धनपतियों का संसद में क्या काम!
राजनीति जनसेवा है, पूंजीपति चाहें तो वैसे ही कर सकते हैं
चार सौ चोदह फीसदी बढी है युवराज की संपत्ति पांच सालों में
करोडपति सांसदों की तादाद बढी राज्य सभा में
राज्यसभा में हैं 139 करोडपति सांसद
सांसदों की भारी होती जेबंे
(लिमटी खरे)
राजनीति जनसेवा है, पूंजीपति चाहें तो वैसे ही कर सकते हैं
चार सौ चोदह फीसदी बढी है युवराज की संपत्ति पांच सालों में
करोडपति सांसदों की तादाद बढी राज्य सभा में
राज्यसभा में हैं 139 करोडपति सांसद
सांसदों की भारी होती जेबंे
(लिमटी खरे)
देश की सबसे बडी पंचायत संसद एवं राज्यसभा के साथ ही साथ सूबों की आला पंचायत विधानसभा और विधानपरिषदों में चुने जाने वाले ‘‘जनसेवकों‘‘ की संपत्ति का समूचा ब्योरा वर्षवार अगर सार्वजनिक किया जाए तो देश की जनता चक्कर खाकर गिर पडेगी कि जनता की सेवा के लिए जनता द्वारा चुने गए नुमाईंदों के पास इतनी तादाद में दौलत आई कहां से जबकि आम जनता की क्रय शक्ति और जीवन स्तर का ग्राफ दिनों दिन नीचे आता जा रहा है। अखिर इन जनसेवकों के पास एसा कौन सा जादुई चिराग है जिससे ये अपनी संपत्ति दिन दूगनी रात चौगनी बढाते जा रहे हैं और जनता के शरीर का मांस दिनों दिन कम ही होता जा रहा है। देश में आज आधी से अधिक आबादी के पास पहनने को कपडे, रहने को छत और खाने को दो वक्त की रोटी नहीं है और इन जनसेवकों की एक एक पार्टी में लाखों पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। अनेक संसद सदस्य तो एसे भी हैं जिन्होंने आज तक यात्रा करने में रेल तो क्या यात्री बस का मुंह भी नहीं देखा। अपने या किराए से लिए गए विमानों में ही इन जनसेवकों ने लगातार यात्राएं की हैं।
2004 और 2009 में ही अगर तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चल जाएगा कि किसकी संपत्ति में कितने फीसदी इजाफा हुआ है। देश की नंगी भूखी गरीब निरीह जनता को यह जानकार आश्चर्य ही होगा कि कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढी के सदस्य एवं कांग्रेसियों के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी की संपत्ति में पांच सालों में 414.03 फीसदी की प्रत्यक्ष वृद्धि दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश सूबे से चुने गए राहुल गांधी की 2004 में घोषित संपत्ति 45 लाख 27 हजार 880 रूपए थी। पांच सालों में उन्होंने कहीं कोई उद्योग धंधा नहीं किया, बस सांसद रहे और ‘‘जनसेवा‘‘ की इस जनसेवा में उनकी संपत्ति को मानो पर लगा गए हों। 2009 मंे उनकी घोषित संपत्ति 414 फीसदी बढकर 2 करोड 32 लाख 74 हजार 706 रूपए हो गई। है न कमाल की बात। इस मामले में विपक्ष मूकदर्शक बना हुआ है।
आखिर विपक्ष मुंह खोले भी तो कैसे। राजग के पीएम इन वेटिंग को ही लिया जाए। लाल कृष्ण आडवाणी गुजरात से सांसद हैं, उन्होंने 2004 में अपनी संपत्ति एक करोड 30 लाख 42 हजार 443 रूपए घोषित की थी, जो पांच सालों में 172.52 गुना बढकर तीन करोड 55 लाख 43 हजार 172 रूपए हो गई। क्या आडवाणी और राहुल गांधी देश की जनता के सामने आकर बताने का माद्दा रखते हैं कि उनकी संपत्ति में पंख कैसे लग गए। अगर वे वाकई जनसेवा कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें धन को हर साल 82 गुना बढाने की तरकीब सभी को बतानी चाहिए। एक रूपए के अस्सी रूपए तो मुंबई का मटका किंग रतन खत्री ही देता है, वह भी सट्टे के माध्यम से। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी की कौन सी नोट छापने की फेक्टरी लगी है, इसका जवाब विपक्ष ने सवा साल में क्यों नहीं मागा यह बात समझ से परे ही है।
हमाम में सभी नग्नावस्था में ही खडे हैं, क्या कांग्रेस, क्या भाजपा, क्या दूसरे दल और क्या निर्दलीय। संसद चाहे लोकसभा हो या राज्य सभा इस हमाम के बाहर सभी एक दूसरे के खिलाफ नैतिकता की तलवार लिए खडे होकर जनता को बेवकूफ बनाने का स्वांग रचते हैं, और जैसे ही हमाम के अंदर प्रवेश करते हैं, सारी की सारी नेतिकता को वे अपने कपडों की तरह हमाम के बाहर उतारकर छोड जाते हैं। जार्ज फर्नाडिस की संपत्ति तीन करोड 39 लाख 87 हजारा चार सौ दस रूपए थी जो पांच सालांे में 180.81 फीसदी बढकर 9 करोड 54 लाख 39 हजार 978 हो गई। आरजेडी के सुप्रीमो और चारा घोटाला के आरोपी स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव की संपत्ति महज 86 लाख 69 हजार 342 थी, जिसमें 365.69 फीसदी उछाल दर्ज किया गया है, यह 2009 में बढकर तीन करोड 17 लाख दो हजार 693 हो गई।
सबसे अधिक उछाल उत्तर प्रदेश के सांसद अक्षय प्रताप सिंह की संपत्ति में ही दर्ज किया गया है। इनकी संपत्ति 2004 में 21 लाख 69 हजार 847 रूपए थी, जो पांच सालों में महज 1841.06 गुना ही बढी और 2009 में बढकर चार करोड 21 लाख 18 हजार 96 रूपए हो गई। संपत्ति में उछाल के मामले में दूसरी पायदान पर सचिन पायलट हैं। सचिन की संपत्ति पांच सालों में 1746 गुना बढी है। पहले यह दो करोड 51 लाख नो हजार थी, जो 2009 में बढकर 46 करोड, 48 लाख नो हजार पांच सौ अठ्ठावन हो गई है। तीसरी पायदान पर मध्य प्रदेश के समाजवादी संसद सदस्य चंद्र प्रताप सिंह हैं, जिनकी संपत्ति 7 लाख 95 हजार 619 से 1466.69 गुना बढकर 12 करोड 46 लाख चार हजार नो सौ बाईस रूपए हो गई है। चौथे नंबर पर वसुंधरा राजे के पुत्र राजस्थान के सांसद दुष्यंत सिंह हैं। इनकी संपत्ति पहले सात लाख 82 हजार 67 रूपए से 790.34 गुना बढकर छः करोड तीस लाख चउअन हजार 275 रूपए हो गई है। पांचवें नंबर पर दुष्यंत के ममेरे बेटे और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। उनकी संपत्ति मेें 430.83 फीसदी इजाफा हुआ है। इनकी संपत्ति 2004 में 2 करोड 80 लाख 87 हजार 39 थी, जो बढकर 2009 में 14 करोड 90 लाख 94 हजार 212 रूपए हो गई।
इतना ही नहीं यह फेहरिस्त काफी लंबी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित सेंतालीस लाख चोंसठ हजार नो सौ एक रूपए से अपनी संपत्ति को पांच सालों में बढाकर 2 करोड 27 लाख 46 हजार चार सौ अठ्ठाईस तक अर्थात 377.37 फीसदी ही बढा सके। जेवीएम नेता झारखण्ड के बाबूलाल मरांडी इस मामले में कंधे से कंधा मिलाकर ही चल रहे हैं। वे अपनी संपत्ति को पांच लाख से 327.54 फीसदी बढाकर 21 लाख 37 हजार 675 रूपए तक ले गए। बीमार पडे जार्ज फर्नाडिस की संपत्ति अपने आप ही बढती जा रही है। उनकी संपत्ति 3 करोड 39 लाख, 87 हजार 410 रूपए से 265.69 गुना बढकर 2009 में नो करोड 54 लाख 39 हजार 798 रूपए हो गई है।
इस साल के आरंभ तक पीछे के रास्ते से संसदीय सौंध में पहुंचने वाले जनसेवकों में से सौ करोडपति सांसद थे। राज्य सभा को पीछे का रास्ता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रवेश के लिए नेताओं को जनता का विश्वास हासिल नहीं करना होता है। इसके लिए जनता के चुने विधायकों द्वारा ही संसद सदस्य का चुनाव किया जाता है, इस तरह कुल मिलाकर अच्छे प्रबंधक, ध्नबल, बाहुबल अर्थात इसमें प्रवेश की ताकत सिर्फ और सिर्फ महाबली ही रखते हैं। राज्य सभा में राहुल बजाज के पास तीन सौ करोड तो जया बच्चन के पास 215 करोड रूपए, और तो और अमर सिंह के पास 79 करोड की संपत्ति है। जनता दल के एमएएम रामास्वामी के पास 278 करोड, टी.कांग्रेस के सुब्बारामी रेड्डी 272 करोड की संपत्ति है। अप्रेल तक राज्य सभा में 33 सांसद कांग्रेस के, भाजपा के 21 और समाजवादी पार्टी के सात सांसद करोडपति थे। वर्तमान में राज्यसभा पहुंचे 49 सांसदों में से 38 सांसद करोडपति हैं।
हमारे मतानुसार भारत गणराज्य में रहने वाली भूखी, अधनंगी, बिना छत और बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसती आम जनता को यह जानने का हक है कि आखिर ‘‘आलादीन का कौन सा जिन्न‘‘ इन जनसेवकों के पास है जिसे घिसकर ये जनसेवक पांच सालों में अपनी संपत्ति को कई गुना बढा लेते हैं, वहीं दूसरी ओर देश में आम जनता का जीवन स्तर कई गुना नीते आता जा रहा है। भारत सरकार को चाहिए कि जनसेवकों के लिए नया कानून बनाकर जिसकी संपत्ति पचास लाख से अधिक हो उसकी संपत्ति को देश की संपत्ति मानकर उसका उपयोग आम जनता के कल्याण के लिए करने का नियम बनाए। इससे संसद और विधानसभाओं में धनपतियों का आना रूक सकेगा। धनपति की सोच विशुद्ध व्यापारिक होती है, उसे आवाम के दुख दर्द से कोई लेना देना नहीं होता है। सरकार के साथ ही साथ रियाया को भी अब जागना होगा, वरना कहीं देर न हो जाए और धनपति देश और सूबों की पंचायतों मंे बैठकर देश प्रदेश को अपने निहित स्वार्थ और लाभ के चलते विदेशियों के हाथों गिरवी न रख दें।