शनिवार, 3 सितंबर 2011

यूपी के चक्कर में एमपी में गर्त में गई कांग्रेस


यूपी के चक्कर में एमपी में गर्त में गई कांग्रेस

कांग्रेस के आला नेताओं का ध्यान एमपी से हटा

राजा के वनवास का समय समाप्ति की ओर

एमपी कांग्रेस को दरकार है किसी करिश्माई नेतृत्व की

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश सूबे पर समूचा ध्यान केंद्रित करने के चक्कर में कांग्रेस ने अपने दबदबे वाले मध्य प्रदेश सूबे की उपेक्षा कर दी, जिसके परिणाम स्वरूप आज मध्य प्रदेश में कांग्रेस का नामलेवा भी नहीं बचा है। एमपी में अपनी उपेक्षा का दंश झेल रहे कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रप सत्ताधारी भाजपा की ओर आकर्षित हुए बिना नहीं हैं।

गौरतलब है कि वर्ष 2003 में सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस की कमान संभालने किसी भी नेता ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने दस साल का राजनैतिक वनवास लिया था। 2004 के लोकसभा चुनावों के उपरांत मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में कुंवर अर्जुन सिंह, कमल नाथ, कांति लाल भूरिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अरूण यादव को केंद्र में मंत्री बनाया था।

विडम्बना ही कही जाएगी कि कांग्रेस के इन आलंबरदारों ने भी कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की। यही कारण है कि कांग्रेस ने 2008 में भी कोई ठीक ठाक प्रदर्शन नहीं किया। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश विधानसभा में वरिष्ठ नेताओं ने भी अपने अपने क्षेत्रों के कांग्रेसी कार्यकताओं का साथ छोड़ दिया। समूचे परिदृश्य को देखकर यही कहा जा सकता है कि अपनी रोजी रोटी बचाने के चक्कर में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के नेताओं का दामन थाम लिया।

कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि केंद्र में बैठे इन मंत्रियों ने अपने समर्थकों को भी अपने अपने मंत्रालयों के माध्यम से उपकृत करना मुनासिब नहीं समझा। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्रियों ने प्रदेश से पर्याप्त दूरी बनाकर रखी गई जिससे कार्यकर्ताओं में निराशा का वातावरण बन गया।

गौरतलब होगा कि 1956 में अस्तित्व में आए मध्य प्रदेश में 55 में से 40 से अधिक सालों तक कांग्रेस का गढ़ रहा है मध्य प्रदेश। बावजूद इसके 2003 के बाद मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जड़ें इस कदर उखड़ीं कि अब कांग्रेस का प्रदेश में नामलेवा भी नहीं बचा है। कांग्रेसियों के बीच चल रही बयार के अनुसार अगर 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस केंद्र में सत्ता में नहीं आई तो निश्चित तौर पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस का हाल बिहार और उत्तर प्रदेश से भी बुरा हो सकता है।

उल्लेखनीय होगा कि कांग्रेस के आला नेताओं श्रीमति सोनिया गांधी, राहुल गांधी और राजा दिग्विजय सिंह ने अपना समूचा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केंद्रित कर रखा है। मिशन यूपी को प्राथमिकता देने के चक्कर में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश से अपनी निगाहें हटा लीं और सूबे में कांग्रेस चारों खाने चित्त पड़ी कराह रही है। सुभाष यादव, सुरेश पचैरी के उपरांत अब कांतिलाल भूरिया शायद ही कांग्रेस को जिला सकें।

2003 में दस साल का राजनैतिक वनवास लेने वाले कांग्रेस के ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह का कौल 2013 में समाप्त होने वाला है। राजा दिग्विजय सिंह ने कसम ली थी कि अगर वे 2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को वापस सत्ता में न ला पाए तो वे दस साल तक कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। अब उनकी कसम के दस साल पूरे होने वाले हैं इस लिहाज से अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में पुर्नवापसी उन्हीं की नैतिक जवाबदेही माना जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं: