रायसीना हिल्स अब
प्रणव के कब्जे में
(प्रियंका श्रीवास्तव)
नई दिल्ली (साई)।
देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज देश के तेरहवें राष्ट्रपति के
रूप में शपथ ली। संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एच कापड़िया उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
शपथ ग्रहण करने से
पहले श्री प्रणब मुखर्जी राजघाट, शांति वन, विजयघाट, शक्ति स्थल और
वीरभूमि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने गए। शपथ ग्रहण समारोह में राज्यसभा के सभापति
मोहम्मद हामिद अंसारी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, भारत के प्रधान
न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एच कापड़िया, लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, मंत्रिपरिषद के
सदस्य, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राजनयिक मिशनों के
प्रमुख, सांसद तथा
प्रमुख प्रशासनिक और सैनिक अधिकारी केन्द्रीय कक्ष में मौजूद थे।
उधर, निवर्तमान
राष्ट्रपति ने सरकार और जनता से कहा है कि मजबूत, प्रगतिशील, संगठित और
भ्रष्टाचार मुक्त भारत के निर्माण के लिए मिलकर कार्य करें। कल शाम राष्ट्र के नाम
अपने विदाई संदेश में श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील ने कहा कि राष्ट्र निर्माण
सामूहिक जिम्मेदारी है और प्रत्येक नागरिक को इसमें योगदान करना चाहिए।
काले रंग की अचकन
और उजले रंग का चूडीदार पायजामा पहने प्रणब मुखर्जी ने अंग्रेजी में ईश्वर के नाम
पर संविधान एवं विधि के संरक्षण और सुरक्षा की शपथ ली। प्रणब को 21 तोपों की सलामी दी
गई। इसके बाद उन्होंने शपथ ग्रहण करने से जुड़े रजिस्टर पर हस्ताक्षर किया और
उपस्थित लोगों ने मेजें थपथपा कर उनका स्वागत किया।
राष्ट्रपति भवन से
चलकर निवर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी
का काफिला एक जुलूस की शक्ल में संसद भवन परिसर पहुंचा जिसके बाद शपथ ग्रहण समारोह
शानदार तरीके से शुरू हुआ। यहां पहुंचने पर कपाडिया, अंसारी और मीरा
कुमार ने उनका स्वागत किया और उन्हें साथ लेकर केंद्रीय कक्ष गए। संक्षिप्त समारोह
के बाद प्रणब और पाटिल बाहर आए। इस दौरान ड्रम और बिगुल की ध्वनि से चारों ओर का
माहौल गूंज उठा।
देश के नये
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बुधवार को कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा विश्व
युद्ध है और यह विश्व युद्ध इसलिए है क्योंकि यह बला अपना शैतानी सिर दुनिया में
कहीं भी उठा सकती है। प्रणब ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में भारत के नये राष्ट्रपति
के रूप में शपथ लेने के बाद कहा, ‘अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम
चौथे विश्व युद्ध के बीच में हैं। तीसरा विश्वयुद्ध शीतयुद्ध था परंतु 1990 के दशक की शुरुआत
में जब यह युद्ध समाप्त हुआ उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में बहुत गर्म
माहौल था।
आतंकवाद के खिलाफ
लड़ाई चौथा विश्व युद्ध है और यह विश्वयुद्ध इसलिए है क्योंकि यह बुराई अपना शैतानी
सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकती है।’ भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस एच
कपाडिया ने प्रणब को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलायी। प्रणब ने कहा, ‘दूसरे देशों को
आतंकवाद की जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा जबकि भारत को
इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है।’
प्रणब ने कहा कि
भारत के लोगों ने घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी। ‘वर्षों के युद्ध के
मुकाबले शांति के कुछ क्षणों से कहीं अधिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भारत
आत्मसंतुष्ट है और समृद्धि के ऊंचे शिखर पर बैठने की इच्छा से प्रेरित है। यह अपने
इस मिशन में आतंकवाद फैलाने वाले खतरनाक लोगों के कारण विचलित नहीं होगा।’
अपने भाषण में
राष्ट्रपति ने कहा कि गरीबी के अभिशाप को खत्म करना है और युवाओं के लिए ऐसे अवसर
पैदा करने हैं ,जिससे वे
हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। ‘भूख से बड़ा कोई अपमान नहीं है। सुविधाओं को
धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का
समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा जो सबसे गरीब हैं ताकि गरीबी
शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोष से मिट जाए।
राष्ट्रपति ने कहा
कि हमारा विकास वास्तविक लगे इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब
व्यक्ति को महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है। बाद में उनके
भाषण का हिन्दी अनुवाद उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने पढ़ा। प्रणब ने कहा, ‘मेरी राय में
शिक्षा वह मंत्र है जो भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारे प्राचीनतम
ग्रन्थों में समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभों पर खडा किया गया है। हमारी चुनौती
है ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुंचाकर इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना।’
भ्रष्टाचार की
चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कभी कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़
जाता है। ‘भ्रष्टाचार
एक ऐसी बुराई है जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित
कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते।’
भाषण का अंत
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के सुप्रसिद्ध रूपक से किया, जिसमें उन्होंने
कहा था कि भारत का उदय होगा। शरीर की ताकत से नहीं बल्कि मन की ताकत से। विध्वंस
के ध्वज से नहीं बल्कि शांति और प्रेम के ध्वज से। ‘अच्छाई की सारी
शक्तियों को इकटठा करें। यह न सोचें कि मेरा रंग क्या है, हरा, नीला अथवा लाल
बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की प्रखर चमक पैदा करें जो प्यार का रंग
है।’
प्रणब ने
राष्ट्रपति पद की शपथ अंग्रेजी में ली। इससे पहले राष्ट्रपति भवन से चलकर
निवर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल और प्रणब का काफिला संसद भवन परिसर पहुंचा।
वहां पहुंचने पर कपाडिया, अंसारी और मीरा कुमार ने उनका स्वागत किया और उन्हें साथ लेकर
केंद्रीय कक्ष गए।