बुधवार, 7 अप्रैल 2010

कुण्डलिनी जागरण की रहस्यमय प्रक्रिया

कुण्डलिनी जागरण की रहस्यमय प्रक्रिया

(हरीश शहरी)
(हरीश जी हमारे ब्लाग मित्र हैं और उन्होंने कुण्डलनी के जागरण की प्रक्रिया समझाने के लिए हमें मेल भेजा है, जिसे पाठकों के सुलभ सन्दर्भ के लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं लिमटी खरे)

यदि आपकी धर्म एवं ईश्वर में लेशमात्र भी आस्था है तो आपने यह अवश्य सुना होगा कि ईश्वर दशZन या तो महान ज्ञानी को प्राप्त होते हैं अथवा महा अज्ञानी को। मैं स्वयं को महान ज्ञानी होने अथवा समझने में लेशमात्र भी भ्रमित नहीं हूं, हां मेरे महा अज्ञानी होने का मुझे पूर्ण विश्वास है। शायद यह मां सरस्वती की मेरे ऊपर महान अनुकम्पा ही है जो मैं ऐसे गूढ़तम विषय में कुछ कहने का साहस कर पा रहा हूं जिसका खुद मुझे कोई व्यक्तिगत अनुभव नहीं है। जिस विषय के अनुभवों एवं उसकी प्रक्रिया की व्याख्या स्वयं वे नहीं कर पाते जो इसका व्यक्तिगत अनुभव रखते हैं उसका बखान मुझ जैसा मन्द बुद्धि करने का साहस कर रहा है, इसका कारण शायद यह हो कि अनुभव संपन्न वे लोग शायद उस असीम आनन्द से इतने ओत-प्रोत हो जाते हों जिसे व्यक्त करने में उनकी लेखनी उनका साथ न दे पाती हो किन्तु मेरी बातें यदि आपको सार्थक न लगें तो कृपया इसे मेरी वाचालता समझकर मुझे माफ कर दीजिएगा।

जहां तक अनुभवी व्यक्तियों के लेखों और अनुभवों से मैने जाना है, कुण्डलिनी शब्द के मेरी समझ से दो अर्थ हैं: पहला, कुण्डल अर्थात चक्राकार में स्थित और दूसरा, कुण्ड अर्थात किसी गहरे स्थान या गढ्ढे में स्थित। अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में किसी चक्राकार गहरे स्थान में एक ऐसी शक्ति सुसुप्ता अवस्था में विद्यमान रहती है जिसे यदि जाग्रत कर दिया जाये तो असीम आनन्द की प्राप्ति होती है। यहां पर मैं पाठकों को यह भी सचेत करना चाहता हूं कि न तो यह कोई साधारण प्रक्रिया है और न ही खेल का विषय बल्कि यदि इसे सावधानी पूर्वक नियन्त्रित ढंग से उचित मानदण्डों के अनुसार न जाग्रत किया जाये तो इसके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं और साधक की जान का भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। यह एक ऐसी योगिक क्रिया (योग साधना) है जिसके संपन्न होने पर साधक में आमूल-चूल परिवर्तन होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि साधक में न सिर्फ शारीरिक एवं मानसिक परिवर्तन होता है बल्कि आित्मक परिवर्तन भी हो जाता है। साधक को ऐसे परमानन्द की अनुभूति हो जाती है जिसके उपरान्त साधक को किसी अन्य सुख की चाह रह ही नहीं जाती है।

कुण्डलिनी जाग्रत करने से पूर्व परिस्थितियां अनुकूल होनी आवश्यक हैं अर्थात साधक को शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध होना आवश्यक है। कहने का तात्पर्य यह है कि न सिर्फ साधक का शरीर साफ-सुथरा होना चाहिए (साधक का पेट मल-मूत्र रहित होना चाहिए एवं ऊपरी त्वचा स्वच्छ होनी चाहिए) बल्कि उसका मन भी शुद्ध होना आवश्यक है अर्थात् राग-द्वेष एवं अन्य सभी प्रकार की कलुषित भावनाओं से परे होना चाहिए। साधक की आत्मा में परमानन्द की प्राप्ति के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार की चाह नहीं होनी चाहिए। जिस स्थान पर साधक योगिक क्रिया संपन्न करना चाहता है अर्थात् कुण्डलिनी जाग्रत करना चाहता है वह स्थान साफ-सुथरा, शान्त, स्वच्छ वायुयुक्त एवं व्यवधान रहित होना चाहिए। यदि इसे निर्जन अथवा एकान्त स्थान कहा जाये तो अनुचित नहीं होगा।

उपरोक्त मानदण्डों की प्रतिपूर्ति के उपरान्त साधक को स्वच्छ स्थान (जमीन/भूमि) पर बैठकर अपने ईष्टदेव का नाम लेकर मन को एकाग्र करना चाहिए अर्थात अपने मन को अपने नाभिस्थल पर केन्द्रित करना चाहिए। मन विचलित न हो इसके लिए साधक सरस्वती मन्त्र अथवा गायत्री मन्त्र का पाठ अनवरत रूप से मन्द स्वर में कर सकता है। नित्यप्रति/प्रतिदिन प्रयास करने से कुछ दिवसों/काल उपरान्त साधक का मन नाभिस्थल पर केन्द्रित होने लगेगा। नित्यप्रति की अनवरत एकाग्रता के बढ़ने पर साधक को अपने नाभिस्थल में किसी अलौकिक शक्ति के होने का आभास मिलने लगेगा। चूंकि नाभिस्थल सम्पूर्ण शरीर का केन्द्र-बिन्दु है अर्थात शरीर की सभी इन्द्रियों का संबन्ध नाभिस्थल से होता है इसलिए जैसे ही नाभिस्थल पर मन की एकाग्रता का संयोग बनेगा, शरीर में एक अजीब स्फूर्ति का समावेश होगा और शरीर की सभी इन्द्रियां पुलकित होने लगेंगी।

उपरोक्त अवस्था के पश्चात् साधक को विशेष सतर्कता बरतने की आवश्यकता है क्योंकि इसी अवस्था के पश्चात् कुण्डलिनी जाग्रत होती है और कुण्डलिनी के जाग्रत होने के पश्चात् यदि उसे नियन्त्रित न किया गया तो कुछ भी सम्भव हो सकता है।

कुण्डलिनी का जाग्रत होना क्या है
 
वास्तव में प्रत्येक मनुष्य की आत्मा उसके नाभिस्थल में सुसुप्ता अवस्था में स्थित होती है जो स्वत: मृत्यु के समय ही जाग्रत होती है और अभ्यास की अपूर्णता एवं जर्जर शरीर होने के कारण अनियन्त्रित होकर शरीर से बाहर निकल जाती है और ईश्वर के नियन्त्रण में चली जाती है तथा मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। कुण्डलिनी जागरण की प्रक्रिया में साधक अपनी साधना के द्वारा स्वयं अपनी सुसुप्त आत्मा को जाग्रत करता है एवं नियमित अभ्यास और स्वस्थ शरीर होने के कारण उसे नियन्त्रित भी कर पाता है जिससे उसकी आत्मा उसकी इच्छानुसार पुन: उसके शरीर में लौट आती है।

जब साधक नियमित प्रयास से अपनी सुसुप्त आत्मा को जाग्रत करता है तो वह अपने चक्राकार मार्ग से होती हुई मनुष्य के शरीर से बाहर आ जाती है। दरअसल प्रत्येक साधक का कुण्डलिनी जाग्रत करने का मुख्य उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मिलन करना होता है और इसी चरम अवस्था में साधक को परमानन्द की अनुभूति होती है किन्तु साधक को अपनी आत्मा का परमात्मा से एकाकार कराने के लिए उसे अपने योगबल से नियन्त्रित करना पड़ता है जिससे आत्मा दिग्भ्रमित होकर अनन्त आकाश में किसी अन्य लोक की ओर न अग्रसर हो सके और जब साधक की आत्मा सही मार्ग का अनुसरण करते हुए अनन्त आकाश में विचरण करती है तो वह ऐसा सब कुछ देख पाने में सक्षम हो जाती है जिसकी साधक सशरीर कल्पना तक नहीं कर पाता है और यही नियन्त्रित आत्मा जब कुछ क्षणों के लिए ही परम पूज्य परमात्मा से मिलती है तो साधक परमानन्द की अनुभूति करता है जिसे शब्दों में व्यक्त कर पाना असम्भव है। किन्तु जब तक मनुष्य जीवित है अर्थात उसकी आयु पूर्ण नहीं हुई है तब तक आत्मा का परमात्मा से पूर्ण मिलन सम्भव नहीं है। इसीलिए कुछ क्षणों उपरान्त आत्मा को अपने शरीर में वापस लौटना पड़ता है और साधक अपनी पूर्वावस्था में आ जाता है।

किन्तु साधक के शरीर से निकलकर यदि साधक की आत्मा अनियन्त्रित हो जाये और दिग्भ्रमित हो जाये तो वही आत्मा किसी अन्य लोक में भी जा सकती है फिर साधक को उस लोक के अनुभवों से गुजरना पड़ता है जैसे यदि साधक की आत्मा प्रेतलोक में विचरण करने लगी तो उसका सामना नाना प्रकार के प्रेतों से होगा और यदि साधक मजबूत िहृदय का स्वामी नहीं है तो डर से उसकी मृत्यु भी सम्भव है। ऐसी स्थिति में आत्मा प्रेतलोक में ही रह जायेगी और साधक की मुक्ति लगभग असम्भव हो जायेगी। अनियन्त्रित आत्मा यदि प्रेतलोक जैसे लोक में न भी जाये तो भी उसे साधक के शरीर वापस लाना जरा दुष्कर कार्य है। अत: सामान्य दिनचर्या एवं कमजोर िहृदय के स्वामियों से अनुरोध है कि इस प्रयोग को न आजमायें यही उनके लिए हितकर है।

कुण्डलिनी जाग्रत करने की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल, साहसपूर्ण एवं नियमित एवं अनवरत अभ्यास की प्रक्रिया है जिसकी पूर्ण सफलता में साधक को 3-6 वर्ष तक का समय लग सकता है जो साधक की साधना पर निर्भर करता है किन्तु इसके लिए प्रथम अवस्था की अनिवार्यता भी है।

मैं मन्दबुद्धि यह समझता हूं कि मां सरस्वती मेरे माध्यम से जिन साधकों का मार्गदशZन करना चाहती हैं वे इसके दूरगामी परिणामों से पूर्ण परिचित होंगे एवं लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

इति

अब आडवानी के निशाने पर सुषमा!

अब आडवानी के निशाने पर सुषमा!
 
बढते कद और पद से परेशान है आडवाणी मण्डली
 
उमाश्री को बेक करने में लग गए हैं आडवाणी
 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 07 अप्रेल। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष जैसे प्रभावशाली पद को छीनने वाली सुषमा स्वराज अब राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग के निशाने पर आ गईं हैं। सुषमा के पर कतरने की गरज से अब आडवाणी मण्डली भारतीय जनशक्ति पार्टी की जनक उमाश्री भारती की भाजपा में वापसी के मार्ग प्रशस्त करने पर तुल गई है। आडवाणी मण्डली भयाक्रान्त है कि अगर सुषमा स्वराज के अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को अगर रोका नहीं गया तो आने वाले दिनों में वे प्रधानमन्त्री पद की सशक्त दावेदार बनकर उभर सकतीं हैं।
 
ज्ञातव्य है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे लाल कृष्ण आडवाणी की इच्छा के विरूद्ध उन्हें नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाकर सुषमा स्वराज को वह आसनी दे दी गई थी। जानकारों का कहना है कि उस वक्त तो आडवाणी खून का घूंट पीकर रह गए थे, किन्तु बाद में उन्होंने रणनीति बनाना आरम्भ कर दिया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद सम्भालने के उपरान्त सुषमा स्वराज बहुत ही नपे तुले कदम और निर्धारित रणनीति से ही चल रही हैं। सदन में महात्वपूर्ण मसलों और अपने प्रभावशाली उद्बोधनों के चलते सुषमा स्वराज की छवि कार्यकर्ताओं में भी बहुत ही अच्छी बनती जा रही है।
 
सुषमा स्वराज की जमीनी पकड के चलते कार्यकर्ता उनसे बरबस ही जुडते चले जा रहे हैं। गौरतलब है कि सुषमा स्वराज के लिए शिवराज सिंह चौहान ने सालों साल सींची विदिशा संसदीय सीट सौंपने का कडा कदम तक उठाया। इसके बाद शिवराज और सुषमा के बीच एक अघोषित गठबंधन स्थापित हो गया है। सुषमा के सहारे शिवराज ने मध्य प्रदेश में न केवल अपनी कुर्सी सलामत रखी है, वरन उन्होंने अपने शत्रुओं का शमन भी किया है। हाल ही में इन्दौर सम्मेलन में सुषमा स्वराज ने जिस तरह मुक्त कंठ से शिवराज सिंह चौहान की प्रशंसा की उससे लगने लगा था कि आने वाले दिनों में शिव सुषमा एक्सप्रेस बहुत ही तेजी से दौडने वाली है। वैसे भी मध्य प्रदेश का इतिहास गवाह है कि यहां केन्द्र में स्थापित और सूबे के मुख्यमन्त्री की जुगलबन्दी की एक्सपे्रस दौडी हैं। मोतीलाल वोरा के मुख्य मन्त्रित्व काल में स्व.माधवराव सिंधिया की मोती माधव एक्सप्रेस तो राजा दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में कमल नाथ के साथ उनकी गलबहियां ``छोटे भाई बडे भाई`` के नाम से प्रचलित रही है।
 
बहरहाल सूत्र बताते हैं कि जैसे ही सुषमा स्वराज के कद के बढने का भान राजग के पीएम इन वेटिंग एल.के.आडवाणी को हुआ उन्होंने अपनी भजन कीर्तन मण्डली के मार्फत चालें चलना आरम्भ कर दिया है। आडवाणी ने उमाश्री भारती को वापस लाने का एसा दांव फेंका है, जिसकी काट शायद ही सुषमा स्वराज के पास हो। उधर उमाश्री भारती से भयाक्रान्त मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान और सूबे के भाजपा के अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर को मनाने का काम भी आरम्भ हो गया है।
श्यामला हिल्स पर स्थित मुख्यमन्त्री निवास के सत्रों का कहना है कि सुषमा के पाले में बैठे शिवराज सिंह चौहान अभी दुविधा में हैं कि वे वर्तमान कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी का साथ दें अथवा भविष्य की नेता सुषमा स्वराज का दामन ही थामें रहें। उधर आडवाणी के इर्द गिर्द के लोग यह प्रचारित करने से नहीं चूक रहे हैं कि अगर उमाश्री भारती वापस आतीं हैं तो भाजपा के रीते पिछडे और महिला वोट बैंक को भरने में आसानी होगी।
उधर नितिन गडकरी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उमाश्री विरोधी खेमा संघ और भाजपा सुप्रीमो को यह समझाने पर तुला हुआ है कि यह वही उमाश्री भारती हैं जिन्होंने भाजपा के चेहरे रहे अपने पिता तुल्य पूर्व प्रधानमन्त्री और एल.के.आडवाणी को पानी पी पी कर कोसा था। विधानसभा और लोकसभा चुनावों मेें भाजपा को नुकसान पहुंचाने मे भी उमाश्री ने कोई कोर कसर नहीं रख छोडी थी।

देश को परिपक्व गृह मन्त्री की दरकार

देश को परिपक्व गृह मन्त्री की दरकार

चिदम्बरम हो सकते हैं पार्टी के लाडले, पर गृह मन्त्री के कद के अनुरूप नहीं


नक्सलियों की ताकत को कमतर आंक गई सरकार

इस हमले की जिम्मेदारी निर्धारित करनी ही होगी


(लिमटी खरे)


(देश के 76 जांबाज नक्सलियों के हाथों शहीद हो गए हैं, उनके परिवार पर क्या बीत रही होगी इस बात का अन्दाज नहीं लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर चूक कहीं न कहीं तो हुई है, जो इतनी बडी तादाद में नुकसान झेलना पडा है। इसकी जवाबदेही तय करना ही होगा, वरना आने वाले सालों में देश किस रास्ते पर चलने लगेगा कहा नहीं जा सकता है। इस घटना के बाद सरकार को जगाने के लिए एक अभियान अवश्य चलाया जाना चाहिए। आज से हम नक्सलवाद पर जानकारियां और सरकार की बचकानी नीतियों की आलोचना और जमीनी हकीकत से लवरेज धारावाहिक आरम्भ कर रहे हैं। सुधी पाठकगण, मीडिया के मित्रों से आग्रह है कि वे भी सरकार को जगाने के लिए आगे आएं, वैसे कहा गया है कि सोते हुए को जगाया जा सकता है, जो सोने का नाटक करे उसे कोई भी नहीं जगा सकता। पर हम प्रयास ही कर सकते हैं। पाठकगणों का सहयोग आपेक्षित है, आपका मार्गदर्शन और सहयोग इस अभियान को किसी मंजिल तक अवश्य ही पहुंचाएगा, एसी आशा है)

देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई में अब तक का सबसे बडा आतंकी हमला पाकिस्तान के इशारे पर हुआ या नहीं इसका खुलासा अभी तक आधिकारिक तौर पर नहीं हो सका है, किन्तु छत्तीगढ में अब तक का सबसे बडा नक्सली हमला देश के ही नक्सलवादियों ने किया है, यह बात आईने की तरह साफ हो चुकी है। खुफिया तन्त्र, पुलिस तन्त्र, पेरा मिलिट्री फोर्स, केन्द्र और राज्य सरकार की तमाम सावधानियों के बाद भी जिस तरह से देश के 76 जांबाज शहीद हुए उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। इस घटना की महज निन्दा करने से काम नहीं चलने वाला।


कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही बडे सियासी दलों के साथ ही साथ अन्य राजनैतिक दल सत्ता के मद में चूर मदमस्त हाथी की चाल चल रहे हैं। देशवासी आज अलगाववाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, भाषा वाद, क्षेत्रवाद जैसी इक्कीसवीं सदी की कुरितियों से बुरी तरह भयाक्रान्त हैं और देश के निजाम नीरो के मानिन्द चैन की बंसी बजा रहे हैं। वे मजे से नीन्द क्यों न लें, आखिर उन्हें किस बात की कमी है। खजाना जनता के लिए ही खाली है, निजामों और जनसेवकों की पगार, सुरक्षा और सुखसुविधाओं में तो रोज ही बढोत्तरी हो रही है। उनके इर्द गिर्द तो परिन्दा भी पर नहीं मार सकता है।

भारत का खुफिया तन्त्र कितना पंगु और देश के निजाम कितने नपुंसक हो गए हैं, इसके एक नहीं अनेकों उदहारण हैं। हमारे घर (हिन्दुस्तान) में घुसकर बाहर के आतातायी आकर कहर बरपाकर आसानी से चले जाते हैं और हम लकीरें ही पीटते रह जाते हैं। हद तो उस वक्त हो गई थी जब खुफिया तन्त्र की नाकामी के चलते 2008 में मुम्बई पर आतंकियों ने सबसे बडे हमले को अंजाम दिया था, उसके बाद अब नक्सलवादियों ने देश के सरमायादारों को जता दिया है कि उनकी चेतावनियों, सख्ती जैसी गीदड भभकियों पर उनके इरादे कहीं भारी हैं। इस नाकामी से निश्चित तौर पर नक्सलवादियों को अपना कार्यक्षेत्र बढाने में मदद मिलेगी। मंहगाई और भ्रष्टाचार से टूटी देश की जनता के मन में अब कानून के बजाए नक्सलवादियों का डर घर कर जाए तो किसी को अश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमें कहने में कोई संकोच नहीं कि सरकार और विपक्षी दल मिलकर नूरा कुश्ती लड रहे हैं, अगर किसी घटना या दुघZटना पर मन्त्री, मुख्यमन्त्री का त्यागपत्र मांगा जाता है तो निश्चित तौर पर उसमें कहीं न कहीं सियासी मकसद जबर्दस्त रूप से हावी होता है। अब जनता के लिए लडने का माद्दा जनसेवकों में बचा ही नहीं है। इस हमले के बाद यह साफ हो गया है कि देश पर हुकूमत करने वालों की साठ साल की प्रशासनिक और राजनैतिक विफलता की परिणिति है यह बर्बर आतंक।

देश के गृह सचिव जी.के.पिल्लई बडी ही साफगोई से कहते हैं कि जिस इलाके में आपरेशन ग्रीन हंट चलाया जा रहा था, वह पूरी तरह से नक्सली कब्जे में था। कांग्रेस की सबसे ताकतवर नेत्री सोनिया गांधी, प्रधानमन्त्री डॉ.मनमोहन सिंह, गृह मन्त्री पी.चिदम्गरम सहित चुने हुए या पिछले दरवाजे से आए जनसेवकों को शर्म आनी चाहिए कि आजादी के छ: दशक बाद भी देश के कई इलाके एसे हैं जहां भारत सरकार का नहीं वरन देश को तोडने वाली ताकतों की हुकूमत चलती है। भव्य और एयर कण्डीशन्ड कमरों, महंगी कारो, विमानों में सफर करने वाले जनसेवकों को अगर कडकडाती धूप में एक दिन इन जवानों के साथ जंगलों में खाक छानने भेज दिया जाए तो इनकी तबियत बिगड जाएगी।

1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलवाडी से आरम्भ हुआ नक्सलवाद आज 43 साल की उमर को पा चुका है। आजाद भारत में विडम्बना तो देखिए कि 43 साल में केन्द्र और सूबों में न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं पर किसी ने भी इस बीमारी को समूल खत्म करने की जहमत नहीं उठाई। उस दौरान चारू मजूमदार और कानू सन्याल ने सत्ता के खिलाफ सशस्त्र आन्दोलन की नींच रखी थी। इस आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले चारू मजूमदार और जंगल सन्थाल के अवसान के साथ ही यह आन्दोलन एसे लोगों के हाथों में चला गया जिनके लिए निहित स्वार्थ सर्वोपरि थे, परिणाम स्वरूप यह आन्दोलन अपने पथ से भटक गया। कोई भी केन्द्रीय नेतृत्व न होने के कारण यह आन्दोलन अराजकता का शिकार हो गया। चीन के क्रान्तिकारी नेता माओत्से तुग को आदर्श मानते हैं नक्सली। नक्सलियों का नारा यही रहा है कि बन्दूक की गोली से निकलती है, सत्ता।

यह जानकर सरकार को तो नहीं किन्तु आम आदमी को आश्चर्य ही होगा कि नक्सलियों का चौथ वसूली का सालाना राजस्व 1500 करोड रूपए से अधिक का है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल बिहार में नक्सलियों से पुलिस ने छ: लाख 84 हजार 140 रूपए तो इस साल महज तीन महीनों में ही 21 लाख 76 हजार 370 रूपए बरामद किए हैं। बताते हैं कि बालाघाट में नब्बे के दशक में नक्सलियों द्वारा उडाई गई एक पुलिस वेन के उपरान्त हुई पुलिस कार्यवाही के बाद मारे गए नक्सली की जेब से रंगदारी टेक्स वसूली की पर्ची भी मिली थी, जिसमें सबसे उपर बिठली चौकी के थाना प्रभारी द्वारा 5000 रूपए देना अंकित था।

इस घटना ने साबित कर दिया है कि देश के गृहमन्त्री जैसे जिम्मेदार ओहदे पर अब किसी के चहेते नहीं वरन वल्लभ भाई पटेल की छवि वाले जनसेवक की आवश्यक्ता है। वर्तमान गृहमन्त्री की नाकामी साफ परिलक्षित हो रही है। अतिउत्साह में उन्होंने आपरेशन ``गीन हंट`` की परिकल्पना कर उसे अमली जामा अवश्य पहना दिया। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि पलनिअप्पम चिदम्बरम के पास अनुभव की कमी है, वरना कौन होगा जो जमीनी भूगोल से परिचित कराए बिना इतने सारे जवानों को मौत के मुंह में ढकेलने का जोखम उठाएगा! केन्द्रीय गृह मन्त्री चिदम्बरम ने नक्सलियों की ताकत को कम आंका है, यह बात भी उतनी ही सच है जितनी कि दिन और रात। सरकार को नक्सलियों से लडने अपने तौर तरीकों में अमूल चूल बदलाव लाने ही होंगे, वरना आने वाले समय में देश के न जाने कितने सिपाही इस तरह काल कलवित होते रहेंगे।