सोमवार, 21 जून 2010

जनता का गला काट अपनी जेबें भर रहे जनसेवक

धनपतियों का संसद में क्या काम!
राजनीति जनसेवा है, पूंजीपति चाहें तो वैसे ही कर सकते हैं

चार सौ चोदह फीसदी बढी है युवराज की संपत्ति पांच सालों में

करोडपति सांसदों की तादाद बढी राज्य सभा में

राज्यसभा में हैं 139 करोडपति सांसद

सांसदों की भारी होती जेबंे

(लिमटी खरे)

देश की सबसे बडी पंचायत संसद एवं राज्यसभा के साथ ही साथ सूबों की आला पंचायत विधानसभा और विधानपरिषदों में चुने जाने वाले ‘‘जनसेवकों‘‘ की संपत्ति का समूचा ब्योरा वर्षवार अगर सार्वजनिक किया जाए तो देश की जनता चक्कर खाकर गिर पडेगी कि जनता की सेवा के लिए जनता द्वारा चुने गए नुमाईंदों के पास इतनी तादाद में दौलत आई कहां से जबकि आम जनता की क्रय शक्ति और जीवन स्तर का ग्राफ दिनों दिन नीचे आता जा रहा है। अखिर इन जनसेवकों के पास एसा कौन सा जादुई चिराग है जिससे ये अपनी संपत्ति दिन दूगनी रात चौगनी बढाते जा रहे हैं और जनता के शरीर का मांस दिनों दिन कम ही होता जा रहा है। देश में आज आधी से अधिक आबादी के पास पहनने को कपडे, रहने को छत और खाने को दो वक्त की रोटी नहीं है और इन जनसेवकों की एक एक पार्टी में लाखों पानी की तरह बहा दिए जाते हैं। अनेक संसद सदस्य तो एसे भी हैं जिन्होंने आज तक यात्रा करने में रेल तो क्या यात्री बस का मुंह भी नहीं देखा। अपने या किराए से लिए गए विमानों में ही इन जनसेवकों ने लगातार यात्राएं की हैं।

2004 और 2009 में ही अगर तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो पता चल जाएगा कि किसकी संपत्ति में कितने फीसदी इजाफा हुआ है। देश की नंगी भूखी गरीब निरीह जनता को यह जानकार आश्चर्य ही होगा कि कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री और नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढी के सदस्य एवं कांग्रेसियों के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी की संपत्ति में पांच सालों में 414.03 फीसदी की प्रत्यक्ष वृद्धि दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश सूबे से चुने गए राहुल गांधी की 2004 में घोषित संपत्ति 45 लाख 27 हजार 880 रूपए थी। पांच सालों में उन्होंने कहीं कोई उद्योग धंधा नहीं किया, बस सांसद रहे और ‘‘जनसेवा‘‘ की इस जनसेवा में उनकी संपत्ति को मानो पर लगा गए हों। 2009 मंे उनकी घोषित संपत्ति 414 फीसदी बढकर 2 करोड 32 लाख 74 हजार 706 रूपए हो गई। है न कमाल की बात। इस मामले में विपक्ष मूकदर्शक बना हुआ है।

आखिर विपक्ष मुंह खोले भी तो कैसे। राजग के पीएम इन वेटिंग को ही लिया जाए। लाल कृष्ण आडवाणी गुजरात से सांसद हैं, उन्होंने 2004 में अपनी संपत्ति एक करोड 30 लाख 42 हजार 443 रूपए घोषित की थी, जो पांच सालों में 172.52 गुना बढकर तीन करोड 55 लाख 43 हजार 172 रूपए हो गई। क्या आडवाणी और राहुल गांधी देश की जनता के सामने आकर बताने का माद्दा रखते हैं कि उनकी संपत्ति में पंख कैसे लग गए। अगर वे वाकई जनसेवा कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर उन्हें धन को हर साल 82 गुना बढाने की तरकीब सभी को बतानी चाहिए। एक रूपए के अस्सी रूपए तो मुंबई का मटका किंग रतन खत्री ही देता है, वह भी सट्टे के माध्यम से। कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी की कौन सी नोट छापने की फेक्टरी लगी है, इसका जवाब विपक्ष ने सवा साल में क्यों नहीं मागा यह बात समझ से परे ही है।

हमाम में सभी नग्नावस्था में ही खडे हैं, क्या कांग्रेस, क्या भाजपा, क्या दूसरे दल और क्या निर्दलीय। संसद चाहे लोकसभा हो या राज्य सभा इस हमाम के बाहर सभी एक दूसरे के खिलाफ नैतिकता की तलवार लिए खडे होकर जनता को बेवकूफ बनाने का स्वांग रचते हैं, और जैसे ही हमाम के अंदर प्रवेश करते हैं, सारी की सारी नेतिकता को वे अपने कपडों की तरह हमाम के बाहर उतारकर छोड जाते हैं। जार्ज फर्नाडिस की संपत्ति तीन करोड 39 लाख 87 हजारा चार सौ दस रूपए थी जो पांच सालांे में 180.81 फीसदी बढकर 9 करोड 54 लाख 39 हजार 978 हो गई। आरजेडी के सुप्रीमो और चारा घोटाला के आरोपी स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव की संपत्ति महज 86 लाख 69 हजार 342 थी, जिसमें 365.69 फीसदी उछाल दर्ज किया गया है, यह 2009 में बढकर तीन करोड 17 लाख दो हजार 693 हो गई।

सबसे अधिक उछाल उत्तर प्रदेश के सांसद अक्षय प्रताप सिंह की संपत्ति में ही दर्ज किया गया है। इनकी संपत्ति 2004 में 21 लाख 69 हजार 847 रूपए थी, जो पांच सालों में महज 1841.06 गुना ही बढी और 2009 में बढकर चार करोड 21 लाख 18 हजार 96 रूपए हो गई। संपत्ति में उछाल के मामले में दूसरी पायदान पर सचिन पायलट हैं। सचिन की संपत्ति पांच सालों में 1746 गुना बढी है। पहले यह दो करोड 51 लाख नो हजार थी, जो 2009 में बढकर 46 करोड, 48 लाख नो हजार पांच सौ अठ्ठावन हो गई है। तीसरी पायदान पर मध्य प्रदेश के समाजवादी संसद सदस्य चंद्र प्रताप सिंह हैं, जिनकी संपत्ति 7 लाख 95 हजार 619 से 1466.69 गुना बढकर 12 करोड 46 लाख चार हजार नो सौ बाईस रूपए हो गई है। चौथे नंबर पर वसुंधरा राजे के पुत्र राजस्थान के सांसद दुष्यंत सिंह हैं। इनकी संपत्ति पहले सात लाख 82 हजार 67 रूपए से 790.34 गुना बढकर छः करोड तीस लाख चउअन हजार 275 रूपए हो गई है। पांचवें नंबर पर दुष्यंत के ममेरे बेटे और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। उनकी संपत्ति मेें 430.83 फीसदी इजाफा हुआ है। इनकी संपत्ति 2004 में 2 करोड 80 लाख 87 हजार 39 थी, जो बढकर 2009 में 14 करोड 90 लाख 94 हजार 212 रूपए हो गई।

इतना ही नहीं यह फेहरिस्त काफी लंबी है। दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित सेंतालीस लाख चोंसठ हजार नो सौ एक रूपए से अपनी संपत्ति को पांच सालों में बढाकर 2 करोड 27 लाख 46 हजार चार सौ अठ्ठाईस तक अर्थात 377.37 फीसदी ही बढा सके। जेवीएम नेता झारखण्ड के बाबूलाल मरांडी इस मामले में कंधे से कंधा मिलाकर ही चल रहे हैं। वे अपनी संपत्ति को पांच लाख से 327.54 फीसदी बढाकर 21 लाख 37 हजार 675 रूपए तक ले गए। बीमार पडे जार्ज फर्नाडिस की संपत्ति अपने आप ही बढती जा रही है। उनकी संपत्ति 3 करोड 39 लाख, 87 हजार 410 रूपए से 265.69 गुना बढकर 2009 में नो करोड 54 लाख 39 हजार 798 रूपए हो गई है।

इस साल के आरंभ तक पीछे के रास्ते से संसदीय सौंध में पहुंचने वाले जनसेवकों में से सौ करोडपति सांसद थे। राज्य सभा को पीछे का रास्ता इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि इसमें प्रवेश के लिए नेताओं को जनता का विश्वास हासिल नहीं करना होता है। इसके लिए जनता के चुने विधायकों द्वारा ही संसद सदस्य का चुनाव किया जाता है, इस तरह कुल मिलाकर अच्छे प्रबंधक, ध्नबल, बाहुबल अर्थात इसमें प्रवेश की ताकत सिर्फ और सिर्फ महाबली ही रखते हैं। राज्य सभा में राहुल बजाज के पास तीन सौ करोड तो जया बच्चन के पास 215 करोड रूपए, और तो और अमर सिंह के पास 79 करोड की संपत्ति है। जनता दल के एमएएम रामास्वामी के पास 278 करोड, टी.कांग्रेस के सुब्बारामी रेड्डी 272 करोड की संपत्ति है। अप्रेल तक राज्य सभा में 33 सांसद कांग्रेस के, भाजपा के 21 और समाजवादी पार्टी के सात सांसद करोडपति थे। वर्तमान में राज्यसभा पहुंचे 49 सांसदों में से 38 सांसद करोडपति हैं।

हमारे मतानुसार भारत गणराज्य में रहने वाली भूखी, अधनंगी, बिना छत और बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसती आम जनता को यह जानने का हक है कि आखिर ‘‘आलादीन का कौन सा जिन्न‘‘ इन जनसेवकों के पास है जिसे घिसकर ये जनसेवक पांच सालों में अपनी संपत्ति को कई गुना बढा लेते हैं, वहीं दूसरी ओर देश में आम जनता का जीवन स्तर कई गुना नीते आता जा रहा है। भारत सरकार को चाहिए कि जनसेवकों के लिए नया कानून बनाकर जिसकी संपत्ति पचास लाख से अधिक हो उसकी संपत्ति को देश की संपत्ति मानकर उसका उपयोग आम जनता के कल्याण के लिए करने का नियम बनाए। इससे संसद और विधानसभाओं में धनपतियों का आना रूक सकेगा। धनपति की सोच विशुद्ध व्यापारिक होती है, उसे आवाम के दुख दर्द से कोई लेना देना नहीं होता है। सरकार के साथ ही साथ रियाया को भी अब जागना होगा, वरना कहीं देर न हो जाए और धनपति देश और सूबों की पंचायतों मंे बैठकर देश प्रदेश को अपने निहित स्वार्थ और लाभ के चलते विदेशियों के हाथों गिरवी न रख दें।

अर्जुन के पेंतरे से घबराई कांग्रेस

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
अंततः अर्जुन ने चला ही दिया ब्रम्हास्त्र
भोपाल गैस कांड के वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कुंवर अर्जुन सिह जो कि पिछले दो सालों से निर्वासित जीवन जी रहे थे, ने अपना मौन चिरपरिचित अंदाज में तोड ही दिया है। बीसवीं सदी के अंतिम दशकों में कांग्रेस के माने हुए चाणक्य ने भोपाल गैस कांड से जुडे अनछुए पहलुओं के बारे में एक समाचार पत्र को दिए साक्षात्कार में साफ कह दिया है कि वे उस मसले में जो भी बात कहेंगे वह उनकी ‘‘आत्मकथा‘‘ का हिस्सा बनेगी। साक्षात्कार में कुंवर साहेब ने साफ शब्दों में कहा है कि एंडरसन अगर भारत लोटा था तो वह राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार के इस भरोसे पर लौटा था कि उसे भोपाल से वापस अमेरिका भेज दिया जाएगा। अर्जुन के इस ब्रम्हास्त्र से कांग्रेस अब रक्षात्मक मुद्रा में दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि भोपाल गैस कांड के वक्त देश में नेहरू गांधी परिवार की चौथी पीढी के सदस्य राजीव गांधी देश के वजीरे आजम थे, और आज उनकी अर्धांग्नी श्रीमति सोनिया गांधी कांग्रेस की राजमाता की भूमिका में हैं, एवं कांग्रेस की नजरों में पांचवी पीढी के राहुल गांधी देश की बागडोर संभालने को आतुर दिख रहे हैं। कांग्रेस के प्रबंधकों की राय के चलते सोनिया ने कुंवर अर्जुन सिंह को दूध में से मख्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक दिया है। भोपाल गैस कांड के फैसले के उपरांत उनके सरकारी आवास में लाल बत्ती और हूटर्स की आवाजें फिर गूंजने लगीं हैं। अर्जुन सिंह ने अभी सिर्फ इशारा किया है, अगर उन्होंने साफ तौर पर कुछ कह दिया तो आने वाले दो तीन दशकों तक कांग्रेस इस बदनुमा दाग को शायद ही धो पाए।
राशि पीडितों के लिए थी आपके लिए नहीं नितीश जी
बिहार का दर्द माना जाता है कोसी नदी को। हर साल कोसी नदी की बाढ से बिहार वासी बुरी तरह प्रभावित होते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की इमदाद इसमें पूरी नहीं पडती है। देश भर के हर सूबे से लोग कोसी नदी के प्रभावितों के लिए मदद भेजते हैं। इसी तारतम्य में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राज्य की ओर से पांच करोड रूपए की राशि की सहायता पहुंचाई थी, जिसे बिहार के निजाम नितीश कुमार ने वापस लौटा दिया है। पिछले दिनों नितीश कुमार और नरेंद्र मोदी के फोटो युक्त विज्ञापनों से नितीश कुमार खासे खफा हैं, क्योंकि मोदी ने भाजपा की कार्यकारिणी में भी इस इमदाद का जिकर कर दिया था। नितीश के पैसा वापस करते ही सियासत की बासी फिर उबाल मारने लगी है। कांग्रेस का कहना है कि यह गुजरात की जनता का अपमान है, तो भाजपा इसे सीधे सीधे स्वाभिमान पर ठेस का मामला मान रही है। आपसी अहं और सियासी लाभ हानी का गणित अपने आप में अलग मामला हो सकता है पर नितीश कुमार को कम से कम इस मामले को मानवीय नजरिए से देखना चाहिए था। कारण चाहे जो भी हो पर यह राशि मोदी ने नितीश कुमार को व्यक्तिगत खर्च के लिए नहीं वरन कोसी प्रभावितों के लिए दी थी, और अपने अहं को निश्चित तौर पर नितीश को प्रथक ही रखना चाहिए था।
युवराज का अधेडावस्था में प्रवेश
कांग्रेस के युवराज ने चालीस बसंत देख लिए हैं, वे अब अधेडावस्था में कदम रख चुके हैं, फिर भी युवा और उर्जावान का तगमा उनके साथ है। नोकरी पेशा में जरूर साठ साल में सेवा निवृति का नियम हो या लोग बचकानी या बेहूदगी की बात पर ‘‘सठिया गए हैं‘‘ अर्थात साठ पूरे कर चुके हैं का मुहावरा कहें पर राजनीति में युवा की आयु 45 से 65 मानी जाती है। अरे देश जो चला रहे हैं राजनेता तो उनके हिसाब से अगर 45 से 65 की आयु युवा की है तो मानना ही पडेगा। इस हिसाब से कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी अभी बच्चे हैं, पांच साल के उपरांत वे युवा होंगे। विदेशों में पले बढे देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने और आजादी की लडाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अपना चालीसवां जन्म दिन हिन्दुस्तान में किसी दलित की झोपडी में मनाने के बजाए हिन्दुस्तान पर हुकूमत करने वाले ब्रिटेन के लंदन शहर में मनाना उचित समझा। हो सकता है कि दलित और गरीब प्रेम के प्रहसन से राहुल गांधी उकता चुके हों और वे खुली हवा में विदेश में जाकर चेन की सांस लेने की इच्छा रख रहे हों।
घट सकती है बिटियों की तादाद
देश में एक बार फिर स्त्री पुरूष के अनुपात में और अधिक गिरावट होने की आशंका जताई जा रही है। चालू जनगणना में प्रति हजार पुरूषों पर महिलाओं की तादाद में और कमी आ सकती है। 2001 में शून्य से छः वर्ष तक की आयु वर्ग में प्रति एक हजार बालक पर बालिकाओं की तादाद 927 ही रह गई थी। वैसे यह अनुपात 931 का है पर शून्य से छ साल में पांच की कमी आई थी, जो चिन्ता का विषय थी। आने वाले समय में इसी आयु वर्ग में जनसंख्या में अनुपातिक कमी दर्ज होने की आशंका निर्मूल नहीं कही जा सकती है। 2004 में यह बालिकाओं की संख्या 892, तो 2005 से 2007 के मध्य यह संख्या बढकर नौ सौ पार हो गई थी, इसके बाद 2006 से 2008 के मध्य यह 904 तक ही पहुंची थी। इस जनगणना में उम्मीद जताई जा रही है कि शून्य से छः साल के बीच प्रति हजार बालकों में बालिकाओं की संख्या 915 के उपर शायद ही पहुंच सके। अगर एसा है तो बालिका बचाओ के सरकारी नारे पर व्यय होने वाली करोडों अरबों रूपए की राशि कौन डकार गया इस बात के लिए एक आयोग का गठन करना ही होगा।
पेंच के निर्माण को तुडवाओ जयराम जी
लगता है केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को सिर्फ और सिर्फ भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ से ही कोई शिकवा शिकायत है, तभी तो एसा लगता है कि चाहे कुछ हो जाए पर वे एनएचएआई के मध्य प्रदेश के सिवनी जिले से होकर गुजरने वाले हिस्से को पेंच नेशनल पार्क के आसपास से गुजरने नहीं देंगे। यह कारण है कि इसका निर्माण आज भी बंद पडा हुआ है, महज बीस किलोमीटर की सडक ही नहीं बनी है। इस सडक का रखरखाव भी कोई नहीं कर रहा है सो इसकी चमडी उधड चुकी है। सडका का निर्माण करने वाली कंपनी ने मध्य प्रदेश की सीमा पर खवासा के पास पांच सौ मीटर के हिस्से को बनाने से हाथ खडे कर लिए हैं। जयराम रमेश को सडक बनने से पर्यावरण का नुकसान तो दिख रहा है, किन्तु पेंच नेशनल पार्क में धडाधड बन रहे रिसोर्ट काटेज और निर्माण कार्य नहीं दिख रहे हैं, जिससे पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। पेंच नेशनल पार्क से लगी आदिवासियों की बेशकीमति जमीन कोडियों के दाम धन्नासेठ खरीदकर इन पर आलीशान होटल बनवा रहे हैं। अरे रमेश जी, कम से कम इन निर्माण को तुडवाओ और वन्य जीवों के साथ ही साथ पर्यावरण का नुकसान होने से बचाएं।
देशी नहीं अंग्रेजी कहो जनाब!
देशी और अंग्रेजी शराब में बहुत अंतर होता है। नशा दोनों का एक जैसा हो सकता है, पर सूरत सीरत अलग अलग ही होती है, स्वाद और सुगंध या दुर्गंध अलग होती है। आने वाले समय में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में देशी शराब पीने वालों को अंग्रेजी का जायका मिलेगा। यह शुद्ध होने के साथ ही साथ मदिरा सेवन करने वालों के शरीर के लिए तुलनात्मक कम हानिकारक होगी। अब तक दिल्ली में बिकने वाली देशी शराब को रेक्टीफाईड एल्कोहल से बनाया जाता है, पर अब इसके निर्माण में एक्सट्रा न्यूट्रल एल्कोहल का प्रयोग किया जाएगा। देशी शराब में अल्कोहल की तादाद 28.5 तो अंग्रेजी में 42.8 होती है, देशी शराब को जिससे बनाया जाता है, वह शरीर के लिए काफी घातक हो जाता है। वैसे भी दिल्ली में बेवडों ने सारे रिकार्ड ही ध्वस्त कर रखे हैं। अवैध और जहरीली शराब के मामले में भी दिल्ली ने पताके गाड रखे हैं। जहरीली शराब पीकर मरने वालों की तादाद सबसे अधिक दिल्ली में ही है। एसे में अगर सरकार बेवडों का ध्यान रखे तो कम से मयकशों को तो शीला दीक्षित सरकार को सलाम बजाना ही चाहिए।
रहें अतिरिक्त करारोपण के लिए तैयार
आने वाले समय में मंहगाई से टूट चुकी आम आदमी की कमर और बुरी तरह टूटने की आशंका है। मानव संसाधन और विकास मंत्रालय एक एसी योजना बनाने जा रहा है जिसमें देश भर के पचास लाख से अधिक स्कूली शिक्षकों को कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। सूत्रों की मानें तो मानव संसाधन विकास मंत्री ने एक एसा खाका तैयार किया है, जिसमें शिक्षकों का बीमा, चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाएगी। इसके साथ ही साथ उन्हें सस्ती दरों पर निवास के लिए मकान भी उपलब्ध कराए जा सकते हैं। बताते हैं कि मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के एक चहेते ने अपने बिल्डर मित्र के कहने पर सिब्बल ने मकान उपलब्ध कराने पर सहमति जता दी है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि पचास लाख से अधिक मकानों के निर्माण के लिए केंद्रीय स्तर पर ही टेंडर प्रक्रिया अपनाई जाएगी। बीमा, मकान और चिकित्सा सुविधा में होने वाले व्यय का भोगमान अंततोगत्वा अतिरिक्त करारोपण कर आम जनता की जेब से ही वसूला जाएगा, सो कमर टूटा आम आदमी रहे आगे और टूटने को तैयार।
बनारस के रईस भिखारी!
भीख वही मांगता है जिसके पास कुछ नहीं होता है। न खाने को हो न पहनने को और न ही ओढने को तभी कहा जाता है किसी को भिखारी। देश की धार्मिक नगरी बनारस में भिखारी के मायने कुछ और ही समझ में आ रहे हैं। बनारस के गंगा तट पर फिल्मी भजनों को गाकर भीख मांगने वाले भिखारियों की असलियत जानकर आप दांतों तले उंगली दबा लेंगे। इन भिखारियों के पास मोबाईल, पेन कार्ड, बैंक खाते, बीमा पालिसी, मकान, दुकान, गाडी क्या क्या नहीं है इनके स्वामित्व में। बनारस में भिखारियों की संख्या पच्चीस हजार से अधिक है जिनमें से पांच हजार से अधिक भिखारी गंगा के घाट और मंदिरों में बैठकर श्रृद्धालुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड करते हैं। एक भिखारिन की तीन बच्चियां कान्वेंट में पढती हैं, तो कई के नाम पर बचत खातों में हजारों रूपए हैं। पांच बरस पहले संकटमोचन हनुमान मंदिर के पास मरे एक भिखारी के बिस्तर से पुलिस ने लगभग दो लाख रूपए की रकम भी बरामद की थी। सच ही है भीख मांगना भी आजकल मुनाफे का व्यवसाय बन गया है।
कांग्रेसी संस्कृति से दूर रहें भाजपाई
भाजपा के निजाम नितिन गडकरी का कहना है कि कांग्रेस की पांव छूने और माला पहनाने की संस्कृति से भाजपा को दूर ही रहना चाहिए। भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के सम्मेलन में नितिन गडकरी ने यह गर्जना की। दरअसल कार्यकर्ता नेताओं से करीबी बनाने के चक्कर में उनके पैर पडने और माला पहनाने को आतुर रहते हैं। नेताओं की गणेश परिक्रमा के कारण नेताओं के कद पार्टी से बडे होने लगे हैं। यही कारण है कि व्यापक जनाधार वाली पार्टियों के बजाए अब उनका स्थान छोटे दलों अथवा निर्दलियों ने ले लिया है। कांग्रेस में गणेश परिक्रमा जबर्दस्त हावी हो चुकी है। अब तो एक ही जिले में अनेक नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा के कारण कार्यकर्ता गुटों में बंटे नजर आते हैं, यही कारण है कि पार्टियांे का ग्राफ नीचे की ओर जाता जा रहा है। नितिन गडकरी ने बहुत ही सही नस को पकडा है, मगर समस्या इस बात की है कि गडकरी के इस मशविरे को मानेगा कौन। पैर पडवाने और माला पहनने के आदी हो चुके नेताओं क्या गडकरी की नसीहत रास आएगी!
सपनि बंद होने से पूर्व विधायक परेशान
देश के हृदय प्रदेश में मध्य प्रदेश राज्य सडक परिवहन निगम (सपनि) के बंद होने से पूर्व विधायक और मीडिया बिरादरी बुरी तरह हलाकान परेशान हैं। दरअसल पूर्व विधायकों और मीडिया के अधिमान्य पत्रकारों को सपनि में निशुल्क यात्रा करने का अधिकार पत्र प्राप्त है। पूर्व में विधायक, पूर्व विधायक और पत्रकार यात्री बस में निशुल्क यात्रा के लिए अधिकृत हुआ करते थे। मध्य प्रदेश से सटे महाराष्ट्र सूबे में पूर्व विधायकों को यह सुविधा मुहैया है। मध्य प्रदेश के पूर्व विधायक इस सुविधा को बहाल करने के लिए लामबंद भी हुए थे, पर नतीजा सिफर ही था। पिछले साल पूर्व विधायक मंडल के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस संबंध में पत्र भी लिखा था। पूर्व विधायक तो होश में आ गए पर अधिमान्य पत्रकारों ने इस बारे में अभी मानस तैयार ही नहीं किया है कि क्या कदम उठाए जाएं। लगता है भारतीय रेल में पचास फीसदी में यात्रा कर ही मीडिया बिरादरी संतोष कर रही है।
थाने में जप्त कार का कटा चालान!
क्या यह संभव है कि कोई कार थाने में जप्त कर ली गई हो और जप्त अवधि में ही उसका चालान दूसरे थाना क्षेत्र में काट दिया गया हो। जी हां दिल्ली के रोहणी निवासी जी.बी.सिंह के साथ कुछ इसी तरह का वाक्या हुआ। 27 दिसंबर 2003 को किसी मामले में शकरपुर थाने के स्टाफ ने उनकी कार को जप्त कर लिया था, और कोर्ट के आदेश पर 5 मार्च 2004 को उसे सुपर्दनामे पर सौंपा था। दिल्ली यातायात पुलिस की मुस्तैदी देखिए 13 फरवरी 2004 को उसकी कार में बिना सीट बेल्ट बांधकर चलाने के जुर्म में चालान काट दिया गया। अरे भले मानस जिस कार को थाने में जप्त कर दिया गया हो, वह सडक पर कैसे दौड सकती है, और कौन उसमें बिना सीट बेल्ट बांधे जा सकता है। हो सकता है शकरपुर थाने वाले ही जप्तशुदा कार में बिना सीट बेल्ट बांधे सफर कर रहे हों। बहरहाल, कडकडडूमा कोर्ट ने याचिका कर्ता की अपील पर आदेश दिया कि 1653 रूपए का मुआवजा सिंह को दिया जाए। दिल्ली पुलिस अदालत के इस आदेश को भी धता बताने से नहीं चूक रही है।
कानून के दायरे से बाहर हैं जनसेवकों के बंग्ले
नियम कायदे कानून बनाना नौकरशाह और राजनेताओं अर्थात जनसेवकों का काम है, पर उसका पालन करने में उन्हें पूरी छूट मिलती है। राजस्थान में इसकी जीती जागती मिसाल देखने को मिल रही है। राजस्थान में जितने भी बंग्ले मंत्री या अफसरान के हैं उनमें इसकी तस्वीर साफ दिखाई पड जाती है कि नियम कायदों की कितनी परवाह है उन्हें। राजस्थान में भवन मालिकों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। इसके लिए भवन मालिकों को बाकायदा नोटिस भी जारी किए गए हैं। मजे की बात तो यह है कि गुलाबी शहर जयपुर में पांच सौ वर्ग मीटर से अधिक साईज वाले नेता मंत्री अफसरान के बंग्लों में न तो वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ही लगा है और न ही बिजली और पानी की बचत का कोई प्रयास किया जाता है। भरी गरमी में जब जनता पानी पानी चिल्ला रही थी, तब इन जनसेवकों के बंग्लों के बाग बगीचे पानी से तर हुआ करते थे। बताते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री के आवास को छोडकर किसी भी सरकारी आवास में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगा हुआ है।
पुच्छल तारा
दिल्ली सरकार चोरी और सीना जोरी के लिए बहुत ही बदनाम हो चुकी है। कोई भी काम दिल्ली में अगर हो रहा हो तो वह समय सीमा में तो पूरा हो ही नहीं सकता है। इस साल के अंत में होने वाले कामन वेल्थ गेम्स को ही ले लें। पूरी दिल्ली का सीना खुदा पडा है। जहां तहां हवा में उडती धूल नागरिकों का स्वास्थ्य बिगाड रही है। इस खेल के लिए अभी तैयारी अधूरी ही है। इसी पर केंद्रित एक मजेदार ईमल भेजा है रोहणी दिल्ली निवासी अभिषेक दुबे ने। वे लिखते हैं अखबार में एक खबर छपी कि कामन वेल्थ गेम्स की टिकिटों की बिक्री शुरू। इसे पढकर उनके एक मित्र ने चुटकी ली - ‘‘सडकें, स्टेडियम, पानी की निकासी की योजना, साफ पेयजल आदि तैयार नहीं, फिर भी टिकिटें बेच लेंगे। मानते हैं सरकार को, इसी को कहते हैं असली दिलेरी