किस बात से
उद्वेलित हैं राजमाता!
(लिमटी खरे)
चाहे सभा मंच हो या
फिर पार्टी की बैठक,
पता नहीं क्यों राजनेता कई बार अपना आपा खो ही देते हैं।
दूसरों को संयमित रहने की खीख देने वाले नेता आखिर इस तरह संयम का परित्याग कैसे
कर देते हैं। नेता भूल जाते हैं कि वे लाखों करोड़ों अनुयाईयों के पायोनियर यानी
अगुआ हैं। उन्हें इस बात को ध्यान में रखकर ही कुछ बोलना चाहिए। हाल ही में लोकसभा
में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने जहां एक ओर ‘मोटा माल‘ खाने की बात कही तो
सोनिया गांधी ने पलटवार करते हुए भाजपा पर ब्लेकमेल करने का ही आरोप लगा दिया।
दोनों ही ने स्तरहीन बयानबाजी की है। सोनिया गांधी ने ब्लेकमेल करने की बात तो कह
दी पर भाजपा द्वारा कांग्रेस की कौन सी दुखती रग छेड दी है जो कांग्रेस अध्यक्ष ने
भाजपा पर ब्लेकमेल करने का आरोप लगा दिया है। कांग्रेस का जरखरीद मीडिया भी सोनिया
के वक्तव्य को बड़ी ही शिद्दत से दिखाकर स्वामीभक्ति की अनुपम उदहारण ही पेश कर रहा
है।
केद्र सरकार की एक
विश्वस्त संस्था के रूप में जानी जाती है कंट्रोलर एण्ड ऑडीटर जनरल ऑफ इंडिया यानी
कैग। जब थामस की इसके मुखिया के बतौर नियुक्ति हुई तब संसद में हो हल्ला मचा। बाद
में सब कुछ सामान्य हो गया। केंद्र सरकार का आडिट करने का जिम्मा है कैग के पास।
अब केंद्र सरकार अपने ही एक संस्थान के बारे में प्रश्न चिन्ह लगा रही है। कैग की
नियुक्ति खुद प्रधानमंत्री ने की है। इसका तातपर्य है कि पीएम को खुद पर ही यकीन
नहीं रहा!
कैग भी सरकार के
रवैए से खफा ही दिख रहा है। कैग संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) में अपने
प्रजेंटेशन के दौरान सभी 142 कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द करने की जोरदार पैरवी कर सकता
है। सरकारी खजाने को हुए नुकसान के आकलन को लेकर कैग पर सरकार और कांग्रेस लगातार
हमला कर रही है। सूत्रों ने बताया कि सरकारी ऑडिटर पीएसी में साबित कर देगा कि
कोयला ब्लॉक आवंटित किए जाने में स्क्रीनिंग कमिटी ने पारदर्शिता नहीं बरती।
कोयले की कमी से
पिछले दिनों उत्तर भारत में ग्रिड फेल होने से उपजी स्थिति से देशवासी दो चार हो
चुके हैं। देखा जाए तो सरकार के पास कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद्द करने का मजबूत
आधार है। आवंटन में गड़बड़ी की शिकायतों के अलावा सरकार इतने लंबे समय के बाद
माइनिंग नहीं होने के आधार पर भी आवंटन रद्द कर सकती है। सरकार खुद मान चुकी है कि
5 साल बाद
भी 57 में से
सिर्फ एक खदान में माइनिंग शुरू हो पाई है। कोयला मंत्रालय के नियम के मुताबिक, ब्लॉक मिलने के 36 से 48 महीने के भीतर
कोयले की खुदाई शुरू हो जानी चाहिए। खुले खदानों के मामले में 36 महीने और
अंडरग्राउंड खदानों में 48 महीने की समयसीमा है।
इस मामले में चारों
तरफ से घिरी कांग्रेस ने अब भाजपा के मुख्यमंत्रियों पर निशाना साधना आरंभ किया
है। कितने आश्चर्य की बात है कि अपनी गल्ति पर पर्दा डालकर बेशर्मी के साथ सरकार
कह रही है कि चोरी करने की नीयत तो भाजपा की थी। अगर भाजपा ने किसी की अनुशंसा की
या कार्य में विध्न डाला तो सरकार के पास तो सारे अस्त्र थे, किन मजबूरियों के
चलते सरकार खामोश बैठी रही?
सोनिया गांधी ने
भाजपा पर ब्लेकमेलिंग करने का आरोप लगाया है। सोनिया गांधी जिम्मेदार महिला हैं, वे देश की सबसे
पुरानी सियासी पार्टी की अध्यक्ष की आसनी पर हैं, इस लिहाज से उनका
कथन जिम्मेदारी भरा माना जाएगा। क्या सोनिया गांधी यह बताने का जतन करेंगीं कि
आखिर एसी कौन सी बात है जो वे देशवासियों को नहीं बता सकती हैं और भाजपा उन्हें या
सरकार को ब्लेकमेल करने पर आमदा है।
अमूमन मंच से बोलते
समय तालियों की गड़गड़हाट सुनने को बेचेन राजनेता अक्सर अपना संयम तोड़ देते हैं। कभी
कभी तो सुर्खियों में बने रहने भी नेताओं द्वारा आम जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़
किया जाता है। मामला चाहे सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी या उत्तर भारतीयों को लेकर
मनसे प्रमुख राज ठाकरे का हो या फिर शिवसेना प्रमुख बाला साहब ठाकरे का। दोनों ही
नेताओं ने जात पात और क्षेत्रवाद की बात कहकर लोगों के मन मस्तिष्क में जहर बो
दिया है।
इस मामले में
दिल्ली की मुख्य मंत्री शीला दीक्षित भी पीछे नहीं हैं। कुछ समय पूर्व उत्तर
प्रदेश और बिहार के लोगों पर टिप्पणी करने के बाद उन्हें लाख सफाई देनी पड़ी थी। एक
मर्तबा तो राजधानी दिल्ली से सटे बदरपुर विधानसभा क्षेत्र में भी एक कार्यक्रम के
दौरान शीला दीक्षित ने एक विवादस्पद बयान दे डाला।
उन्होंने कहा कि
सरकार ने सब कुछ दिया है, दिल्ली वासियों के लिए। और अगर बिचौलियों दलालों के चलते गफलत
हो रही हो तो लोग खासतौर पर महिलाएं मोर्चा संभालें। अगर तब भी बात न बने तो पिटाई
भी की जाए। और अगर आवश्यक्ता पड़े तो दिल्ली में मुख्यमंत्री कार्यालय में आकर इस
बात की इत्तला भी दी जाए। दिल्ली की महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की वीर रस भरी
सलाह सुनकर रणबांकुरों की बाहों में मछलियां अवश्य फड़कने लगी होंगी। लोगों ने अपने
दिल दिमाग में राशन वाले बनिया की पिटाई की काल्पिनिक कहानी भी गढ़नी आरंभ कर दी
होगी। इंसाफ दिलाने का यह काफी पुराना किन्तु घिनौना तरीका है। इस कबीलाई संस्कृति
की मिसालें यदा कदा देश में सुनने को मिल जाती हैं।
सदी के महानायक
अमिताभ बच्चन और सदी के खलनायक प्राण अभिनीत फिल्म ‘‘कालिया‘‘ का एक डायलाग यहां
प्रसंगिक होगा जिसमें जेलर की भूमिका में प्राण अपने केदी अमिताभ से कहता है -‘‘जुर्म के जिस
रास्ते पर तुम चल चुके हो, कालिया, तुम नहीं जानते यह रास्ता जेल की कालकोठरी
में ही जाता है।‘‘
सत्तर के दशक के उत्तरार्ध तक देश में सीमेंट भी परमिट पर
मिला करती थी। उस वक्त दलालों ने खूब मलाई काटी। देश में केंद्र और राज्य सरकारें
क्या करने जा रही हैं। सड़क है तो वह भी बनाओ, कमाओ, फिर सरकार को सौंपो (बीओटी), बिजली भी निजी
हाथों में अर्थात जितना लूट सकते हो लूट लो।
इतना ही नहीं मराठा
क्षत्रप और केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पंवार ने तो साफ तौर पर अपील की कि किसानों
को साहूकार का ब्याज नहीं चुकाना चाहिए। शायद शरद पंवार ज़मीनी हकीकत से रूबरू नहीं
हैं। वे नहीं जानते हैं कि किसान ने जो कुछ भी रहन (गिरवी) रखा होगा वह डूब जाएगा।
इन परिस्थितियों में आत्म हत्या करने वाले किसानों के घरों से न जाने कितने ‘‘ज्वाला, जीवा या शंकर डाकू‘‘ पैदा हो जाएंगे।
दूसरी ओर देश की
दिशा और दशा तय करने वाली देश की सबसे बड़ी पंचायत में संसद सदस्यों का आचरण अब
तमाम वर्जनाओं को धूल धूसारित करता जा रहा है। सांसद नैतिकता खोने की पराकाष्ठा तक
पहुंच चुके हैं। जब से लोकसभा ने अपना टीवी चेनल आरंभ किया है तब से समूचा देश
संसद में होने वाले नंगे नाच को आसानी से देख पा रहा है, पर देशवासी बेबस
हैं। भारत गणराज्य के गठन के दौरान सांसदों के आचरण के लिए भी नियम कायदे
निर्धारित किए गए थे। लोकसभा सचिवालय ने बाकायदा पुस्तिका जारी कर संसदीय नियम
कायदों का ब्योरा इसमें दिया था। पहली बार चुने गए सांसद के लिए इनकी जानकारी
महत्वपूर्ण है, किन्तु
अनेक बार चुने गए सांसद ही जब इसका माखौल उड़ाएंगे तो नवागत सांसद क्या सीख लेंगे।
इस पुस्तिका में
साफ उल्लेखित है कि सदस्यों को किसी सदस्य के बोलने के दौरान व्यवधान उत्पन्न नहीं
करना चाहिए। इतना ही नहीं सदन में नारेबाजी, धरना, विरोध या कागजांे को फाड़ने जैसे कदमों को
नियम विरूद्ध बताया गया है। इस पुस्तिका में सदन की गरिमा को ध्यान में रखते हुए
सदन में प्रवेश से लेकर उठने बैठने और बाहर जाने तक के तौर तरीकों को रेखांकित
किया गया है। सदन में अध्यक्ष का दर्जा सबसे उपर है यह अकाट्य सत्य है। यही कारण
है कि न्यायालयों की भांति ही सदन में प्रवेश और निर्गम के समय अध्यक्ष के आसन को सर
नवाने की ताकीद दी गई है। अध्यक्ष के संबोधन के दौरान सदन से बाहर नहीं जाना चाहिए
साथ ही साथ अगर अध्यक्ष आसन ग्रहण कर रहे हों तो प्रवेश करने वाले सदस्य उनके आसन
ग्रहण करने के उपरांत ही सदन में प्रवेश करें यह व्यवस्था भी रखी गई है।
पुस्तिका में यह
व्यवस्था भी दी गई है कि जब अध्यक्ष अपनी बात कहने के लिए खड़े हों तो सदस्यों को
तत्काल अपने स्थान पर बैठ जाना चाहिए। विडम्बना ही कही जाएगी कि शार्ट टेंपर्ड
सांसद उत्तेजना में आपा खो देते हैं, तो उनसे संसदीय आचरा के पालन की उम्मीद की
जाना बेमानी ही होगा। संसदीय आचरण की इस हेण्ड बुक में तो यहां तक कहा गया है
कि रोजगार या व्यवसायिक संपर्क वाले लोगों
के लिए सिफारिशी पत्र लिखना भी नियम विरूद्ध ही है। पिछले दो दशकों में संसद की
गरिमा तार तार हुए बिना नहीं रही है। जनादेश प्राप्त जनप्रतिनिधि संसद में जिस तरह
का अशोभनीय व्यवहार करते आए हैं, उसकी महज निंदा से काम नहीं चलने वाला। आखिर
वे देश के नीति निर्धारक हैं। देशवासियों के लिए वे अगुआ (पायोनियर) से कम नहीं
हैं।