अधनंगों की खरबपति राजमाता!
(लिमटी खरे)
एक समय था जब अविभाजित भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। देश की अकूत धन संपदा को पहले मुगल आक्रमणकारियों ने फिर ब्रितानी गोरों ने तबियत से लूटा। कहते हैं भारत देश वह कपड़ा था जिसे जब भी हाथ लगाया जाता पानी उसमें से निकल पड़ता। मुगलों और गोरों के द्वारा इस कपड़े का सारा पानी अर्थात धन निचोड़कर इस कपड़े को तार तार कर दिया गया। जब भारत देश अति गरीब होने की कगार पर आया तब देश को बमुश्किल गोरों ने छोड़ा। 1947 में आजादी और उसके उपरांत भारत गणराज्य की स्थापना के बाद आधी सदी से ज्यादा इस देश पर कांग्रेस ने शासन किया। आज भी देश के अस्सी फीसदी लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है। इन परिस्थितियों में कांग्रेस की सर्वशक्तिमान राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी की संपत्ति खरबों रूपयों की होना अपने आप में एक आश्चर्य ही है। अधनंगों की खरबपति राजमाता और अरबपति युवराज को देश की हालत पर शर्म नहीं आती है, यही कारण है कि कलमाड़ी, राजा जैसे देशी लुटेरे आज भी देश को लूटने पर आमदा है।
लगता है भारत देश में प्रजातंत्र की हत्या हो चुकी है और सदियों पुराना सामंती राज कायम हो चुका है। उस वक्त भी राजे महाराजों के पास अकूत धन संपदा होती थी और रियाया फटेहाल। अंतर महज इतना था कि उस समय राजपरिवार के सदस्यों द्वारा रियाया का पूरा पूरा ध्यान रखा जाता था। राजनीति तब भी थी किन्तु नैतिकता की नींव पर खड़ी थी राजनीति।
आजादी के उपरांत भारत देश की जनता ने आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली कांग्रेस पर पूरा भरोसा जताया और अपने सुनहरे भाग्य के निर्माण का जिम्मा कांग्रेस को सौंप दिया। कांग्रेस के नैतिकतावान नेताओं ने देश को गढ़ना आरंभ किया। देश की सबसे बड़ी पंचायत के पंच यानी सांसद और सूबों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा बहुत ही कम पारिश्रमिक पर देश सेवा आरंभ कर दी।
जैसे जैसे समय बीतता गया, बेईमानी नैतिकता पर हावी होने लगी। देश और राज्यों की सेवा करने वाले जनसेवकों ने अपने वेतन भत्ते और सुविधाएं खुद तय करना आरंभ कर दिया। आज जनता फटेहाल की फटेहाल ही है पर नेता हैं तो मालामाल से मालामाल होते चले जा रहे हैं। नीरा राडिया कांड में नेताओं की असलियत सामने आई। कोई सीधे कमीशन तो कोई पंद्रह फीसदी लेकर देश सेवा को राजी होने की बातें सुनाई पड़ीं। मोटी चमड़ी वाले नेताओं को शर्म नहीं आई।
सांसदों के वेतन भत्तों को बढ़ाने के मामले में इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव चीख चीख कर संसद में कहते सुने गए कि सांसद का वेतन झूनियर क्लर्क से भी कम है। एक जूनियर क्लर्क और सांसद में क्या समानता? सांसद विधायकों को आना जाना निशुल्क, बिजली पानी रहना निशुल्क, फिर मोटा वेतन! आखिर किस दिशा में ले जा रहेे हैं राजनेता इस देश को।
इक्कीसवीं सदी के ही स्वयंभू योग गुरू राम किशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने जब स्विस बैंकों में देश के काले धन को उजागर करने का अभियान छेड़ा तो राज माता ने अपने चार वरिष्ठ मंत्री बाबा को शीशे में उतारने भेजे। योग गुरू से हठ योगी बने बाबा रामदेव नहीं माने तो पूरे खेल की परिणति ‘रामलीला मैदान - रात्रि काण्ड’ के रूप में सामने आई। कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के कारिंदे तो स्वामी रामदेव को ‘ठग’ पुकारने लगे।
दुनिया के चौधरी अमेरिका की एक वेब साईट ‘बिजनिस इन्साईटर‘ ने विश्व के 23 धनकुबेरों की सूची प्रसारित की तो हंगामा मच गया। इस सूची में चौथे स्थान पर कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी तो सातवें स्थान पर कांग्रेस के कुरूक्षेत्र से सांसद नवीन जिंदल की माता और हिसार से कांग्रेस विधायक सावित्री जिंदल का नाम सातवीं पायदान पर है।
इस वेब साईट में इटली मूल की श्रीमति सोनिया माईनो उर्फ सोनिया गांधी के नाम पर दो से 19 अरब डालर अर्थात 10 से 45 हजार करोड़ रूपए की संपत्ति होने का दावा किया गया है। उधर, कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कुनबे में शामिल सावित्री जिंदल के पास 13.2 अरब डालर की संपत्ति होने का दावा किया गया है। इस खबर का स्त्रोत वर्ल्ड लग्ज़री गाईड को माना गया।
आश्चर्यजनक कड़वा सत्य तो योजना आयोग द्वारा गरीबों के प्रतिशत और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर एक राज्यवार सूची जारी होना है। अगर इसके राष्ट्रीय औसत को लिया जाए तो ग्रामीण इलाकों में 672.8 रुपए मासिक और शहरी इलाकों में 859.6 रुपये मासिक से कम आय वाला व्यक्ति गरीब है। ये प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े हैं। एक परिवार में औसतन पांच व्यक्ति माने गए हैं।
इस आधार शहरों में 28.65 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजाना 22.42 रुपए से अधिक खर्च करने वाला गरीब नहीं है। गौरतलब है कि योजना आयोग ने इससे पहले सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में कहा था, ‘‘जून 2011 के मूल्य स्तर के लिहाज से शहरी क्षेत्रों में गरीबी रेखा को अनंतिम तौर पर 32 रुपए प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपए प्रतिदिन रखा जा सकता है।‘‘
योजना आयोग ने सोमवार को दावा किया कि पिछले पांच साल में देश की कुल आबादी में से 7.3 फीसदी गरीबों की गरीबी दूर हो गई है। 2004-05 में जहां देश में 40.72 करोड़ गरीब थे, वहीं 2009-10 में गरीबों की संख्या घटकर 34.47 करोड़ रह गई। यानी देश में कोई 6 करोड़ 30 लाख गरीबों की गरीबी दूर हो गई है।
2009-10 के लिए गरीबी आकलन से संबंधित योजना आयोग के आंकड़े कहते हैं कि गांवों में गरीबी, शहरों में गरीबी के मुकाबले ज्यादा तेजी से घटी है। ग्रामीण इलाकों में गरीबी 41.8 प्रतिशत से घटकर 33.85 प्रतिशत (८ प्रतिशत की कमी) रह गई है, जबकि शहरी इलाकों में गरीबों की संख्या 25.7 प्रतिशत से कम होकर 20.9 प्रतिशत (4.8 प्रतिशत की कमी) रह गई है। कुल मिलाकर देश में 2004-05 में आबादी का 37.2 प्रतिशत गरीब थे। 2009-10 में इनकी संख्या 29.8 फीसदी ही रह गई।
गरीबी प्रतिशत के मामले में बिहार (53.3 प्रतिशत) सबसे आगे। उसके बाद छत्तीसगढ़ (48.7 प्रतिशत), मणिपुर (47.1 प्रतिशत), झारखंड (39.1 प्रतिशत), असम (37.9 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (37.7 प्रतिशत)। इन आंकड़ों से साफ है कि खेतिहर श्रमिक सबसे ज्यादा ज्यादा गरीब। 50 प्रतिशत खेतिहर श्रमिक और 40 प्रतिशत अन्य श्रमिक गरीब शहरी इलाकों में सबसे अधिक 47.1 प्रतिशत अस्थायी श्रमिक गरीब। कृषि प्रधान संपन्न हरियाणा में 55.9 खेतिहर श्रमिक गरीब जबकि पंजाब में 35.6 प्रतिशत खेतिहर किसान गरीब।
उधर सरकारी सूत्रों के अनुसार आंकड़ों को इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है कि सभी को यह प्रतीत हो कि देश में ग़रीबी में ७ दशमलव ३ प्रतिशत की कमी आई है। यह वर्ष २००४-०५ में ३७ दशमलव २ प्रतिशत से घटकर वर्ष २००९-१० में २९ दशमलव ८ प्रतिशत हो गई। योजना आयोग द्वारा कल जारी अनुमानों के अनुसार, वर्ष २००४-०५ और २००९-१० के दौरान शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में ग़रीबी तेजी से कम हुई। देश में वर्ष २००९-१० में ग़रीबों की कुल संख्या ३४ करोड़ ४७ लाख होने का अनुमान है, जबकि वर्ष २००४-०५ में यह संख्या ४० करोड़ ७२ लाख थी।
गरीबी में दस प्रतिशत से भी अधिक की कमी हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओड़ीशा, सिक्किम, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तराखंड में दर्ज की गई है। हालांकि पूर्वाेत्तर राज्यों-असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और नगालैंड में ग़रीबी बढ़ी है। बिहार, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ बड़े राज्यों में, विशेषरूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, ग़रीबी के अनुपात में केवल मामूली गिरावट आई है।
अब इन परिस्थितियों में अगर सोनिया गांधी सुरक्षा कारणों से अपनी संपत्ति उजागर न करने को ढाल बना रही हैं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य भारत गणराज्य के लिए और कुछ नहीं हो सकता है। अगर उक्त वेब साईट के आंकड़े वाकई सही हैं तो फिर सोनिया गांधी के सामने सुरेश कलमाड़ी, कनिमोझी, अदिमत्थू राजा आदि तो बच्चे ही हैं।
(साई फीचर्स)