा, पिता, चाचा जैसे अनेक चरित्र किरदार अदा करने वाले हंगल को अंतिम विदाई देने राकेश बेदी, रजा मुराद, अवतार गिल, इला अरुण और कुछ अन्य लोग पहुंचे।
रजा मुराद ने कहा, ‘‘उन्होंने सभी सुपरस्टार के साथ काम किया लेकिन दुख की बात है कि इंडस्टरी का कोई बडा कलाकार आज यहां नहीं आया।’’ इला अरुण ने कहा, ‘‘वह राजा की तरह रहे। वह बहुत सक्रिय रहे। जब उनके पास काम और पैसा नहीं था तब भी उन्होंने हार नहीं मानी। वह न केवल अभिनेता थे बल्कि स्वतंत्रता सेनानी भी थे।

मेरी खामोशी सबसे बेहतर: मनमोहन सिंह


मेरी खामोशी सबसे बेहतर: मनमोहन सिंह

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। किसी ने सही कहा है कि खामोशी से बड़ा कोई अस्त्र नहीं है, और शायद, भारत गणराज्य के वज़ीरे आज़म को यह बात भा गई है। यही कारण है कि घपले घोटालों और भ्रष्टाचार को देखने के बाद भी मनमोहन सिंह सिंह ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोयला ब्लॉक आवंटन पर विपक्ष के भारी हंगामे के बीच सोमवार को प्रश्नकाल के बाद लोकसभा और फिर राज्य सभा में अपना बयान दिया। उन्होंने कोयला आवंटन पर कैग के आकलन को विवादास्पद बताते हुए खारिज कर दिया। पीएम ने कहा कि उन पर लगाए गए आरोप निराधार हैं।
सिंह ने संसद के दोनों सदनों में कैग रिपोर्ट पर अपनी ओर से दिए बयान में कहा, ‘मैं माननीय सदस्यों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि रिपोर्ट में जिस अवधि का जिक्र है उस दौरान कुछ समय के लिए कोयला मंत्रालय का प्रभारी मंत्री होने के नाते मैं मंत्रालय के निर्णयों की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। मैं कहना चाहता हूं कि अनियमितताओं के जो भी आरोप लगाए गए हैं वे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं और सरासर बेबुनियाद हैं।
दोपहर 12 बजे सदन की बैठक फिर से शुरू होते ही बीजेपी सदस्यों ने आसन के पास आकर भारी हंगामा और नारेबाजी शुरू कर दी। ये सदस्य बयान नहीं इस्तीफा चाहिए और प्रधानमंत्री इस्तीफा दो के नारे लगा रहे थे। इसी हंगामे के बीच अध्यक्ष मीरा कुमार ने आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में बयान देने के लिए खड़े हुए।
विपक्ष के भारी हंगामे के कारण उनकी बात नहीं सुनी जा सकी। प्रधानमंत्री ने बयान की कुछ पंक्तियां पढ़ने के बाद उसे सदन के पटल पर रख दिया। विपक्ष के हंगामे के कारण लोकसभा और राज्य सभा की कार्यवाही पहले दोपहर 2 बजे और फिर मंगलवार तक के लिए स्थगित कर दी गई। उधर, कैग रिपोर्ट पर कांग्रेस ने शाम 6 बजे अपने सभी सांसदों की बैठक बुलाई है। कल कांग्रेस संसदीय दल की बैठक भी होनी है।
प्रधानमंत्री ने लोकसभा में बयान देने के ठीक बाद संसद भवन के बाहर मीडिया में भी बयान दिया। प्रधानमंत्री ने उनकी श्खामोशीश् पर तंज कसने वालों को शायराना अंदाज में जवाब देते हुए शेर पढ़ा, श्हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी।श् इसके बाद उन्होंने कैग के निष्कर्ष को खारिज करते हुए विपक्ष से आह्वान किया कि वह संसद में बहस चलने दे, ताकि लोगों को इस मामले पर जवाब मिल सके।
संसद न चलने देने के मुद्दे पर बीजेपी अलग-थलग पड़ती जा रही है। अब तक हर मुद्दे पर बीजेपी के साथ खड़ा रहने वाले अकाली दल ने कहा कि इस मामले में सदन के भीतर चर्चा की जानी चाहिए। गौरतलब है कि बीजेपी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग करते हुए पिछले सप्ताह संसद नहीं चलने दी थी। वैसे, बीजेपी ने अपने इस रुख में अभी भी कोई बदलाव नहीं किया है। बीजेपी के सूत्रों ने बताया कि पार्टी पीएम के इस्तीफे की मांग से पीछे नहीं हटेगी।
संसद की कार्यवाही न चलने देने को लेकर एनडीए में फूट पड़ गई है। अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा ने कहा है कि सदन में इस पूरे मसले पर चर्चा की जानी चाहिए। ढींढसा के बयान के बाद सुबह 10 बजे होने जा रही एनडीए की बैठक टल गई, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी के नेताओं की बैठक हुई। इसमें राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज मौजूद रहे। बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग पर शिवसेना उसके साथ है। अकाली दल की राय सार्वजनिक रूप से आने के बाद भी बीजेपी ने साफ कर दिया है कि उसे प्रधानमंत्री के इस्तीफे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
इससे पहले जेडीयू अध्यक्ष और एनडीए के संयोजक शरद यादव भी निजी तौर पर खुद को चर्चा का पक्षधर बना चुके हैं, लेकिन मीडिया में मतभेद की बात सामने आने के बाद उन्होंने सफाई देते हुए कहा था कि संसद की कार्यवाही के बहिष्कार को लेकर एनडीए एकजुट है।

गैस कनेक्शन के साथ जबरन स्टोव नहीं थमा सकतीं एजेंसियां

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। कोई भी एलपीजी डीलर अब ग्राहक को सिलेंडर के साथ गैस चूल्हा खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। द कंपीटीशन अपीलेट ट्रिब्यूनल (कोमपैट) ने आईओसी, एचपीसीएल और बीपीसीएल को निर्देश दिए हैं कि वह नए कनेक्शन के साथ चूल्हा खरीदने के लिए ग्राहक को बाध्य न करें।
पांच साल पुराने एक मामले में न्यायाधिकरण ने यह फैसला सुनाया है। कॉम्पैट ने कहा है कि इस मामले में एकाधिकार और प्रतिबंधात्मक व्यापार गतिविधि आयोग (एमआरटीपीसी) की ओर से 19 फरवरी, 2009 को जारी अंतरिम आदेश को ही अंतिम माना जाए। कंपनियों ने भी आश्वस्त किया है कि वह अपने उत्पादों के साथ गैस चूल्हा जैसे उत्पाद बेचने वाले वितरकों के साथ कारोबार जारी नहीं रखेंगी। इस मामले में वर्ष 2007 में जांच एवं पंजीयक महानिदेशालय द्वारा जांच शुरू किए जाने के बाद एमआरटीपीसी ने अंतरिम आदेश जारी किया था।
सात कंपनियों ने एमआरटीपीसी से शिकायत की थी कि सरकारी कंपनियां बाजार में अपने एकाधिकार का बेजा फायदा उठा रही हैं। वे अपने डीलरों को इस बात के लिए दबाव डालती हैं कि उनके साझेदारों के उत्पाद ही ग्राहकों को बेचे। मई 2009 में एमआरटीपीसी को खत्म कर उसकी जगह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआइ) का गठन किया गया है।