शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

मंत्री की अदालत में सूली चढ़ा प्रजातंत्र!

मंत्री की अदालत में सूली चढ़ा प्रजातंत्र!

(लिमटी खरे)

देश के हृदय प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सरकार के एक मंत्री ने मुख्यमंत्री की नाक में दम कर रखा है। अपनी हरकतो ंसे विवादों को गले लगाने वाले मध्य प्रदेश के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री गौरी शंकर बिसेन एक के बाद एक विवादों में फंसते ही जा रहे हैं। भगवान शिव की नगरी सिवनी के केवलारी विधानसभा क्षेत्र में एक आदिवासी पटवारी को जातिसूचक शब्दों के जहर बुझे तीखे व्यंग्य बाण चला सार्वजनिक तौर पर उठक बैठक लगवाकर बिसेन एक बार फिर विवादों में आ गए हैं। मौके पर मौजूद आदिवासी सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र बरघाट के विधायक कमल मस्कोले और केवलारी विधायक और मध्य प्रदेश विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का घटनास्थल पर उपस्थित रहने के बाद भी मौन आश्चर्यजनक ही माना जाएगा। सिवनी से लगभग हजार किलोमीटर दूर एमपीसीसी अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की कर्मभूमि झाबुआ में बिसेन का पुतला जला पर सिवनी के कांग्रेसियों ने एक सरकारी कर्मचारी वह भी आदिवासी के अपमान की सुध तक नहीं ली।

मध्य प्रदेश में 2003 में उमा भारती ने दस साल तक लगातार राज करने वाले राजा दिग्विजय सिंह का चक्र तोड़ा और भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश में सत्ता पर काबिज किया। साध्वी उमा ज्यादा दिन तक सत्ता का स्वाद नहीं चख पाईं। उनके बाद बाबू लाल गौर तो अब शिवराज सिंह चैहान सत्ता पर काबिज हैं। शिवराज सिंह चैहान के एक मंत्री हैं गोरी शंकर बिसेन। जिन्हें गौरी भाऊ के नाम से लोग ज्यादा जानते हैं। गौरी शंकर बिसेन मंत्री बनने के बाद से ही चर्चाओं में रहे हैं।
 
दो साल पहले होली मिलन समारोह में पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ हाथ में नोट लहराकर चर्चाओं में आने वाले बिसेन ने लोकसभा चुनावों के पहले सिवनी के ही एक होटल में पत्रकारों को ‘घड़ी‘ (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह) बांटकर नए विवाद को जन्म दिया था। गौरतलब है कि परिसीमन में सिवनी के ही नीति निर्धारक कर्णधारों ने सिवनी लोकसभा के विलोपन के मार्ग प्रशस्त किए थे, जिससे जिले के पांच में से चार बचे विधानसभा क्षेत्र सिवनी और बरघाट को बालाघाट तो लखनादौन और केवलारी को मण्डला संसदीय क्षेत्र में शामिल कर दिया गया था। बालाघाट संसदीय क्षेत्र से के.डी.देशमुख चुनाव मैदान में थे। गौरी शंकर बिसेन ने घड़ी क्यों बांटी इस बारे में भाजपाई आज भी शोध ही कर रहे हैं।
 
पिछले कुछ दिनों में गौरी शंकर बिसेन अपने आवास पर ‘भोज की राजनीति‘ के कारण चर्चाओं में हैं। इसके बाद उन्होंने अपने गृह जिले के जिला मुख्यालय बालाघाट में भाजपा के रमेश रंगलानी के नेतृत्व वाली नगर पालिका में भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ दिए। अपनी ही पार्टी के खिलाफ तलवार पजाने वाले बिसेन की मुखालफत आरंभ हो गई है। लोग उन्हें सालों साल से कांग्रेस के कब्जे वाली वारासिवनी विधानसभा से जोर अजमाईश करने का सुझाव भी दबी जुबान से देने लगे हैं। गौरतलब है कि वर्तमान में वारासिवनी विधानसभा पर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रदीप जायस्वाल का कब्जा है।
 
गौरी शंकर बिसेन का जुबानी कहर अभी थमा नही है। सिवनी जिले के केवलारी विकासखण्ड के ग्राम छींदा में आयोजित एक सरकारी कार्यक्रम में तो हद ही हो गई। इस प्रोग्राम में गौरी शंकर बिसेन के अलावा राज्य के शिक्षा राज्य मंत्री नाना भाऊ मोहोड़, विधानसभा उपाध्यक्ष एवं क्षेत्रीय कांग्रेस विधायक हरवंश सिंह ठाकुर, पूर्व मंत्री डाॅ.ढाल सिंह बिसेन, बरघाट विधायक कमल मस्कोले की उपस्थिति में ही मध्य प्रदेश के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी और सहकारिता मंत्री गौरी शंकर बिसेन ने वहां राजस्व विभाग के एक पटवारी धर्मेंद्र मस्कोले पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप मढ़ते हुए उसका पक्ष सुने बिना ही तालियों की गड़गड़ाहट बटोरने की गरज से उसे वहीं उठक बैठक लगाने की सजा सुना दी।
 
सत्ता के मद में चूर मध्य प्रदेश सरकार के एक मंत्री की अघोषित अदालत में पटवारी को न केवल जाति सूचक शब्दों के व्यंग्य बाणों से आहत किया गया वरन् किसी शाला के प्राईमरी स्तर के विद्यार्थी की तरह उसे उठक बैठक लगाने पर मजबूर कर अपमानित किया गया। देखा जाए तो यह मामला एट्रोसिटी एक्ट और सिविल सर्विसेज के नियम कायदों का खुला उल्लंघन है। सबसे अधिक आश्चर्य तो इस बात पर हुआ जब ‘‘मंचासीन तमाशाई‘‘ राज्य मंत्री नाना मोहोड़, विधायक कमल मस्कोले, पूर्व मंत्री डाॅ.ढाल सिंह बिसेन सहित विधान सभा उपाध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद पर बैठे कांग्रेस के विधायक हरवंश सिंह ठाकुर भी चुपचाप एक लोकसेवक को मंत्री के हाथों प्रताडि़त होते देखते रहे। उस वक्त वहां मौजूद अनुविभागीय दण्डाधिकारी आर.एस.पण्डा ने अपने मातहत कर्मचारी के पक्ष में आवाज उठाकर साबित करने का प्रयास किया है कि सरकारी नुमाईंदा किसी भी कीमत पर जनसेवकों के घर की चैखट पर नाचने वाली लौंडी नहीं है।
 
मामला अब काफी तूल पकड़ चुका है। राज्य स्तर पर इस मामले की आग सुलगती दिख रही है। धुंआ चारोें ओर दिखाई देने लगा है। मामला राजनैतिक ‘गुणा गणित और जोड़ तोड़‘ के माहिर खिलाड़ी बिसेन के खिलाफ है इसलिए कितना परवान चढ़ पाएगा कहा नहीं जा सकता है। वैसे इस मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने संज्ञान लिया है। उनकी कर्मस्थली झाबुआ में गौरी शंकर बिसेन का पुतला फुंका है। आश्चर्य तो इस बात पर है कि सिवनी जिले में जहां यह घटना घटी है वहां कांग्रेस का संगठन चुप्पी साधे ‘किसी विशेष‘ के इशारे का इंतजार कर रहा है।
 
मामला चाहे प्रदेश स्तर का रहा हो या जिला स्तर का। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में एक कमजोर विपक्ष की भूमिका का ही निर्वहन किया है। जनहित के न जाने कितने मामले प्रकाश में आए पर ‘आपसी सामंजस्य‘ ने इन सारे मामलों को परवान चढ़ने नहीं दिया। अंत में मरण गरीब गुरबों की ही हुई। मीडिया ने जब इस तरह के मामलों को उठाया तो मीडिया की कमर तोड़ने से भी गुरेज नहीं किया सत्ता की मलाई चखने और उनके लिए सीढ़ी बने विपक्ष ने। एक नहीं अनेकों मामले एसे हैं जिनमें मामला उजागर होने पर या तो संपादक / संवाददाता को संस्थान से चलता कर दिया गया या फिर उसे अधिकार विहीन ही करवा दिया गया।
 
बहरहाल पटवारी संघ ने जिला मुख्यालय के वोट क्लब ‘कचहरी चैक‘ पर धरना दिया गया। विडम्बना देखिए इस धरने में किसी भी राजनैतिक समाजिक संगठन ने अपना सहयोग देने की जहमत नहीं उठाई। जनता के हितों के लिए लड़कर अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले संगठन भी कांग्रेस भाजपा की इस नूरा कुश्ती में इस बात का इंतजार किया जा रहा है कि उंट किस करवट बैठता है? इसी बीच ‘हमें क्या करना है‘, ‘हमसे संबंधित थोड़े ही है‘, ‘हम क्यों खुजाएं‘, ‘क्या हमारा ही ठेका है?‘ ‘लेता भी तो था यार रिश्वत‘, ‘मंत्री से कौन ले पंगा?‘, ‘अरे अपनी पार्टी का मामला है‘, ‘जब विधायकों को नहीं फिकर तो हम क्यों आगे आएं?‘, ‘जाने तो दो?‘, ‘कौन पड़े पचड़े में‘ जैसे जुमले हवा में तैरने लगे हैं जिनको पतवार बनाकर जनता के स्वयंभू हितैषी अपनी अपनी नाव इस भंवर से दूर खे रहे हैं।
 
बड़बोले गौरी शंकर बिसेन की वाणी का कहर अनवरत जारी है। छिंदवाड़ा में भी उन्होंने आदिवासी समुदाय के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी की है, पर वहां भी कांग्रेस का संगठन मौन साधे ही बैठा है। बताते हैं कि होशंगाबाद में नर्मदा सहकारिता के सहायक आयुक्त जिनका अठ्ठारह माह में तीन मर्तबा स्थानांतरण हो चुका है को भी गौरी शंकर बिसेन ने सार्वजनिक तौर पर खरी खोटी सुनाई है। कहते हैं कोर्ट से स्थानांतरण पर स्थगन लेने वाले उक्त सहायक आयुक्त को बिसेन ने कहा है कि सरकार तो सरकार है, सरकार से मत टकराईए। इन बातों में सच्चाई कितनी है यह तो शिवराज सिंह चैहान मंत्री मण्डल के वरिष्ठ सदस्य गौरी शंकर बिसेन जाने पर सिवनी की घटना अपने आप में सारी कहानी खुद कहने के लिए पर्याप्त है।

सिवनी में जो कुछ हुआ वह प्रजातंत्र को सरेआम मिली फांसी की सजा के समतुल्य माना जा सकता है। प्रजातंत्र के मायने इसकी स्थापना के वक्त ‘जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन‘ माना गया था, पर अब इसके मायने पूरी तरह से बदल चुके हैं। प्रजातंत्र का स्थान हिटलरशाही ने ले लिया है। किसी सरकारी कर्मचारी को इस तरह सार्वजनित तौर पर उठक बैठक की सजा सुनाई जाए और उसे जाति सूचक शब्दों के सहारे प्रताडि़त किया जाए, यह बात सुनकर ही हृदय कंपित हो उठता है, फिर जिसके साथ यह बीता होगा उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि आदिवासी समुदाय के उस पटवारी के समर्थन में न तो विपक्ष में बैठी कांग्रेस ही सामने आई है और न ही समाज सेवा, जनसेवा का दंभ भरने वाले समाजसेवी जनसेवी ठेकदार!

मूल काम से भटका एमपी सूचना केंद्र

मूल काम से भटका एमपी सूचना केंद्र
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश सरकार की नीतियों रीतियों को जनता तक पहुंचाने के लिए पाबंद जनसंपर्क विभाग के नई दिल्ली स्थित कार्यालय का काम आजकल भाजपा के पार्टी स्तर के कार्यक्रमों और अपने आला अफसरान के प्रोग्राम की पब्लिसिटी करना हो गया है। हाल ही में दो वाक्ये इस तरह के सामने आए हैं जिनसे साफ होने लगा है कि मध्य प्रदेश सूचना केंद्र इन दिनों पार्टी की मीडिया सेल का काम कर रहा है।
 
ज्ञातव्य है कि नई दिल्ली के हृदय स्थल कनाट प्लेस में बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर बेशकीमती मंहगे इलाके में एम्पोरिया हाउस में स्थित है मध्य प्रदेश सरकार का सूचना केंद्र। इस कार्यालय पर आरोप लगते रहे हैं कि यहां से भाजपा के पार्टी स्तर के कार्यक्रमों की पे्रस विज्ञप्ति को प्रसारिक किया जाता है। बताया जाता है कि मीडिया के लिए निर्धारित वाहनों को मीडिया को उपलब्ध न कराकर यहां पदस्थ अधिकारियों द्वारा इन्हें एम पी से आने वाले सांसद विधायकों की सेवा टहल के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
 
हाल ही में सूचना केंद्र द्वारा जारी सरकारी विज्ञप्तियों को देखकर मध्य प्रदेश को कव्हर करने वाले पत्रकार असमंजस में पड़ गए कि यह सरकारी कार्यक्रम था या पार्टी स्तर का प्रोग्राम। हाल ही में जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे। ‘शिक्षा का ध्येय समग्र विकास‘ शीर्षक से आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में जनसंपर्क मंत्री शर्मा के द्वारा दिए गए उद्बोधन को मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के सूचना केंद्र ने बाकायदा प्रेस नोट बनाकर जारी किया। इसकी तस्वीरें भी विभाग द्वारा जारी की गईं।
 
गुजरात सूचना केंद्र के एक अधिकारी ने इस बारे में आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह पार्टी का कार्यक्रम था इसकी विज्ञप्ति सरकारी तौर पर जानी नहीं की जानी चाहिए थी। इतना ही नहीं, इसके उपरांत दिल्ली में मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के एक आला अधिकारी के रिश्तेदार की कला की प्रर्दशनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी की खबर को भी मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा सरकारी स्तर पर जारी कर दिया गया।

मजे की बात तो यह है कि जनसंपर्क विभाग के दिल्ली कार्यालय द्वारा इन दोनों ही गैर सरकारी कार्यक्रमांे की विज्ञप्तियों को मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग ने न तो सरकारी तौर पर ही बांटा और न ही सरकारी वेब साईट में भी इन्हें अपलोड किया। दोनों ही प्रोग्राम की पब्लिसिटी से जनसंपर्क संचालनालय ने पर्याप्त दूरी बनाकर रखी गई जिससे साबित हो जाता है कि दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा इस तरह के निजी कार्यक्रमों विशेषकर पार्टी बेस्ट प्रोग्राम्स की पब्लिसिटी में ज्यादा दिलचस्पी ली जा रही है।

मध्य प्रदेश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से वसूले गए करों से वेतन पा रहे मध्य प्रदेश सूचना केंद्र के सरकारी अफसरान द्वारा सरकार के कार्यक्रमों को छोड़ भारतीय जनता पार्टी और जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों के रिश्तेदारों की चैखटों पर माथा रगड़कर उनकी पब्लिसिटी करवाने की बात दिल्ली में मीडिया के गलियारों में तरह तरह की शक्ल अख्तियार कर चुकी है।

एमपी के आर्युविज्ञान महाविद्यालयों पर गाज

एमपी के आर्युविज्ञान महाविद्यालयों पर गाज
 
जबलपुर, रीवा मेडीकल कालेज की मान्यता रद्द कराने की सिफारिश
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। मेडीकल काउंसिल आॅफ इंडिया (एमसीआई) ने सख्त रवैया अपनाते हुए अपनी तल्ख टिप्पणी के साथ भारत सरकार से मध्य प्रदेश के श्याम शाह आयुर्विज्ञान महाविद्यालय रीवा और सुभाष चंद बोस आर्युविज्ञान महाविद्यालय जबलपुर की मान्यता समाप्त करने की पुरजोर सिफाशि की है। इतना ही नहीं एमसीआई ने इसका पिछला शैक्षणिक सत्र निरस्त करते हुए उसे ‘जीरो इयर‘ भी घोषित कर दिया है।
 
एमसीआई के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार की लेट लतीफी से आजिज आकर एमसीआई को इस तरह का अप्रिय कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है। सूत्रों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के चक्कर मंे मध्य प्रदेश सरकार द्वारा सरकारी उपक्रमों को पाश्र्व में ढकेला जा रहा है। वैसे भी मध्य प्रदेश के सरकारी आयुर्विज्ञान महाविद्यालय मान्यता के लिए दर दर भटक रहे हैं, इस पर एमसीआई द्वारा हाल ही में जारी सूची में रीवा और जबलपुर मेडीकल कालेज के सामने जीरो इयर लिखकर मध्य प्रदेश सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

सूत्रों ने आगे कहा है कि एमसीआई ने केंद्र सरकार से इन दोनों ही मेडीकल कालेज की मान्यता समाप्त करने की सिफारिश के साथ ही साथ इनमें प्रवेश की प्रक्रिया को रोकने की तगड़ी अनुशंसा की है। उधर मध्य प्रदेश के आवासीय आयुक्त कार्यालय के सूत्रों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग पूरी तरह नींद में सोया है, अब तक संचालक चिकित्सा शिक्षा (डीएमई) कार्यालय से कोई चिट्ठी पत्री उन्हें प्राप्त नहीं हुई है, जिसके आधार पर इनकी मान्यता बहाल करवाने की कार्यवाही को आगे बढ़ाया जा सके।

गुरुवार, 28 जुलाई 2011

भाजपा का काम कर रहे जनसंपर्क के मुलाजिम

भाजपा का काम कर रहे जनसंपर्क के मुलाजिम
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेष सरकार के जनसंपर्क विभाग के दिल्ली कार्यालय द्वारा अब प्रदेष के मंत्रियों द्वारा पार्टी स्तर पर किए जा रहे कार्यक्रमों की विज्ञप्ति आधिकारिक तौर पर बटवाना आरंभ कर दिया गया है।
मध्य प्रदेष सूचना केंद्र द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने आज यहां नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के शिक्षा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय सम्मेलन में बताया कि मध्यप्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की विशेष पहल की गयी है और इसके सकारात्मक परिणाम भी आये हैं। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में आयोजित शिक्षा प्रकोष्ठ के सम्मेलन में राज्यसभा की पूर्व उपसभापति श्रीमती नजमा हेपतुल्ला भारतीय जनता पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल, गुजरात के शिक्षा मंत्री रमणलाल वोरा, शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा, दिवाकर कुंडू और अन्य शिक्षाविद उपस्थित थे।
श्री शर्मा ने बताया कि मध्यप्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय स्थापित किया जा रहा है। द्वितीय चरण में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिन्दी में करायी जायगी। प्रदेश में  संस्कृत विश्वविद्यालय की भी स्थापना की जा चुकी है। चिकित्सा विश्वविद्यालय और पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों की भी स्थापना की जा रही है और दो कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना की जा चुकी है। प्रदेश में तीन निजी विश्वविद्यालय प्रारम्भ किये गये हैं और तीन नये विश्वविद्यालय प्रारम्भ किये जा रहे हैं। प्रदेश में ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के विस्तार के लिए 30 नये शासकीय महाविद्यालय प्रारम्भ किये गये हैं। 130 स्ववित्तीय रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं। 65 नये अशासकीय महाविद्यालयों की भी स्थापना की गयी है। छतरपुर में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना की जायगी। प्रदेश में भारतीय संस्कृति के संरक्षण और विस्तार के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। इसके अंतर्गत मध्यप्रदेश में योग को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है और गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है। विद्यालयों में सूर्य नमस्कार नियमित रूप से कराया जा रहा है।
श्री शर्मा ने जानकारी दी कि मध्यप्रदेश में कौशल विकास और व्यावसायिक शिक्षा को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। कौशल विकास (स्किल डेवलेपमेंट) के लिए प्रदेश के 113 विकास खंडों में वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए विकास केन्द्रों की स्थापना की गयी है।
सभी जिला मुख्यालयों के 50 आई टी आई को आदर्श आई टी आई में उन्नयन किया गया है और विद्यमान 107 आई टी आई सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है। 50 नये शासकीय आई टी आई खोले जायेंगे।
शिक्षा बचाओ आन्दोलन की पहल पर प्रदेश के शासकीय इंजीनियरिंग कालेजों की फीस में 50 प्रतिशत की कमी की गयी है। इससे उच्च शिक्षा पर होने वाले खर्चे से अभिभावकों को राहत मिलेगी। 0प्र0 को नाॅलेज हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के संकल्प को 0प्र0 ने पूरी तरह से स्वीकार करते हुए सकल पंजीयन अनुपात (जी आर) को 12.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 2012-13 तक 15 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया। प्रदेश ने दो वर्ष पूर्व ही 10.33 लाख विद्यार्थियों का पंजीयन करके उच्च शिक्षा का जी आर लक्ष्य से अधिक 16.09 प्रतिशत कर लिया है। प्रदेश में छात्र-छात्राओं को पुस्तकें, साइकिलें और गणवेश उपलब्ध करायी जा रही हैं। इसकी वजह से उनमें स्कूलों के प्रति आकर्षण बढ़ा है और स्कूलों में प्रवेश की दर अत्यधिक बढ़ गयी है। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के कालेजों के छात्र-छात्राओं को पुस्तकें और स्टेशनी निशुल्क उपलब्ध करायी जाती हैं। ग्रामीण क्षेत्र की प्रतिभावान छात्राओं को प्रोत्साहित करने के लिए गांव की बेटी योजना प्रारम्भ की गयी है इससे 32 हजार से अधिक छात्राएं लाभान्वित हुई हैं। शहरी क्षेत्र की गरीबी की रेखा के नीचे के परिवार की छात्राओं को उच्च शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए प्रतिभा किरण योजना प्रारम्भ की गयी है इससे अब तक ढाई हजार छात्राएं लाभान्वित हुई हैं। सामान्य वर्ग के कम आय वाले विद्यार्थियों के लिए विक्रमादित्य योजना प्रारम्भ की गयी है। युवा पीढ़ी अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के अनुरूप केरियर चुन सके इसके लिए विवेकानंद केरियर योजना प्रारम्भ की गयी है।

बुधवार, 27 जुलाई 2011

कब तक छलेंगे कोरे वादों से जनसेवक रियाया को!

कब तक छलेंगे कोरे वादों से जनसेवक रियाया को!

(लिमटी खरे)

तालियों की गड़गड़ाहट वह भी अपने कहे वाक्य पर! भई वाह क्या कहने। कौन नहीं चाहता प्रशंसा सुनना, परनिंदा से भी ज्यादा सुख मिलता है आत्म प्रशंसा में। चुनावों के दरम्यान राजनेताओं द्वारा वायदों की बौछार कर दी जाती है, मतदाता बुरी तरह से भ्रमित हो जाता है चुनावों के दौरान। जैसे ही चुनाव बीते वैसे ही जनसेवक अपने वादों को दरकिनार कर अपने अपने निहित स्वार्थों मंे जुट जाते हैं। यह हकीकत है, इस बारे में मीडिया में जब तब कोई न कोई खबर प्रमुख स्थान पा ही जाती है। हाल ही में दिल्ली के लोकायुक्त वजीरे आजम की नामराशि जस्टिस मनमोहन सरीने ने पिछले चुनावों में दिल्ली की कुर्सी पर तीसरी मर्तबा काबिज शीला दीक्षित को उनके वायदों के लिए न केवल कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि महामहिम राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सिफारिश भी की है कि महामहिम शीला दीक्षित को आगाह अवश्य करें कि भविष्य में इस तरह की बयानबाजी करने से बाज आएं
 
मंच से बोलते समय तालियों की गड़गड़हाट सुनने को बेचेन राजनेता अक्सर अपना संयम तोड़ देते हैं। कभी कभी तो सुर्खियों में बने रहने भी नेताओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है। जब बात जनादेश पाने की हो तब तो नेताओं के मुंह में जो आता है वह वायदा कर दिया जाता है। यह भी नहीं सोचा जाता कि इसे पूरा कैसे किया जाएगा। मामला चाहे शीला दीक्षित द्वारा साठ हजार तैयार मकानों को गरीब गुरबों को सौंपने का हो या फिर हृदय प्रदेश में केंद्रीय छटवा वेतनमान जस का तस लागू करने का हो, हर बार अंत में मतदाता अपने आप को ठगा सा ही पाते हैं। उधर मामला चाहे उत्तर भारतीयों को लेकर मनसे प्रमुख राज ठाकरे का हो या फिर शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे का। दोनों ही नेताओं ने जात पात और क्षेत्रवाद की बात कहकर लोगों के मन मस्तिष्क में जहर बो दिया है।

इस मामले में दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित भी पीछे नहीं हैं। कुछ समय पूर्व उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर टिप्पणी करने के बाद उन्हें लाख सफाई देनी पड़ी थी। पिछले साल राजधानी दिल्ली से सटे बदरपुर विधानसभा क्षेत्र में भी एक कार्यक्रम के दौरान शीला दीक्षित ने एक विवादस्पद बयान दे डाला। बदरपुर विधानसभा क्षेत्र के अलीपुर ग्राम में चुनाव पूर्व वे ढेर सारी सौगातें लेकर गईं थीं। स्थानीय निवासियों ने वहां शासकीय योजनाओं, अस्पताल, राशन, सड़क बिजली पानी की समस्याएं गिनाते ही उनके मुंह का जायका खराब हो गया। झांसी की रानी की मानिंद शीला दीक्षित चिंघाड़ीं थीं।

उन्होंने उस वक्त कहा था कि सरकार ने सब कुछ दिया है, दिल्ली वासियों के लिए। और अगर बिचौलियों दलालों के चलते गफलत हो रही हो तो लोग खासतौर पर महिलाएं मोर्चा संभालें। अगर तब भी बात न बने तो पिटाई भी की जाए, और अगर आवश्यक्ता पड़े तो दिल्ली में मुख्यमंत्री कार्यालय में आकर इस बात की इत्तला भी दी जाए। 2013 में फिर विधानसभा चुनाव हैं इसलिए शीला दीक्षित की जुबान फिर फिसलना स्वाभाविक ही है।

दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की वीर रस भरी सलाह सुनकर रणबांकुरों की बाहों में मछलियां अवश्य फड़कने लगी होंगी। लोगों ने अपने दिल दिमाग में राशन वाले बनिया की पिटाई की काल्पिनिक कहानी भी गढ़नी आरंभ कर दी होगी। इंसाफ दिलाने का यह काफी पुराना किन्तु घिनौना तरीका है। इस कबीलाई संस्कृति की मिसालें यदा कदा देश में सुनने को मिल जाती हैं।

अगर व्यवस्था असफल हुई है तो निश्चित रूप से सूबे का निज़ाम इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार कहा जा सकता है। सूबे का निज़ाम ही जब इस तरह की वीर रस भरी सलाह देने लगे तो बस चल चुका लोकतंत्र। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अलीगांव के लोगों को जिस रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी है, वे खुद नहीं जानती कि वह सड़क कहां जाकर समाप्त होती है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और सदी के खलनायक प्राण अभिनीत फिल्म ‘‘कालिया‘‘ का एक डायलाग यहां प्रसंगिक होगा जिसमें जेलर की भूमिका में प्राण अपने केदी अमिताभ से कहता है -‘‘जुर्म के जिस रास्ते पर तुम चल चुके हो, कालिया, तुम नहीं जानते यह रास्ता जेल की कालकोठरी में ही जाता है।‘‘

देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में वहीं की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की चिंघाड़ से साफ हो गया था कि यह अराजकता के आव्हान के अलावा और कुछ नहीं है। शीला दीक्षित ने परोक्ष रूप से स्वीकार कर लिया है कि हम सूबे को चलाने में असफल हुए हैं, अब आप ही सत्ता संभालें या जो आपको करना हो करें, हम आंख बंद कर सब कुछ देखेंगे चाहे वह जायज हो या नाजायज। पूर्व में नाजायज को भी उन्होंने आंख बंद कर स्वीकार किया है, तभी तो इस तरह की विस्फोटक स्थिति निर्मित हुई है।

सत्तर के दशक के उत्तरार्ध तक देश में सीमेंट भी परमिट पर मिला करती थी। उस वक्त दलालों ने खूब मलाई काटी। आज भी कमोबेश वही हालत बने हुए हैं। सरकारी क्षेत्र में आज आधी से ज्यादा सेवाएं निजी क्षेत्रों को सौंप दी गई हैं। ठेका लेने वाला अपनी मर्जी के हिसाब से जनता को लूट रहा है। देश में केंद्र और राज्य सरकारें क्या करने जा रही हैं। मसलन, सड़क है तो वह भी बनाओ, कमाओ, फिर सरकार को सौंपो (बीओटी), बिजली भी निजी हाथों में अर्थात जितना लूट सकते हो लूट लो।

केंद्र में सौदेबाजी की राजनीति के माहिर खिलाड़ी कहे जाने वाले शरद पवार किसी से कम नहीं हैं। मराठा क्षत्रप और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने तो साफ तौर पर अपील की थी कि किसानों को साहूकार का ब्याज नहीं चुकाना चाहिए। शायद शरद पंवार ज़मीनी हकीकत से रूबरू नहीं हैं। वे नहीं जानते हैं कि किसान ने जो कुछ भी रहन (गिरवी) रखा होगा वह डूब जाएगा। इन परिस्थितियों में आत्म हत्या करने वाले किसानों के घरों से न जाने कितने ‘‘ज्वाला, जीवा या शंकर डाकू‘‘ पैदा हो जाएंगे।

राजनेता के पीछे दौड़ने वाली जनता में से कुछ चाटुकारों को छोड़कर शेष चालीस फीसदी तो उन्हें अपना आदर्श ही मानते हैं, और अगर राजनेता ही मरने मारने, भगने भगाने जैसे बयान देना आरंभ कर देंगे तो आने वाले समय में कत्ले आम मच जाएगा। राजनेता इस तरह का बयान और कदम सिर्फ खबरों में बने रहने, तालियां सुनने के लिए उठाते हैं या फिर उनका असली मकसद कुछ और होता है।

दिल्ली के लोकायुक्त के इस सराहनीय कदम की प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने दिल्ली की निजाम श्रीमति शीला दीक्षित द्वारा वर्ष 2008 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के एन पहले जो घोषणा की थी उस बारे में प्रतिभा देवी पाटिल का ध्यान आकर्षित कराया है। दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमुर्ति मनमोहन सरीन ने कहा है झूठे छलावे भरे वायदे कर वोट बटोरने के शीला दीक्षित के प्रयासों की खुलकर निंदा की है। न्यायमूर्ति सरीन ने बड़बोले नेताओं की कथनीऔर करनीके बीच के फासले पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सार्वजनिक जीवन से जुड़े एसे नेताओं को बेनकाब किया जाना आवश्यक है।

दरअसल लोकायुक्त के समक्ष एक अजीबोगरीब मामला लाया गया था, जिसमें वर्ष 2008 के विधानसभा चुनावों के पहले श्रीमति शीला दीक्षित द्वारा जनसभाओं में गरीब और मलिन बस्तियों के लिए राजीव रत्न आवास योजनाके तहत तैयार 60 हजार मकानों को इनमें बांटने की घोषणा की गई थी। मुख्यमंत्री के इस वायदे जिसमें मकानों के तैयार होने की बात कहकर चुनाव के बाद वितरित करने की बात कही गई थी को अधिवक्ता सुनीता भारद्वाज द्वारा एक याचिका के द्वारा लोकायुक्त के संज्ञान में लाया गया था।

सुनीता का आरोप है कि गरीबों के लिए साठ हजार मकान बनकर तैयार होने की बात तो दूर उसके लिए न कार्ययोजना बनी और ना ही जमीन का अधिग्रहण ही किया गया। मामला दूध और पानी के मानिंद एकदम साफ है। शीला दीक्षित ने तीसरी बार सत्ता हथियाने के लिए जो जोड़तोड़ किया वह किसी से छिपा नहीं है। यह जरूरी इसलिए भी हो गया था, क्योंकि दिल्ली में राष्ट्रमण्डल खेलों का आयोजन किया जाना था, इसके लिए दिल्ली सरकार को खासा बजट भी मिलना था। गरीब मजलूमों को गुमराह कर राजनैतिक दलों द्वारा उनसे जनादेश तो प्राप्त कर लिया जाता है, किन्तु जब बारी वायदों पर खरा उतरने की आती है तो राजनेता पटली मारने से भी गुरेज नहीं करते।