शनिवार, 19 सितंबर 2009

सांसद से असंसदीय व्यवहार!

सांसद से असंसदीय व्यवहार!

(लिमटी खरे)

देश की सबसे बड़ी पंचायत के एक वर्तमान तो एक पूर्व पंच (संसद सदस्य) का सामान सरेआम फेका जाना निंदनीय ही कहा जाएगा। छत्तीसगढ़ के राज्य सभा सांसद नंद कुमार साय वर्तमान में सांसद हैं, तथा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के सुप्रीमो रामदास अठवाले पूर्व सांसद हैं। दोनों ही का सामान उनके घरों के बाहर कर दिया गया है, दोनों ही नेताओं को बेघर तब किया गया जब वे दिल्ली में मौजूद नहीं थे।
आजादी के उपरांत भारतीय लोकतंत्र में यह व्यवस्था दी गई थी कि विधायकों को उस प्रदेश की राजधानी और सांसदों को देश की राजनैतिक राजधानी में निवास करने के लिए पात्रतानुसार छोटे या बड़े आवास आवंटित किए जाएं। इसी आधार पर अब तक यह व्यवस्था सुनिश्चित होती रही है। अमूमन सांसद या विधायक न रहने पर नेताओं को छ: माह के अंदर ही अपना सरकारी आशियाना रिक्त करना होता है।
वर्तमान में सरकार के गठन को चार माह का समय भी नहीं बीता है और लोकसभा सचिवालय ने नादिरशाही फरमान के जरिए सांसदों के आवासों को इस तरह खाली करवा दिया मानो किसी सक्षम न्यायालय के आदेश पर किसी का सामान बाहर फिकवाया जा रहा हो।
बेघर सांसदों और मंत्रियों की फेहरिस्त वैसे तो काफी लंबी चौड़ी है। पांच सितारा होटल को निवास बनाने से चर्चा में आए विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा, राज्य मंत्री शशि थुरूर के अलावा महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री विलास राव देशमुख के आवास पर पूर्व केंद्रीय मंत्री मणि शंकर अय्यर कब्जा जमाए हुए हैं।
पूर्व कृषि राज्यमंत्री एवं वर्तमान आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया भी अपने तालकटोरा रोड़ स्थित पुराने आवास के बजाए नए आवंटित आवास के रिक्त होने की राह तक रहे हैं। इस पर पूर्व मंत्री शंकर सिंह बघेला ने कब्जा जमाया हुआ है। लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा, केंद्रीय मंत्री गुलाम नवी आजाद, श्री प्रकाश जायस्वाल, अरूण यादव, पवन कुमार बंसल, मिल्लकार्जुन खड़गे, प्रदीप जैन, वीर भद्र सिंह, विसेंट पाल, के.वी.थामस, दिनेश त्रिवेदी, भरत सिंह सोलंकी आदि को आवंटित आवास अभी भी रिक्त नहीं हो सका है। इसके अलावा अनेक सूबों के संसद सदस्य आज भी सम्राट होटल सहित अनेक होटल्स के मेहमान हैं। कहा जा रहा है कि लगभग आधा सैकड़ा सांसद आज भी आवास के रिक्त होने का इंतजार कर रहे हैं।
वैसे नेतिकता का तकाजा यही कहता है कि अगर कोई सांसद या विधायक चुनाव हार जाता है, तो उसे तुरंत अपना सरकारी आवास रिक्त कर देना चाहिए, ताकि नए जीते हुए संसद सदस्य या विधायक को परेशानी न हो। वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में यही देखा जा रहा है कि जनसेवक चुनाव हारने के बाद पीछे के दरवाजे, राज्यसभा, विधान परिषद या निगम मण्डल के माध्यम से राजधानियों में अपना आवास सुरक्षित रखना चाहते हैं।
आरपीआई के पूर्व सांसद रामदास अठवाले का आवास खाली कराया जाना तो समझ में आता है किन्तु सिटिंग एमपी अर्थात वर्तमान सांसद के आवास को खाली कराए जाने का तुक समझ से परे है। नंद कुमार साय पहले लोकसभा सांसद थे, बाद में पार्टी ने उन्हें राज्य सभा के रास्ते संसद में भेज दिया।
साय पहले जिस आवास में रहते थे, वह लोकसभा पूल का था। साय के अनुसार उन्हें उसी आवास में रहने के लिए राज्य सभा सचिवालय ने 15 सितम्बर को वह आवास आवंटित कर दिया था। कुल मिलाकर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय के बीच तालमेल के अभाव में साय को बेघर होने की नौबत आई।
देश की सबसे बड़ी पंचायत के एक पंच के साथ अगर लालफीताशाही का प्रतीक बन चुकी अफसरशाही इस तरह का बर्ताव कर रही है तो सुदूर ग्रामीण अंचलों में अफसरशाही के बेलगाम घोड़े किस कदर दौड़ रहे होंगे इस बात का अंदाजा लगाने मात्र से रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा हो जाती है।
इस मामले में भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूडी का कहना दुरूस्त है कि अगर यह लोकसभा पूल का है तो फिर लोकसभा आवास समिति के अध्यक्ष जय प्रकाश अग्रवाल आखिर किस हक से राज्य सभा के कोटे वाले आवास पर अपना कब्जा जमाए हुए हैं।
देखा जाए तो सांसद, विधायकों के साथ ही साथ मंत्रियों के बंग्लों में पिन टू प्लेन सारी सामग्री सरकारी तौर पर मुहैया होती है। ये जन सेवक तो अपने कपड़ों का बक्सुआ लेकर इसमें प्रवेश करते हैं, और यही लेकर इन्हें वापस भी जाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि जिस तरह महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के अलावा सूबे के मुख्यमंत्रियों के मकानों को इयर मार्क (प्रथक से चििन्हत) कर रखा गया है, उसी तरह विभिन्न विभागों के मंत्रियों के आवासों को भी इयर मार्क कर देना चाहिए। जब भी सरकर का गठन या पुर्नगठन हो तब ये जनसेवक अपना सूटकेस उठाकर नए आवास में चले जाएं। इन आवासों को महीनों खाली न करने के पीछे कारण समझ से ही परे है।
जिस तरह जिलों में जिलाधिकारी (डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट), पुलिस अधीक्षक आदि के आवास इयर मार्क होते हैं, उसी तरह मंत्रियों के मकान क्यों नहीं किए जा सकते हैं। सरकार को चाहिए कि एक बड़े बाड़े में सभी मंत्रियों के आवास इकट्ठे बना दे। इससे अलग अलग बंग्लों में सुरक्षा में लगे जवानों की संख्या में कमी के साथ ही साथ जनता को इन मंत्रियों से मिलने में कम दिक्कत पेश आएगी। वस्तुत: एसा संभव नहीं है, क्योंकि यहां `जनसेवकों` की `प्रतिष्ठा` का प्रश्न `सर्वोपरि` होकर `जनसेवा` का मुद्दा `गौड` हो जाता है।
सांसदों को बेघर करने के मामले में सरकार को निश्चित तौर पर सफाई देनी होगी। एक सम्मानीय जनसेवक के साथ इस तरह का असंसदीय आचरण किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता है। इस तरह की परंपरा की महज निंदा करने से काम नहीं चलने वाला। सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में इस तरह के कृत्यों की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाए।
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पीएम के निशाने पर हैं तीन कद्दावर मंत्री

आजाद, जोशी और थुरूर से खफा हैं डॉ.एम.एम.सिंह
खतो खिताब का सिलसिला जारी है आजाद और पीएम के बीच
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश के सबसे ताकतवर पद पर आसीन नेहरू गांधी परिवार से इतर दूसरे कांग्रेसी प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह इन दिनों अपने मंत्रिमण्डल के तीन सहयोगियों से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। इसमें सबसे उपर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद हैं। इसके बाद राहुल गांधी के प्रिय पात्र सी.पी.जोशी और बड़बोले शशि थुरूर का नंबर आता है।
भले ही गुलाम नवी आजाद डॉक्टरों को गांव जाने के लिए प्रोत्साहित करने, नकली दवा पर रोक लगाने एवं नए आयुZविज्ञान महाविद्यालयों की स्थापना के मामले में अपनी पीठ खुद ही ठोंक रहे हों, किन्तु सच तो यह है कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के सीधे निशाने पर नजर आ रहे हैं।
पीएमओ के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि आजाद की कार्यप्रणाली से नाराज प्रधानमंत्री अब तक उन्हें दो पत्र लिख चुके हैं। सूत्रों के अनुसार एक पत्र में आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कामकाज के सुधार के लिए गठित डॉ.वेलियाथन समिति की रिपोर्ट को लागू करने तथा दूसरे में मेडिकल शिक्षा के लिए नियामक संस्था के गठन को लेकर मजमून था।
उधर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नवी आजाद के करीबी सूत्रों का दावा है कि स्वास्थ्य मंत्री की मंशा मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया, डेंटल काउंसिल, नर्सिंग काउंसिल के साथ अन्य काउंसिल को एक साथ मिलाकर नियामक संस्था बनाने की है। पीएमओ ने आजाद की इस मंशा में फच्चर फंसा रखा है।
बताया जाता है कि केबनेट की बैठक में पीएम ने देश में स्वाईन फ्लू की गंभीर स्थिति पर अपनी अप्रसन्नता जाहिर की थी। इसके अलावा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन पर अनेक राज्यों की अपत्ति का जिकर करते हुए पीएम ने यह भी कहा था कि सूबों को समुचित धन नहीं मुहैया हो पा रहा है।
उधर पीएमओ के सूत्रों ने आगे बताया कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की सलाह पर मंत्री बनाए गए ग्रामीण विकास मंत्री सी.पी.जोशी की कार्यप्रणाली से भी प्रधानमंत्री खुश नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो पीएम ने जोशी को सीधे सीधे चेतावनी भी दी है, कि वे अपना कामकाज सुधार लें, अन्यथा किसी भी तरह का अंजाम भुगतने को तैयार रहें।
इसके बाद तीसरी पायदान पर बड़बोले राजनयिक से जनसेवक बने शशि थुरूर हैं। बताते हैं कि सोशल नेटविर्कंग वेवसाईट के माध्यम से अपने प्रशंसक जुटाने और उनके साथ सवाल जवाब करने के दौरान उतपन्न विषम परिस्थिति ने पीएम को भी व्यथित कर रखा है।
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के दिल्ली से मुंबई तक इकानामी क्लास मे यात्रा करने के तुरंत बाद चिडियों के शोर से उद्त टि्वटर नामक वेव साईट पर इकानामी क्लास को मवेशियों का बाड़ा की संज्ञा देने के बाद कांग्रेस बेकफुट पर आ गई है। सूत्रों के अनुसार अगर इन मंत्रियों ने अपना कामकाज नहीं सुधारा तो आने वाले दिन इन पर भारी हो सकते हैं।
शशि थुरूर भले ही प्रधानमंत्री की पसंद हो सकते हैं किन्तु पार्टी के दबाव के चलते उनकी रूखसती हो सकती है। थुरूर के माफीनामे के बाद भी पार्टी के रवैए में लचीलेपन के बजाए तल्खी साफ झलकने लगी है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बयान का समर्थन कर पार्टी लाईन स्पष्ट कर दी है। पार्टी स्टेंड के अनुसार थुरूर के खिलाफ उचित समय पर उचित कार्यवाही की जाएगी।