शुक्रवार, 25 जून 2010

सांप के भागने के बाद लकीर तक नहीं पीटी जनसेवकों ने!

सुस्सुप्तावस्था के 26 साल

वोट बैंक की खातिर अब घडियाली आंसू बहा रहे हैं नेता

एंडरसन को लाने के बजाए देश के दोषियों को डाला जाए जेल में

आखिर क्यों खामोश हैं कांग्रेस की राजमाता

(लिमटी खरे)

अस्सी के दशक तक माध्यमिक शिक्षा के अध्ययन के दरम्यान प्राणी विज्ञान विषय मंे मेंढक के बारे में सविस्तार पढाया जाता था। मेंढक बारिश में पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं फिर उसके बाद शनैः शनैः वे निष्क्रीय होने लगते हैं। साल में कुछ माह एसे होते हैं, जिनमें मेंढक न कुछ खाते हैं न पीते हैं, बस पडे रहते हैं, यह कहलाती है ‘‘सुस्सुप्तावस्था‘‘। आश्चर्य की बात है कि भारत गणराज्य की सरकारें रीढ विहीन विपक्ष दोनों ही दुनिया की अब तक की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी ‘भोपाल गैस कांड‘ के छब्बीस साल बीतने तक सुस्सुप्तावस्था में रहे। इसका फैसला आने के बाद फिर इन दोनों ही बिरादरी के मेंढकों ने अपना मुंह खोला और बारिश की फुहार होते ही टर्राना आरंभ कर दिया है।

कितने आश्चर्य की बात है कि बीस हजार लोगों को असमय ही मौत के मुंह में ढकेलने और लाखों को स्थाई या आंशिक अपंग और बीमार बनाने के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को भारत सरकार के नुमाईंदे, अखिल भारतीय पुलिस और प्रशासनिक सेवा के मध्य प्रदेश काडर के अधिकारी तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिह और जिला पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी दोनों ही सरकारी वाहन में उस हत्यारे के चालक परिचालक बनकर उसे राजकीय अतिथि के मानिंद विमानतल तक छोडने गए। सभी ने इस तरह के फुटेज निजी समाचार चेनल्स में देखे हैं।

सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी छोटी मोटी बात को तानकर चद्दर बनाने वाले राजनेताओं ने छब्बीस साल तक इस मामले में मौन साधे रखा था। किसी ने इसमें हताहत हुए या जान गंवा चुके लोगों की सुध नहीं ली। न्यायालय ने चाहे जो सजा दी है, किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी और मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह तो इस मामले में जनता के कटघरे में दोषी सिद्ध हो चुके हैं। मामला आईने के मानिंद साफ है कि कांग्रेस के सर्वेसर्वा रहे नेहरू गांधी परिवार की चौथी पीढी के पायोनियर स्व.राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र और कांग्रेस की ही कुंवर अर्जुन सिंह के नेतृत्व वाली मध्य प्रदेश सरकार ने हत्यारे वारेन एंडरसन को सुरक्षित भारत से बाहर जाने के मार्ग प्रशस्त किए थे।

1984 के गैस हादसे के उपरांत के घटनाक्रम से साफ हो जाता है कि कार्पोरेट जगत में यह संदेश साफ तौर पर चला गया कि जहरीले कीटनाशकों का करोबार करने वाली अंतर्राष्ट्रीय फर्म चाहें तो अपनी लापरवाही के बाद हजारों हत्याएं और लाखों को मजबूर बनने के बाद भी पैसे के दम पर साफ बचकर निकल सकते हैं। भारत गणराज्य की नपुंसक तत्कालीन कांग्रेस सरकार और मध्य प्रदेश की सरकार ने अपनी रियाया के प्रति जवाबदेही दर्शाने के बजाए आरोपी गोरी चमडी वालों की जवाबदेही को ढांकने का ही प्रयास किया, जो निंदनीय है। 1992 में विश्व विकास प्रतिवेदन मेें अमेरिका के लारेंस समर्स ने प्रस्तवा दिया था कि प्रदूषणकारी उद्योगों को तीसरी दुनिया अर्थात गरीब या अविकसित देशों की ओर भेज वहां की अर्थव्यवस्था को सुद्रढ किया जाए। दरअसल यह अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के बजाए अपने देशों को प्रदूषण से मुक्त करने का कुत्सित प्रयास था, जिसे हिन्दुस्तान के तानाशाह शासक नहीं समझ सके।

आज मीडिया सहित सभी लोग इस बात पर अडिग हैं कि नब्बे के पेटे में जी रहे वारेन एंडरसन को भारत लाया जाए। भारत को अमेरिका के साथ की गई प्रत्यार्पण संधि के तहत अब तक यह कदम उठा लेना चाहिए था, किन्तु ‘‘समरथ को कहां दोष गोसाईं।‘‘ अमेरिका दुनिया का चौधरी है, भारत उससे दबता है, डरता है, दहशत खाता है, यह बात सत्य है। यही कारण है कि अमेरिका के सामने वह उंची आवाज में बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहा है। एंडरसन को भारत नहीं लाया गया और भविष्य में भी उसके आने की संभावनाएं बहुत बलवती नहीं प्रतीत होती हैं, फिर सवाल यह उठता है कि एंडरसन को भारत से भगाने के लिए दोषियों के मामले में केंद्र सरकार मौन क्यों साधे हुए है। क्या वजीरे आजम डॉ.एम.एम.सिंह सहित कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी का यह दायित्व नहीं बनता है कि वे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कुंवर अर्जुन सिंह से जोर डालकर इस बात को पूछें कि आखिर कौन था जिसने हजारों लाखों लोगों की हत्या और बीमार होने के दोषी एंडरसन को भारत से भगाया! जाहिर सी बात है दोनों ही कुंवर अर्जुन सिंह से यह बात पूछने का साहस नहीं कर पाएंगे, क्योंकि अगर कुंवर अर्जुन सिंह ने अपनी गाडी का स्टेयरिंग तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के पति स्व.राजीव गांधी की ओर कर दिया तब क्या होगा। बस इतनी सी बात से खौफजदा होकर कांग्रेस चुपचाप बैठी अपनी भद्द पिटवा रही है।

भोपाल गैस कांड के उपरांत सरकारी मशीनरी द्वारा उठाए गए हर कदम को ‘‘विचित्र किन्तु सत्य‘‘ की श्रेणी में रखा जा सकता है। 1996 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूरे मामले को कमजोर कर दिया, आरोपों की लीपापोती कर दी गई और सीबीआई चुपचाप सब कुछ देखती सुनती रही। कांग्रेस का जमीर तो देखिए कितना गिर गया, उसने सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्याधीश जस्टिस ए.एम.अहमदी को भोपाल मेमोरियल ट्रस्ट अस्पताल का प्रमुख बना दिया। इतना ही नहीं भाजपा ने कुछ घंटों के लिए एंडरसन के सारथी और बाडी गार्ड बने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक को राज्यमंत्री का दर्जा दिया। जब बात उछली तो उन्हें हटा दिया गया। बाद में स्वराज पुरी को कांग्रेस ने एंडरसन को भगाने का पारितोषक दे दिया। मनरेगा में पुरी की नियुक्ति एमीनंेट सिटीजन के तौर पर कर दी गई। आखिर यह सब कुछ कर कांग्रेस और भाजपा क्या संदेश देना चाहती हैं, यह बात समझ से परे ही है। विदेश यात्रा से लौटने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते हैं कि इस हासदे के लिए व्यवस्था नहीं व्यक्ति दोषी है! जिसका जो मन आ रहा है दे रहा है वक्तव्य जमा कर। विज्ञप्तिवीर, और बयानवीर नेताओं की सेनाएं सज चुकी हैं, चारों तरफ से बयान और विज्ञप्तियों के तीरों की बौछारें हो रहीं हैं। देश की जनता विशेषकर गैस से प्रभावित लोगों के परिवार अवसाद में जा रहे हैं, पर किसी को इस बात की कोई परवाह नहीं है।

देखा जाए तो भोपाल गैस पीडितों के लिए सरकार के अब तक के प्रयास नाकाफी ही हैं। राजधानी भोपाल का कमला नेहरू चिकित्सालय बनने के बाद कितने दिनों तक शोभा की सुपारी बना रहा। हमीदिया अस्पताल के छोटे से मिक वार्ड में ठसाठस भरे कराहते मरीजों ने न जाने कितने दिनों तक हिटलर के गेस चेम्बर की यातना भोगी है। वस्तुतः देखा जाए तो यूनियन कार्बाईड के संयत्र का विषेला कचरा अभी तक हटाया नहीं गया है। इतना ही नहीं आसपास के रहवासियों को आज भी पीने का साफ पानी मुहैया नहीं है। छब्बीस सालों में भी अगर कांग्रेस और भाजपा ने सत्ता की मलाई खाने के बाद भी गैस पीडितों के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किए हैं तो उन्हें सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार कतई नहीं है। हमारे कहने से क्या होता है, आज मोटी चमडी वाले जनसेवकों को तो यह भी पता नहीं है कि नैतिकता किस चिडिया का नाम है।