शनिवार, 7 अगस्त 2010

सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (7)

सीबीएसई की वेव साईट बताती है कि एकलव्य, नवोदय, सेंट्रल और महर्षि  ही हैं सीबीएसई एफीलेटेड स्कूल

सिवनी। केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई के प्रलोभन के चलते पालक और विद्यार्थियों पर बन आई है. जिला मुख्यालय में प्रशासन की नाक के नीचे निजी तौर पर संचालित होने वाली शालाओं द्वारा अपने आप को सीबीएसई बोर्ड से संबद्ध या संबद्धता की कतार में होने का दावा कर विद्यार्थियों को जबर्दस्त तरीके से आकर्षित करने का कुत्सित प्रयास जारी है. शहर में चल रही शालाओं कथित तौर पर ली जाने वाली द्वारा केपीटेशन फीस के माध्यम से अपनी विशाल अटटालिकाएं खडी कर ली गईं हैं. इक्कीसवीं सदी में संचार क्रांति के चलते सीबीएसई बोर्ड की वेव साईट पर सब कुछ दिखता है की तर्ज पर पालक या विद्यार्थी चाहें तो सब कुछ अपनी आंख से देख भालकर संतोष कर सकते हैं, यह सब अगर किसी को नहीं दिख रहा है, तो वह है जिला प्रशासन को.
 
सीबीएसई की आधिकारिक वेव साईट द्धह्लह्लश्चरू//ष्ड्ढह्यद्ग.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/ पर जब होम पेज खुलता है तब उसके उपरांत इस वेव साईट पर पब्लिक पर क्लिक करने पर जो विण्डो खुलती है, उसमें उपर एड्रेस बार द्धह्लह्लश्चरू//ष्ड्ढह्यद्ग.ठ्ठद्बष्.द्बठ्ठ/श्चह्वड्ढद्यद्बष्१.द्धह्लद्वमें दिखने लगेगा. इस विण्डो को खोलने पर जब बाईं और आने वाले केरेक्टर्स में देखा जाए तो दूसरे नंबर पर  ष्ठश्वक्क्रक्रञ्जरूश्वहृञ्जस्/हृढ्ढञ्जस्
(ढ्ढठ्ठद्घशह्म्द्वड्डह्लद्बशठ्ठ ड्डठ्ठस्र श्चस्रड्डह्लद्गह्य) दिखाई पडेगा. इसे क्लिक करने पर जो विंडो खुलेगी उसमें एकेडेमिक एडमीशन आदि दिखाई देने लगेगा. इसमें तीसरे नंबर पर एफीलेशन को क्लिक करते ही नई विण्डो खुल जाएगी.
 
इस नई विण्डो में उपर अलग अलग तरह से सर्च के आप्शन आ जाते हैं. इस विण्डो में तीसरे नंबर पर स्टेट वाईज को क्लिक कर सिलेक्ट ए स्टेट में मध्य प्रदेश और एंटर ए की वर्ड में सिवनी भरा जाकर सर्च की जाए तो जो परिणाम सामने आते हैं वे कुछ इस प्रकार हैं. सिवनी के नाम से कुल छरू शालाएं ही सीबीएसई से संबद्ध बताई गई हैं. जिनमें से केंद्रीय विद्यालय सिवनी मालवा अर्थात होशंगाबाद जिले और दूसरा जवाहर नवोदय वारासिवनी अर्थात बालाघाट जिले का है.
 
इसके अलावा इस सूची में पहली पायदान पर एकलव्य माडल रसीडेंशियल स्कूल घंसौर जिला सिवनी है, जिसके प्राचार्य के स्थान पर लोकमन गेंडाम का नाम अंकित है, इसका एफीलेशन नंबर १०२०००६ दर्शाया गया है. १९९२ से संचालित होने वाली इस शाला को प्रोवीजनल एफीलेशन १ अप्रेल २००६ से ३१ मार्च २०११ तक की अवधि के लिए प्रदान किया जाना दर्शाया गया है.
 
इसके उपरांत दूसरी पायदान पर जवाहर नवोदय विद्यालय कान्हीवाडा, जिला सिवनी का नाम दर्ज है. १९८७ से संचालित इस शाला के प्राचार्य के नाम के आगे वी एस सिंह और आर एस राव का नाम दर्ज है. इस शाला को १ अप्रेल २०१० से ३१ मार्च २०१० तक के लिए प्रोवीजनल एफीलेशन प्रदाय किया गया है जिसका नंबर १०४०००६ दर्ज है. इस मान से देखा जाए तो इस साल नए शैक्षणिक सत्र में जवाहर नवोदय विद्यालय की सीबीएसई मान्यता समाप्त हो चुकी है.
 
तीसरेी पायदान पर बालाघाट के वारासिवनी और चौथे नंबर पर होशंगाबाद के सिवनी मालवा का उल्लेख है. पांचवे नंबर पर एक बार फिर सिवनी जिले का उल्लेख किया गया है. पांचवी पायदान पर स्थान पाया है केंद्रीय विद्यालय सिवनी ने. जिले में १९९२ से संचालित इस शाला के विवरण में लिखा गया है कि यह विद्यालय पुराने जेल भवन में संचालित हो रहा है, और इसे प्रोवीजनल एफीलेशन एक अप्रेल २००१ से ३१ मार्च २०११ तक के लिए प्रदान की गई है. इसके प्राचार्य के स्थान पर आर ए मिश्रा का नाम अंकित है, इसका प्रोवीजनल एफलेशन नंबर १०००००५६ दर्शाया गया है.
 
अंतिम अर्थात छटवें नंबर पर बारी आती है महर्षि स्कूल की. महर्षी विद्यालय के विवरण में उल्लेख किया गया है कि यह शाला १९९२ से चल रही है, इसकी प्राचार्य श्रीमति आर तिकाडे हैं, तथा इसे एक अप्रेल २००७ से ३१ मार्च २०१२ तक के लिए प्रोवीजनल मान्यता प्रदान की गई है. इसका एफीलेशन नंबर १०३००७७ है. इसके बाद सूची समाप्त हो जाती है.

सुधि पाठक स्वयं ही अंदाजा लगा सकते हैं कि संचार क्रांति के इस युग में अब और क्या प्रमाण दिया जाए. जब सीबीएसई की वेव साईट खुद चिल्ला चिल्ला कर हकीकत बयां कर रही है, तब जिला मुख्यालय में सांसद, विधायक, कांग्रेस भाजपा और प्रशासन की नाक के नीचे इस तरह का गोरखधंधा हो रहा हो तब सिवनी के विद्यार्थियों का भगावन ही मालिक माना जा सकता है.
(क्रमशः जारी)

फोरलेन विवाद का सच ------------03

किस षणयंत्र के तहत किसने रूकवाया था काम

जब अक्टूबर माह में उत्तर सिवनी सामान्य वनमण्डलाधिकारी ने मुख्य वन संरक्षक सिवनी को यह सूचित किया कि उसके द्वारा अवैध पेड कटाई के मामले में ठेकेदार के खिलाफ मामला पंजीबद्ध कर लिया गया है, तब उत्तर दक्षिण गलियारे का काम रूक ही गया था। आखिर क्या वजह थी कि इसके लगभग नौ माह तक जनता को पता क्यों नहीं चल सका सडक काम निर्माण का काम रोक दिया गया है, जबकि निर्माण करा रही कंपनियां सद्भाव और मीनाक्षी कंस्ट्रक्शन कंपनियांे के कारिंदे जिले में नेतागिरी का परचम लहराने वाले नुमाईंदो से मेल मुलाकात भी कर रहे थे।

 
(लिमटी खरे)

सिवनी। उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे के नक्शे से सिवनी जिले का नामोनिशान मिटाने का षणयंत्र लगभग दो साल पूर्व ही आरंभ करवा दिया गया था, और सिवनी जिले को दिशा देने वाले नेताओं को कथित तौर पर इसकी भनक भी नहीं लगी। जून 2009 में जब तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि का एक आदेश हवा में तैरा तब जाकर जिले की जनता के मन में भय और आक्रोश मिश्रित तौर पर सामने आया।
 
वन विभाग के डीएफओ द्वारा 25 अक्टूबर 2008 को सीसीएफ को लिखे पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि एनएच ने वन विभाग की भूमि को अपना बताकर इस पर खडे पेड काटने की निविदा जारी कर पेड कटाई का काम आरंभ कर दिया था, जिसे वन विभाग ने अवैध माना, और वन विभाग द्वारा इस कटाई को अवैध मानते हुए पीपरखुंटा वन खण्ड के कक्ष नंबर पी - 266 में राष्ट्रीय राजमार्ग के अनाधिकृत ठेकेदार द्वारा 26 पलाश और 47 सागौन के वृक्ष काटने पर दिनांक 15 अक्टूबर 2008 को वन अपराध नंबर 1897/22 के तहत मामला दर्ज कर लिया था।
 
इसी से साफ हो जाता है कि वन विभाग ने इस सडक पर पेड काटने का काम रोक दिया गया था। जब सडक के चौडीकरण के काम में पेड ही नहीं हटाए जाएंगे तो भला सडक कहां से बन पाएगी? जाहिर है कि अक्टूबर 2008 में ही मीनाक्षी और सद्भाव ने अपना अपना काम रोककर हाथ पर हाथ रखकर बैठ गईं थीं।
 
बताया जाता है कि निर्माण में रत मीनाक्षी और सद्भाव कंपनियांे के कारिंदे रोजाना ही जिला मुख्यालय सिवनी आकर आवश्यक वस्तुएं खरीदा करते थे। चर्चाओं के अनुसार इन कारिंदों द्वारा शहर में अनेक नेताओं से चर्चा कर उन्हें इस बारे में आवगत कराया जाता था कि कंपनियों ने सडक निर्माण का काम रोक दिया है, बावजूद इसके सिवनी का हित साधने का प्रहसन करने वाले इन नेताओं ने कभी भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया कि सडक निर्माण का काम रोके जाने का षणयंत्र बुना जा रहा है।
 
चर्चाएं तो यहां तक भी हैं कि इन सडक निर्माण कंपनियों को प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर लंबा आर्थिक लाभ लेने की गरज से जिले की बदहाली पर आंसू बहाने वाले इन नेताओं (सांसद विधायक नहीं) का उपयोग निर्माण कंपनियों ने एक तरह से उपकरणों की तरह ही किया है। इन नेताओं को कंपनियों का इंस्टूमेंट बनने से क्या लाभ हुआ है, यह तो वे ही जाने किन्तु यह सच है कि इससे नुकसान में सिवनी जिले की जनता ही रही है।
 
आज आलम यह है कि इस सडक का निर्माण कार्य अधूरा रह जाने से लोगों को सिवनी से नागपुर और जबलपुर आने जाने में काफी हद तक परेशानी का सामना करना पड रहा है। जबलपुर मार्ग पर बंजारी माता के आगे से गनेशगंज के पास तक और नागपुर रोड पर मोहगांव से खवासा तक के मार्ग पर वाहनों की ‘‘कुत्ता चाल‘‘ से लोगों की परेशानी का सबब बनती जा रही है।
 
वाहन चालकों की मानें तो उन्हें सडक पर हुए भारी भरकम और असंख्य गड्ढों को बचाने के लिए कुत्ते के मानिंद कभी दांय तो कभी बांयी ओर (जिस तरह कुत्ता दांयी बायीं और खम्बों को देखकर टांग उठाता है) जाकर वाहन बचाना पडता है। बस में यात्रा करने वाले एक यात्री ने तो इसे सूपा की संज्ञा भी दे डाली है। उसके अनुसार जिस तरह सूपा में चावल या गेंहूं को फटका जाता है ठीक उसी तरह बसों में बैठे यात्री की स्थिति होती है। यात्री एक बार बांयी तो दूसरी बार दायीं और जाकर उछलता है, फिर बीच में उछाल दिया जाता है।
 
बहरहाल आज भी यक्ष प्रश्न यही बनकर खडा हुआ है कि आखिर वो कौन था जिसके आदेश पर फोरलेन के निर्माण का काम रूकवाया गया था। जिला प्रशासन, वन विभाग, एनएचएआई आदि के उपर आखिर कौन सी एक अज्ञात शक्ति दबाव बनाए हुए है, जो उत्तर दक्षिण गलियारे का काम रोककर पूर्व निर्धारित एलाईंमेंट को बदलने का प्रयास कर रही है?