अन्ना, आई मस्ट सैल्यूट यू
लिमटी खरे
सवा अरब की आबादी है जो भारत के भूमण्डल में निवास करती है। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसने भारत वर्ष पर आजादी के उपरांत आधी सदी से ज्यादा राज किया है। दोनों के साथ ही सवा सैकड़ा का आंकड़ा जुड़ा हुआ है। कांग्रेस अब तक देश की जनता को एक ही लाठी से हांकती आई है। जो मन आया वो नीति बना दी, जो चाहा वो शिक्षा के प्रयोग करवा दिए। आजादी के उपरांत राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी के अवसान के बाद आई रिक्तता को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कुछ हद तक भरने का प्रयास किया था। अस्सी के दशक के आरंभ होते ही एक बार फिर देश में असली गांधीवादी नेता के मामले में शून्यता महसूस की जा रही थी। नकली गांधीवादी नेताओं से तो भारत देश पटा पड़ा है।
तीन दशकों के बाद एक बार फिर अन्ना हजारे के रूप मंे देश को एक गांधी वादी नेता मिला है जो निस्वार्थ भाव से देश के लिए काम करने को राजी है, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अन्ना के आव्हान पर समूचे देश ने अहिंसक तरीके से पूरे जोश के साथ उनका साथ दिया। खुफिया एजेंसियों के प्रतिवेदन ने कांग्रेस के हाथ पैर फुला दिए, और सरकार को अंततः इक्कीसवीं सदी के इस गांधी के सामने घुटने टेकने ही पड़े। हो सकता है कि कांग्रेस के वर्तमान स्वरूप और आदतों के चलते वह अन्ना के साथ ही साथ देश के सामने घुटने टेकने का प्रहसन कर फौरी तोर पर इससे बचना चाह रही हो किन्तु कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस अन्ना की एक आवाज पर देश के युवाओं ने उनका साथ दिया है, वे अगर कांग्रेस धोखा करती है तो आगे किस स्तर पर जा सकते हैं।
बहरहाल आधी लंगोटी पहनकर सादगी पसंद किन्तु कठिन अनुशासन में जीवन यापन करने वाले महात्मा गांधी ने उन ब्रितानियों को देश से खदेड़ दिया था, जिनका साम्राज्य और मिल्कियत इतनी थी कि उनका सूरज कभी अस्त ही नहीं होता था। एक देश में अगर सूरज अस्त हो जाता तो दूसरे देश में उसका उदय होता था। इतने ताकतवर थे गोरी चमड़ी वाले। बेरिस्टर गांधी ने सब कुछ तजकर सादगी के साथ देश की सेवा का प्रण लिया और उसे मरते दम तक निभाया।
महात्मा गांधी ने अहिंसा को ही अस्त्र बनाकर अपनी पूरी लड़ाई लड़ी। बापू के आव्हान पर अनेक बार जेल भरो आंदोलन का आगाज हुआ। 1918 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान ब्रितानी हुकूमत ने महात्मा गांधी के आंदोलन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। तब बापू ने आंदोलन का एक्सीलयेटर बढ़ा दिया था। जैसे ही देशव्यापी समर्थन बापू को मिला वैसे ही ब्रितानी हुकूमत उसी तरह घबराई जिस तरह अन्ना हाजरे के आंदोलन के बाद वर्तमान में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार घबराई है।
उस वक्त के सियासतदारों ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को हिंसा फैलाने के आरोप में पकड़ लिया। जैसे ही यह खबर फैली वैसे ही भारत के हर नागरिक का तन बदन सुलग गया। बापू के समर्थन में अनेकों समर्थकों ने जेल जाने की इच्छा व्यक्त की। जेल के बाहर होने वाले प्रदर्शन ने गोरों को हिलाकर रख दिया। इसके अलावा 1922 में चौरी चौरा में तनाव को देखकर ब्रितानी सरकार बहुत ही भयाक्रांत थी। निर्मम गोरों ने बापू को दस मार्च 1922 को पकड़कर जेल में डाल दिया। 1930 में कमोबेश यही स्थिति नमक सत्याग्रह के दौरान निर्मित हुई थी।
आजादी के उपरांत बापू की हत्या के बाद भारत में कुछ साल तो सब कुछ ठीक ठाक चला किन्तु इसके उपरांत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की सराउंडिंग (इर्द गिर्द के लोग) ने उन्हें अंधेरे में रखकर अत्त मचाना आरंभ कर दिया। प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी की जानकारी के बिना ही अनेक फैसले लिए जाकर उन्हें अमली जामा भी पहनाया जाने लगा। देश में अराजकता की स्थिति बन गई थी।
इसी दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान जननायक जय प्रकाश नारायण ने एक आंदोलन की रूपरेखा तैयार की और 25 जून 1975 को इसे मूर्त रूप दिया। जेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से त्यागपत्र की मांग कर डाली। इंदिरा गांधी के आंख नाक कान बने लोगों ने रातों रात जेपी सहित अनेक लोगों को बंद कर जेल में डाल दिया। यह जनता का रोष और असंतोष था कि आजादी के बाद सबसे ताकतवर कांग्रेस पार्टी को सत्ता छोड़कर विपक्ष के पटियों पर बैठना पड़ा था।
अन्ना हजारे ने यह साबित कर दिया है कि भारतवासी एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ कभी भी खड़े हो सकते हैं। भारत के हर नागरिक ने भी यह दिखा दिया है कि भारतवासी सहिष्णु, सहनशील शांत और सोम्य अवश्य हैं, किन्तु वे नपुंसक कतई नहीं हैं। अन्ना हजारे के इस कदम ने हर भारतवासी के दिल में बसने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लोकनायक जय प्रकाश नारायण की यांदें ताजा कर दी हैं।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस को अब भविष्य का रोड़मैप तय करना होगा, जिसमें घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार, अनाचार, धोखेबाजी आदि को स्थान न दिया जा सके। अन्ना हजारे की सादगी पर कोई भी मर मिटे। जिस सादगी के साथ उन्होने अनशन कर राजनेताओं को इससे दूर रखा और सरकार को झुकने पर मजबूर किया अन्ना की उस शैली को देखकर बरबस ही मुंह से फूट पड़ता है -‘‘अन्ना, आई मस्ट सैल्यूट यू।‘‘
सवा अरब की आबादी है जो भारत के भूमण्डल में निवास करती है। सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस जिसने भारत वर्ष पर आजादी के उपरांत आधी सदी से ज्यादा राज किया है। दोनों के साथ ही सवा सैकड़ा का आंकड़ा जुड़ा हुआ है। कांग्रेस अब तक देश की जनता को एक ही लाठी से हांकती आई है। जो मन आया वो नीति बना दी, जो चाहा वो शिक्षा के प्रयोग करवा दिए। आजादी के उपरांत राष्ट्रपिता मोहन दास करमचंद गांधी के अवसान के बाद आई रिक्तता को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने कुछ हद तक भरने का प्रयास किया था। अस्सी के दशक के आरंभ होते ही एक बार फिर देश में असली गांधीवादी नेता के मामले में शून्यता महसूस की जा रही थी। नकली गांधीवादी नेताओं से तो भारत देश पटा पड़ा है।
तीन दशकों के बाद एक बार फिर अन्ना हजारे के रूप मंे देश को एक गांधी वादी नेता मिला है जो निस्वार्थ भाव से देश के लिए काम करने को राजी है, सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अन्ना के आव्हान पर समूचे देश ने अहिंसक तरीके से पूरे जोश के साथ उनका साथ दिया। खुफिया एजेंसियों के प्रतिवेदन ने कांग्रेस के हाथ पैर फुला दिए, और सरकार को अंततः इक्कीसवीं सदी के इस गांधी के सामने घुटने टेकने ही पड़े। हो सकता है कि कांग्रेस के वर्तमान स्वरूप और आदतों के चलते वह अन्ना के साथ ही साथ देश के सामने घुटने टेकने का प्रहसन कर फौरी तोर पर इससे बचना चाह रही हो किन्तु कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस अन्ना की एक आवाज पर देश के युवाओं ने उनका साथ दिया है, वे अगर कांग्रेस धोखा करती है तो आगे किस स्तर पर जा सकते हैं।
बहरहाल आधी लंगोटी पहनकर सादगी पसंद किन्तु कठिन अनुशासन में जीवन यापन करने वाले महात्मा गांधी ने उन ब्रितानियों को देश से खदेड़ दिया था, जिनका साम्राज्य और मिल्कियत इतनी थी कि उनका सूरज कभी अस्त ही नहीं होता था। एक देश में अगर सूरज अस्त हो जाता तो दूसरे देश में उसका उदय होता था। इतने ताकतवर थे गोरी चमड़ी वाले। बेरिस्टर गांधी ने सब कुछ तजकर सादगी के साथ देश की सेवा का प्रण लिया और उसे मरते दम तक निभाया।
महात्मा गांधी ने अहिंसा को ही अस्त्र बनाकर अपनी पूरी लड़ाई लड़ी। बापू के आव्हान पर अनेक बार जेल भरो आंदोलन का आगाज हुआ। 1918 में चंपारण सत्याग्रह के दौरान ब्रितानी हुकूमत ने महात्मा गांधी के आंदोलन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। तब बापू ने आंदोलन का एक्सीलयेटर बढ़ा दिया था। जैसे ही देशव्यापी समर्थन बापू को मिला वैसे ही ब्रितानी हुकूमत उसी तरह घबराई जिस तरह अन्ना हाजरे के आंदोलन के बाद वर्तमान में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार घबराई है।
उस वक्त के सियासतदारों ने अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को हिंसा फैलाने के आरोप में पकड़ लिया। जैसे ही यह खबर फैली वैसे ही भारत के हर नागरिक का तन बदन सुलग गया। बापू के समर्थन में अनेकों समर्थकों ने जेल जाने की इच्छा व्यक्त की। जेल के बाहर होने वाले प्रदर्शन ने गोरों को हिलाकर रख दिया। इसके अलावा 1922 में चौरी चौरा में तनाव को देखकर ब्रितानी सरकार बहुत ही भयाक्रांत थी। निर्मम गोरों ने बापू को दस मार्च 1922 को पकड़कर जेल में डाल दिया। 1930 में कमोबेश यही स्थिति नमक सत्याग्रह के दौरान निर्मित हुई थी।
आजादी के उपरांत बापू की हत्या के बाद भारत में कुछ साल तो सब कुछ ठीक ठाक चला किन्तु इसके उपरांत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी की सराउंडिंग (इर्द गिर्द के लोग) ने उन्हें अंधेरे में रखकर अत्त मचाना आरंभ कर दिया। प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी की जानकारी के बिना ही अनेक फैसले लिए जाकर उन्हें अमली जामा भी पहनाया जाने लगा। देश में अराजकता की स्थिति बन गई थी।
इसी दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान जननायक जय प्रकाश नारायण ने एक आंदोलन की रूपरेखा तैयार की और 25 जून 1975 को इसे मूर्त रूप दिया। जेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से त्यागपत्र की मांग कर डाली। इंदिरा गांधी के आंख नाक कान बने लोगों ने रातों रात जेपी सहित अनेक लोगों को बंद कर जेल में डाल दिया। यह जनता का रोष और असंतोष था कि आजादी के बाद सबसे ताकतवर कांग्रेस पार्टी को सत्ता छोड़कर विपक्ष के पटियों पर बैठना पड़ा था।
अन्ना हजारे ने यह साबित कर दिया है कि भारतवासी एकजुट होकर अन्याय के खिलाफ कभी भी खड़े हो सकते हैं। भारत के हर नागरिक ने भी यह दिखा दिया है कि भारतवासी सहिष्णु, सहनशील शांत और सोम्य अवश्य हैं, किन्तु वे नपुंसक कतई नहीं हैं। अन्ना हजारे के इस कदम ने हर भारतवासी के दिल में बसने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लोकनायक जय प्रकाश नारायण की यांदें ताजा कर दी हैं।
देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस को अब भविष्य का रोड़मैप तय करना होगा, जिसमें घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार, अनाचार, धोखेबाजी आदि को स्थान न दिया जा सके। अन्ना हजारे की सादगी पर कोई भी मर मिटे। जिस सादगी के साथ उन्होने अनशन कर राजनेताओं को इससे दूर रखा और सरकार को झुकने पर मजबूर किया अन्ना की उस शैली को देखकर बरबस ही मुंह से फूट पड़ता है -‘‘अन्ना, आई मस्ट सैल्यूट यू।‘‘