मिनिस्टर! मिस्टर 20 परसेन्ट
(अखिलेश अखिल/विस्फोट डॉट काम)
जरदारी की तर्ज पर
ये मिस्टर टेन परसेन्ट भर नहीं है. जरदारी से भी आगे ये साहब इंडिया के मिस्टर 20 परसेन्ट हैं. इनका
नाम है कमलनाथ. कमलनाथ करते तो हैं आदिवासियों की राजनीति, लेकिन आदिवासियों
से ज्यादा राजनीति में रहकर अपना हित किया है। आपत्ति इस बात की है कि उन्होंने जो
कुछ खुद के और परिवार के लिए किया, वह सब कायदे-कानूनों को ताख पर रखकर किया है? कैसे, क्यों और कब...आइए, जानते हैं कमलनाथ
के बारे में...
कांग्रेस के सांसद
और वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की उनके चुनाव क्षेत्र छिंदवाड़ा की जनता में
चाहे जैसी छवि हो,
लेकिन राजनीतिक गलियारे में उनकी चर्चा एक भ्रष्ट नेता के रूप
में ही की जाती है। यह बात और है कि अभी तक कमलनाथ के भ्रष्टाचार के बारे में
ज्यादा जानकारी लोगों तक नहीं पहुंच पाई है। लेकिन अब कमलनाथ के नकली चेहरे से
नकाब उतरने ही वाली है। बालाघाट, लांजी के पूर्व सपा विधायक किशोर समरिते ने
कमलनाथ की करतूतों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें उन पर कई
संगीन आरोप लगाए गए हैं। याचिका का लब्बो-लुआब यह है कि कमलनाथ को धन कमाने की सनक
सवार है, चाहे वह
गलत तरीके से ही क्यों न कमाया गया हो? सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका 21 मई को दायर की गई
है। इस याचिका का डायरी नंबर 17929 है। किशोर समरिते की वकील नमिता चौधरी कहती
हैं, ‘किशोर
समरिते ने जो कागजात उपलब्ध कराए हैं, वे काफी महत्वपूर्ण हैं और संगीन भी। तथ्यों
के आधार पर कह सकते हैं कि कोर्ट इस पर संज्ञान ले सकती है और मामले की जांच के
आदेश हो सकते हैं। चूंकि अभी गर्मी की छुट्टियां चल रही हैं और 2 जुलाई को कोर्ट
खुलने के बाद इस मामले की लिस्टिंग संभव है।’
सन् 1980 से कांग्रेस की
राजनीति करने वाले कमलनाथ 11वीं लोक सभा को छोड़कर लगातार संसद में
विराजमान रहे हैं। छिंदवाड़ा जैसे पिछड़े इलाके से चुनाव जीतने वाले कमलनाथ की ठसक
किसी राजा से कम नहीं है। जनहित याचिका के घेरे में कमलनाथ कितना आ पाते हैं, यह बाद की बात है, लेकिन इतना साफ हो
गया है कि कांग्रेस के इस सिपाही का भी दामन साफ नहीं है। हालांकि जनहित याचिका
दायर करने वाले किशोर समरिते भी दूध के धुले नहीं हैं। स्थानीय स्तर पर उनके खिलाफ
भी कई तरह के मामले दर्ज हैं। ये वही किशोर समरिते हैं, जिन्होंने राहुल
गांधी के खिलाफ लखनऊ हाईकोर्ट में एक लड़की को गायब करने का मामला दर्ज कराया और
गलत पाए जाने पर हाईकोर्ट ने समरिते पर 50 लाख का जुर्माना ठोका था। इससे पहले
बालाघाट जिला अदालत ने एक मामले उनको 6 साल कैद की सजा भी सुनाई थी।
दूसरी ओर कमलनाथ के
खिलाफ टीम अन्ना भी सख्त है। टीम अगस्त महीने में जिन 14 लोगों के खिलाफ
भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने की तैयारी कर रही है, उनमें कमलनाथ का
नाम सबसे ऊपर है। कमलनाथ एक जुलाई 2004 से लेकर 14 फरवरी 2009 तक यूपीए सरकार
में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री थे। इनके काल में गलत तरीके से बासमती और
गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात से संबंधित मामले उठे थे। इस संबंध में जानकारी
लेने के लिए 18 अगस्त को
संबंधित मंत्रालय में एक आरटीआई डाली गई। मंत्रालय के एक विभाग एमएमटीसी की ओर से 4 अक्टूबर को जो
जवाब भेजा गया है,
उसमें कहा गया है कि कमलनाथ जब तक इस मंत्रालय में थे, उस दौरान बासमती और
गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात संबंधित कोई लाइसेंस किसी को भी जारी नहीं किया
गया। यहां तक तो सब कुछ ठीक ठाक लग रहा था, लेकिन इसी मंत्रालय से संबंधित पीइसी
लिमिटेड नाम की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी 19 सितंबर 2011 को एक आरटीआई के
जवाब में सूचना देती है कि 2004 से लेकर 2009 के बीच में 5,07,584.25 मिट्रीक
टन चावल का निर्यात किया गया। जिसकी कीमत 7,70,82,15,419.50 रुपये थी।
आप कह सकते हैं कि
बिना लाइसेंस जारी किए कमलनाथ ने अपने काल में लगभग 700 करोड़ रुपये का
चावल निर्यात किया। जहां तक चावल आयात करने की बात थी, इस मामले में भी
मंत्रालय ने सही सूचना देने की कोशिश नहीं की है। कमलनाथ के समय में क्या चावल
आयात भी किया गया था? इस बावत सूचना मांगी गई थी। इस सूचना के जवाब में मंत्रालय से
संबंधित डीजीएफटी विभाग 10 अक्टूबर 2011 के जवाब में कहता है कि बासमती चावल और गैर
बासमती चावल के निर्यात के लिए भी कोई लाइसेंस नहीं दिए गए। यह विभाग भी निर्यात
से संबंधित लाइसेंस पर चुप्पी साध गया और कोई सकारात्मक जवाब नहीं दे सका।
मंत्रालय की इस चुप्पी की कलई तब खुली, जब एक अन्य आरटीआई के जवाब में वाणिज्य एवं
उद्योग मंत्रालय से संबंधित डायरेक्टर जनरल ऑफ कामर्शियल इंटेलीजेंस ने अपने 13 दिसंबर 2011 के उत्तर में
बासमती व गैर बासमती चावल के आयात-निर्यात के तथ्यों को क्रमबद्ध जारी किया। विभाग
के इस जवाब में कहा गया कि वर्ष 2004-05 में केवल चावल का आयात ही नहीं, बल्कि बड़े स्तर पर
कई सौ करोड़ के आयात-निर्यात किया गया। सवाल उठता है कि मंत्रालय द्वारा आखिर
बासमती और गैर बासमती चावल के आयात और निर्यात से संबंधित सूचनाओं की जानकारी
क्यों छुपाई गई?
मंत्रालय बार-बार
यह क्यों कहता रहा कि इस संदर्भ में कोई लाइसेंस जारी नहीं किए गए? जाहिर है, इसके पीछे
घोटालेबाज काम कर रहे थे और वे कमलनाथ द्वारा रचे गए थे। तथ्यों के मुताबिक बासमती
व गैर बासमती चावल के इस आयात-निर्यात के खेल में सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाली
कंपनी थी अजमेरा रियलिटी एंड इन्फ्रा स्ट्रक्चर लि0। इन दोनों
कंपनियों को आयात-निर्यात के लाइसेंस मंत्रालय से दिए गए थे। आपको बता दें कि
कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ के इन दोनों कंपनियों में शेयर थे। याचिकाकर्ता किशोर
समरिते कहते हैं,
‘कमलनाथ ने अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए ही इन कंपनियों को
लाइसेंस दिए थे। पहले इन दोनों कंपनियों की बैलेंस शीट काफी कमजोर थी, लेकिन 2009 आते-आते दोनों
कंपनियां काफी मजबूत हो गईं। यह राजनीति करते हैं आदिवासियों की और सबसे ज्यादा
शोषण भी उन्हीं का करते हैं। पहले इनके पास 16 कंपनियां थीं और आज इनके पास 63 कंपनियां हैं। ये
कंपनियां कहां से आती हैं और कैसे बनती हैं? लोगों को जानने का अधिकार है। वह देश के बड़े
अमीर आदमी हैं और ये पैसे सरकारी धन की लूट से ही लाए गए हैं।’
जनहित याचिका में
कमलनाथ पर सरकार और चुनाव आयोग को अपनी संपत्ति के बारे में गलत सूचना देने का भी
आरोप है। कहा गया है कि 2004 के लोक सभा चुनाव के दौरान कमलनाथ ने अपने शपथ पत्र में
छिंदवाड़ा में कृषि भूमि होने की बात करते हैं। इसके साथ ही दिल्ली के सुल्तानपुरी
और 47सी
फ्रेंड्स कॉलोनी में मकान के साथ ही कोलकाता की एक प्रॉपर्टी कंपनी में शेयर की
चर्चा करते हैं, जबकि 2009 के लोक सभा चुनाव
के दौरान कमलनाथ अपने शपथ पत्र में दिल्ली में एक और मकान की चर्चा करते हैं। शपथ
पत्र में बताया गया है कि दिल्ली का यह प्लॉट 816 वर्ग गज का है, जिसकी कीमत 3़5 करोड़ है। ऐसा संभव
भी हो सकता है। लेकिन कमलनाथ 2010 में प्रधानमंत्री कार्यालय में जो आय और
अचल संपत्ति से संबंधित शपथ पत्र में कुछ अलग ही तथ्य बताते हैं। 2010 के शपथ पत्र के
मुताबिक कमलनाथ की 23 कंपनियों
में शेयर हैं। इन सभी कंपनियों में कमलनाथ के दोनों पुत्र नकुलनाथ और वकुलनाथ
निदेशक हैं और वह खुद शेयर होल्डर हैं। 2004 में कमलनाथ की पत्नी अलकानाथ के शेयर कुछ
गैर सूचीबद्ध कंपनियों के साथ ही 17 सूचीबद्ध कंपनियों में थे। लेकिन जब कमलनाथ
ने 2009 में चुनाव
आयोग में शपथ पत्र जमा किया, उसमें उनकी पत्नी 63 सूचीबद्ध कंपनियों
में शेयर होल्डर बताई गईं। इनकी पत्नी के पास 31 मार्च 2010 तक 14,821,629 रुपये के
शेयर थे। मामले और भी हैं। 2009 में कमलनाथ ने रामकांटा प्रॉपर्टीज लि0 को 3 करोड़ का लोन दिया
था।
आपको बता दें कि यह
कंपनी कमलनाथ की पारिवारिक कंपनी है, जिसके निदेशक कमलनाथ के दोनों पुत्र हैं।
कमलनाथ इस कंपनी में शेयर होल्डर भी हैं। लेन-देन की यह प्रक्रिया कहां से की गई, इसकी कोई जानकारी
नहीं है। इसके अलावा कमलनाथ 2004 और 2009 के बीच में करीब 1.70 करोड़ का लोन अपनी
पत्नी को देते हैं,
लेकिन ये पैसे कहां से लाए गए, इसकी जानकारी 2010 के शपथ पत्र में
प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं दी गई है। कमलनाथ और उनकी पारिवारिक कंपनियों के
पास इतने पैसे कहां से आ रहे हैं, यह किसी को मालूम नहीं। इनकी एक पारिवारिक
कंपनी यूनिक टेक्नो फील्ड प्रा.लि. है। इस कंपनी के निदेशक इनके दोनों पुत्र हैं।
इस कंपनी के नाम 2007 में
दिल्ली के मथुरा रोड स्थित ए-3 मोहन कॉपरेटिव इंडस्ट्रियल एस्टेट खरीदी गई
है। स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक ने 2010 में इसकी कीमत 100 करोड़ आंकी थी और
कंपनी को 40 करोड़ का
ओवर ड्राफ्ट भी दिया था। इसी तरह कमलनाथ ने अपनी दूसरी पारिवारिक कंपनी ग्रीनहिल
प्रॉपर्टीज के नाम दिल्ली के शालीमार बाग इलाके में स्थित सिटी सेंटर की चौथी
मंजिल पर 60,645 वर्ग फीट
जगह खरीद रखी है, जिसकी कीमत
50 करोड़ के
आसपास है। इस कंपनी में भी इनके दोनों पुत्र निदेशक हैं। लगता है, कमलनाथ और उनकी
कंपनियां देश की प्रायरू सभी इलाकों की कंपनियों में निवेश करते फिर रहे हैं?
एक कंपनी है, मोजर बीयर इंडिया।
यह देश की एक अहम कंपनी है। इस कंपनी के सीएमडी हैं, दीपक पुरी और उनकी
पत्नी नीता पुरी इसकी निदेशक हैं। इसमें जो अन्य कंपनियां शेयरधारक हैं, उनमें कमलनाथ की
कंपनी रामकांटा प्रॉपर्टीज और इएमसी स्टील लि0 भी शामिल है।
दीपकपुरी, कमलनाथ के
पारिवारिक संबंधी हैं। सरकार के पास कमलनाथ ने जो कागजात पेश किए हैं, उनके मुताबिक
नीतापुरी और कमलनाथ की मां, लीनानाथ का पता एक ही दर्शाया गया है। जब
कमलनाथ 2004 से 2009 तक वाणिज्य और
उद्योग मंत्री थे,
तब उन्होंने सीडी बनाने वाली इस कंपनी के हित में सीडी के
आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर दी थी, ताकि मोजर बीयर का एकाधिकार बना रहे। इससे
कंपनी को भारी लाभ पहुंचाया गया था। कमलनाथ का नाम राडिया मामले में भी उछाला गया
था। भूतल परिवहन मंत्री रहते हुए कमलनाथ ने 2,000 से ज्यादा टेंडर तमाम कानूनों को
ताख पर रखकर दिए थे। राडिया ने साफ-साफ कमलनाथ की ओर इशारा करते हुए इन्हें ‘मिस्टर-20 परसेंट’ कह डाला था। यह बात
सामने आने के बाद सीबीआई ने कई लोगों पर कार्रवाई की, लेकिन कमलनाथ पर
कोई कार्रवाई या पूछताछ नहीं की गई। इस जनहित याचिका के बारे में कमलनाथ से संपर्क
करने की कोशिश की गई, लेकिन कमलनाथ से बातचीत नहीं हो पाई। किशोर समरिते कहते हैं
कि कमलनाथ को इस मामले में अपना पक्ष तो रखना ही चाहिए। लेकिन उनके पास कहने के
लिए कुछ है ही नहीं। यह बात और है कि कमलनाथ इससे पहले भी सिख विरोधी दंगे में
नानावटी आयोग के घेरे में आए थे, लेकिन अभी तक उसमें बचे हुए हैं। कमलनाथ को
पर्यावरण को छति पहुंचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की फटकार भी मिल चुकी है और
जुर्माना भी ठोका गया था।