जसवंत और आड़वाणी की जिन्ना भक्ति में फर्क
(लिमटी खरे)
एक असे से अनुशासित काडर बेस्ड पार्टी होने का दंभ भरने वाली भाजपा की सांसे अनुशासन के मामले में ही उखड़ने लगी हैं। भाजपा ने कभी अपने हनुमान रहे जसवंत सिंह को रावण बनाकर पार्टी से बाहर का रास्ता अवश्य दिखाकर औरों को अनुशसित रहने का संदेश अवश्य दे दिया हो किन्तु पार्टी में अब एक अंतहीन बहस चल पड़ी है।वैसे जिन्ना का महिमा मण्डन सबसे अधिक संघ को नागवार गुजरता है। इसके साथ ही साथ शिवसेना ने भी उग्र तेवर अिख्तायार कर रखे हैं। इसके पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी ने भी जिन्ना की मजार पर जाकर उनकी तारीफों में कमोबेश इसी तरह के कशीदे गढ़े थे।आज यह समझना बड़ा ही मुश्किल लग रहा है कि पाकिस्तान के जिस कायदे आजम जिन्ना के बारे में लाल कृष्ण आड़वाणी के बयानों को पार्टी ने कुनैन की कड़वी गोली समझकर लील लिया था, आज वह अपने पुराने विश्वस्त जसवंत सिंह को उसी गिल्त के लिए बाहर का रास्ता कैसे दिखा रही है, वह भी जसवंत का पक्ष सुने बिना।वैसे यह बात भी समझ से परे ही है कि कुशाग्र बुद्धि के धनी राजनेता जसवंत सिंह को आखिर एसी कौन सी जरूरत आ पड़ी थी कि वे जिन्ना को इस वक्त महिमा मण्डित करना चाह रहे थे। जसवंत ने जिन्ना को हीरो बनाकर सरदार वल्लभ भाई पटेल को जिस तरह विलेन बनाने का प्रयास किया है, वह संघ सहित भाजपा को नागवार गुजरा है।आम चुनावों में भाजपा के शर्मनाक प्रदर्शन के उपरांत जसवंत सिंह के तेवर काफी तल्ख ही नजर आ रहे थे। उनके निशाने पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के चुनिंदा नेता थे। जसवंत सिंह ने सीधे तोर पर यह आरोप लगाकर सभी को चौंका दिया था कि भाजपा की हार के जिम्मेदार लोगों को पार्टी द्वारा अहम पद देकर उपकृत क्यों किया जा रहा है। जसवंत भी नहीं जानते होंगे कि अनजाने में ही सही वे पार्टी प्रमुख को एक एसा मुद्दा थमा देंगे जो उनके लिए पार्टी में रहना दुश्वार कर देगा।हमारी राय में भारतीय जनता पार्टी देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी है। इस पार्टी में अनुशासन अवश्य तार तार होने लगा है, किन्तु भाजपा से अगर जसवंत सिंह को सुनवाई का मौका दिए बिना ही बाहर कर दिया जाता है तो यह प्रजातंत्र नहीं बल्कि ``हिटलरशाही`` की श्रेणी में आएगा।इस देश में सभी को अपने विचार व्यक्त करने का है। उसके विचारों से सहमत या असहमत होने का हक औरों को है। मगर जिन्ना का नाम आते ही भाजपा के प्याले में आने वाला इस तरह का तूफान समझ से परे ही है। वैसे भाजपा को चाहिए था कि जसवंत सिंह के विचारों पर पार्टी मंच में बहस कराई जाती, फिर जसवंत सिंह को सुना जाता और तब फैसला लिया जाता।इस तरह आनन फानन बाहर का रास्ता दिखा देने से भाजपा के खिलाफ यह संदेश भी जाएगा कि अगर भाजपा सत्ता में आई और देशवासियों ने पार्टी लाईन से इतर कुछ कदम उठाया तो उनके साथ भी कुछ अहित घट सकता है। भाजपा के अंदर अनुशासन का डंडा चलाना न चलाना पार्टी का अपना अंदरूनी मामला है, किन्तु हमारी समझ में पार्टी के अंदर कम से कम प्रजातंत्र तो होना ही चाहिए।अगर भाजपा ने सरदार पटेल के बारे में अनर्गल लिखने पर जसवंत सिंह का बखाZस्त किया है, तो भाजपा के शीर्ष नेताओं को अपनी गिरेबां में झांककर अवश्य ही देखना चाहिए कि आज कौन सा नेता सरदार पटेल के मार्ग का अनुसरण करता नजर आ रहा है। क्या आज भाजपा के शीर्ष नेता अपने निहित स्वाथोंZ को पार्टी लाईन से पहले प्राथमिकता में स्थान नहीं दे रहे हैंर्षोर्षो यहां राजेश खन्ना अभिनीत रोटी फिल्म के गाने का जिकर करना लाजिमी होगा - ``पहला पत्थर वो मारे जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो।`` क्या भाजपा का नेतृत्व इस बारे में सोचने की जहमत उठाएगार्षोर्षोवैसे भाजपा के नेतृत्व के इस रवैए के कारण भाजपा ने अपने कई धुरंधर साथियों को खोया है। पार्टी के थिंक टेंक माने जाने वाले गोविंदाचार्य ने सितंबर 2000 में पार्टी को अलविदा कह दिया था। भाजपा के शीर्ष नेताओं से वैचारिक तालमेल न बन पाने के कारण गोविंदाचार्य को अलग राह अपनानी पड़ी जो भाजपा को बहुत भारी पड़ा।उत्तर प्रदेश में भाजपा की रीढ़ माने जाने वाले कल्याण सिंह को भी नेतृत्व की खिलाफत के कारण 1999 में पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था, फिर लोकसभा चुनावों की गरज से जनवरी 2004 में कल्याण की घर वापसी अवश्य हुई पर चंद सालों के उपरांत जनवरी 2009 में उन्होंने पार्टी को आखिरी सलाम ठोंकर नई राह तलाशना आरंभ कर दिया।गोविंदाचार्य की करीबी रहीं भाजपा की फायर ब्रांड नेत्री उमाश्री भारती की बदोलत दिसंबर 2003 में दस सालों के बाद मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल हुई थी। पार्टी के नेताओं के रवैए के चलते नवंबर 2004 में उन्हें भी पार्टी ने बाय बाय कह दिया। उमाश्री ने पार्टी से निकलते ही अटल आड़वाणी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था।दिल्ली के धुरंधर नेता मदन लाल खुराना का जाना भाजपा के लिए दिल्ली प्रदेश में सफाए का कारण बना। अगस्त 2005 में पार्टी के नेताओं की मुगलई के चलते वे आक्रमक हुए और उन्हें पार्टी से बाहर होना पड़ा। खुराना के जाने के बाद दिल्ली प्रदेश में पार्टी मानो टूट सी गई।अतिमहात्वाकांक्षी उमरदराज भाजपा नेता लाल कृष्ण आड़वाणी और पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की जिन्ना भक्ति में फर्क को ढूंढना होगा। दोनों ही नेताओं ने कमोबेश एक सा कदम उठाया है, फिर जसवंत को इतना बड़ा दण्ड और आड़वाणी को माफी देकर भाजपा ने अपना दोहरा चरित्र उजागर कर ही दिया है।भाजपा की प्रमुख प्रतिद्वंदी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा युवाओं को आगे लाकर 21वीं सदी में युवाओं को बागडोर सौंपने की कवायद की जा रही है, और भाजपा को वयोवृद्ध नेता एल.के.आड़वाणी का विकल्प ही नहीं सूझ रहा है, तभी तो भाजपा ने दुबारा आड़वाणी को विपक्ष का नेता पद थमा दिया।भाजपा में मची गलाकाट स्पर्धा के चलते अब शक ही है कि आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी ``सशक्त भाजपा, सशक्त भारत`` का गगनभेदी नारा लगा सके। विचारधारा में धड़ों में बंटी दिखाई देने वाली भाजपा के लिए आने वाला समय काफी हद तक कष्टकारी माना जा सकता है।
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0 बरेला पावर प्लांट
सामाजिक जिम्मेदारी के लिए महज .034 प्रतिशत
0 कम से कम दो फीसदी प्रतिवर्ष का प्रावधान करना था कंपनी को
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश मे जबलपुर के समीप डलने वाले झाबुआ पावर लिमिटेड के लगभग तीन हजार करोड़ रूपयों की लागत वाले पावर प्लांट द्वारा घंसौर क्षेत्र में सामाजिक जिम्मेदारी के लिए चार सालों में महज एक करोड़ रूपयों का प्रवधान किया गया है।उर्जा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि निजी क्षेत्रों द्वारा संचालिए किए जाने वाले पावर प्लांटस को अपनी कुल लागत का कम से कम दो फीसदी प्रतिवर्ष उत्पादन आरंभ होने तक व्यय करना होता है। यह प्रतिशत उत्पादन आरंभ होने के साथ ही बढ़कर तीन से पांच फीसदी तक पहुंच जाता है।गौरतलब होगा कि जबलपुर संभाग के सिवनी जिले की घंसौर तहसील में मशहूर थापर ग्रुप की कंपनी झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा 600 मेगावाट का एक पावर प्लांट डाला जा रहा है, जिसकी लागत 2900 करोड़ आंकी गई है। कंपनी ने पावर प्लांट के लिए घंसौर के ग्राम बरेला में लगभग 600 एकड़ जमीन को 45 करोड़ रूपए की लागत से क्रय कर लिया है।कंपनी के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि जिन कास्तकारों की जमीन ली गई है, उस क्षेत्र जनसंख्या लगभग 76 हजार 797 है, एवं सभी ग्रामीणों का प्रमुख व्यवसाय कृषि ही है। इस पावर प्लांट के डलने से इसकी लगभग एक हजार फिट उंची चिमनी से उड़ने वाली राख (फ्लाई एश) से आसपास के खेतों में प्रभाव अवश्य ही पड़ेगा।वैसे भी मध्य प्रदेश पर्यावरण निवारण मण्डल के प्रतिवेदन में स्पष्ट कहा गया है कि कोयला जलित बायलर ही वायू प्रदूषण का मुख्य कारक होगा। सूत्रों की माने तो इस संयंत्र से उतपन्न होने वाला ध्वनि प्रदूषण इतना भयावह होगा कि पर्यावरण निवारण मण्डल द्वारा कर्मचारियों को इयर प्लग और इयर मफलर का उपयोग करने की सलाह भी दी गई है।उर्जा मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अगर यह संयंत्र 2900 करोड़ की लागत का डाला जा रहा है तो इसमें सोशल एक्टीविटीज के लिए दो फीसदी के हिसाब से राशि का प्रावधान किया जाना था। सूत्रों ने यह भी बताया कि कंपनी द्वारा स्थनीय लोगों की एक कमेटी बनाकर स्थानीय जरूरत के हिसाब से इसे खर्च किया जाता है।सूत्रों की माने तो यह राशि प्रोजेक्ट स्टेज तक के लिए ही है। प्रोडक्शन आरंभ होने पर इसे बढ़ाकर तीन से पांच फीसदी किया जाता है, ताकि पर्यावरण एवं अन्य घटकों के प्रभावों को स्थानीय स्तर पर कम किया जा सके। माना जा रहा है कि शनिवार 22 अगस्त को घंसौर में अतिरिक्त कलेक्टर, सिवनी श्रीमति अलका श्रीवास्तव की उपस्थिति में होने वाली जनसुनवाई में इन तथ्यों पर विचार अवश्य किया जाएगा।
शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
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