रविवार, 1 मई 2011

बिना सेफ्टी सर्टिफिकेट के चल रहे हैं देश भर में स्कूल

बारूद के ढेर पर देश के नौनिहाल!

आपदा प्रबंधन के मानकों का सरे आम उड़ रहा माखौल

नई दिल्ली (ब्यूरो)। आपदा प्रबंधन के उपाय का केंद्र सरकार द्वारा समय समय पर राग अवश्य ही अलापा जाता है, किन्तु जब जमीनी हकीकत सामने आती है तब आपदा प्रबंधन के दावों की कलई खुल जाती है। केंद्र और राज्यों की सरकारें इस बारे में कितनी संजीदा है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकायों के फायर विभाग से सेफ्टी सर्टिफिकेट लिए बिना देश भर में पंचानवे प्रतिशत स्कूलों का संचालन किया जा रहा है।

अग्निशमन महकमे के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि शालाओं को सुरक्षा प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। इसके लिए शाला में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजामात होना जरूरी है। इसके साथ ही साथ भवन में निकस के लिए दो सीढ़ियां, हर कक्षा में निकासी हेतु दो दरवाजों की अनिवार्यता बताई गई है। इनमें दरवाजों को कक्ष के अंदर के स्थान पर बाहर खुलना जरूरी है। शालाओं में रेत की बाल्टियां और फायर एक्सटिनगशिर जो एक्सपाईरी डेट का न हो हर कक्ष में होना अनिवार्य है।

उल्लेखनीय होगा कि देश भर में संचालित होने वाले सरकारी स्कूलों के अलावा निजी तौर पर खुली शिक्षा की दुकानों में भी आग से निपटने के पर्याप्त इंतजामात नहीं है। इतना ही नहीं निजी तौर पर संचालित होने वाली कोचिंग कक्षाओं में भी आग लगने की स्थिति में निपटने के कोई ठोस उपाय नहीं है, जिससे छोटा सा हादसा भी विकराल रूप धारण कर सकता है।

0 दिल्ली में आधे से अधिक टावर हैं अवैध

मोबाईल टावर पर निगम नहीं लगा सकता फीस


0 सीलिंग के बाद बढ़ सकती है नेटवर्क प्राब्लम

नई दिल्ली (ब्यूरो)। रिहाईशी इलाकों में मोबाईल टावर की संस्थापना पर स्थानीय निकाय द्वारा फीस नहीं लगाई जा सकती है, उक्ताशय की व्यवस्था दिल्ली उच्च न्यायलय द्वारा दी गई है। न्यायालय ने कहा है कि यद्यपि मोबाईल टावर लगाने की अनुमति स्थानीय निकाय द्वारा ही दी जाती है, किन्तु उन पर फीस लगाने या बढ़ाने का अधिकार नगर पालिका या निगम को नहीं है।

गौरतलब होगा कि दिल्ली नगर निगम की सीमा में संस्थापित मोबाईल टावर की फीस एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख रूपए कर दी गई थी। जिसके विरोध में मोबाईल सेवा प्रदाता संगठन ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। दिल्ली के 12 जोन में संस्थापित 5459 में से 2777 टावर अवैध रूप से लगाए गए हैं।

सुनवाई के उपरांत कोर्ट ने व्यवस्था दी कि एमसीडी को माबाईल टावर के लिए महज एक बार ही प्रोसेसिंग फीस लेने का अधिकार है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और स्थानीय निकायों को भी आदेश दिया कि वे बिल्डिंग बायलाज में इस तरह के बदलाव करें कि इसमें टावर लगाने की बात को शामिल किया जा सके। कोर्ट ने एमसीडी की इस दलील से इत्तेफाक जताया है जिसमें कहा गया है कि सकरी गलियों वाले मकानों और संरक्षित इमारतों पर टावर नहीं लगाए जा सकते हैं।

‘अमूल बेबी‘ की आरटीआई के मायने

‘अमूल बेबी‘ की आरटीआई के मायने

(लिमटी खरे)

‘‘भारत गणराज्य का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि देश की सबसे बड़ी पंचायत के सदस्य सांसद को ही घपले घोटाले के तह में पहुंचने के लिए सूचना के अधिकार के अस्त्र का प्रयोग करना पड़े। राहुल देश के सबसे बड़े ख्यातिलब्ध और शक्तिशाली परिवार के न केवल सदस्य हैं वरन् उत्तर प्रदेश से सांसद भी हैं, फिर केंद्र पोषित योजना के बारे में उन्होंने संसद जैसे सही मंच का इस्तेमाल आखिर क्यों नहीं किया? क्या राहुल गांधी संसद में प्रश्न पूछकर वास्तविकता से रूबरू नहीं हो सकते? रीता बहुगुणा की आरटीआई को दाखिल करने का स्वांग आखिर राहुल गांधी ने क्यों रचा यह बात अभी भी विचारणीय ही है। मीडिया ने भी इस बात को इस तरह उछाला मानो राहुल गांधी द्वारा रीता बहुगुणा का विधानसभा या लोकसभा का पर्चा दाखिल करवाया गया हो।


राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) में उत्तर प्रदेश को केंद्र द्वारा आवंटित राशि में जमकर घालमेल हुआ है। इसी बात की तह में पहुंचने के लिए कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी द्वारा लखनऊ स्थित एनएचआरएम के मुख्यालय जाकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा की ओर से सूचना के अधिकार के तहत एक आवेदन जमा करवाया है। जन सूचना अधिकारी ए.के.मिश्रा को दिए इस आवेदन में 17 सवाल पूछे गए हैं। मिश्रा ने राहुल को बताया कि संबंधित विभाग से जानकारियां मंगाकर तय समय सीमा में इसका जवाब दे दिया जाएगा।

भारत गणराज्य की अवधारणा लोकतंत्र (जनतंत्र) पर आधारित है। आजादी के उपरांत समय चक्र घूमा और फिर जनता के उपर तंत्र भारी पड़ने लगा। ‘जनता का, जनता द्वारा जनता के लिए‘ शासन की अवधारणा धूल में मिल गई। जनसेवकों द्वारा जनता के हितों को गौढ़ कर दिया गया और निहित स्वार्थ परवान चढ़ने लगे। जनता के पैसों से जनसेवकों द्वारा एश करने के मार्ग प्रशस्त किए जाते रहे। भूखी प्यासी देश की जनता करों के बोझ से दबती गई और जनसेवकों की जेबें इसी पैसों की बंदरबांट से फूलती चली गईं।

एक समय था जब राजनीति को जनता की सेवा का माध्यम समझा जाता था, किन्तु आज राजनीति व्यवसाय विशेषकर खानदानी व्यवसाय बनकर रह गई है। सरकारी तंत्र में अगर लोकसेवक (सरकारी कर्मचारी) का निधन हो जाता था तो उसके परिजन को अनुकंपा नियुक्ति देने का प्रावधान किया गया था। कालांतर में यह प्रावधान भी समाप्त कर दिया गया और अनुकंपा नियुक्ति को अघोषित तौर पर राजनेताओं ने अपना लिया। किसी नेता के अवसान होने पर उसके वारिस को टिकिट देकर सिंपेथी वोट बटोरने का सिलसिला चल पड़ा है।

राहुल गांधी राजनीति का ककहरा अनेक दिग्गज और घाघ नेताओं से सीख रहे हैं। उन्हें कदम कदम पर तरह तरह के मशविरे भी दिए जाते हैं। अनेक मर्तबा तो राहुल गांधी उपहास के पात्र भी बने हैं। दिल्ली से चंडीगढ़ तक उन्होंने शताब्दी ट्रेन मंे यात्रा कर सादगी का नायाब प्रदर्शन किया। बाद में जब पोल खुली तो पता चला कि राहुल के लिए पूरी एक बोगी ही रिजर्व करवा दी गई थी। राहुल के इस ‘सादगी प्रहसन‘ का भोगमान आखिर देश की जनता ने ही भोगा, इसके लिए राहुल गांधी की जेब से कुछ खर्च नहीं हुआ।

राहुल गांधी को महिमा मण्डित करने के लिए कांग्रेस के प्रबंधकों ने मीडिया तक में सेंध लगा दी। मीडिया मुगलों को जेब में रखकर राहुल का महिमा मण्डन का काम बरकरार ही रखा गया है। कभी वे कलावती के घर जाकर रात गुजार देते हैं, तो कभी किसी दलित के घर जाकर खाना खाते हैं। मीडिया में इन बातों को जमकर तवज्जो दी जाती है। कम ही लोग जानते हैं कि राहुल के किसी के घर रात गुजारने के पहले एसपीजी का पूरा दस्ता महीनों उस इलाके की खाक छानता रहता है। एमपी के टीकमगढ़ के टपरिया गांव में एक महिला ने अपनी पुत्री के विवाह के लिए राहुल से मदद मांगी। राहुल ने बीस हजार रूपए देने का वायदा भी किया, पर निभाया नहीं। उस वायदे को निभाया मध्य प्रदेश के निजाम और सूबे के बच्चों के मामा शिवराज सिंह चौहान ने।

निस्संदेह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन भारत सरकार की एक महात्वाकांक्षी योजना है, इसमें कोताही कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए। रीता बहुगुणा बेशक सूचना के अधिकार के तहत इसमें होने वाली गड़बड़ियों का पता लगाकर सच्चाई पर से पर्दा उठा दें, किन्तु राहुल गांधी को इस तरह उनका संवाहक बनना शोभा नहीं देता है।

राहुल गांधी जनप्रतिनिधि हैं, कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार केंद्र में सत्तारूढ़ है। केंद्र की अनेक योजनाओं को राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारें अपना बताकर अपने सूबों में इसका प्रचार प्रसार कर फायदा उठा रही हैं। केंद्र पोषित कमोबेश हर योजना में भ्रष्टाचार की गंध आ रही है, जिसकी निंदा की जानी चाहिए। इसके लिए जिम्मेवार दुराचारियों को सीखचों के पीछे भेजा जाना आवश्यक है।

रीता बहुगुणा की आरटीआई को लगाने खुद राहुल गांधी का जाना आश्चर्यजनक है। अगर राहुल गांधी वाकई में चाहते हैं कि इस योजना में हुए घपले घोटालों पर से पर्दा उठे तो उन्हें चाहिए कि संसद में मौन रहने वाले ‘अमूल बेबी‘ संसद में इस बारे में अपनी जुबान अवश्य खोलें। वस्तुतः एसा होगा नहीं, क्योंकि राहुल गांधी यह सब कुछ उत्तर प्रदेश मंे पब्लिसिटी गेन करने की गरज से ही कर रहे हैं। यक्ष प्रश्न तो यह है कि टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, नीरा राडिया कांड़, कामन वेल्थ घोटाला, चांवल घोटाला आदि के वक्त कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी की नैतिकता आखिर कहां चली गई थी, जो इस बारे में वे पूरी तरह मौन ही धारण किए हुए हैं। पीएसी में जो कुछ हुआ वह भी किसी से छिपा नहीं है, जोड़ तोड़ की राजनीति के चलते देश का ध्यान घपलों घोटालांे से हटाने का कुत्सित प्रयास कर रही है देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस पार्टी, जिसकी निंदा की जाना चाहिए।

प्रश्न तो यह है कि अगर वास्तव में उत्तर प्रदेश में मायावती द्वारा केंद्र पोषित एनएचआरएम योजना में गिद्ध लूट की है और उसकी सतही जानकारी ही सही, अगर वह भी राहुल गांधी के पास है तो उन्हें इस मामले को पुरजोर तरीके से संसद में उठाना चाहिए। उनके पास जनता के द्वारा दिया गया जनादेश है। संसद एक उचित प्लेट फार्म है जहां इस बात को रखा जाना चाहिए, किन्तु राहुल गांधी के प्रशिक्षकों ने उन्हें यह करने से मना ही किया होगा, क्योंकि एसा करने से कांग्रेस शासित राज्यों में केंद्र की इमदाद से चलने वाली योजनाओं में हो रहे बंदरबांट को भी बेपर्दा करना होगा।

मीडिया की कारस्तानी पर भी अचरज ही होता है। आखिर क्या वजह है कि रीता बहुगुणा के सूचना के अधिकार के आवेदन को राहुल गांधी का आवेदन बताकर इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी टीआरपी और वेब व प्रिंट अपनी पाठक संख्या बढ़ाने पर आमदा है। सच्चाई सबके सामने है यह आरटीआई रीता बहुगुणा के नाम से है न कि राहुल गांधी के नाम से। मीडिया के मार्फत राहुल गांधी का जबरिया महिमा मण्डल तत्काल बंद होना चाहिए।

राहुल का मिशन यूपी टांय टांय फिस्स

युवराज के आदर्शों की होली जलाती कांग्रेस

एमपी में उड़ रहा राहुल की सुधारवादी नसीहतों का मजाक

 
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के वजीरेआजम राहुल गांधी के अरमानों पर कोई और नहीं उन्हीं की माता श्रीमति सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पानी फेरती जा रही है। यूपी के उपचुनावों में राहुल गांधी के मिशन 2012 की हवा निकल चुकी है। उधर मध्य प्रदेश में युवक कांग्रेस चुनावों में भी राहल की सुधारवादी नसीहतों को दरकिनार करने से नहीं चूक रही है कांग्रेस।

2009 में हुए लोकसभा चुनावों के नतीजे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए आशा की किरण लेकर आए थे। आंकड़े के बाजीगरों ने राहुल गांधी को आंकड़ों मंे उलझाकर मिशन 2012 का आगाज करवा दिया जिसके तहत उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले चुनावों में मायावती को उखाड़ फेंकने के साथ ही साथ वहां कांग्रेस की सरकार बनाने का दावा किया जा रहा है।

हाल ही में यूपी में हुए विधानसभा उपचुनाव ने मिशन 2012 की कलई खोलकर रख दी है। उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक उपचुनाव हारने के बाद मजबूरी में पिपराईच विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान कांग्रेस को समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार राजमति देवी का समर्थन करना पड़ा।

उधर मध्य प्रदेश में युवक कांग्रेस के चुनावों में राहुल गांधी का टेलेंट हंट कार्यक्रम भी जड़ से ही उखड़ चुका है। केंद्र में सक्रिय मध्य प्रदेश के क्षत्रपों के मोहरे इन चुनावों में दिल खोलकर खर्च कर रहे हैं, इस तरह की सूचनाओं से राहुल गांधी खासे नाराज बताए जा रहे हैं। एआईसीसी में चल रही चर्चाओं के अनुसार राहुल गांधी के रणनीतिकारों के इशरों पर मध्य प्रदेश युवका कांग्रेस का चुनाव विधानसभा चुनावों मंे तब्दील होकर रह गया है। लोग दिल खोलकर खर्च कर रहे हैं, और हर तरीके से लुभा रहे हैं अपने अपने मतदाता को।

दुर्गम इलाकों में तैनात देश के सपूतों के लिए सेना का नया प्रस्ताव

विमान से घर तक जाएंगे जवान!

रक्षा मंत्रालय के पास है प्रस्ताव विचाराधीन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की सीमा और दुर्गम इलाकों पर देश की रक्षा करने वाले जवानों के लिए खुशखबरी है कि उन्हें उनके घरों के पास वाले हवाई अड्डे तक विमान से भेजा जाएगा। वर्तमान में दूरदराज इलाकों में तैनात जवानों को एयर इंडिया और जेट एयरवेज के चार्टर्ड विमानों से दिल्ली और कोलकता भेजा जाता है, जहां से वे अपने घरों तक जाने के लिए रेल मार्ग पर ही निर्भर हैं। जवानों की इस यात्रा का खर्च रक्षा मंत्रालय द्वारा उठाया जाता है।

गौरतलब है कि भारतीय रेल में सेना के लिए आरक्षित कोटा कम होने से जवानों को तरह तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही साथ उत्तर और पूर्वोत्तर के पहाड़ों के दुर्गम इलाकों में तैनात जवानों को समीपस्थ रेल्वे स्टेशन पहुंचने में काफी समय लग जाता है।

उधर सेना द्वारा जवानों पर कराए गए सर्वे में एक बात उभरकर सामने आई है कि जवानों के अंदर तनाव का प्रमुख कारण जवानों को अवकाश मिलने में होने वाली परेशानियां ही प्रमुख है। वैसे सेना द्वारा अपने जवानों को तनावरहित रखने के लिए चार्टर्ड विमान सेवाएं ले रखी हैं। इनमें एयर इंडिया की लेह से दिल्ली के बीच सप्ताह में पांच दिन, श्रीनगर से दिल्ली सप्ता में चार और इंफाल से कोलकता के बीच सप्ताह में एक दिन तथा जेट एयरवेज की थॉयस से दिल्ली सप्ताह में दो बार विमान सेवाएं उपलब्ध हैं। वायूसेना के विमान गुवहाटी से दिल्ली, चंडीगढ़ से लेह और श्रीनगर के बीच उड़ाने भरते हैं।