बुधवार, 3 अगस्त 2011

वेव साईट तो हैं पर अपडेट नहीं होती


यह है विजन ट्वंटी ट्वंटी का हाल सखे

देश के 61 जिलों की नहीं है अपनी वेवसाईट

सेट फारमेट के अभाव में विभिन्न तरह की हैं वेव साईट्स

वेव साईट तो हैं पर अपडेट नहीं होती

(लिमटी खरे)

बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में भविष्यदृष्टा की अघोषित उपाधि पाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सबसे पहले इक्कीसवीं सदी में जाने की परिकल्पना कर लोगों को अत्याधुनिक उपकरणों आदि के बारे में सपने दिखाए थे। आज वास्तव में उनकी कल्पनाएं साकार होती दिख रही हैं। विडम्बना यह है कि स्व.राजीव गांधी की अर्धांग्नी पिछले एक दशक से अधिक समय से कांग्रेस की कमान संभाले हुए हैं किन्तु कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ही आज इक्कीसवीं सदी में नहीं पहुंच सकी है।

आधुनिकता के इस युग में जब कम्पयूटर और तकनालाजी का जादू सर चढकर बोल रहा है, तब भारत गणराज्य भी इससे पीछे नहीं है। भारत में आज कंप्यूटर इंटरनेट का बोलबाला हर जगह दिखाई पड जाता है। जिला मुख्यालयों में भले ही बिजली कम ही घंटों के लिए आती हो पर हर एक जगह इंटरनेट पार्लर की धूम देखते ही बनती है। शनिवार, रविवार और अवकाश के दिनों में इंटरनेट पार्लर्स पर जो भीड उमडती है, वह जाहिर करती है कि देशवासी वास्तव में इंफरमेशन तकनालाजी से कितने रूबरू हो चुके हैं।

भारत गणराज्य की सरकार द्वारा जब भी ई गवर्नंसकी बात की जाती है तो हमेशा एक ही ख्वाब दिखाया जाता है कि ‘‘अब हर जानकारी महज एक क्लिक पर‘‘, किन्तु इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। देश के कुल 626 जिलों में से 565 जिलों की अपनी वेव साईट है, आज भी 61 जिले एसे हैं जिनके पास उनकी आधिकारिक वेव साईट ही नहीं है। भारत में अगर किसी जिले के बारे में कोई जानकारी निकालना हो तो इंटरनेट पर खंगालते रहिए, जानकारी आपको मिलेगी, पर आधिकारिक तौर पर कतई नहीं, क्योंकि वेव साईट अपडेट ही नहीं होती है।

ई गवर्नंस के मामले में सबसे खराब स्थिति बिहार की है। बिहार के 38 जिलों में से महज 6 जिलों की ही आधिकारिक वेव साईट है, जबकि यहां के मुख्यमंत्री नितीश कुमार खुद ही अपने ब्लाग पर लोगो से रूबरू होते हैं। इसी तरह आंध्र प्रदेश के 23 में से 19, असम के 27 में से 24, छत्तीसगढ के 18 में से 16, झारखण्ड के 24 में से 20, कर्नाटक के 28 में से 27, मध्य प्रदेश के 50 में से 49, मिजोरम में 8 में पांच, पंजाब में 20 में 18 और तमिलनाडू के 31 में से 30 जिलों की अपनी वेव साईट है।

भारत गणराज्य के जिलों में आधिकारिक वेव साईट के मामले में सबसे दुखदायी पहलू यह है कि केंद्र सरकार के डंडे के कारण वेव साईट तो बना दी गई हैं, किन्तु इन्हें अद्यतन अर्थात अपडेट करने की फुर्सत किसी को नहीं है। जिलों में बैठे अप्रशिक्षित कर्मचारियों के हाथों में इन वेव साईट्स को अपडेट करने का काम सौंपा गया है, जिससे सब ओर अपनी ढपली अपना राग का मुहावरा ही चरितार्थ होता नजर आ रहा है।

वस्तुतः समूचा मामला ही केंद्रीय मंत्रालयों के बीच अहं की लडाई का है। अदूरदर्शिता के चलते सारा का सारा गडबडझाला सामने आने लगा है। जब नेशनल इंफरमैटिक संेटर (एनआईसी) का गठन ही कंप्यूटर इंटरनेट आधारित प्रशासन को चलाने के लिए किया गया है तब फिर इस तरह का घलमेल क्यों? एनआईसी का कहना है कि उसका काम मूलतः किसी मंत्रालय या जिले की अथारिटी के मशविरे के आधार पर ही वेव साईट डिजाईन करने का है। इसे अद्यतन करने की जवाबदारी एनआईसी की नहीं है।

देखा जाए तो एनआईसी के जिम्मे ही वेव साईट को अपडेट किया जाना चाहिए। जब देश के हर जिले में एनआईसी का एक कार्यालय स्थापित है तब जिले की वेव साईट पर ताजा तरीन जानकारियां एनआईसी ही करीने से अपडेट कर सकता है। चूंकि इंटरनेट  और कम्पयूटर के मामले में जिलों में बहुत ज्यादा प्रशिक्षित स्टाफ की तैनाती नहीं है इसलिए या तो ये अपनी अपनी वेव साईट अपडेट नहीं कर पाते हैं, या फिर तकनीक की जानकारी के अभाव के चलते करने से कतराते ही हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में गौतम बुद्ध नगर पूर्व में (नोएडा) में न्यू का एक साईन लिए टेंडर नोटिस लगा हुआ है, जिसमें 2008 का एक टेंडर जो 2009 में जारी कर दिया गया है आज भी विद्यमान है। इसी तरह अनेक जिलों की वेव साईट में भी सालों पुरानी जानकारियां आज भी लगी हुई हैं।

इसके अलावा एक और समस्या मुख्य तौर पर लोगों के सामने आ रही है। हर जिले की वेव साईट अलग अलग स्वरूप या फार्मेट में होने से भी लोगों को जानकारियां लेने में नाकों चने चबाने पड जाते हैं। फार्मेट अलग अलग होने से लोगों को जानकारियां जुटा पाना दुष्कर ही प्रतीत होता है। अगर शिक्षा पर ही जानकारियां जुटाना चाहा जाए तो अलग अलग जिलों में प्रदेश के शिक्षा बोर्ड और कंेद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन कितने स्कूल संचालित हो रहे हैं, उनमें कितने शिक्षक हैं, कितने छात्र छात्राएं हैं, यह जानकारी ही पूरी तरीके से उपलब्ध नहीं हो पाती है।

दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मीर, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, उडीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल आदि सूबों में शत प्रति जिलों की अपनी वेव साईट हैं, पर यह कोई नहीं बात सकता है कि ये कब अद्यतन की गई हैं। लचर व्यवस्था के चलते सरकारी ढर्रे पर चलने वाली इन वेव साईट्स से मिलने वाली आधी अधूरी और पुरानी जानकारी के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति निर्मित होना आम बात है।

देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसने देश पर आधी सदी से अधिक तक राज किया है को चाहिए कि देश भर के समस्त जिलों, संभागों की आधिकारिक वेव साईट को एक सेट फार्मेट में बनाए, और इसको अपडेट करने की जवाबदारी एनआईसी के कांधों पर डालें क्योंकि इंफरमेशन टेक्नालाजी के मामले में एनआईसी के बंदे ही महारथ हासिल रखते हैं। इसके साथ ही साथ केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि ये वेव साईट समय समय पर अपडेट अवश्य हों, इसके लिए जवाबदेही तय करना अत्यावश्यक ही है, वरना आने वाले समय में लोग कांग्रेस के भविष्य दृष्टा स्व.राजीव गांधी के बाद वाली नेहरू गांधी परिवार की पीढी को बहुत इज्जत, सम्मान और आदर की नजर से देखेंगे इस बात में संदेह ही है।

आदिवासियों का तिरस्कार बंद करे भाजपा: राजूखेड़ी


आदिवासियों का तिरस्कार बंद करे भाजपा: राजूखेड़ी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। ‘‘भारतीय जनता पार्टी द्वारा आदिवासियों का शोषण और तिरस्कार बंद होना चाहिए। मध्य प्रदेश के एक मंत्री द्वारा आदिवासियों के खिलाफ की गई टिप्पणी से आदिवासी समुदाय बुरी तरह आहत हुआ है। भाजपा को अपने एक मंत्री के इस कृत्य के लिए सार्वजनिक तौर पर माफी मांगना चाहिए।‘ उक्ताशय की बात मध्य प्रदेश के वरिष्ठ सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी द्वारा कही गई हैं।

इस संवाददाता से चर्चा के दौरान श्री राजूखेड़ी ने कहा कि मध्य प्रदेश के सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में एक आदिवासी जाति के पटवारी को जाति सूचक शब्दों का उलाहना देकर उसे सार्वजनिक स्थल पर उठक बैठक की सजा देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही साथ छिंदवाड़ा में आदिवासियों के बारे में की गई अशोभनीय टिप्पणी से साफ हो जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के मन में आदिवासियों के प्रति कितना सम्मान है।

सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी ने आगे कहा कि भाजपा का आदिवासी वनवासी अभियान ढकोसले से ज्यादा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा को आदिवासियों का तिरस्कार बंद कर उनसे सार्वजनिक तौर पर माफी मांगना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्ता के मद में चूर भाजपा न केवल आदिवासियों का वरन् शहीदों के अपमान पर भी उतर आई है। शहीद चंद्रशेखर की धरा पर उनका अपमान कर भाजपा ने अपने शहीदों के विरोधी होने का प्रमाण भी दिया है।

सरकार नहीं रोक पाई रक्षा के उपक्रमों को


सरकार नहीं रोक पाई रक्षा के उपक्रमों को

शिवराज नहीं मांग पाए डिफंेस यूनिवर्सिटी भी केंद्र से

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के हृदय प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा केंद्र सरकार से दबाव बनाकर रक्षा के उपक्रमों को प्रदेश में रोकने में असफल रही है। वहीं दूसरी और सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान द्वारा केंद्रीय रक्षा मंत्री से रक्षा विश्वविद्यालय तक की मांग करना मुनासिब नहीं समझा है। मध्य प्रदेश में बारूद बनाने के कारखाने को केंद्र सरकार द्वारा छीन ही लिया गया है।

गौरतलब है कि पंजाब सरकार द्वारा इस साल के आरंभ में रक्षा मंत्री ए.के.अंटोनी से भेंट कर पंजाब में डिफेंस विश्वविद्यालय स्थापित करने की मांग की थी। इसके लिए पंजाब सरकार द्वारा मोहाली में 125 एकड़ भूमि भी उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया था। आर्मी हेडक्वार्टर्स का एक दल मोहाली के सेक्टर 92 में 125 एकड़ जमीन का निरीक्षण भी कर चुका है। पंजाब सरकार द्वारा सूबे में नेवल विंग, एनसीसी और रीमाउंड एंड वैटनरी कार्पस स्कार्डन स्थापित करने की मांग भी की थी। मध्य प्रदेश में आर्मी के अच्छे बेस होने के बाद भी शिवराज सरकार द्वारा केंद्र से इस तरह की कोई मांग न किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जा रहा है। साथ ही मध्य प्रदेश के संसद सदस्यों द्वारा भी इस दिशा में ध्यान न देना भी शोध का ही विषय माना जा रहा है।

रक्षा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश में रक्षा संस्थानों के लिए उपयोगी वातावरण है। इस समय जबलपुर, कटनी, सागर, इटारसी आदि में रक्षा विभाग के अनेक संस्थान कार्यरत हैं। सूत्रों ने आगे कहा कि चार साल पहले संसकारधानी जबलपुर में आयुध बोर्ड द्वारा एक बारूद फेक्ट्री खोलने का फैसला किया था, जो बाद में रद्द कर दिया गया है। वैसे तो आयुध बोर्ड द्वारा मध्य प्रदेश की आबोहवा को इस कारखाने के लिए उपयुक्त नहीं होना बताया जा रहा है। फिर भी सूत्रों का कहना है कि अगर मध्य प्रदेश के नीति निर्धारक सांसद विधायक इस मामले में जोर देते तो यह कारखाना जबलपुर में स्थापित होने की उम्मीद की जा सकती थी।

हुआ-हुआ की तर्ज पर भ्रष्टाचार का मुद््दा लुप्त


त्वरित टिप्पणी

छींदा पटवारी प्रकरण...

मंत्री बिसेन की कारगुजारी

हुआ-हुआ की तर्ज पर भ्रष्टाचार का मुद््दा लुप्त

(मगन श्रीवास्तव)

हुआ-हुआकी तर्ज पर छींदा पटवारी के विरुद्घ ग्रामीणों द्वारा की गई शिकायत यानि ‘‘भ्रष्टाचार’’ का मुद््दा तो दरकिनार हो ही गया है क्षमा मांगने के बाद भी प्रदेश के सहकारिता एवं पीएचई मंत्री को पद से हटाने, उनके विरुद्घ कार्यवाही किये जाने का मामला जोर पकड़े हुए है। पटवारी संघ अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठ गया है, तो कांग्रेस और गोंडवाना पार्टी जैसे दल इस मामले का राजनैतिक लाभ उठाने में जुट गए हैं।
मंत्री श्री बिसेन द्वारा समारोह के दौरान पटवारी देवेन्द्र मर्सकोले को कान पकड़कर उठक-बैठक लगवाना तो सभी को आपत्ति और अपमान जनक लग रहा है किंतु उसके द्वारा अपने मूल कर्तव्यों के प्रति की गई लापरवाही और बिना किसी से कुछ लिए उसके काम को ना करने की उसकी प्रवृत्तिपर, जिसकी शिकायत ग्रामीणों द्वारा मंत्री जी से की गई थी उसे मंचासीन श्री बिसेन के अतिरिक्त अन्य जनप्रतिनिधियों, पदाधिकारियों को शायद अनुचित ही नहीं लगी और इसीलिए श्री बिसेन के अलावा अन्य कोई अब तक ना तो पटवारी के कार्य व्यवहार को अनुचित मान रहा है और ना ही उसकी निंदा ही कर रहा है। तब क्या ऐसा माना जाए कि पटवारी जो कर रहा था वह ठीक था? आखिर उसके भ्रष्ट आचरण को नेपथ्यमें क्यों किया जा रहा है ! क्या पटवारी संघ, कांग्रेस और गोंगपा तथा अन्य वे सभी जो इस मुद््दे को राजनैतिक रुप दे अपने-अपने ढंग से भुना रहे हैं, वे चाहते हैं कि सिर्फ  देवेन्द्र ही नहीं दूसरे सभी पटवारी और अन्य दूसरे सभी शासकीय विभागीय अधिकारी कर्मचारी इसी तरह आम जनों को परेशान करते रहें, लूटते व लटकाते रहें?
फिर जब मंत्री श्री बिसेन द्वारा इस मामले में क्षमा मांगी जाकर यह स्वीकार कर लिया गया है कि उन्होने पटवारी के कान पकड़वा उसे उठक बैठक लगवाकर गलती की है, वास्तव में उन्हे उसके विरुद्घ विभागीय कार्यवाही करवाना थाइसके बाद तो इस मामले का पटाक्षेप ही हो जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हो रहा है। आखिर क्यों?
गौर करें जिस दिन छींदा में यह घटना घटित हुई इसके कुछ ही देर बाद जब समारोह समाप्त हो चुका था और लोग सभा स्थल से जा चुके थे क्षेत्रीय विधायक और प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष ठाकुर हरवंश सिंह अपनी वापसी के दौरान उस शिक्षक के घर के सामने जा रुके जो उस दिन इस कार्यक्रम का संचालन कर रहा था। अपना वाहन रुकवाकर श्री सिंह ने उक्त शिक्षक को बुलवाया और उसे ‘‘उलाहना’’ देते हुए कहा क्यों मास्टर जी कब से भाजपाई हो गए! मंच में और सब माननीय थे हम माननीय दिखाई नहीं दे रहे थे। श्री सिंह का शिक्षक के घर रुक कर उसे इस तरह का उलहाना देना शिक्षक वर्ग को अथवा अन्य किसी को आपत्ति जनक क्यों नहीं लगा? यह ठीक है कि उक्त शिक्षक परिवार से श्री सिंह के घनिष्ठ संबंध हैं और बताया तो यह भी जाता है कि शिक्षक का पूरा परिवार कांग्रेस समर्थित है।
एक तरफ पटवारी के भ्रष्ट आचरण पर हर किसी का मौन और उसे लोक सेवक के रुप में बनाये रखने हेतु अपने विनोदीस्वभाव के चलते मंत्री श्री बिसेन के द्वारा घर परिवार के बड़े बुजुर्ग की तरह कान पकड़कर उठक-बैठक लगवा देना ना केवल उसकी बल्कि पूरे पटवारी जगत और आदिवासी समाज की प्रतिष्ठा गिरने का मुद््दा क्यों और कैसे बन गया? हमें तो यही लगता है कि यह सब एक सुनियोजित योजना का ही हिस्सा है यहां यह उल्लेखनीय होगा कि मंत्री श्री बिसेन छींदा ही नहीं अपने गृह जिले और छिंदवाड़ा के अलावा होशंगाबाद आदि में भी अधिकारी  कर्मचारियों के साथ कुछ इस तरह का व्यवहार कर चुके हैं जो उनके (अधिकारी-कर्मचारियों) कार्य व्यवहार में सुधार लाने वाला तो हो किंतु उसके कारण उन्हें विभागीय कार्यवाही का सामना ना करना पड़े। मंत्री श्री बिसेन की यही सौजन्यता और उनका विनोदी स्वभाव उनकी परेशानी का कारण बन गया है और जिसका लोग भरपूर लाभ उठा रहे हैं।
इसके अलावा एक और बात जो प्रतीत होती है वह यह कि १५ जुलाई से दैनिक दल सागर द्वारा सिवनी से गुजरने वाले चतुष्गामी मार्ग के रुके कार्य को पुनरू शुरु कराने हेतु जागृति अभियान चलाया गया है, जिसके तहत जिलेवासियों से अपने जनप्रतिनिधियों जिनमें दो सांसद और ४ विधायक हैं इनके मोबाईल नंबर दिए जाकर उन्हें फ ोन और एसएमएस कर कुछ करने की अपील की गई थी। परिणाम स्वरुप उक्त समाचार को पढने के साथ ही लोगों ने इन्हें फ ोन करना शुरु कर दिया था और ये छहों जनप्रतिनिधि मिलने वाले एमएमएस और आने वाले मोबाइल फ ोनो से त्रस्त होकर अपने अपने मोबाइल बंद करने को विवश हो गए थे तथा लोगों में इनके प्रति एक नकारात्मक सोच विकसित होने लगी थी। लगता तो यही है कि अपने प्रति उपज रही नकारात्मकता की ओर से लोगों का ध्यान बांटने के लिए यह बवंडर खड़ा न कर दिया गया हो।