गुरुवार, 14 जून 2012

यूपीए में पड़ सकती है फूट


यूपीए में पड़ सकती है फूट

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के महामहिम राष्ट्रपति चुनने के मसले पर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के घटक दलों के बीच जमकर घमासान मचा हुआ है। त्रणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी और सपा के क्षत्रप मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में एकला चलो रे की नीति का अनुसरण करना आरंभ कर दिया है। ममता मुलायम द्वारा मीडिया के माध्यम से सुझाए गए तीन नामों पर कांग्रेस ने रेड सिग्नल दिखा दिया है। सोनिया की पहली पसंद प्रणव मुखर्जी हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में प्रणव द्वारा दिए गए घाव आज भी रिस रहे हैं जिसे ममता भुला नहीं पा रही हैं।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों की माने तो पार्टी ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव द्वारा सुझाए गए तीनों नाम पर सहमत नहीं हैं। यदि कांग्रेस मनमोहन के नाम पर तैयार होती है तो फिर उसे प्रधानमंत्री पद के लिए भी एक उम्मीदवार ढूंढ़ना होगा। राजनीतिक हलकों में ममता और मुलायम की कवायद को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि कहीं प्रधानमंत्री पद से मनमोहन की सम्मानजनक विदाई के लिए कांग्रेस की यह चाल तो नहीं। इधर ममता और मुलायम प्रणब मुखर्जी के नाम से सहमत नहीं हैं। विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कहा है कि कांग्रेस पहले अपना रुख स्पष्ट करे, उसके बाद ही वह कुछ कहेगी।
कांग्रेस का कहना हैं कि ममता और मुलायम जल्द चुनाव चाहते हैं इसलिए वे प्रणब के नाम का समर्थन नहीं कर रही है। ममता-मुलायम ने मनमोहन के अलावा पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के नाम भी प्रस्तावित किए और इनमें से किसी एक पर आम सहमति बनाने की सभी राजनीतिक दलों से गुजारिश की। कहा जा रहा है कि कलाम भाजपा की पसंद हो सकते हैं पर कांग्रेस में कलाम के नाम पर सहमति बने इसमें संशय ही है।
टीएमसी और सपा की ओर से राष्ट्रपति चुनाव को लेकर तीन नाम आगे करने के बाद सियासी हालात नये करवट लेते दिख रहे हैं। इसके मद्देनजर तीन अहम सवाल भी खड़े होते दिख रहे हैं। पहला, राष्ट्रपति बनने की रेस में इन नामों में किसका पलड़ा कितना भारी है और इसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं? दूसरा, प्रधानमंत्री का नाम शामिल करने के पीछे सियासी मकसद क्या हो सकता है? और तीसरा क्या इन नामों की पेशकश यूपीए की और गहराती संकट की ओर इशारा करती है? इन सवालों पर राजनीतिक वेश्लेषकों का नजरिया।
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर कहा जा रहा है कि एनडीए भले ही इस नाम पर राजी हो जाये, लेकिन कांग्रेस शायद ही उनके नाम पर तैयार हो। वहीं, सियासी गलियारों में चर्चा है कि कलाम का नाम आगे कर ममता-मुलायम ने भाजपा को एक संदेश देने की कोशिश की है, कि आने वाले दिनों में राजग का हाथ थामने में इन्हें कोई गुरेज नहीं होने वाला है। साथ ही एनडीए और यूपीए दोनों को स्पष्ट इशारा कर दिया है कि किसी नाम पर सहमति बनाने के लिए उन्हें इनके पास ही आना होगा।
सोमनाथ के नाम पर शामिल करने पर भी ममता की सोची समझी रणनीति सामने आ रही है। माना जा रहा है कि सोमनाथ चटर्जी का नाम सामने करके ममता ने बंग्ला मानुष के विकल्प को पूरा कर दिया है। सोमदा का नाम आगे आते ही प्रणव दा का नाम रेस से हटना तय माना जा रहा है। कांग्रेस या भाजपा के लिए सोमनाथ का नाम खारिज करना आसान नहीं होगा। इतना ही नहीं इससे ममता का बंगाल कार्ड और मुलायम के राजनीतिक व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाने की बात पर भी मुहर लग जायेगी। ज्ञातव्य है कि सोमनाथ माकपा से निष्काषित हैं और सियासी दल से जुड़े भी नहीं हैं। बंगाल में ज्योति बसु के बाद वे सबसे कद्दावर नेता हैं। इसलिए सोमनाथ राजनीतिक तौर पर अधिक फायदेमंद हैं।

संकट में आ सकते हैं मोदी


संकट में आ सकते हैं मोदी

संघ नेतृत्व हो गया मोदी से खफा

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)।गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से भाजपा संगठन को कालर पकड़कर बार बार झुका रहे हैं उससे धूमिल होती भाजपा की छवि से संघ नेतृत्व खासा खफा नजर आ रहा है। संजय जोशी प्रकरण से संघ के आला नेता मोदी के खिलाफ तलवार पजाने लगे हैं।
दिल्ली में झंडेवालान स्थित संघ मुख्यालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत संजय जोशी प्रकरण से खासे आहत बताए जा रहे हैं। इस मसले में गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी की हरकतों से संघ का शीर्ष नेत्त्व अब मादी के खिलाफ हो गया है। मोदी ने अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी जिस तरह से पार्टी के माध्यम से निकाली है उससे संघ प्रमुख की भावनाएं बुरी तरह आहत हुई हैं।
सूत्रों के अनुसार नरेंद्र मोदी के जबर्दस्त दवाब के आगे झुककर भले ही नितिन गड़करी ने संजय जोशी को त्यागपत्र देेने के लिए बाघ्य किया हो और त्यागपत्र स्वीकार कर लिया हो पर संघ के बेहद विश्वसनीय संजय जोशी की खामोशी गड़करी की रातों की नींद हराम किए हुए है। एक तरफ उथले विचारों को दर्शाकर एल.के.आड़वाणी ने ब्लाग वार आरंभ किया तो दूसरी ओर संजय जोशी ने मुंह सिलकर सभी को अपने कदमों के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।
मध्य प्रदेश के संघ पृष्ठभूमि के और प्रभात झा के करीबी भाजपा नेता का कहना है कि पिछले दिनों नरेंद्र मोदी को टारगेट कर भाजपा के मुखपत्र में जो कुछ लिखा गया था वह दरअसल, मोहन भागवत की ही राय थी। संघ की मोदी जोशी प्रकरण में चुप्पी का कारण महज इतना है कि इस साल दिसंबर में गुजरात विधानसभा चुनाव हैं और दिसम्बर में ही गड़करी को दुबारा भाजपा की कमान सौंपी जाएगी।

गर्मी में जानवर हो रहे हलाकान


गर्मी में जानवर हो रहे हलाकान

(दीपांकर श्रीवास्तव)

लखनऊ (साई)। उत्तर प्रदेश में भीषण गर्मी और उस पर पानी की समस्या। यह इंसान को ही नहीं बल्कि जानवरों को भी बेहाल कर रही है। लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने वन्य जीव विहार में इस समय पानी के आभाव में पशु-पक्षी व्याकुल हैं। यूपी के कैमूर वन्य जीव विहार के जानवर कुछ ज्यादा ही दिक्कत में हैं। यहां पानी की जबरदस्त किल्लत है।
पानी के अभाव में दुर्लभ प्रजाति के काले मृग संकट में हैं पानी की कमी और आग की लपटों से कैमूर वन्य जीव अ यारण्य उजडऩे की कगार पर है। अ यारण्य के दुर्लभ काले मृगों सहित अन्य जानवर सांभर व चित्तल आदि के अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। वन्य जीवों को पेयजल संकट से उबारने के वन विभाग के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। कैमूर सेन्चुरी में जीवों के लिए टैकरों से पानी की सप्लाई की जा रही है।
प्रकृति के प्रकोप व अनदेखी व कुछ लोगों की लालच ने मिर्जापुर व सोनभद्र जिले के 501 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कैमूर वन्य जीव विहार को उजडऩे के कगार पर पहुंचा दिया है। तेन्दुआ पहले ही सेन्चुरी से गायब हो चुका है। अब यहां बचे दुर्लभ काले मृगों पर भी शामत आ गयी है। पानी के लिए गांव की ओर रुख करने पर शिकारियों द्वारा मारे जाने का भय, सेन्चुरी में रहे तो बेपानी मौत। दोनों ही ओर से जानवरों पर संकट मंडरा रहा है।
इन दिनों कैमूर वन्य जीव विहार के मिर्जापुर रेंज में पानी का घोर संकट है। पहाड़ी नदियां सूख गयी हैं। वन विभाग द्वारा बनवाये गये चौक डैमों में दरार दिखाई पड़ रही है। झरनों में पानी नहीं निकल रहा है। वहीं स बन्धित अधिकारियों का कहना है कि मिर्जापुर जिले में वर्षा अभी तक नहीं हुई है। ऐसी स्थिति सोनभद्र की भी है। अ यारण्य में पानी पंहुचाना वास्तव में कठिन है। इस भीषण गर्मी में जंगली जानवरों को बचाना एक चुनौती है। बहरहाल पानी के संकट से जूझ रहे जानवरों को कहीं राहत नहीं मिल पा रही है।

गर्मी से हलाकान हैं राजधानीवासी


गर्मी से हलाकान हैं राजधानीवासी

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। दिल्ली में आज भी सूर्यदेवता आग उगल रहे हैं। मंगलवार की सुबह न्यूनतम तापमान जहां 28.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया वहीं अधिकतम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के आसपास बने रहने की सम्भावना है। मौसम विभाग का आकलन है कि दिन में आकाश साफ रहेगा। सुबह 8.30 बजे नमी 44 प्रतिशत दर्ज की गई। सोमवार को अधिकतम तापमान औसत से चार डिग्री ऊपर 43 डिग्री सेल्सियस दर्ज की गई थी वहीं न्यूनतम तापमान औसत से दो डिग्री ऊपर 30 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया, ‘आकाश आज साफ रहेगा, रात के समय छिटपुट बादल छा सकते हैं। सड़कों पर लोग अपने को पूरी तरह से ढंग कर निकल रहे हैं जिससे सूर्य की पैराबैगनी किरणें उन्हें नुकसान न पहुंचा सकें।
उधर, मानसून ने भी अपनी गति पकड़ ली है। बताया जा रहा है कि मानसून आज गोवा के तट पर पहुंच सकता है। भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक लक्ष्मण सिंह राठौड़ ने बताया कि मानसून के मध्य अरब सागर के कुछ और हिस्सों, तटीय कर्नाटक, गोवा और दक्षिण कोंकण में पहुंचने के लिए भी परिस्थितियां अनुकूल हैं।
वहीं मानसून की अनिश्चितता से पूर्वाेत्तर के किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें दिखने लगी हैं। रोहिणी नक्षत्र निकलता जा रहा है, अब तक बारिश नहीं हुई है। जिस कारण किसान खेत में धान के बीज नहीं डाल सके हैं। गत वर्ष 29 मई को अच्छी बारिश हुई थी। इस वर्ष बारिश का कोई ठिकाना नहीं है। मौसम विभाग का कहना है कि मानसून आने में अभी 10 दिन और बाकि है, 15 जून के बाद ही बारिश हो सकती है। आपको बता दें कि बिहार और पश्चिम बंगाल में 15 जून के करीब मानसूनी बारिश होने लगती है जिससे किसान धान की खेती में लग जाते हैं पर इस बार संभवतः एक दो दिन ज्यादा इंतजार करना पडेगा।

मिनिस्टर! मिस्टर 20 परसेन्ट


मिनिस्टर! मिस्टर 20 परसेन्ट

(अखिलेश अखिल/विस्फोट डॉट काम)

जरदारी की तर्ज पर ये मिस्टर टेन परसेन्ट भर नहीं है. जरदारी से भी आगे ये साहब इंडिया के मिस्टर 20 परसेन्ट हैं. इनका नाम है कमलनाथ. कमलनाथ करते तो हैं आदिवासियों की राजनीति, लेकिन आदिवासियों से ज्यादा राजनीति में रहकर अपना हित किया है। आपत्ति इस बात की है कि उन्होंने जो कुछ खुद के और परिवार के लिए किया, वह सब कायदे-कानूनों को ताख पर रखकर किया है? कैसे, क्यों और कब...आइए, जानते हैं कमलनाथ के बारे में...
कांग्रेस के सांसद और वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की उनके चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा की जनता में चाहे जैसी छवि हो, लेकिन राजनीतिक गलियारे में उनकी चर्चा एक भ्रष्ट नेता के रूप में ही की जाती है। यह बात और है कि अभी तक कमलनाथ के भ्रष्टाचार के बारे में ज्यादा जानकारी लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। लेकिन अब कमलनाथ के नकली चेहरे से नकाब उतरने ही वाली है। बालाघाट, लांजी के पूर्व सपा विधायक किशोर समरिते ने कमलनाथ की करतूतों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन पर कई संगीन आरोप लगाए गए हैं। याचिका का लब्बो-लुआब यह है कि कमलनाथ को धन कमाने की सनक सवार है, चाहे वह गलत तरीके से ही क्यों न कमाया गया हो? सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका 21 मई को दायर की गई है। इस याचिका का डायरी नंबर 17929 है। किशोर समरिते की वकील नमिता चौधरी कहती हैं, ‘किशोर समरिते ने जो कागजात उपलब्ध कराए हैं, वे काफी महत्वपूर्ण हैं और संगीन भी। तथ्यों के आधार पर कह सकते हैं कि कोर्ट इस पर संज्ञान ले सकती है और मामले की जांच के आदेश हो सकते हैं। चूंकि अभी गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं और 2 जुलाई को कोर्ट खुलने के बाद इस मामले की लिस्टिंग संभव है।
सन् 1980 से कांग्रेस की राजनीति करने वाले कमलनाथ 11वीं लोक सभा को छोड़कर लगातार संसद में विराजमान रहे हैं। छिंदवाड़ा जैसे पिछड़े इलाके से चुनाव जीतने वाले कमलनाथ की ठसक किसी राजा से कम नहीं है। जनहित याचिका के घेरे में कमलनाथ कितना आ पाते हैं, यह बाद की बात है, लेकिन इतना साफ हो गया है कि कांग्रेस के इस सिपाही का भी दामन साफ नहीं है। हालांकि जनहित याचिका दायर करने वाले किशोर समरिते भी दूध के धुले नहीं हैं। स्थानीय स्तर पर उनके खिलाफ भी कई तरह के मामले दर्ज हैं। ये वही किशोर समरिते हैं, जिन्होंने राहुल गांधी के खिलाफ लखनऊ हाईकोर्ट में एक लड़की को गायब करने का मामला दर्ज कराया और गलत पाए जाने पर हाईकोर्ट ने समरिते पर 50 लाख का जुर्माना ठोका था। इससे पहले बालाघाट जिला अदालत ने एक मामले उनको 6 साल कैद की सजा भी सुनाई थी।
दूसरी ओर कमलनाथ के खिलाफ टीम अन्ना भी सख्त है। टीम अगस्त महीने में जिन 14 लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने की तैयारी कर रही है, उनमें कमलनाथ का नाम सबसे ऊपर है। कमलनाथ एक जुलाई 2004 से लेकर 14 फरवरी 2009 तक यूपीए सरकार में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे। इनके काल में गलत तरीके से बासमती और गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात से संबंधित मामले उठे थे। इस संबंध में जानकारी लेने के लिए 18 अगस्त को संबंधित मंत्रालय में एक आरटीआई डाली गई। मंत्रालय के एक विभाग एमएमटीसी की ओर से 4 अक्टूबर को जो जवाब भेजा गया है, उसमें कहा गया है कि कमलनाथ जब तक इस मंत्रालय में थे, उस दौरान बासमती और गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात संबंधित कोई लाइसेंस किसी को भी जारी नहीं किया गया। यहां तक तो सब कुछ ठीक ठाक लग रहा था, लेकिन इसी मंत्रालय से संबंधित पीइसी लिमिटेड नाम की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी 19 सितंबर 2011 को एक आरटीआई के जवाब में सूचना देती है कि 2004 से लेकर 2009 के बीच में 5,07,584.25 मिट्रीक टन चावल का निर्यात किया गया। जिसकी कीमत 7,70,82,15,419.50 रुपये थी।
आप कह सकते हैं कि बिना लाइसेंस जारी किए कमलनाथ ने अपने काल में लगभग 700 करोड़ रुपये का चावल निर्यात किया। जहां तक चावल आयात करने की बात थी, इस मामले में भी मंत्रालय ने सही सूचना देने की कोशिश नहीं की है। कमलनाथ के समय में क्या चावल आयात भी किया गया था? इस बावत सूचना मांगी गई थी। इस सूचना के जवाब में मंत्रालय से संबंधित डीजीएफटी विभाग 10 अक्टूबर 2011 के जवाब में कहता है कि बासमती चावल और गैर बासमती चावल के निर्यात के लिए भी कोई लाइसेंस नहीं दिए गए। यह विभाग भी निर्यात से संबंधित लाइसेंस पर चुप्पी साध गया और कोई सकारात्मक जवाब नहीं दे सका। मंत्रालय की इस चुप्पी की कलई तब खुली, जब एक अन्य आरटीआई के जवाब में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से संबंधित डायरेक्टर जनरल ऑफ कामर्शियल इंटेलीजेंस ने अपने 13 दिसंबर 2011 के उत्तर में बासमती व गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात के तथ्यों को क्रमबद्ध जारी किया। विभाग के इस जवाब में कहा गया कि वर्ष 2004-05 में केवल चावल का आयात ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर कई सौ करोड़ के आयात-निर्यात किया गया। सवाल उठता है कि मंत्रालय द्वारा आखिर बासमती और गैर बासमती चावल के आयात और निर्यात से संबंधित सूचनाओं की जानकारी क्यों छुपाई गई?
मंत्रालय बार-बार यह क्यों कहता रहा कि इस संदर्भ में कोई लाइसेंस जारी नहीं किए गए? जाहिर है, इसके पीछे घोटालेबाज काम कर रहे थे और वे कमलनाथ द्वारा रचे गए थे। तथ्यों के मुताबिक बासमती व गैर बासमती चावल के इस आयात-निर्यात के खेल में सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाली कंपनी थी अजमेरा रियलिटी एंड इन्फ्रा स्ट्रक्चर लि0। इन दोनों कंपनियों को आयात-निर्यात के लाइसेंस मंत्रालय से दिए गए थे। आपको बता दें कि कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ के इन दोनों कंपनियों में शेयर थे। याचिकाकर्ता किशोर समरिते कहते हैं, ‘कमलनाथ ने अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए ही इन कंपनियों को लाइसेंस दिए थे। पहले इन दोनों कंपनियों की बैलेंस शीट काफी कमजोर थी, लेकिन 2009 आते-आते दोनों कंपनियां काफी मजबूत हो गईं। यह राजनीति करते हैं आदिवासियों की और सबसे ज्यादा शोषण भी उन्हीं का करते हैं। पहले इनके पास 16 कंपनियां थीं और आज इनके पास 63 कंपनियां हैं। ये कंपनियां कहां से आती हैं और कैसे बनती हैं? लोगों को जानने का अधिकार है। वह देश के बड़े अमीर आदमी हैं और ये पैसे सरकारी धन की लूट से ही लाए गए हैं।
जनहित याचिका में कमलनाथ पर सरकार और चुनाव आयोग को अपनी संपत्ति के बारे में गलत सूचना देने का भी आरोप है। कहा गया है कि 2004 के लोक सभा चुनाव के दौरान कमलनाथ ने अपने शपथ पत्र में छिंदवाड़ा में कृषि भूमि होने की बात करते हैं। इसके साथ ही दिल्ली के सुल्तानपुरी और 47सी फ्रेंड्स कॉलोनी में मकान के साथ ही कोलकाता की एक प्रॉपर्टी कंपनी में शेयर की चर्चा करते हैं, जबकि 2009 के लोक सभा चुनाव के दौरान कमलनाथ अपने शपथ पत्र में दिल्ली में एक और मकान की चर्चा करते हैं। शपथ पत्र में बताया गया है कि दिल्ली का यह प्लॉट 816 वर्ग गज का है, जिसकी कीमत 35 करोड़ है। ऐसा संभव भी हो सकता है। लेकिन कमलनाथ 2010 में प्रधानमंत्री कार्यालय में जो आय और अचल संपत्ति से संबंधित शपथ पत्र में कुछ अलग ही तथ्य बताते हैं। 2010 के शपथ पत्र के मुताबिक कमलनाथ की 23 कंपनियों में शेयर हैं। इन सभी कंपनियों में कमलनाथ के दोनों पुत्र नकुलनाथ और वकुलनाथ निदेशक हैं और वह खुद शेयर होल्डर हैं। 2004 में कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ के शेयर कुछ गैर सूचीबद्ध कंपनियों के साथ ही 17 सूचीबद्ध कंपनियों में थे। लेकिन जब कमलनाथ ने 2009 में चुनाव आयोग में शपथ पत्र जमा किया, उसमें उनकी पत्नी 63 सूचीबद्ध कंपनियों में शेयर होल्डर बताई गईं। इनकी पत्नी के पास 31 मार्च 2010 तक 14,821,629 रुपये के शेयर थे। मामले और भी हैं। 2009 में कमलनाथ ने रामकांटा प्रॉपर्टीज लि0 को 3 करोड़ का लोन दिया था।
आपको बता दें कि यह कंपनी कमलनाथ की पारिवारिक कंपनी है, जिसके निदेशक कमलनाथ के दोनों पुत्र हैं। कमलनाथ इस कंपनी में शेयर होल्डर भी हैं। लेन-देन की यह प्रक्रिया कहां से की गई, इसकी कोई जानकारी नहीं है। इसके अलावा कमलनाथ 2004 और 2009 के बीच में करीब 1.70 करोड़ का लोन अपनी पत्नी को देते हैं, लेकिन ये पैसे कहां से लाए गए, इसकी जानकारी 2010 के शपथ पत्र में प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं दी गई है। कमलनाथ और उनकी पारिवारिक कंपनियों के पास इतने पैसे कहां से आ रहे हैं, यह किसी को मालूम नहीं। इनकी एक पारिवारिक कंपनी यूनिक टेक्नो फील्ड प्रा.लि. है। इस कंपनी के निदेशक इनके दोनों पुत्र हैं। इस कंपनी के नाम 2007 में दिल्ली के मथुरा रोड स्थित ए-3 मोहन कॉपरेटिव इंडस्ट्रियल एस्टेट खरीदी गई है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने 2010 में इसकी कीमत 100 करोड़ आंकी थी और कंपनी को 40 करोड़ का ओवर ड्राफ्ट भी दिया था। इसी तरह कमलनाथ ने अपनी दूसरी पारिवारिक कंपनी ग्रीनहिल प्रॉपर्टीज के नाम दिल्ली के शालीमार बाग इलाके में स्थित सिटी सेंटर की चौथी मंजिल पर 60,645 वर्ग फीट जगह खरीद रखी है, जिसकी कीमत 50 करोड़ के आसपास है। इस कंपनी में भी इनके दोनों पुत्र निदेशक हैं। लगता है, कमलनाथ और उनकी कंपनियां देश की प्रायरू सभी इलाकों की कंपनियों में निवेश करते फिर रहे हैं?
एक कंपनी है, मोजर बीयर इंडिया। यह देश की एक अहम कंपनी है। इस कंपनी के सीएमडी हैं, दीपक पुरी और उनकी पत्नी नीता पुरी इसकी निदेशक हैं। इसमें जो अन्य कंपनियां शेयरधारक हैं, उनमें कमलनाथ की कंपनी रामकांटा प्रॉपर्टीज और इएमसी स्टील लि0 भी शामिल है। दीपकपुरी, कमलनाथ के पारिवारिक संबंधी हैं। सरकार के पास कमलनाथ ने जो कागजात पेश किए हैं, उनके मुताबिक नीतापुरी और कमलनाथ की मां, लीनानाथ का पता एक ही दर्शाया गया है। जब कमलनाथ 2004 से 2009 तक वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे, तब उन्होंने सीडी बनाने वाली इस कंपनी के हित में सीडी के आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर दी थी, ताकि मोजर बीयर का एकाधिकार बना रहे। इससे कंपनी को भारी लाभ पहुंचाया गया था। कमलनाथ का नाम राडिया मामले में भी उछाला गया था। भूतल परिवहन मंत्री रहते हुए कमलनाथ ने 2,000 से ज्यादा टेंडर तमाम कानूनों को ताख पर रखकर दिए थे। राडिया ने साफ-साफ कमलनाथ की ओर इशारा करते हुए इन्हें मिस्टर-20 परसेंटकह डाला था। यह बात सामने आने के बाद सीबीआई ने कई लोगों पर कार्रवाई की, लेकिन कमलनाथ पर कोई कार्रवाई या पूछताछ नहीं की गई। इस जनहित याचिका के बारे में कमलनाथ से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कमलनाथ से बातचीत नहीं हो पाई। किशोर समरिते कहते हैं कि कमलनाथ को इस मामले में अपना पक्ष तो रखना ही चाहिए। लेकिन उनके पास कहने के लिए कुछ है ही नहीं। यह बात और है कि कमलनाथ इससे पहले भी सिख विरोधी दंगे में नानावटी आयोग के घेरे में आए थे, लेकिन अभी तक उसमें बचे हुए हैं। कमलनाथ को पर्यावरण को छति पहुंचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की फटकार भी मिल चुकी है और जुर्माना भी ठोका गया था।