गुरुवार, 23 जून 2011

कबूतर जा जा जा . . . .


कबूतर जा जा जा . . . .

(लिमटी खरे)

संदेशों के आदान प्रदान के लिए कपोत यानी कबूतर के प्रयोग के दिन लद चुके हैं। उस वक्त प्रशिक्षित कबूतरों के पैरों पर संदेश लिखकर बांध दिया जाता था। फिर वह गंतव्य तक पहुंचकर उसका जवाब लेकर आता था। कालांतर में कबूतरों का काम डाक विभाग ने आरंभ किया। परिवर्तन के दौर में राजनेताओं की निहित स्वार्थों की भूख से डाक विभाग को पटरी पर से उतार दिया कोरियर कंपनी वालों ने। अब लोग डाकिए का इंतजार नहीं किया करते, अब तो जमाना इंटर नेट का है। इसलिए जन्मदिन, शादी विवाह, परीक्षा में सफलता आदि पर ग्रीटिंग कार्डस, तार, पत्र आदि का जमाना लद गया है, अब तो बस एक क्लिक पर ही आपका संदेश मोबाईल से एसएमएस तो नेट पर ईकार्ड या मेल के जरिए पहुंच जाता है। यह सब होता तो है पर पत्र वाकई आनंद की अनुभूति कराया करते थे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।

देश के डाकघरों में जान फूंकने की गरज से परियोजना एरोका आगाज किया है भारत सरकार ने, जो समय के साथ परवान चढ़ती जा रही है। देश के अनेक डाकघर जहां की अवयवस्था, गंदगी, उलझाउ कार्यप्रणाली, कर्मचारियों के आलसी व्यवहार के चलते लोग जाने से कतराते थे, वहां जाकर तो देखिए, डाकघर आपको थ्री स्टार जगहों से कम नजर नहीं आएंगे। पोस्ट ऑफिस का कायाकल्प हो गया है। अब वे देखने में भी सुंदर लगने लगे हैं, कर्मचारियों के व्यवहार में भी खासा अंतर परिलक्षित होने लगा है। बस कमी एक ही रह गई है, डाकियों की भर्ति नहीं होने से चिठ्ठियों का वितरण करीने से नहीं हो पा रहा है। सबसे अधिक दिक्कत परीक्षा में बैठने वालों को हो रही है, क्योंकि नए डाकियों को ठीक से पता न होने के कारण उनके वे प्रवेश पत्र से वंचित रह जाते हैं।

वैसे प्रोजेक्ट एरो में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आधार बनाया जा सकता है, जिसमें डाकघर को ग्रामीण क्षेत्र में वित्तीय और आर्थिक क्रांति का जरिया बनाया जा सकता है। वैसे भी डाकघर में जमा निकासी पर ग्रामीणों का विश्वास आज भी कायम है। बदलते जमाने की रफ्तार के बावजूद भी डाकघर बैंकिग प्रणाली में आम आदमी तक पहुंचने की क्षमता रखते हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जबकि आयकर में छूट पाने के लिए लोग डाकघर के नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट पर टूट पड़ते थे। बाद में वित्त मंत्रालय की नीतियों ने डाकघरों की सांसें फुला दीं और लोग इससे विमुख होने लगे, अन्यथा मार्च माह में डाकघर में बाबुओं को खाना खाने की फुर्सत नहीं होती थी।

देश में वर्तमान में छोटे, मंझोले, बड़े डाकघर मिलाकर एक लाख पचपन हजार प्रंद्रह केंद्र संचालित हैं, इनमें निजी तौर पर दी गई फ्रेंचाईजी शामिल नहीं है। इनमें से साढ़े बारह से अधिक डाकघरों को कंप्यूटरीकृत कर दिया गया है। केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि सभी डाकघरों को वर्ष 2012 के साथ ही कंप्यूटरीकृत कर दिया जाए। डाक तार विभाग में एक हजार करोड़ रूपयों के बजट के साथ छः कंपनियां डाकघरों के अपग्रेडेशन के काम को अंजाम दे रही हैं।

देश के सबसे पुराने विभागों की फेहरिस्त में शामिल डाक विभाग वर्तमान में सामान्य पोस्ट, मनी आर्डर के अलावा स्पीड पोस्ट, इंटरनेशनल रजिस्टर्ड पोस्ट, लॉजिस्टिक पोस्ट, पार्सल, बिजनेस पोस्ट, मीडिया पोस्ट, डायरेक्ट पोस्ट आदि की सेवाएं दे रहा है। इसके साथ ही साथ ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सेवाओं में पीपीएफ, एनएससी, किसान विकास पत्र, सेविंग एकाउंट, सावधिक जमा खाता आदि की सुविधाएं मुहैया करवा रहा है। गैर पोस्टल सेवाओं में पोस्टल लाईफ इंश्योरेंस, ई पेमेंट, इंस्टेंट मनी आर्डर सर्विस और इंटरनेशनल मनी ट्रांसफर की सेवाएं भी दे रहा है।

भारत में डाक सेवा की नींच 19वीं शताब्दी में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। 01 जुलाई 1852 को सिंध प्रांत में सिंध डाकका आगाज डाक सेवा के तौर पर किया गया था, इस दिन पहला वेक्स से बना डाक टिकिट जारी किया गया था। यह हिन्दुस्तान ही नहीं वरन् एशिया का पहला डाक टिकिट था। देश में आधा आना, एक, दो और चार आने का डाक टिकिट सबसे पहले प्रयोग में लाया गया था। दुनिया का सबसे उंचाई वाला डाकघर हिन्दुस्तान में ही है। समुद्रतल से 15,500 फुट (लगभग 4700 मीटर) के साथ सिक्किम में 172114 पिन नंबर के साथ यह दुनिया का सबसे उंचा डाकघर है। 1962 तक डाक टिकिटों पर इंडिया पोस्टेज लिखा होता था, इसके बाद 1962 से ही इसे हटाकर इसके स्थान पर भारत लिखा जाने लगा।

इस साल फरवरी माह में भारत के डाक विभाग द्वारा बापू के प्रिय खादी के कपड़े पर बापू की तस्वीर वाली टिकिटों को बाजार मंे सीमित मात्रा में उतारा था। लोगों ने यादगार के तौर पर खदीकर सहेज कर रख लिया है। इसके अलावा डाक विभाग को पुनः लोकप्रिय बनाने की गरज से विभाग ने लोगों को खास मित्र या रिश्तेदार अथवा स्वयं के चित्रों वाला डाक टिकिट देने की स्कीम भी लांच की, जिसमें निर्धारित शुल्क अदा करने पर कोई भी किसी खास चित्र को बनवाकर उसका डाक टिकिट बनवा सकता है।

कोरियर कंपनियों के बढ़ते वर्चस्व और सूचना एवं संचार क्रांति ने डाक विभाग के चिट्ठी पत्री बांटने के काम को भी सीमित ही कर दिया। कम ही लोग हैं जो आज पत्रों का उपयोग करते हैं। पत्र अगर भेजना भी है तो लोगों का विश्वास डाक विभाग से उठ चुका है। लोगों का मानना है कि कोरियर सेवा से उनका संदेश चोबीस से अड़तालीस घंटे में पहुंच ही जाएगा। डाक विभाग के एकाधिकार को कोरियर कंपनियों ने तोड़ दिया है। अब डाक विभाग की स्पीड पोस्ट सेवा से पुनः लोगों का विश्वास डाक विभाग की ओर लौटने लगा है किन्तु स्पीड पोस्ट सेवा कुछ हद तक मंहगी होने के कारण वांछित लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर पाई है। अब एसे लोग गिनती के ही बचे होंगे जो नियमित तौर पर पत्रों का आदान प्रदान किया करते हैं। दमोह मूल के शिक्षा विभाग से सेवानिवृत सहायक संचालक एवं रूड़की विश्वविद्यालय में व्याख्याता डॉ.दीपक के लगभग अस्सी वर्षीय पिता डी.डी.खरे रोजाना अपने दो परिचितों को नियमित तौर पर पोस्ट कार्ड भेजते हैं। उनका मानना है कि पत्र के माध्यम से आपकी व्यक्तिगत उपस्थिति का आभास होता है, यही कारण है कि वे सालों साल से निर्बाध तौर पर पोस्ट कार्ड लिखकर प्रेषित करते हैं, उनके परिचित भी उनके पत्रों का जवाब देकर इस उम्र में उन्हें नई उर्जा प्रदान किया करते हैं।

भारतीय डाक विभाग का नेटवर्क देश की अमूल्य धरोहर है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान और कृषि के लिए यह नेटवर्क वरदान साबित हो सकता है। इसके लिए केंद्र और राज्य के बीच जबर्दस्त समन्वय होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि खेती किसानी राज्य का अपना विषय होता है। राज्य सरकारों को डाकघरों से सीधे मुद्रा विनिमय करना होगा। कमोबेश हर गांव डाकघर की जद में है, इस लिहाज से मुद्रा विनिमय के लिए राज्य की सरकारों को बैंकों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा।

डाकघर किसान और सरकार के बीच बिचौलिए की भूमिका बखूबी निभा सकता है। इसके अलावा वह किसान के लिए गारंटर भी बन सकता है। इसके लिए आवश्यक होगा कि किसान की जमीन की पूरी माहती डाकघर के पास हो। साथ ही साथ वह किसान को जरूरत के हिसाब से कर्ज देकर उसकी अदायगी भी सुनिश्चित कराए। डाकघर केंद्र सरकार के अधीन काम करता है, और गांव गांव में उसकी खासी पकड़ बन चुकी है। डाकघर के पास वर्तमान में जो काम हैं उसके साथ ही साथ वह किसानों की जमीनों का लेखा जोखा और कृषि की स्थिति का आंकलन भी कर सकता है। वह मौसम के मिजाज के साथ ही साथ खेती की उपज का जायजा और पूर्वानुमान भी लगा सकता है। जो किसानों के लिए काफी हद तक हितकर साबित होगा। इसके लिए डाक विभाग को अपने कानूनों में संशोधन कर राज्य सरकारों को विश्वास में लेकर उनकी अनुमति की दरकार होगी।

केंद्र सरकार अगर वाकई किसानों का हित साधना चाह रही है तो वह डाकघर को किसानों के लिए उपयोगी बनाने की दिशा मंे प्रयास कर सकती है। केंद्र सरकार चाहे तो डाकघरों को सशक्त ग्रामीण विकास बैंक की भूमिका में लाकर खड़ा कर सकती है। डाकघरों को उपभोक्ता समाग्री के अलावा अन्य वस्तुओं विशेषकर कृषि आधारित जरूरत की चीजों का विपणन केंद्र बनाया जा सकता है। डाकघर की भूमिका का विस्तार कर इसको ग्राम पंचायतों से लेकर व्यक्गित तौर पर धन के विनिमय का केंद्र बनाया जा सकता है। डाकघर के पोस्टल आर्डर को देश में कहीं भी भुनाए जाने योग्य बनाकर इससे ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का असरदार अंग बना सकते हैं। मनीआर्डर के स्थान पर इसे मनी ट्रांसफर केंद्र बनाया जा सकता है।

इंटर नेट से जुड़े डाकघर ग्रामीण क्षेत्रों में सायबर कैफे बन सकते हैं, जहां ग्रामीणों को कंप्यूटर प्रशिक्षित किया जाकर आधुनिक संसार से जोड़ा जा सकता है। इन डाकघरों से रेल के ई टिकिट जारी करवाए जा सकते हैं। इसके अलावा जिस तरह मध्य प्रदेश सरकार ने एमपी ऑन लाईनकी फ्रेंचाईजी दी है जिसमें सरकारी योजनाओं के साथ ही साथ अनेक फार्म ऑन लाईन भरे जाते हैं, की तरह से डाकघरों का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रोजेक्ट एरो में अनेक तरह से अत्याधुनिक बनाया जा रहा है भारतीय डाक विभाग को। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में ई डाक टिकिट का प्रयोग कोई भी उपभोक्ता कर सकेगा। इसके लिए उसे कंप्यूटर और प्रिंटर का प्रयोग करना होगा। ऑन लाईन मिलने वाली ई डाक टिकिट सेवा के लिए जितनी राशि की डाक टिकिट चाहिए उतनी राशि उसे ऑन लाईन अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड से विभाग को जमा करानी होगी, जिसके एवज में उसे एक विशेष नंबर का बार कोड दिया जाएगा। इसका प्रिंट लिफाफे पर चिपका दिया जाएगा। इस बार कोड के लिए साधारण डाक जितनी ही कीमत चुकानी होगी।
डाक विभाग की इस तरह की पहल को देखकर लगने लगा है कि डाक घर अपना पुराना खोया वैभव एक बार फिर पा सकता है। इसके लिए विभाग को कर्मचारियों की भर्ती कर उन्हें प्रशिक्षित करना आवश्यक होगा। साथ ही साथ निजी तौर पर वैध और अवैध तौर पर चल रही कोरियर कंपनियों की मुश्कें भी कसना आवश्यक होगा, जो डाक विभाग की नींव में सुराख दर सुराख किए जा रहीं हैं। इसके लिए डाक विभाग के आला अधिकारियांे और सरकार में बैठे नुमाईंदों की साफ नीयत की दरकार होगी।

प्रियंका में संभावनाएं तलाशते राहुल से तिरस्कृत


प्रियंका में संभावनाएं तलाशते राहुल से तिरस्कृत

दिग्विजय के किले को भेद नहीं पा रहे कांग्रेस के आलंबरदार

अमरीकि नहीं चाहते राहुल बनें पीएम

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के दरबार में स्थान न पाने वाले इंदिरा गांधी के अति विश्वासपात्र रहे नेताओं की नजरें अब उनकी अग्रजा प्रियंका वढ़ेरा पर टिक गईं हैं। राहुल से उपेक्षित कांग्रेसी नेताओं ने प्रियंका में अपना तारणहार खोजना आरंभ कर दिया है। उमर दराज कांग्रेसी नेता वसंत साठे, आर.के.धवन और जाफर शरीफ ने राहुल की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए प्रियंका को राजनीति मंे उतारने के प्रयास आरंभ कर दिए हैं।
इस त्रिफला ने परोक्ष तौर पर सोनिया गांधी के संगठन चलाने की नीति की भी निंदा की है। इशारों ही इशारों में इस तिकड़ी  ने राहुल गांधी पर आरोप भी लगा दिए कि वे करिश्माई नेता नहीं हैं, और इतने बुद्धिमान भी नहीं हैं कि अपने बूते वे कोई पद ले सकें। सियासी गलियारों में इस बात का मतलब लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उधर सत्ता के गलियारों में इस बात को भी हवा दी जा रही है कि अमेरिका का मत है कि राहुल गांधी को देश का सर्वोच्च पद नहीं देना चाहिए। अमेरिकीयों की मानें तो राहुल गांधी बेहद भ्रमित है और उन्हें राजनीति का ककहरा ठीक से नहीं आता है।
उधर कांग्रेस के इक्कीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह अब युवराज राहुल गांधी के प्रशिक्षक के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। राजा दिग्विजय सिंह का घेरा इतना मजबूत है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता उसे चाहकर भी लांघकर राहुल के करीब नहीं जा पा रहे हैं। यही कारण है कि अनेक वरिष्ठ नेता इन दिनों अपने आप को उपेक्षित ही पा रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह ने राहुल के पीएम बनने का दांव इसलिए भी फेंका है ताकि पीएम के अन्य दावेदारों की हवा निकल सके और अंत में जब पीएम बनने की बारी आए तब राहुल को अमरीका के दबाव के आगे पीएम न बनाया जाए। उस वक्त प्रधानमंत्री राजा दिग्विजय सिंह प्रधानमंत्री के इकलौते सशक्त दावेदार साबित होंगे।
संभवतः राजा दिग्विजय सिंह की इस रणनीति का आभास होते ही इंदिरा गांधी के अति विश्वस्त रहे जाफर शरीफ, वसंत साठे और आर.के.धवन ने राहुल की मुखालफत आरंभ कर दी है, ताकि उनके बहाने वे दिग्विजय सिंह को बेनकाब कर सकें। तीनों नेता चाह रहे हैं कि प्रियंका वढ़ेरा अपने आप को राजीव गांधी फाउंडेशन तक सीमित रखने के बजाए सक्रिय राजनीत में आकर कांग्रेस की नैया को पार लगाने का काम करें। प्रियंका के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रियंका जानती हैं कि लोग उनमें उनकी दादी प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं, उन्हें अपनी असीमित राजनैतिक संभावनाओं के बारे मंे मालुम है, बस वे इंतजार कर रही हैं तो माकूल वक्त का, और उनकी नजरें जमीं हैं वक्त की करवटों पर।