गुरुवार, 12 अगस्त 2010

खेल मंत्री ने दी सांसदों के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती

क्या हम आजाद भारत गणराज्य में हैं!

गिल की नौकरशाही मानसिकता का घोतक है उनका वक्तव्य

सदन में नहीं आरटीआई में मिलेगी घपलों की जानकारी

खेल होने तक खुली छूट है भ्रष्टाचार करने की

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य के संसदीय इतिहास में पहली मर्तबा एसा हुआ होगा कि किसी कबीना मंत्री ने देश के माननीय कहे जाने वाले संसद सदस्यों के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौति दे डाली हो। राष्ट्रमण्डल खेलों में हो रहे जबर्दस्त भ्रष्टाचार के बारे में सवाल जवाब और हंगामों के दौर के बीच भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने कहा कि अगर किसी को धांधली की जानकारी चाहिए तो उसे सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करना चाहिए, उन्हें हर बात का जवाब मिल जाएगा।

कामन वेल्थ गेम्स में आयोजन समिति से जुड़े लोगों की वेल्थ के मामले में हो रही चर्चा के दौरान जब जवाब देने के लिए भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल खडे हुए तब उन्होंने जो कहा वह भारत के संसदीय इतिहास में आज तक किसी ने भी नहीं कहा। भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि विपक्षी दलों के सदस्यों को अगर खेलों के आयोजन में हो रही धांधली की आशंका है तो वे सूचना के अधिकार के कानून के तहत प्रश्न पूछें, उन्हें सारे जवाब मिल जाएंगे।

सांसद आवक थे क्योंकि सदन में पहली बार किसी मंत्री ने यह कहने की जुर्रत की है कि जनता के नुमाईंदों वह भी सबसे बडी पंचायत के सदस्यों के सवालों के जवाब सदन से नहीं वरन् किसी दूसरे तंत्र के माध्यम से मिलेंगे। सदन में जब राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी जैसे तजुर्बेकार और सीनियर लीडरान मौजूद हों तब भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल द्वारा इस तरह का बयान देना अपने आप में खुद ही अचंभे से कम नहीं है। गिल ने सीधे सीधे सांसदों के प्रश्न पूछने के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती दे डाली है।

मनोहर सिंह गिल ने जिस तरह से देश की सबसे बड़ी पंचायत में सांसदों के अधिकार को चुनौति दी है, उसे किसी भी कीमत पर न तो स्वीकर ही किया जा सकता है, और न ही उस पर बहस ही की जाने की आवश्यक्ता है। मनोहर सिंह गिल का वक्तव्य एक तरह से सदन की अवमानना की श्रेणी में आता है। यह जनादेश प्राप्त भारत गणराज्य के नीति निर्धारकों के संवैधानिक हनन की श्रेणी में आता है।

मंत्री चाहे शशि थरूर रहे हों या मनोहर सिंह गिल, सभी के बड़बोलेपन से जाहिर हो चुका है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के मंत्रियों को यह जानकारी भी नहीं है कि सांसदों के अधिकार और कर्तव्य क्या हैं? केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री बनाने के लिए क्या कोई पैमाना निर्धारित है? या जिसे चाहे उसे लाल बत्ती सौंपकर देश और प्रदेश की जनता का भाग्य उनके हाथ में दे दिया जाता है? यह निश्चित तौर पर निंदनीय माना जाएगा।

वैसे देखा जाए तो राजनैतिक बियावान में चहलकदमी करने वाले भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल मूलतः नौकरशाह रहे हैं। गिल के इस कथन को उनकी नौकरशाह वाली मानसिकता से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए। मनोहर सिंह गिल जब बोल रहे थे तो उनका अंदाज नेता का कम अफसराना ज्यादा प्रतीत हो रहा था। वे भूल गए कि वे भी उसी व्यवस्था का अंग हैं, जो कानून को बनाती है। कानून बनाने वालों द्वारा आम तौर पर जब तब अफसरों की खाल बचाने का कुत्सित प्रयास किया जाता है, संभवतः गिल ने भी यही सोचा होगा कि कानून बनाने वाले उनके विभाग पर लगने वाले अरबों खरबों के भ्रष्टाचार के मामलों को दबा लेंगे। अमूमन लोकतंत्र में सरकार के हर मंत्री के किसी भी निर्णय को या सरकार के किसी भी निर्णय को एक दूसरे का पूरक ही माना जाता है। जानकारों का कहना है कि संवैधानिक तौर पर संसद के उपर कुछ भी नहीं होता है, क्योंकि कानून बनाने का अधिकार भी संसद को ही प्राप्त है।

खेल मंत्री का यह तर्क भी गले नहीं उतरता है जिसमें उन्होंने कहा कि अगर किसी तरह की जांच की जरूरत हो तो जांच कराई जाएगी, किन्तु 15 अक्टूबर के बाद। उधर सुरेश कलमाडी कहते हैं कि वे त्यागपत्र देने को तैयार हैं, बशर्ते सोनिया गांधी उनसे कहें। और सोनिया गांधी हैं कि देशवासियों के गाढे पसीने की कमाई को यूं ही आग लगते देख रही हैं। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी अगर इस मामले में मौन हैं तो भ्रष्टाचार के प्रति यह उनकी मौन सहमति क्यों न मान लिया जाए।

कामन वेल्थ गेम्स में दिल्ली में भ्रष्टाचार की एक छोटी सी बानगी जहां चाहे वहां देखने को मिल सकती है। सड़कों किनारे फुटपाथ पर लगे चेकर टाईल्स को अभी कुछ माह पहले ही लगाया गया था, इन्हें निकालकर दोबारा लगाया जा रहा है। ये चेकर टाईल्स पुराने अलग ही प्रतीत हो रहे हैं। इन्हें लगाने का काम भी बला टालू और बेतरतीब तरीके से ही किया जा रहा है। दो माह बाद जब इसकी जांच होगी तब पाया जाएगा कि दो महीनों में ये रखरखाव के अभाव में टूट फूट गए हैं। एक स्थान के पत्थर निकाल कर दूसरे स्थान पर नए बातकर लगाए जा रहे हैं। इस तरह ठेकेदार और सरकार का तंत्र मिलकर भारत गणराज्य की जनता का टेक्स के रूप में दिया पैसा बहाया जा रहा है।

केंद्र सरकार को इस बात का जवाब जनता को देना ही होगा कि जब धर्मशाला में सांसद द्वारा महज 45 करोड़ रूपयों में स्टेडियम का निर्माण करवा दिया जाता है, तब दिल्ली के बने बनाए नेहरू स्टेडियम के पुर्नुद्धार में 900 करोड़ रूपए कैसे लग जाते हैं। यक्ष प्रश्न आज भी यही खड़ा हुआ है कि जब राष्ट्रमण्डल खेलों की मेजबानी भारत को 2003 में मिल गई थी, और इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार 2004 से 2009 तक राज करती रही तब खेलों के प्रति सरकार 2008 में देर सबेर कैसे जागी? वहीं दूसरी ओर दिल्ली में भी 13 सालों से कांग्रेस का ही शासन है।

उधर राष्ट्रमण्डल खेल महसंघ (सीजीएफ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी माइक हूपर भी कामन वेल्थ गेम्स की मेजबानी के लिए दिल्ली के तैयार न होने से चिंतित नजर आ रहे हैं। उनका तर्क विचारणीय है कि कामन वेल्थ गेम्स पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप उन्हें भी भयाक्रांत कर रहे हैं। हूपर की चिंता बेमानी नहीं है कि गेम्स 03 अक्टूबर से आरंभ होने को हैं, अगस्त का आधा माह बीत चुका है, अब जबकि काउंट डाउन आरंभ हो चुका है, तब भी तैयारियां अधूरी हैं।

यह तो तय हो चुका है कि कामन वेल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारियों में भारत गणराज्य की रियाया का खून पसीने का पैसा तबियत से उडाया गया है। देश ही नहीं विदेशों में भी इस महा भ्रष्टाचार के खेल पर छींटाकशी की जा रही है। भारत सरकार है कि शतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर अपने आप को इससे बरी महसूस कर रही है। सवाल यह है कि आखिर वैश्विक छवि बनाने के लिए चिंतित भारत सरकार इस तरह के भ्रष्टाचार को करवाकर कौन सा वैश्विक चेहरा बनाने जा रही है भारत गणराज्य का।

समूचा देश मंहगाई की आग में झुलस रहा है। मंहगाई क्यों बढी है? जाहिर है अगर हजारों करोड़ रूपए खेल खेल में भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढा दिए जाएंगे तो जनता का तेल निकलना स्वाभाविक ही है। देश का मीडिया चीख चीख कर कह रहा है कि गेम्स के नाम पर हजारों करोड़ रूपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। मीडिया सबूत भी दे रहा है, पूरा भारत गणराज्य इस बात को मान रहा है, सिवाय देश के वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह, कांग्रेस की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी और भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल के।

फोरलेन विवाद का सच ------------07

ठेकेदार को लाभ पहुंचाने होती है सड़क परियोजनाओं में देरी

दो साल से रूका है सिवनी जिले में फोरलेन के निर्माण का काम

संसद की समिति ने कटघरे में खड़ा किया भूतल परिवहन मंत्रालय को

जाने अनजाने लोग भी प्रशस्त कर रहे हैं ठेकेदारों के लाभ के मार्ग

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश भर में परिवहन के साधन के लिए सड़कों को बेहतर तरीके से जाना जाता है। देश भर में सड़कों का जाल बिछाने का जिम्मा केंद्र सरकार के भूतल परिवहन मंत्रालय के जिम्मे ही है। मंत्रालय में पदस्थ अफसरान और सड़क निर्माण में लगे ठेकेदार मिलकर जनता से करों के माध्यम से वसूले गए एक एक पैसे में किस तरह आग लगाते हैं यह जादू तारीफे काबिल होता है। यह सब कुछ इतनी सफाई से होता है कि जनता के कानों में आहट तक नहीं आ पाती है।

पिछले दिनों सड़क परियोजनाओं में होने वाली देरी के कारण संसद की एक समिति ने भूतल परिवहन मंत्रालय और नेशनल हाईवे अथारिटी ऑफ इंडिया की जमकर खिंचाई कर दी है। परिवहन, पर्यटन और संस्कृति संबंधी संसदीय समिति ने कहा है कि ठेकेदारों को अधिक मुनाफा देने के लिए परियोजनाओं में जानबूझकर विलंब किया जाता है। समिति का आरोप है कि इसके पीछे बाकायदा भ्रष्ट अधिकारियों, दलालों, दागी ठेकेदारों का काकस काम करता है। मंत्रालय के सचिव स्वयं भी इस समिति के सामने इस हकीकत को स्वीकार कर चुके हैं।

सांसद सीताराम येचुरी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थाई समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि लेटलतीफी से परियोजना की लागत बढ जाती है, जिससे मिलने वाला मुनाफा भ्रष्ट अधिकारी, दलाल और ठेकेदार आपस में बांट लेते हैं। समिति ने सिफारिश भी की है कि इस गठजोड को तोडने के लिए सड़क परिवहन मंत्रालय को प्रभावी कदम उठाने चाहिए। समिति ने इस बात पर भी आपत्ति व्यक्त की है कि लेट लतीफी का शिकार दर्जनों परियोजनाओं के लिए महज एक ही ठेकेदार को काली सूची में डाला गया है।

समिति का कहना है कि खराब प्रदर्शन करने वाले ठेकेदारों को बाकायदा सूचीबद्ध कर उनके खिलाफ कठोर कार्यवाही सुनिश्चित होना चाहिए। समिति ने साफ तौर पर यह बात कही है कि भूमि अधिग्रहण, वन एवं पर्यावरण विभाग सहित संबंधित विभागों की अनुमति की औपचारिकता के उपरांत ही ठेका दिया जाना चाहिए। समिति ने भूमि अधिग्रहण की ढीली चाल पर एनएचएआई को भी आडे हाथों लिया।

गौरतलब होगा कि उत्तर दक्षिण फोरलेन गलियारे में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सड़क निर्माण करा रही दोनों कंपनियां मीनाक्षी और सद्भाव कंस्ट्रक्शन कंपनी का सड़क निर्माण का काम अक्टूबर 2008 से बंद पड़ा हुआ है। इसका कारण सिवनी जिले में वन विभाग एवं जिला कलेक्टर की अनुमति न होना प्रमुख है। इस लिहाज से दोनांे ही कंपनियों को सरकार से जो पेनाल्टी वसूल करना है वह काफी अधिक मात्रा में हो चुकी है।

सिवनी के लोगों द्वारा भी जिला कलेक्टर के 18 दिसंबर 2008 के आदेश को ठंडे बस्ते में डालकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय की लडाई लडकर परोक्ष तौर पर ठेकेदारों के द्वारा सरकार से वसूली जाने वाली पेनाल्टी को कई गुना और कई दिनों तक बढाने का ही काम किया है। वस्तुतः अगर उसी दौरान जिला कलेक्टर का आदेश निरस्त हो जाता तो सड़क निर्माण का काम पूरा हो जाता। देखा जाए तो न्यायालय जाने की तैयारियों और अन्य व्यवधानों के बीच सीईसी एवं अन्य लोगों को सर्वोच्च न्यायालय में अपना प्रतिवेदन या पक्ष रखने का पर्याप्त मौका मुहैया करवा दिया गया, जिससे मामला और उलझ गया है।

राजधानी दिल्ली के कानूनविदों के अनुसार अगर माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा काम रोका नहीं गया है तो फिर जिला कलेक्टर सिवनी के 18 दिसंबर 2008 के पत्र से गैर वन क्षेत्रों में सड़क निर्माण और वृक्षों की कटाई के लिए फोरलेन बचाने के ठेकेदार वर्तमान जिला कलेक्टर से मिलने में परहेज क्यों कर रहे हैं। देखा जाए तो कलेक्टर का उक्त आदेश अगर वन क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई रोकता है तो यह महज नौ किलोमीटर का मसला होगा, शेष भाग में तो सड़क का निर्माण आरंभ हो ही जाएगा!

संकट में है सागर विश्‍वदयालय की मान्यता

छिन सकता है सागर से केंद्रीय विद्यालय का दर्जा

भूल से मिला है सागर यूनिवर्सिटी को केंद्रीय दर्जा

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 12 अगस्त। अपने जमाने की मशहूर रहे मध्य प्रदेश के सागर में संचालित होने वाले डॉ.हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा कभी भी छीना जा सकता है। इस यूनिवर्सिटी को भूल से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया है। यह बात सागर के भाजपाई सांसद भूपेंद्र सिंह ने उजागर की है।

दरअसल सांसद सिंह ने सागर में एक अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने की मांग केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल के समक्ष रखी थी। सिब्बल के साथ मुलाकात के उपरांत जो तथ्य प्रकाश मंे आए हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि जल्द ही सागर विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा वापस लिया जा सकता है।

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के करीबी सूत्रों का कहना है कि भाजपा सांसद सिंह के साथ चर्चा के दौरान सिब्बल ने यह स्वीकार किया कि मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा ऋुटीवश मिला है। वस्तुतः सागर में नया केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव भेजा जाना चाहिए था।

सूत्रों ने आगे कहा कि केंद्रीय मानव सांसाधन एवं विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस बात पर अपनी सैद्धांतिक सहमति जता दी है कि अगर सागर में नए केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने का प्रस्ताव उनके मंत्रालय को प्राप्त होता है तो वे सागर में नया केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलना पसंद करेंगे, साथ ही दशकों पुराने डॉ.हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा वापस भी ले लेंगे।

गौरतलब है कि सागर विश्वविद्यालय दशकों पुराना विश्वविद्यालय है, जहां अध्यायापन का स्तर अपने आप में एक मायने रखता है। बताते हैं कि कानूनविद डॉ.हरसिंह गौर ने अपने एक अंग्रेज मित्र से सागर की पहाड़ी को विश्वविद्यालय के लिए आवंटित करवाकर यहां यूनिवर्सिटी की परिकल्पना की थी। आज सागर विश्वविद्यालय के प्रोडक्ट देश विदेश में इस विश्वविद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं।

भ्रष्‍टाचार की खुली छूट

महानगर की संपादकीय में हम


आज दैनिक हमारा महानगर, नई दिल्‍ली द्वारा हमारे आलेख को अपने संपादकीय कालम में स्‍थान दिया है, हम संपादकीय टीम का शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्‍होंने हमारे आलेख को इस काबिल समझा

शिक्षा माफिया की जद में सीबीएसई (12)

सीबीएसई बोर्ड ने निरस्त किया सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल का मान्यता आवेदन!

जबलपुर और बालाघाट के प्राचार्य ने किया था स्कूल का निरीक्षण

सीबीएसई पेटर्न पर क्लासिस आरंभ नहीं कर सकती है शाला

सिवनी। इसाई मिशनरी द्वारा जिला मुख्यालय सिवनी में चलाए जा रहे स्तरीय शिक्षा देने वाले सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल का मान्यता आवेदन केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा निरस्त कर दिया गया है। उक्ताशय की जानकारी राजस्थान के अजमेर स्थित सीबीएसई बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय के सूत्रों द्वारा उपलब्ध कराई गई है। सूत्रों का कहना है कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल विद्यालय प्रशासन अगर कक्षा नवमी में इस साल विद्यार्थियों को प्रवेश देता है तो वह सीबीएसई बोर्ड की कक्षा दसवीं में परीक्षा नहीं दे सकते हैं। इस साल कक्षा नवमी में अध्ययनरत विद्यार्थी अगले साल मध्य प्रदेश बोर्ड में ही परीक्षा देने के लिए बाध्य होंगे।

सीबीएसई के उच्च पदस्थ सूत्रांे ने बताया कि बारापत्थर सिवनी में स्टेट बैंक ऑफ इंदौर की सिवनी शाखा के बाजू में संचालित होने वाले सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल द्वारा दिए गए प्रोवीजनल एफीलेशन अप टू सीनियर सेकन्डरी लेवल के आवेदन पर सीबीएसई बोर्ड द्वारा 30 जून 2009 को इस शाला का पंजीयन किया गया था। इसका डाटा बोर्ड को 12 अगस्त 2009 को प्राप्त हुआ था, जिसमें शाला ने वर्तमान शिक्षा सत्र अर्थात 2010 - 2011 के लिए सीबीएसई से एफीलेशन मांगा था। इस हेतु शाला को पंजीयन नंबर एस एल - 01701 - 1011 प्रदान किया गया था।

सूत्रों ने आगे कहा कि इस आवेदन में शाला प्रशासन ने शाला प्रमुख के तौर पर सेबी मेरी के नाम का उल्लेख किया गया था। इस शाला द्वारा केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के नार्मस को पूरा किया जा रहा है अथवा नहीं इसके परीक्षण और निरीक्षण के लिए इंस्पेक्शन कमेटी का गठन किया गया था। इस आई सी में जबलपुर के सीएमएम स्थित केंद्रीय विद्यालय के प्राचार्य और बालाघाट के नवोदय विद्यालय के प्राचार्य को शामिल किया गया था।

सीबीएसई बोर्ड के उच्च पदस्थ सूत्रों ने दावा किया है कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल द्वारा नवमीं और दसवीं कक्षा के लिए अस्थाई मान्यता के आवेदन के परीक्षण, निरीक्षण समिति के निरीक्षण परीक्षण के उपरांत के प्रतिवेदन पर गौर करने के उपरांत केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल की सीबीएसई से मान्यता संबंधी आवेदन को तीन मई 2010 को निरस्त कर दिया गया है।

सूत्रों ने यह भी कहा कि जब सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल का मान्यता आवेदन निरस्त कर दिया गया है तब इन परिस्थितियों में सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल शाला प्रबंधन किसी भी कीमत पर शैक्षणिक सत्र 2010 - 2011 के लिए नवमीं, दसवीं, ग्यारहवीं या बारहवीं की कक्षाएं सीबीएसई बोर्ड के एफीलेशन देने के बिना सीबीएसई पेटर्न पर आरंभ नहीं कर सकती हैं। बोर्ड के सूत्र साफ तौर पर कह रहे हैं कि अगर शाला प्रबंधन बोर्ड पेटर्न पर कक्षाएं आरंभ करता है तो किसी भी तरह के विवाद के लिए सीबीएसई बोर्ड जवाबदार नहीं होगा।

यहां उल्लेखनीय होगा कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल द्वारा सीबीएसई पेटर्न पर द्वितीय शनिवार का अवकाश और अन्य बातों को अपनी कार्यप्रणाली में ले आया गया है। आरोपित है कि सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल द्वारा अपने विद्यार्थियों या उनके पालकों को इस बारे में गुमराह ही किया जा रहा है कि वह नवमीं कक्षा में विद्यार्थियों को जो प्रवेश दे रहा है, वह दसवीं कक्षा में सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे अथवा मध्य प्रदेश शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में। यहां गौरतलब होगा कि सीबीएसई बोर्ड में कक्षा दसवीं की परीक्षा के लिए विद्यार्थी का एनरोलमंेट एक वर्ष पूर्व अर्थात कक्षा नवमीं में ही हो जाता है।

कहा जा रहा है कि सीबीएसई के प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रलोभन के चलते ही सेंट फ्रांसिस ऑफ एसिसी स्कूल विद्यालय प्रबंधन द्वारा इस साल के शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने के पूर्व ही आनन फानन में अपना शाला भवन कचहरी चौक से जबलपुर रोड स्थिति निर्माणाधीन भवन में स्थानांतरित कर दिया था, जहां सुविधाओं के अभाव में विद्यार्थी परेशानी में पढाई करने पर मजबूर हैं।

सीबीएसई की मान्यता निरस्त होने के कारण यह स्कूल मध्य प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन स्वयंमेव ही आ गया है। क्योंकि शाला प्रबंधन किसी और बोर्ड से एफीलेशन संभवतः नहीं ले सकता है। इन परिस्थितियों में जिला प्रशासन की ओर से नियुक्त् िऑफीसर इन चार्ज डिप्टी कलेक्टर और जिला शिक्षा अधिकारी की चुप्पी संदेहास्पद ही मानी जा रही है।

(क्रमशः जारी)