खुशियां मनाओ, युवराज ने राजपाट
संभालने हामी भर दी है
(लिमटी खरे)
नब्बे के दशक से
भारत गणराज्य की नैया बिना किसी खिवैया के ही यहां वहां डोल रही है। कुछ समय के
लिए अटल बिहारी बाजपेयी जैसा कुशल नाविक इस नैया को मिला पर वह भी कम समय के लिए
ही। इसके बाद देश अपने तारणहार को ही खोज रहा है। एक दशक से राजनीति की पायदान में
सीढ़ियां चढ़ने उतरने वाले राहुल गांधी पर ही कांग्रेस ने अपनी नजरें गड़ाईं, और जबरन ही देश पर
उन्हें लाद दिया। नेतृत्व के अभाव में सारा देश अब अपने आप को असुरक्षित ही महसूस
कर रहा है। युवा तरूणाई, भी पथ भ्रष्ट अंधेरी सुरंग में प्रवेश कर चुकी है। शिक्षा की
दशा और दिशा निर्धारित करने के लिए पाबंद मानव संसाधन विभाग ने भी शिक्षा को लेकर
जमकर प्रयोग किए हैं। आज नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा बेहद मंहगी हो चुकी है। कृत्रिम
तौर पर बनाए गए भारी दबाव में राहुल गांधी ने बड़ी जिम्मेदारी लेने के लिए अपनी
सहमति दे दी है। यह कांग्रेस के लिए उत्सव की खबर से कम नहीं है। कांग्रेस को लग
रहा है कि राहुल की अगुआई में वह देश पर एक बार फिर अपना शासन कायम कर लेगी, पर राहुल की
नाकामियों को देखकर अपना मुंह कसैला करने को तैयार नहीं हैं कांग्रेस के
कार्यकर्ता।
सत्तर के दशक के
आगाज के साथ ही भारत का रूपहला पर्दा पूरे उफान पर था। उस वक्त ना तो टीवी थे और
ना ही मनोरंजन के अन्य ज्यादा साधन। मेले ठेले, सर्कस, प्रदर्शनी, ढंढार आदि का आयोजन
समय समय पर ही होता था, पर हर शहर में सिनेमाघरों में चार शो तो तय ही हुआ करते थे।
उस दौर में दिलीप कुमार, मनोज कुमार, संजीव कुमार, राजकपूर जैसे
नायकों से भरी पड़ी थी फिल्म इंडस्ट्री। बावजूद इसके सफल फिल्में देकर सुपर स्टार
की आसनी रीती ही थी। उस दौर में राजेश खन्ना ने सुपर स्टार का खिताब पाया। काका पर
सभी की निगाहें थीं कि वे ही इस उद्योग को नई दिशा और दशा प्रदान करेंगे।
ठीक इसी तरह हर
मोर्चे पर कमोबेश असफल रहने वाले कांग्रेेस के युवराज राहुल गांधी पर देश भर की
कांग्रेस की नजरें गड़ी हुई हैं। महज एक दशक से ही राजनैतिक बियावान में उतरे राहुल
गांधी चूंकि नेहरू गांधी परिवार के सदस्य हैं, इसलिए उनको मीडिया
भी समय समय पर महिमा मण्डित करने से नहीं चूकता है। राहुल गांधी के अंदर लोग
चमत्कारिक नेतृत्व की क्षमता देखते हैं। आदिवासी दलितों के घर जाकर रात बिताकर
राहुल ने कई बार मीडिया की सुर्खियां भी बटोरी हैं।
इस देश का असली
नागरिक दरअसल, वही आम
आदमी ही है, जिससे
अस्सी के दशक के जाते जाते देश के नीति निर्धारकों ने पर्याप्त दूरी बना ली। राहुल
का दलितों के घर जाना इस बात का घोतक है कि वाकई देश का असली मालिक यानी आम आदमी
कितना बेबस है। एक किस्से का उल्लेख यहां प्रसंगिक लग रहा है। राहुल एमपी के
टीकमगढ़ जिले के टपरियन गांव गए, वहां एक महिला ने उनसे अपनी पुत्री के विवाह
के लिए आर्थिक सहयोग मांगा। राहुल ने तत्काल उसे पचास हजार रूपए देने का वायदा
किया।
कांग्रेस की नजर
में देश के भविष्य के वज़ीरे आज़म राहुल गांधी ने उस महिला को पचास हजार रूपए देने
का अपना वादा नहीं निभाया। कहने का तात्पर्य यह कि यह राहुल के सियासी प्रशिक्षण
का एक हिस्सा ही था कि जहां भी जाओ, वहां के लोगों को अपना सगा संबंधी समझो, मदद का आश्वासन दो
पर वहां से रूखसत होते ही उस वायदे को पूरी तरह भूल जाओ।
धूम टू, क्रिश टू की तर्ज
पर ही संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार जब दूसरी मर्तबा देश पर सत्तासीन हुई तो
उसे संप्रग टू कहा जाने लगा। संप्रग टू में जमकर घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार के
तांडव सामने आए। आजाद भारत गणराज्य में इससे बड़ी विडम्बना शायद ही कोई और हो कि
देश की बागड़ोर संभालने वाले वज़ीरे आज़म डॉ.मनमोहन सिंह खुद को असहाय और मजबूर बता
गए।
सियासी गलियारों
में नैतिकता किस चिड़िया का नाम है लोग पूछने पर मजबूर हो गए। रही सही कसर मीडिया
ने निकाल दी। मीडिया में जब से ‘घराना पत्रकारिता‘ का आगाज हुआ तबसे
संपादक किसी कंपनी के सीईओ और रिपोर्टर उसके एक्जीक्यूटिव हो गए हैं, जो आर्थिक पैकेज का
काम टास्क के आधार पर ही कर रहे हैं।
मीडिया, नौकरशाही और
नेतागिरी के त्रिफला की खुराक से देश की जनता का हाजमा बुरी तरह बिगड़ गया। जगह जगह
कै, दस्त की
खबरें आने लगीं। जनता की बिगड़ी सेहत पर मरहम लगाने के लिए केंद्र और सूबाई सरकारों
ने मंहगाई कम करने की तारीख पर तारीख देकर एक खास मिक्सचर (सत्तर के दशक तक सरकारी
अस्पतालों से ही दवाएं और पीने के लिए सीरप जिसे मिक्सचर कहा जाता था दिया जाता
था) दिया।। जनता आज भी मृत्यु शैया पर कराह रही है, पर उसकी सुध लेने
वाला कोई नहीं।
देश में घपले
घोटाले और भ्रष्टाचार के महाकांड सामने आए पर कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया
गांधी और युवराज राहुल गांधी ने अपना मुंह नहीं खोला। रामलीला मैदान में बाबा
रामदेव के अनशन में रावणलीला हुई, गांधी वादी अण्ण हजारे ने उपवास किया पर
दोनों ही कर्णधारों ने इस बारे में बोलने की जहमत नहीं उठाई है।
इन सारी
परिस्थितियों के बाद रसातल में जाती कांग्रेस को संजीवनी की महती जरूरत महसूस की
जा रही थी। कांग्रेस की इस रामायाण (तुलसीदास अथवा बाल्मिकी रचित नहीं) के लिए अब
संजीवनी लाने के लिए एक अदद हनुमान की तलाश दो दशकों से जारी है। कांग्रेस को लगता
है कि राहुल गांधी आएंगे, नई रोशनी लाएंगे। पर कांग्रेस के नेता यह भूल जाते हैं कि अब
वे दिन हवा हो चुके हैं जब नेहरू गांधी परिवार के नाम पर ही शासन होता था।
इतिहासकार बताते
हैं कि मुगल बादशाह अकबर बेहद न्यायप्रिय राजा थे। उन्होंने लगभग पचास साल तक देश
पर राज किया। उनके राज के तौर तरीके हर जगह रच बस गए थे। यही कारण था कि उनके बाद
उनकी निकम्मी औलादों ने उसी व्यवस्था के आधार पर ही सौ साल तक बिना किसी रोकटोक के
राज किया।
पंडित जवाहर लाल
नेहरू और प्रियदर्शनी श्रीमति इंदिरा गांधी की नीतियां मजबूत मानी जा सकती हैं, पर स्व.राजीव गांधी, सोनिया गांधी दोनों
ही को राजनैतिक तौर पर परिपक्व कतई नहीं माना जा सकता है। यही कारण है कि नब्बे के
दशक के आगाज के साथ ही साथ कांग्रेस के किले की नींव में दरारें आने लगीं और अब तो
कांग्रेस का महल चरमरा रहा है।
इक्कसीवीं सदी के
कांग्रेस के नए उभरे चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह ने राहुल गाधीं के बारे में कह
दिया कि वे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इसके बाद मीडिया ने इस बात को जमकर उछालकर
सोनिया गांधी कथित तौर पर मजबूर कर दिया कि सोनिया को भी कहना ही पड़ा कि राहुल खुद
इस बारे में निर्णय लेंगे। क्या मीडिया में इतना माद्दा नहीं था कि घपले, घोटाले और
भ्रष्टाचार पर सोनिया या राहुल का मंुह खुलवा पाती? जाहिर है घराना
पत्रकारिता अब इन नेताओं की देहरी पर ही कत्थक करती नजर आ रही है।
बहरहाल, राहुल गांधी ने कह
दिया है कि वे सरकार और पार्टी में बड़ी भूमिका निभाने को तैयार हैं। राहुल की
स्वीकारोक्ति के साथ ही कांग्रेस में जश्न का माहौल दर्शाता है कि कांग्रेस आज भी
सामंतशाही व्यवस्था से उबर नहीं पाई है। जिस तरह पहले किसी राजा का पुत्र ही
राजगद््दी पर बैठता था उसी तरह अब सोनिया अपने पुत्र राहुल को प्रधानमंत्री बनवाने
के जतन करती नजर आ रही हैं।
अगर युवराज नादान
है तो एक केयर टेकर राजा बना दिया जाता था। उसी तर्ज पर राहुल की ताजपोशी तक
डॉ.मनमोहन सिंह को केयर टेकर बना दिया गया है। राहुल की सहमति सार्वजनिक होते ही
काटूनिस्ट की कलम चली और दैनिक भास्कर के चंद्रशेखर हाडा जी का एक कार्टून आया
जिसमें मनमोहन सिंह इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया देकर कह रहे हैं कि उन्हें बताया
जाए कि उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी कब छोड़नी है।
क्या कांग्रेस के
रणनीतिकार अपनी गिरेबां में झांककर देखेंगे और इस बात का उत्तर सोनिया या राहुल से
मांगने का साहस जुटा पाएंगे कि जो सांसद खुद अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली और
अमेठी में कांग्रेस की लाज नहीं बचा सके वे पूरे देश में कांग्रेस को कैसे जिला सकते
हैं। कहीं एसा तो नहीं कि ‘घर के जोगी जोगड़ा, आन गांव के सिद्ध‘ की कहावत चरितार्थ
हो रही हो।
फिर भी राहुल गांधी
ने कांग्रेस की इस डूबती तैरती डगमगाती नैया की पतवार संभालने की परोक्ष तौर पर
घोषणा से कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को आत्मविश्वास से लवरेज कर दिया है। कांग्रेस
के लिए तो यही कहा जा सकता है कि नाचो गाओ, जश्न मनाओ, युवराज ने ताजपोशी
के लिए हामी भर ही दी है।