शनिवार, 3 सितंबर 2011

सूबे का सूचना केंद्र या पीआईबी का कार्यालय


सूबे का सूचना केंद्र या पीआईबी का कार्यालय

सुषमा स्वराज की पीआर में जुटा एमपी जनसंपर्क का दिल्ली कार्यालय

सरकारी विज्ञप्तियों के बजाए सांसदों की विज्ञप्तियों में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहा है सूचना केंद्र

सेवानिवृत्ति के पहले मलाईदार पद सुनिश्चित करना चाह रहे मुलाजिम!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की राजनैतिक राजधानी के पाश इलाके कनाट प्लेस की बाबा खड़क सिंह मार्ग पर एम्पोरिया हाउस में स्थित मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग का सूचना केंद्र पिछले कुछ दिनों से चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है। मध्य प्रदेश सरकार की इमेज बिल्डिंग, सरकारी नीतियों रीतियों एवं सरकार की कार्यप्रणाली को मीडिया तक पहुंचाने के लिए पाबंद यह कार्यालय पिछले एक साल से अपने मुख्य काम से हटकर सांसद विधायकों की सेवा टहल में लगा हुआ है जो कि शोध का विषय बना हुआ है।

शुक्रवार 2 सितम्बर को मध्य प्रदेश की विदिशा की सांसद एवं लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमति सुषमा स्वराज के नेतृत्व में भाजपाई सांसदों ने भ्रष्टाचार समाप्त करने और विशेष न्यायालय विधेयक तथा आतंकवादी अधिनियम को स्वीकृति देने की मांग करते हुए महामहिम राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा।

एमपी सूचना केंद्र द्वारा भेजे गए आधिकारिक समाचार में कहा गया है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं मध्यप्रदेश की सांसद श्रीमती सुषमा स्वराज के नेतृत्व में मध्य प्रदेश के सांसदों ने राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से भेंट की और उनसे मध्यप्रदेश के सात लंबित विधेयकों को स्वीकृति देने का आग्रह किया। मध्यप्रदेश के सांसदों ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन दिया जिसमें मध्यप्रदेश के सात लंबित विधेयकों की सूची दी गयी।

समाचार में आगे कहा गया है कि राष्ट्रपति महोदया से आग्रह किया गया कि वे मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक 2011 को शीघ्र स्वीकृति प्रदान करें जिसमें प्रदेश में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए शासकीय सेवकों के खिलाफ कारगर ढंग से कार्रवाई की जा सकेगी। इस विधेयक के अंतर्गत भ्रष्ट शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा इकट्ठा की गयी सम्पत्ति को सरकार राजसात कर सकेगी और उस सम्पत्ति को सार्वजनिक सेवाओं में उपयोग कर सकेगी। इससे पारदर्शी प्रशासन की स्थापना में मदद मिलेगी। इसी प्रकार आतंकवाद और संगठित अपराध से निपटने और उसके प्रभावी नियंत्रण के लिए मध्यप्रदेश आतंकवादी एवं उच्छेदक गतिविधियां तथा संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक 2010 भी लंबित है। यह विधेयक स्वीकृत हो जाने से प्रदेश में आतंकवाद और संगठित अपराधों पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकेगा। मध्यप्रदेश गौवंश वध प्रतिषेध संशोधन विधेयक 2010 भी लंबित है। इस विधेयक के लागू हो जाने पर गौवध पर पूरी तरह से बंदिश लगायी जा सकेगी। मध्यप्रदेश के छतरपुर में महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की स्थापना के संबंध में मध्यप्रदेश विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2011 भी लंबित है। इन विधेयकों के अलावा तीन और अन्य विधेयक स्वीकृति के लिए लंबित हैं जिन्हें शीघ्र स्वीकृति प्रदान की जाए। 

मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के दिल्ली स्थित एमपी सूचना केंद्र की खबर में आगे कहा गया है कि श्रीमती स्वराज ने राष्ट्रपति महोदया का ध्यान आकर्षित किया कि भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय विधेयक 2011, बिहार द्वारा बनाये गये विशेष न्यायालय अधिनियम 2009 के अनुरूप है जिसे राष्ट्रपति महोदया द्वारा अनुमति दी जा चुकी है। इसलिए मध्यप्रदेश के इस विधेयक को भी अनुमति दी जाय। 

राष्ट्रपति महोदया से भंेंट करने वाले भारतीय जनता पार्टी के सांसदों में   श्री प्रभात झा, श्री कैलाश जोशी, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, श्रीमती यशोधरा राजे सिंधिया, श्री विक्रम वर्मा, श्री कप्तान सिंह सोलंकी, श्री गणेश सिंह, श्री रघुनंदन शर्मा, श्री मेघराज जैन, श्रीमती माया सिंह, श्री चंदन मित्रा, श्री नारायण सिंह केसरी, सुश्री अनुसुइया उइके, श्री अनिल माधव दवे, श्री वीरेन्द्र कुमार, श्री अशोक अर्गल, श्री राकेश सिंह, श्री गोविंद मिश्रा, श्री भूपेन्द्र सिंह, श्रीमती ज्योति धुर्वे, श्री के.डी. देशमुख, श्री माखन सिंह और श्री शिवराज भैया शामिल थे।

यहां उल्लेखनीय होगा कि मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग का काम मध्य प्रदेश सरकार से संबंधित खबरों का प्रचार प्रसार करना है ना कि किसी पार्टी विशेष की राजनैतिक गतिविधियों का प्रचार प्रसार करना। अगर मामला सांसदों से संबंधित है तो इसके लिए केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय का पत्र सूचना कार्यालय जवाबदेह माना जा सकता है। इस तरह के मामलों में भाजपा शासित मध्य प्रदेश सरकार के इस कार्यालय द्वारा भाजपा के सांसदों की राजनैतिक गतिविधियों को जारी करने का ओचित्य समझ से परे ही है।


गौरतलब है कि इसके पहले भी जनसंपर्क विभाग के दिल्ली कार्यालय द्वारा पूर्व में भारतीय जनता पार्टी के अनुषांगिक संगठनों की विज्ञप्तियों का वितरण एवं समाचार छापने के लिए मीडिया पर दवाब बनाए जाने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ दिनों पूर्व तो विभाग ने हद ही कर दी जब किसी निजी कलाकार जो कि जनसंपर्क विभाग के आला अधिकारी के परिजन थे, की कला प्रदर्शनी का समाचार भी इस कार्यालय द्वारा आधिकारिक तौर पर जारी कर दिया गया था।

इस कार्यालय पर आरोप लगते रहे हैं कि यहां से भाजपा के पार्टी स्तर के कार्यक्रमों की पे्रस विज्ञप्ति को प्रसारिक किया जाता है। बताया जाता है कि मीडिया के लिए निर्धारित वाहनों को मीडिया को उपलब्ध न कराकर यहां पदस्थ अधिकारियों द्वारा इन्हें एम पी से आने वाले सांसद विधायकों की सेवा टहल के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

पिछले दिनों सूचना केंद्र द्वारा जारी सरकारी विज्ञप्तियों को देखकर मध्य प्रदेश को कव्हर करने वाले पत्रकार असमंजस में पड़ गए कि यह सरकारी कार्यक्रम था या पार्टी स्तर का प्रोग्राम। हाल ही में जनसंपर्क मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने पहुंचे। ‘शिक्षा का ध्येय समग्र विकास‘ शीर्षक से आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में जनसंपर्क मंत्री शर्मा के द्वारा दिए गए उद्बोधन को मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के सूचना केंद्र ने बाकायदा प्रेस नोट बनाकर जारी किया। इसकी तस्वीरें भी विभाग द्वारा जारी की गईं।

उस दरम्यान गुजरात सूचना केंद्र के एक अधिकारी ने इस बारे में आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह पार्टी का कार्यक्रम था इसकी विज्ञप्ति सरकारी तौर पर जानी नहीं की जानी चाहिए थी। इतना ही नहीं, इसके उपरांत दिल्ली में मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के एक आला अधिकारी के रिश्तेदार की कला की प्रर्दशनी का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी की खबर को भी मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा सरकारी स्तर पर जारी कर दिया गया।

मजे की बात तो यह है कि जनसंपर्क विभाग के दिल्ली कार्यालय द्वारा इन दोनों ही गैर सरकारी कार्यक्रमांे की विज्ञप्तियों को मध्य प्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग ने न तो सरकारी तौर पर ही बांटा और न ही सरकारी वेब साईट में भी इन्हें अपलोड किया। दोनों ही प्रोग्राम की पब्लिसिटी से जनसंपर्क संचालनालय ने पर्याप्त दूरी बनाकर रखी गई जिससे साबित हो जाता है कि दिल्ली स्थित मध्य प्रदेश सूचना केंद्र द्वारा इस तरह के निजी कार्यक्रमों विशेषकर पार्टी बेस्ट प्रोग्राम्स की पब्लिसिटी में ज्यादा दिलचस्पी ली जा रही है।

मध्य प्रदेश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से वसूले गए करों से वेतन पा रहे मध्य प्रदेश सूचना केंद्र के सरकारी अफसरान द्वारा सरकार के कार्यक्रमों को छोड़ भारतीय जनता पार्टी और जनसंपर्क विभाग के अधिकारियों के रिश्तेदारों की चैखटों पर माथा रगड़कर उनकी पब्लिसिटी करवाने की बात दिल्ली में मीडिया के गलियारों में तरह तरह की शक्ल अख्तियार कर चुकी है।

यूपी के चक्कर में एमपी में गर्त में गई कांग्रेस


यूपी के चक्कर में एमपी में गर्त में गई कांग्रेस

कांग्रेस के आला नेताओं का ध्यान एमपी से हटा

राजा के वनवास का समय समाप्ति की ओर

एमपी कांग्रेस को दरकार है किसी करिश्माई नेतृत्व की

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश सूबे पर समूचा ध्यान केंद्रित करने के चक्कर में कांग्रेस ने अपने दबदबे वाले मध्य प्रदेश सूबे की उपेक्षा कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप आज मध्य प्रदेश में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। एमपी में अपनी उपेक्षा का दंश झेल रहे कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप सत्ताधारी भाजपा की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 2003 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस की कमान संभालने किसी भी नेता ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने दस साल का राजनैतिक वनवास लिया था। 2004 के लोकसभा चुनावों के उपरांत मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में कुंवर अर्जुन सिंह, कमल नाथ, कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव को केंद्र में मंत्री बनाया था।

विडम्बना ही कही जाएगी कि कांग्रेस के इन आलंबरदारों ने भी कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की। यही कारण है कि कांग्रेस ने 2008 में भी कोई ठीक ठाक प्रदर्शन नहीं किया। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश विधानसभा में वरिष्ठ नेताओं ने भी अपने अपने क्षेत्रों के कांग्रेसी कार्यकताओं का साथ छोड़ दिया। समूचे परिदृश्य को देखकर यही कहा जा सकता है कि अपनी रोजी रोटी बचाने के चक्कर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के नेताओं का दामन थाम लिया।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि केंद्र में बैठे इन मंत्रियों ने अपने समर्थकों को भी अपने अपने मंत्रालयों के माध्यम से उपकृत करना मुनासिब नहीं समझा। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्रियों ने प्रदेश से पर्याप्त दूरी बनाकर रखी गई जिससे कार्यकर्ताओं में निराशा का वातावरण बन गया।

गौरतलब होगा कि 1956 में अस्तित्व में आए मध्य प्रदेश में 55 में से 40 से अधिक सालों तक कांग्रेस का गढ़ रहा है मध्य प्रदेश। बावजूद इसके 2003 के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जड़ें इस कदर उखड़ीं कि अब कांग्रेस का प्रदेश में नामलेवा भी नहीं बचा है। कांग्रेसियों के बीच चल रही बयार के अनुसार अगर 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस केंद्र में सत्ता में नहीं आई तो निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस का हाल बिहार और उत्तर प्रदेश से भी बुरा हो सकता है।

उल्लेखनीय होगा कि कांग्रेस के आला नेताओं श्रीमति सोनिया गांधी, राहुल गांधी और राजा दिग्विजय सिंह ने अपना समूचा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केंद्रित कर रखा है। मिशन यूपी को प्राथमिकता देने के चक्कर में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश से अपनी निगाहें हटा लीं और सूबे में कांग्रेस चारों खाने चित्त पड़ी कराह रही है। सुभाष यादव, सुरेश पचैरी के उपरांत अब कांतिलाल भूरिया शायद ही कांग्रेस को जिला सकें।

2003 में दस साल का राजनैतिक वनवास लेने वाले कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह का कौल 2013 में समाप्त होने वाला है। राजा दिग्विजय सिंह ने कसम ली थी कि अगर वे 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वापस सत्ता में न ला पाए तो वे दस साल तक कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। अब उनकी कसम के दस साल पूरे होने वाले हैं इस लिहाज से अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में पुर्नवापसी उन्हीं की नैतिक जवाबदेही माना जा सकता है।