आतंकी पर होने लगी सियासत!
(लिमटी खरे)
सही कहा है किसी ने कि आतंकवाद का कोई
मजहब नहीं होता है। आतंकवाद का सीधा से मतलब है दहशतगर्दी। देश में आतंकवाद के साथ
ही साथ नक्सलवाद, अलगाववाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, माओवाद और ना जाने कितने वाद पैदा कर दिए गए हैं सियासत की बिछात के
चलते। हाल ही में संदिग्ध आतंकी लियाकत पर अब सियासी गोटियां बिछने लगी हैं। जम्मू
काश्मीर के निजाम उमर अब्दुल्ला ने इस पर अपनी नई तान छेड़ दी है। उनका कहना है कि
वह उनके सूबे की नीति के तहत सरेंडर करने दिल्ली जा रहा था कि उसे पकड़ लिया गया!
सवाल यह है कि अगर वह समर्पण करने जा रहा था तो वह जम्मू काश्मीर पुलिस की देखरेख
में दिल्ली क्यों नहीं गया!
उमर अब्दुल्ला जिस राज्य की कमान संभाले
हुए हैे वहां अल्पसंख्यकों की खासी तादाद है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता
है। उमर को उनकी भावनाओं का ख्याल रखना भी बहुत जरूरी है। उमर अब्दुल्ला सियासी
खानदान से हैं और राज्य के मुख्यमंत्री हैं इस नाते उन्हें नीति की बात करना
चाहिए। अगर कोई आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है या उसमें संलिप्त है तो कम से कम उसका
पक्ष तो कतई नहीं लेना चाहिए उन्हें।
हिजबुल मुजाहितदीन के संदिग्ध आतंकी
लियाकत शाह की गिरफ्तारी का मामला एनआईए को सौंप दिया गया है। एनआईए इस संदिग्ध
आतंकवादी लियाकत की गिरफ्तारी के हालातों की जांच करेगा। गौरतलब है कि इसकी
गिरफ्तारी को लेकर अब दिल्ली पुलिस और जेएण्डके पुलिस आमने सामने आ गई है।
जम्मू काश्मीर पुलिस का दावा है कि
लियाकत शाह सरेंडर करने की गरज से राज्य में आ रहा था। लियाकत को दिल्ली पुलिए ने
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में धर दबोचा था। कहा जा रा है कि लियाकत शाह उस आतंकवादी
संगठन का हिस्सा है जो इस बार की रंगों की होली को खून की होली में तब्दील करने की
मंशा रख रहा है।
देश में आतंक बरवाने में पाकिस्तान के
हाथ को बार बार रेखांकित किया गया है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए अब तक
के सबसे बड़े आतंकी हमले के अलावा अन्य अनेेक मामलात में सबूत और परिस्थितियां चीख
चीख कर इस ओर इशारा कर रही हैं कि इन सबमें पाकिस्तान का साफ साफ हाथ है, बावजूद इसके हमारे देश के रीढ़ विहीन
नीति निर्धारक हाथ पर हाथ रखे बैठे हैं।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि
वैश्विक स्तर पर सहिष्णु छवि बनाने के चक्कर में देश के नीति निर्धारकों ने
सहिष्णुता के लबादे तले नपुंसकता को ओढ़ रखा है। तुष्टिकरण की नीति के चलते आज देश
में आदमी आदमी में भेद होने लगा है। याद पड़ता है जब हम छोटे प्राईमरी क्लास में
अध्ययनरत थे, तब स्कूल में भोजनावकाश के समय जब सारे लोग मिलकर टिफिन साझा करते थे तब
यह पता नहीं होता था कि जिसका टिफिन खा रहे हैं वह किस मजहब से है।
बचपन से लेकर आज तक जयराम जी की, जय जिनेंद्र देव की, जय ईसा मसीह की, सतश्री अकाल, सलाम आलेकुम जैसे संबोधन एक दूसरे के
अभिवादन के वक्त करते समय यह महसूस नहीं होता है कि किस मजहब के इंसान का अभिवादन
किया जा रहा है। पर जबसे देश में आतंकवाद ने पैर पसारे हैं एक मजहब विशेष के लोगों
की इसमें संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता है।
भारत गणराज्य के संविधान में प्रजातंत्र
के तीन प्रमुख स्तंभ हैं, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका, इसमें चौथे अघोषित स्तंभ के बतौर मीडिया
को शामिल कर दिया गया है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका को सर्वोच्च माना गया
है। न्यायपालिका ने अगर संसद पर हमले के आरोपी अफजल गुरू को दोषी ठहराया है तो देश
के हर नागरिक को चाहे वह किसी भी मजहब का हो इसका सम्मान करना चाहिए। इस मामले में
भी उमर अब्दुल्ला ने टिप्पणी की थी।
अब हिजबुल मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकी
लियाकत की गिरफ्तारी पर जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला ने तेवर और कड़े कर लिए
हैं। सोमवार को उमर ने केंद्र सरकार पर कश्मीर को लेकर अलग मानदंड अपनाने का आरोप
लगाया। उमर ने अफजल गुरु को फांसी दिए जाने और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून को
हटाने पर उसकी चुनिंदा नीति को लेकर सवाल उठाया। उन्होंने लियाकत शाह की गिरफ्तारी
की आलोचना की।
लियाकत की गिरफ्तारी पर उमर ने कहा कि
वह राज्य सरकार की पॉलिकी के तरह सरेंडर करने आ रहे थे। उमर ने कहा, अगर कोई आदमी शॉपिंग मॉल पर अटैक करने आ
रहा है, तो क्या वह अपने बीवी-बच्चों के साथ आएगा? उन्होंने कहा कि वे यह पहली बार सुन रहे
हैं कि एक आतंकवादी अपने बीवी-बच्चों का हाथ पकड़े और दूसरे हाथ में हथियार थामे
हमला करने आ रहा है।
उमर ने विधानसभा में एक चर्चा का जवाब
देते हुए कहा, जब वे उस कानून को हटाने के बारे में बात करते हैं तब आप खतरा नहीं
उठाना चाहते हैं, लेकिन आप अफजल को फांसी दे देते हैं। आपके अंदर को हटाने का साहस क्यों
नहीं है? अफजल गुरु को फांसी दिए जाने के बाद आप उसे वापस नहीं ला सकते लेकिन
हटाये जाने के बाद आप इसे फिर से लागू कर सकते हैं।
क्या उमर अब्दुल्ला के पास इस बात का
जवाब है कि अगर लियाकत वाकई सरेंडर करने जा रहा था तो वह गोरखपुर के माल में क्या
कर रहा था? क्या भारत गणराज्य में अपराधियों के मन से कानून का डर समाप्त हो गया है
कि वह सरेंडर करने जाने के पहले मंहगे माल में जाकर मजे लूटे? अगर जम्मू काश्मीर राज्य की नीति के तहत
वह समर्पण के लिए आ रहा था तो उसे दिल्ली पुलिस ने गोरखपुर से कैसे धर दबोचा? अगर उमर सही हैं तो संदिग्ध आतंकी
लियाकत को पहले जम्मू काश्मीर पुलिस ने क्यों नही धरा।
खबर तो यह भी है कि लियाकत अली उसी संगठन
का हिस्सा है जो भारत में खून की होली खेलने का मन बना चुका है। कहा जा रहा है कि
इन्हीं इरादों के साथ लियाकत शाह जो गोरखपुर में पकड़ा गया है, वह नेपाल के रास्ते भारत आया था। गौरतलब
है कि गोरखपुर से नेपाल की सीमा बहुत ही पास है।
उमर अब्दुल्ला के बयानों से ना केवल
काश्मीर वरन् देश भर में आग लगने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
भारत गणराज्य में हर किसी को अपना धर्म निभाने, अपनी भाषा का प्रयोग करने, हर भूभाग में रहने, नौकरी करने, व्यवसाय करने का अधिकार है। यह अधिकार
भारत का संविधान उन्हें देता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि वोट बैंक के चक्कर में
कांग्रेस ने देश के टुकड़े टुकड़े करके रख दिए हैं।
उत्तर में उमर अब्दुल्ला अपनी तान छेड़ते
हैं तो मुंबई में ठाकरे ब्रदर्स डंडा लिए बाहरी लोगों को खदेड़ते हैं। क्या जम्मू
काश्मीर उमर अब्दुल्ला और मुंबई या महाराष्ट्र ठाकरे ब्रदर्स की बपौती हैं? क्या ये भारत गणराज्य का अभिन्न अंग
नहीं हैं? अगर हैं तो प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह मोनी बाबा क्यों बने बैठे हैं? क्या कारण है कि देश के गृह मंत्री
सुशील कुमार शिंदे कठोर कार्यवाही करने से कतराते हैं? आप तो सत्ता की मलाई चख लेंगे पर आने
वाली पीढ़ी आपको पानी पी पी कर कोसेगी इस बारे में भी जरा चिंतन अवश्य कर लें शासक!
(साई फीचर्स)