10 और 6 जनपथ में रार!
(विस्फोट
डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)। सोनिया गांधी के सरकारी आवास 10 जनपथ और शरद पवार
के सरकारी आवास 6 जनपथ के
बीच वैसे तो ज्यादा दूरी नहीं है लेकिन शुक्रवार को अचानक दूरियां इतनी अधिक नजर
आने लगीं कि शरद पवार ने संदेश दे दिया कि अब वे यूपीए सरकार से दूर होकर बाहर से
समर्थन देंगे. करीब करीब पूरे दिन शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल के साथ कांग्रेसी रणनीतिकार
बैठक करते रहे लेकिन शाम होते होते वह बयान आ गया जिसे रोकने के लिए खुद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मैदान में कूद पड़े थे.
उधर कांग्रेस के संकटमोचक प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन के
लिए वोटिंग खत्म हुई इधर पहला संकट कोई और नहीं बल्कि शरद पवार बनकर खड़े हो गये.
गुरूवार की रात में ही उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात करके इस्तीफा
देने की पेशकश कर दी थी. जिसके बाद शुक्रवार की सुबह पूरे दिन मान मनौव्वल का
राजनीतिक कार्यक्रम जरूर चलता रहा लेकिन आखिरकार नतीजा कांग्रेस के लिए नकारात्मक
ही निकला.
कांग्रेस और शरद पवार के बीच का यह ताजा संकट भी संकटमोचक की
विदाई से ही जुड़ा हुआ है. संकटमोचक प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति भवन की ओर कूच कर
जाने के बाद ढेर सारे खाली पद भरे जाने हैं जिसमें कुछ मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण
जिम्मेदारियों वाले पद भी हैं. शुक्रवार को यह सुगबुगाहट शुरू हो गई थी कि प्रणव
मुखर्जी की जगह कांग्रेस की ओर से ए के अंटनी अब नेता सदन होंगे. एंटनी सोनिया
खेमे के आदमी हैं इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि शरद पवार ने ताजा संकट
मनमोहन सिंह के इशारे पर पैदा किया हो. जिस तरह से राहुल गांधी की बड़ी राजनीतिक
जिम्मेदारी देने की हामी भरी जा रही है उससे तय है कि पार्टी में कम लेकिन पार्टी
द्वारा चलाई जा रही सरकार में कुछ ऐसा फेरबदल किया जा सकता है जिससे मनमोहन के
ओहदे पर आंच आ सकती है. एंटनी को नेता सदन बनाने की मंशा इसी कड़ी का एक हिस्सा है.
आमतौर पर परिपाटी रही है कि प्रधानमंत्री को ही नेता सदन होने
का गौरव प्रदान किया जाता है. लेकिन मनमोहन सिंह को यह गौरब हासिल नहीं हो सका और
न सिर्फ नेता सदन का पद प्रणव मुखर्जी के पास रहा बल्कि मंत्रिमंडल समूह के
अध्यक्ष भी मनमोहन सिंह होने की बजाय प्रणव मुखर्जी हुआ करते थे. उनके हटने के बाद
अब जबकि ये पद रिक्त हो गये हैं तब मनमोहन सिंह चाहेंगे कि कम से कम नेता सदन का
पद तो उन्हें मिल ही जाना चाहिए. शरद पवार या फिर उनके चिलगोजे प्रफुल्ल पटेल को
पता है कि राजनीति में उनकी हैसियत कितने सांसदों की है और नौ सांसदों की बदौलत वे
नेता सदन पद हासिल नहीं कर सकते. फिर भी अगर वे सरकार से हटने तक की पेशकश कर रहे
हैं और प्रधानमंत्री उन्हें अपना सबसे विश्वसनीय साथी बता रहे हैं तो साफ है कि
कहानी वह नहीं है जो बताई जा रही है. कहानी कुछ और है, लड़ाई कहीं और लड़ी
जा रही है.
फिलहाल तो शरद पवार के इस मूव से दस जनपथ संकट में आ ही गया
है. हो सकता है शरद पवार की ओर से अगली मांग एंटनी की बजाय किसी और को नेता सदन
बनाने की आ जाए या फिर वे खुद कुछ मंत्रिमंडल समूहों की अध्यक्षता के दावे के साथ
साथ वह मांग लें जिसे देकर भले ही कांग्रेस घाटे में चली जाए लेकिन मनमोहन सिंह
फायदे में रहें. ष्भारी फेरबदलष् की कवायद शुरू हो चुकी है और इतना तो तय है कि
राहुल की ताजपोशी फिलहाल इतनी निर्बिघ्न नहीं होने वाली है
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