बारूद के ढेर पर देश के नौनिहाल!
आपदा प्रबंधन के मानकों का सरे आम उड़ रहा माखौल
नई दिल्ली (ब्यूरो)। आपदा प्रबंधन के उपाय का केंद्र सरकार द्वारा समय समय पर राग अवश्य ही अलापा जाता है, किन्तु जब जमीनी हकीकत सामने आती है तब आपदा प्रबंधन के दावों की कलई खुल जाती है। केंद्र और राज्यों की सरकारें इस बारे में कितनी संजीदा है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि स्थानीय निकायों के फायर विभाग से सेफ्टी सर्टिफिकेट लिए बिना देश भर में पंचानवे प्रतिशत स्कूलों का संचालन किया जा रहा है।
अग्निशमन महकमे के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि शालाओं को सुरक्षा प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। इसके लिए शाला में आग बुझाने के पर्याप्त इंतजामात होना जरूरी है। इसके साथ ही साथ भवन में निकस के लिए दो सीढ़ियां, हर कक्षा में निकासी हेतु दो दरवाजों की अनिवार्यता बताई गई है। इनमें दरवाजों को कक्ष के अंदर के स्थान पर बाहर खुलना जरूरी है। शालाओं में रेत की बाल्टियां और फायर एक्सटिनगशिर जो एक्सपाईरी डेट का न हो हर कक्ष में होना अनिवार्य है।
उल्लेखनीय होगा कि देश भर में संचालित होने वाले सरकारी स्कूलों के अलावा निजी तौर पर खुली शिक्षा की दुकानों में भी आग से निपटने के पर्याप्त इंतजामात नहीं है। इतना ही नहीं निजी तौर पर संचालित होने वाली कोचिंग कक्षाओं में भी आग लगने की स्थिति में निपटने के कोई ठोस उपाय नहीं है, जिससे छोटा सा हादसा भी विकराल रूप धारण कर सकता है।
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