सोमवार, 18 अप्रैल 2011

एमपी में रूकी ईसाईयों की गिनती

संघ के निशाने पर मसीही समाज!

दिल्ली में मसीही समाज में खलबली

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के हृदय प्रदेश में मसीही समाज के लोगों की प्रथक से होने वाली गिनती के आदेश से राजधानी दिल्ली की सियासी फिजां गरमा गई है। एमपी के मण्डला में हुए नर्मदा कुम्भ के बाद एक बार फिर मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के निशाने पर इसाई मिशनरी के आने से हडकम्प मचा हुआ है। यद्यपि राज्य सरकार द्वारा समस्त पुलिस अधीक्षकों को ईसाइयों की गिनती पर रोक लगा दी है किन्तु मसीही समाज के लोगों का रोष यथावत ही बना हुआ है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा सूबे में रहने वाले मसीही समाज के लोगों की जानकारी एकत्र की जाने वाले एक आदेश को प्रदेश के सभी एसपी को भेजा था। इसमें समस्त नए पुराने चर्च, शैक्षणिक संस्थान, राजनैतिक जुड़ाव के साथ ही साथ उनके आर्थिक स्त्रोतों के बारे में जानकारी एकत्र करने को कहा गया था। इस आदेश के परिपालन में अनेक जिलों के पुलिस अधीक्षकों द्वारा समस्थ थाना प्रभारियों को इसकी जानकारी अविलंब भेजने को कहा गया था।

एमपी छग के कैथलिक विशप कांफ्रेंस के क्षेत्रीय जनसंपर्क अधिकारी आनंद मुटुंगल इस आदेश को गंभीर मानते हैं। उनका मानना है कि इस आदेश के जारी होने के पीछे की मंशा को स्पष्ट किया जाना आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सूत्रों का कहना है कि धर्मांतरण मंे लगी ईसाई मिशनरियों की मुखालफत करने वाले संघ के इशारे पर शिवराज सिंह चैहान द्वारा यह कदम उठाया गया है।

उधर केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि वे इस बात की तह में अवश्य जाएंगे कि भाजपा सरकार द्वारा इस तरह के आदेश जारी करने के पीछे क्या मंशा रही। कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु संघवी इस मामले तल्ख टिप्पणी देते हुए बोले कि ईसाईयों की तादाद पता लगाने के लिए जारी आदेश असंवेधानिक है।

हजारे के आंदोलन में आय व्यय पर मौन रहा आयकर महकमा




गैर वाजिब नहीं है दिग्गी की चिंता!


आंदोलन में फुंक गए 31 लाख रूपए!

(लिमटी खरे)

कांग्रेस के बीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह ने अन्ना हजारे के आंदोलन में जुटे धन पर चिंता जाहिर की है। दिग्विजय सिह की चिंता बेमानी नहीं मानी जा सकती है। जिस भ्रष्टाचार के लिए अन्ना हजारे जैसे गांधीवादी नेता ने बिगुल फूंका है, उसी आंदोलन में इकतीस लाख रूपए खर्च होना आश्चर्यजनक है। इस पर विस्मय इसलिए भी है, क्योंकि सादगी भरे पांच दिन चले आंदोलन में लाखाों रूपए खर्च करने की बात किसी के गले आसानी से नहीं उतर सकती है। इस लिहाज से अन्ना के आंदोलन छः लाख रूपए प्रतिदिन के हिसाब से चला माना जाएगा।

गांधीवादी नेता अन्ना हजारे के आंदोलन के पाश्र्च में काम कर रही संस्था ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘ को कारमल कांवेंट जैसे नामी स्कूल, एचडीएफसी और जम्मू काश्मीर बैंक, कांग्रेस के जनसेवक के स्वामित्व वाले जिंदल एल्यूमिनियम सरीखे उद्योग ने भी बढ़ चढ़कर योगदान दिया है। 5 से 9 अप्रेल तक चले इस आंदोलन में टेंट और साउंड सिस्टम पर मात्र साढ़े नौ लाख रूपए खर्च होना दर्शाया गया है।

राजनैतिक चतुर सुजान राजा दिग्विजय सिंह ने अन्ना पर बयानों से हमले बोले, लोगों को लगा कि कांग्रेस अन्ना के इस आंदोलन से भयाक्रांत है, पर जानकारों का कहना है कि इस तरह के जहर बुझे तीर कांग्रेस की एक रणनीति के तहत ही चलाए गए थे, ताकि किसी को यह न लगे कि इसके पाश्र्व में कहीं कांग्रेस है। इसके बाद कांग्रेस के अन्ना हजारे पर से हमले कम हो गए।

माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार, घपलों घोटालों से अटी पड़ी कांग्रेसनीत केंद्र सरकार का यह प्रयास है कि किसी भी तरह से आम जनता का ध्यान इन सबसे हटाया जा सके। कांग्रेस को इसके लिए सबसे उपयुक्त लगा कि बेहतर होगा कि लोगों का गुस्सा एक बार फट जाए और मामला एक दो दशक के लिए टाला जा सके ताकि भविष्य में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को भ्रष्टाचार से निजात मिल सके।

कांग्रेस अपनी इस अघोषित मुहिम में काफी हद तक कामयाब होती दिख रही है। भ्रष्टाचार का लावा फट गया और अब शांत पड़ चुका है। लोग अब अन्ना को ही कांग्रेस का एजेंट बताने से नही चूक रहे हैं इसका कारण लोकपाल बिल के लिए बनी समीति में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण और उनके पुत्र प्रशांत भूषण को स्थान दिया जाना है। पिता पुत्र के स्थान पाते ही एक बार फिर वे विवादों में आ गए। इलहाबाद में एक बेशकीमती जमीन के मामले में उन्हें शक के दायरे में ला दिया गया। इसके बाद एक सीडी भी हवा में तैर गई जिसमें ‘जज‘ को सैट करने के आरोप शांति भूषण पर लग रहे हैं। इस तरह विवादित लोगों के इस समिति में आने से ही मामला संदिग्ध होने लगा है। लोगों का भरोसा भी अब टूटने सा लगा है।

उधर अन्ना हजारे के माध्यम से कांग्रेस ने बाबा रामदेव को भी किनारे लगाने का उपक्रम कर ही दिया। भ्रष्टाचार और काले धन पर बाबा रामदेव द्वारा जो बिसात बिछाई जा रही थी, उसे कांग्रेस ने अन्ना हजारे के पाले में डालकर बाबा रामदेव का जोश भी ठंडा ही कर दिया है। यद्यपि बाबा रामदेव आसानी से हार नहीं मानने वाले हैं किन्तु कांग्रेस का पुरजोर प्रयास है कि वह बाबा रामदेव को किनारे ही कर दे।

बहरहाल भविष्य की चालों को ध्यान में रखकर राजनीति करने मंे पारंगत मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने पहले तो अन्ना हजारे के आंदोलन को मिले चंदे पर सवालिया निशान लगा दिया। गौरतलब होगा कि जब भी कोई सार्वजनिक हित के काम को आगे बढ़ाया जाता है तब लोग दिल खोलकर चंदा देते हैं। आयोजक उस चंदे का सदुपयोग करते हैं या फिर आंदोलन में अपने विलासित के सपनों को साकार करते हैं यह बात तो वे ही जानते होंगे किन्तु यह तय है कि जिस तरह का व्यय ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन‘ द्वारा दर्शाया गया है वह गैर जरूरी ही था। छः लाख रूपए रोजाना के हिसाब से अगर आंदोलन किया गया तो वह निहायत ही बेवकूफी भरा था।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब महात्मा गांधी या लोकनायक जयप्रकाश द्वारा आंदोलन किया गया तब वह सादगी से परिपूर्ण था, उसमें विलासिता की बू कहीं से भी नहीं आती थी। किन्तु वर्तमान मंे होने वाले आंदोलन में कुंठा अवश्य ही झलकने लगती है। भारतीय पुलिस सेवा की देश की पहली महिला अधिकारी किरण बेदी का कहना है कि इस व्यय में वह खर्च भी जु़ड़ा है जिसमें अन्ना और उनके समर्थकों ने देश का दौरा किया है।

सवाल यह उठता है कि अन्ना के समर्थक अगर हवाई जहाज या हेलीकाप्टर किराए पर लेकर दौरा करें तो उसका भोगमान देश की जनता क्यों भोगे। गांधीवादी अन्ना के समर्थकों को चाहिए था कि वे रेल के साधारण दर्जे में या सरकारी बस में यात्रा करते। अगर उनके लिए वातानुकूलित श्रेणी की बर्थ, हवाई टिकिट या वातानुकूलित मंहगी गाड़ी किराए पर ली गई है तो इससे देश की जनता को क्या लेना देना। और इस तरह की चीजों का उपयोग अगर वे कर रहे हैं तो उनमें और विलासिता प्रिय जनसेवकों में आखिर अंतर क्या बचा।

आज इंडिया अगेंस्ट करप्शन संस्था ने हिसाब दे दिया है, पर वह आधा अधूरा ही है। बेहतर होता कि संस्था आना पाई से हिसाब देती और भ्रष्टाचार या किसी भी प्रकार की लड़ाई जनहित देशहित में लड़ने वाले हर मंच के अंदर इतना माद्दा होना चाहिए कि वह जनता के पैसे का हिसाब देने में पूरी पारदर्शिता बरते। अगर देश की शैक्षणिक संस्था, बैंक, व्यापारी, सेवानिवृत कर्मचारी आदि उसे चंदा दे रहे हैं तो संस्था को चाहिए कि उनके या किसी के बिना मांगे हर रोज का खर्च उसी तरह सार्वजनिक करे जैसा कि वह अपने कदमों के बारे में जनता को मीडिया के माध्यम से विज्ञप्ति जारी कर करती है।

कौन सुनेगा मनमोहनी वाणी को अब!

ये है दिल्ली मेरी जान

(लिमटी खरे)


कौन सुनेगा मनमोहनी वाणी को अब!

देश के वजीरे आजम डाॅ.मनमोहन सिंह पर सादगी के साथ ही साथ भ्रष्टाचार छुपाने के आरोप भी लगने लगे हैं। प्रधानमंत्री पर सबसे बड़ा आरोप तो यह है कि उन्हें लोकसभा में ही मत देने का अधिकार नही है, इसका कारण यह है कि वे पिछले दरवाजे यानी राज्यसभा के रास्ते संसदीय सौंध तक पहुंचे हैं। पीएम डाॅ.सिंह असम से राज्य सभा सांसद हैं। हाल ही में असम में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। हद तो तब हो गई जब प्रधानमंत्री ने असम में जाकर अपने मताधिकार का ही प्रयोग नहीं किया। भाजपा के युवा आईकान नरेंद्र मोदी ने पीएम पर निशाना साधते हुए इस बात पर दुख व्यक्त किया है कि वजीरे आजम ने असम में विधानसभा चुनवों में अपने मताधिकार का प्रयोग न कर निराश किया है। मुद्दे की बात तो यह है कि देश के उच्च पदों पर बैठे लोगों द्वारा मताधिकार का प्रयोग करने की अपील आम जनता से की जाती है, पर जब प्रधानमंत्री खुद ही मताधिकार का प्रयोग न कर पाए हों तो क्या उन्हें मताधिकार करने की अपील करने का नैतिक अधिकार रह जाएगा?



क्यांे हैं कांग्रेस के अन्ना विरोधी सुर!

कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी जैसे नेता आखिर एसी बयानबाजी क्यों कर रहे हैं कि अन्ना हजारे के आंदोलन की हवा निकल सके। कारण साफ है कि पिछले एक साल में कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने एक के बाद एक विवादस्पद फैसले लिए और अपनी भद्द पिटवाई। कांग्रेस के मंत्री लोकपाल बिल के खिलाफ हैं। उधर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी भी मन ही मन इसका विरोध कर रहे हैं, पर वे जानते हैं कि अगर उन्होने इसका साथ नहीं दिया तो आने वाले समय में युवाओं का राहुल गांधी से मोहभंग हो जाएगा। सोनिया और राहुल दोनों ही भली भांति जानते हैं कि युवा ही कल राहुल को देश का वजीरेआजम बनवाएंगे। यही कारण है कि दिग्गी, मनीष सलमान जैसे नेता मिलकर अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने पर तुले हुए हैं।



शीला का हो रहा शनि भारी

लगभग डेढ़ दशक से अधिक तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने वाली श्रीमति शीला दीक्षित के परेशानी के दिन आरंभ होने के संकेत मिले हैं। कल तक शीला के जेब में रहने वाला दिल्ली का कांग्रेस संगठन अब सर उठाने लगा है। नगर निगम के बटवारे को आधार बनाकर संगठन ने शीला की मुखालफत आरंभ कर दी है। शनिवार को आधा दर्जन से अधिक विधायकों ने शीला के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी से भेंट कर अपनी बात रखी। शीला ने दिल्ली नगर निगम को पांच हिस्सों में बांटने के मामले में मनमानी के आरोप उन पर लगे हैं। शीला पर आरोप है कि उन्होंने इस मसले में न तो विधायकों को ही विश्वास में लिया और न ही पार्षदों से ही रायशुमारी की। संगठन की शह पर अगर पार्षद और विधायक एक जुट हो गए तो शीला की मुसीबतें बढ़ ही सकती हैं।



लो अब खिलाडि़यों को मिला मिलावटी खाना

कामन वेल्थ गेम्स के बाद अब 34वें राष्ट्रीय खेल विवादों में आ गए हैं। एक जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया है कि नेशनल गेम्स में खिलाडि़यों को परोसा गया खाना दूषित और मिलावटी था। धनबाद स्थित प्रयोगशाला में नमूनों की जांच में यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि खिलाडि़यों को खिलाया गया खाना मानकों के अनुरूप नही था। खेल के दौरान खेल परिसर में बनाई गई अस्थाई ओपीडी में खेलों के दौरान 11 हजार लोगों का इलाज किया गया था। महालेखाकार ने इस खेल में खाने के लिए टेंडर के माध्यम से पाबंद किए गए ठेकेदार गजल केटरर्स को निर्धारित से अधिक दर पर निविदा देने पर घोर आपत्ति जताई है। कामन वेल्थ गेम्स में एक के बाद एक अनियमितताओं के बाद भी आरोपियों पर कार्यवाही लंबिति होने से अब लोगों के हौसले गलत कामों के लिए बुलंद होना स्वाभाविक ही है।



पुत्रमोह भारी पड़ रहा है गहलोत को

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को केंद्र में वापस लाने की मुहिम उनके विरोधियों ने तेज कर दी है। अशोक गहलोत के स्थान पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर महिला आयोग की निर्वतमान अध्यक्ष गिरिजा व्यास और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी की नजरें गड़ी हुई हैं। सूबे में शासन की स्थिति को देखकर अब कांग्रेस के कार्यकर्ता ही कहने लगे हैं कि अगर अगला चुनाव गहलोत के नेतृत्व में लड़ा गया तो राज्य में भाजपा की वापसी सुनिश्चित ही है। हाल ही में गहलोत विरोधियों के हाथ एक एसा अस्त्र लगा है जो गहलोत की परेशानी का सबब बन सकता है। विपक्ष इसका उपयोग ब्रम्हास्त्र के बतौर कर सकता है। गहलोत के पुत्र जिस कंपनी के लीगल एडवाईजर हैं उस कंपनी को राज्य में दो बड़े ठेके देने का मामला तूल पकड़ने लगा है। अब देखना है कि गहलोत अपनी कुर्सी सलामत रखने के लिए क्या जतन करते हैं।



यह क्या कह गए राजा साहेब!

इक्कीसवीं सदी के कांग्रेस के चाणक्य की अघोषित उपाधि पाने वाले कांग्रेस के महासचिव दिग्जिवय सिंह ने देवभूमि वाराणसी में जाकर जो कहा है उससे देश की राजनैतिक राजधानी में सियासत गर्माने लगी है। दिग्गी राजा ने कांग्रेसियों को हिदायत दी है कि वे ‘होटल और बोतल‘ की संस्कृति से बाहर निकलें। कांग्रेस के आला नेता अब इस बात पर मंथन कर रहे हैं कि कार्यकर्ता या नेता किस होटल में जाकर बोतल का इस्तेमाल करते हैं। वैसे भी कांग्रेसी संगठन के अंदर तीन स्तर के पंचायती राज को परिभाषित कुछ इस तरह करते हैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यानी एआईसीसी (ये आई शीशी), प्रदेश कांग्रेस कमेटी यानी पीसीसी (पी शीशी) और जिला कांग्रेस कमेटी यानी डीसीसी (दी घुमा कर शीशी)।



तुम डाल डाल हम पात पात

नक्सलवादी, आतंकवादी, अलगाववादी, क्षेत्रवादी, उग्रवादी, माओवादी जैसे आताताई और सुरक्षा बलों के बीच चूहे बिल्ली का खेल पुराना हो चुका है। एक के बाद एक मोर्चे पर देश विरोधी इन ताकतों के आगे सुरक्षाबलों के परास्त होने की खबरें मिला करती हैं किन्तु देश के शूरवीर जवानों ने कभी हौसला नहीं खोया है। पिछले साल जून में बिहार में एसा कुछ हुआ जो केंद्र सरकार को हिला देने के लिए काफी है। दरअसल धनबाद जिले में रहमान गांव में सीआरपीएफ की एक कंपनी तैनात है। इस कंपनी को जिस तालाब से पीने का पानी सप्लाई होता है, उस तालाब में नक्सलियों द्वारा विस्फोटक मिलाकर पानी को जहरीला कर दिया गया था। सुबह व्यायाम के लिए उठे जवानों ने जब तालाब की मछलियों को सतह पर मरा पाया तो आला अधिकारियों ने इस सूचना पर उसका पानी प्रयोगशाला भेजा जहां इसके जहरीले होने की पुष्टि हुई। सवाल यह उठता है कि जब सीआरपीएफ कंपनी की नाक के नीचे ही नक्सली वारदात करने में सफल रहे तो फिर उनकी मुस्तैदी पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक ही है।



सौंवे साल में एक करोड़ रू.की रोजाना आय!

देश विदेश में अरबों खरबों लोगों की आस्था का केंद्र बन चुके शिरडी के साईं बाबा की महिमा अपरंपार ही है। रामनवमी का पर्व महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के शिरडी कस्बे के लिए महत्व का होता है। इस साल इसका महत्व और अधिक इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि इस साल यह पर्व सौवें साल में प्रवेश कर गया है। रामनवमी पर साई बाबा को जो चढ़ावा आया वह हैरत अंगेज ही रहा। तीन दिनों में साई बाबा संस्थान को तीन करोड़ रूपए की आय हुई इसमें एक करोड़ 77 लाख रूपए दान पात्र में मिले शेष लोगों द्वारा कार्यालय में जमा कराए गए थे। गौरतलब होगा कि देश भर में साई बाबा के भक्तों के लिए जगह जगह मंदिर अवश्य बना दिए गए हैं किन्तु इन मंदिरों का ट्रस्ट बनाकर उसे रजिस्टर्ड न कराने से इसमें होने वाली आय और व्यय को लोग संदेह की नजरों से ही देखते हैं। अनेक मंदिरों में परिवारों या लोगों का एकाधिकार भी बना हुआ है।



कहां जा रही हैं शीला के राज मंे युवतियां!

दिल्ली की गद्दी पर तीसरी बार काबिज होने वाली कांग्रेस की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के राज में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से युवतियों के गायब होने का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। पिछले मार्च माह में 18 से 30 साल की 153 युवतियां गायब हैं। दिल्ली पुलिस का अपना अलग राग है जिसमें प्रेम प्रसंग, घरेलू अनबन, कैरियर तलाशने बाहर जाने को प्राथमिकता दी जा रही है। वहीं दूसरी ओर दिल्ली महिला आयोग इस मामले में आपराधिक कारणों को प्रमुखता से रेखांकित कर रही है। दिल्ली की निजाम खुद एक महिला हैं, तो वे महिलाओं के गायब होने की बात को समझ सकती होंगी, किन्तु सत्ता के मद में चूर कांग्रेस की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित को इससे कोई सरोकार नहीं दिखाई दे रहा है। अभी हाल ही में एक युवती को मारकर पार्सल किए जाने की खबर से सनसनी फैल गई थी। कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की नाक के नीचे अगर बालाओं पर इस तरह का कहर ढाया जा रहा हो तो सुदूर ग्रामीण अंचलों के हाल सोचकर ही रूह कांप उठती है।



नशा शराब में होता तो नाचती बोतल

अमिताभ बच्चन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने सालों हो गए शराब को तजे हुए। फिर भी उन्होंने ‘शराबी‘ फिल्म में नशे का जीवंत अभिनय कर साबित कर दिया कि वे सदी के महानायक बनने लायक हैं। देश की राजधानी दिल्ली में पीकर टल्ली होने वालों की तादाद देखें तो आपके होश उड़ जाएंगे। कांग्रेस के शासन में दिल्ली में इस साल की पहली तिमाही में 2004 करोड़ रूपयों की शराब बिकी है, जो पिछले साल 1927 करोड़ रूपए थी। इस बार होली पर भी दिल्ली जमकर टल्ली हुई थी। आने वाले समय में हर घर में शराबी पैदा हो जाएं तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। अब आप ही बताईए कि आजादी के छः दशकों के बाद देश की युवा पीढ़ी को कांग्रेस आखिर किस अंधी राह पर ढकेलती जा रही है।



करोड़पति लोकसेवक!

सरकारी सेवा करने वालों को लोकसेवक कहा जाता था। लोकसेवक का अर्थ होता था जनता की सेवा करने वाला सरकारी नौकर। आज इसके मायने बदलते ही जा रहे हैं। राजस्थान में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों ने जब अपनी संपत्ति उजागर की तो देश दांतों तले उंगली दबा बैठा। राजस्थान में अब तक 19 आईएएस द्वारा संपत्ति घोषित की है इन 19 में से एक साहेब वाडमेर में पदस्थ गौरव गोयल करोड़पति तो 13 लखपति हैं। जिनमें से अधिकांश की संपत्ति पचास लाख रूपए से ज्यादा है। अब आप ही बताईए कि जो खुद को आर्थिक तौर पर संपन्न बनाने में लगे हों वहां गरीब गुरबों पर नजला गिरना स्वाभाविक ही है। देश में अखिल भारतीय सेवा वाले अधिकारी अगर अपनी संपत्ति जाहिर कर दें तो पता चलेगा कि सरकार द्वारा गरीब गुरबों के हितों को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली योजनाओं का धन आखिर गया कहां है।



सूखी धरती किन्तु बाढ़ में डूब गए लाखों झाड़!

2008 से अब तक दिल्ली में 1,60,842 वृक्ष तबाह हो चुके हैं, जी हां, दिल्ली सरकार का कहना है यह। दिल्ली में पर्यावरण की फिजां शायद इतनी अधिक तादाद में झाड़ों के कालकलवित होने से ही बिगड़ी है। सवाल यह है कि पर्यावरण की फिजां को बिगड़ने के मार्ग किसने प्रशस्त किए। इसकी तह में जाया जाए तो आपका मुंह भी विस्मय से खुला ही रह जाएगा। मौसम विभाग ने आशंका व्यक्त की थी कि 2009 में बारिश कम होगी। वस्तुतः इस साल दिल्ली में सूखा भी पड़ा था। इस बात से दिल्ली सरकार को अधिक लेना देना नहीं है। दिल्ली सरकार का कहना है कि इस सूखे में ही एक लाख से अधिक झाड़ बाढ़ में बह गए हैं। सवाल यह उठता है कि जब सूखा पड़ा तब बाढ़ कहां से आ गई। आग और पानी दोनों को एक साथ तो नही रखा जा सकता है। यह चमत्कार दिल्ली सरकार ही कर सकती है, सो उन्होने कर दिया।



होगी तुम महारानी हमें तो आईडी दिखाओ

रूपहले पर्दे के अदाकार अपने आप को भगवान से कम नहीं समझते हैं। पिछले दिनों किंग खान यानी शाहरूख को दुनिया के चैधरी अमेरिका में एयर पोर्ट पर रोक लिया गया। उनका गुस्सा सातवें आसमान पर था, हम हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी इंडस्ट्री के अघोषित बादशाह और तुम हमें रोको। कमोबेश यही हादसा चंड़ीगढ़ एयरपोर्ट पर हो गया। किंग्स इलेवन की मालकन और अभिनेत्री प्रीति जिंटा से सुरक्षा कर्मी ने पहचान पत्र मांगने की हिमाकत कर डाली। प्रीति भड़क गईं और मामला तूल पकड़ गया। एयरपोर्ट अर्थारिटी के अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए। बताते हैं कि प्रीति के जलवे को देखकर उनका पहचान पत्र देखे बिना ही उन्हें प्रवेश दिया गया। होना यह था कि अपने कर्तव्य पर मुस्तैदी से डटे रहने वाले जवान की पीठ थपथपनी चाहिए थी, किन्तु एसा कुछ हुआ नहीं इन परिस्थितियों में जवानों का हौसला पस्त होना स्वाभाविक ही है।



पुच्छल तारा

भारत गणराज्य में घपले घोटाले भ्रष्टाचार की गूंज जमकर हो रही है। टूजी ममाले में शरद पवार का नाम आने से और गड़बड़ हो गई। कानपुर से मोनू कुमार अर्गल ने ईमेल भेजा है। मोनू लिखते हैं कि दो उमरदराज नेता आपस में बात कर रहे थे। पहला बोला यार हद ही हो गई। दूसरे ने पूछा क्या हद हुई भाई मेरे। पहला बोला लो शरद पवार का नाम संचार मंत्रालय के टूजी घोटाले में आ गया। दूसरे ने कहा तो इसमें क्या अलग है। सभी घोटाले में लिप्त हैं। पहला बोला यार हद यह हुई कि हमारे जमाने में मंत्री खुद के मंत्रालयों में घोटाला करने तक ही सीमित हुआ करते थे। यह तो सरासर अतिक्रमण है।