गुरुवार, 23 जून 2011

प्रियंका में संभावनाएं तलाशते राहुल से तिरस्कृत


प्रियंका में संभावनाएं तलाशते राहुल से तिरस्कृत

दिग्विजय के किले को भेद नहीं पा रहे कांग्रेस के आलंबरदार

अमरीकि नहीं चाहते राहुल बनें पीएम

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी के दरबार में स्थान न पाने वाले इंदिरा गांधी के अति विश्वासपात्र रहे नेताओं की नजरें अब उनकी अग्रजा प्रियंका वढ़ेरा पर टिक गईं हैं। राहुल से उपेक्षित कांग्रेसी नेताओं ने प्रियंका में अपना तारणहार खोजना आरंभ कर दिया है। उमर दराज कांग्रेसी नेता वसंत साठे, आर.के.धवन और जाफर शरीफ ने राहुल की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए प्रियंका को राजनीति मंे उतारने के प्रयास आरंभ कर दिए हैं।
इस त्रिफला ने परोक्ष तौर पर सोनिया गांधी के संगठन चलाने की नीति की भी निंदा की है। इशारों ही इशारों में इस तिकड़ी  ने राहुल गांधी पर आरोप भी लगा दिए कि वे करिश्माई नेता नहीं हैं, और इतने बुद्धिमान भी नहीं हैं कि अपने बूते वे कोई पद ले सकें। सियासी गलियारों में इस बात का मतलब लगाया जा रहा है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उधर सत्ता के गलियारों में इस बात को भी हवा दी जा रही है कि अमेरिका का मत है कि राहुल गांधी को देश का सर्वोच्च पद नहीं देना चाहिए। अमेरिकीयों की मानें तो राहुल गांधी बेहद भ्रमित है और उन्हें राजनीति का ककहरा ठीक से नहीं आता है।
उधर कांग्रेस के इक्कीसवीं सदी के चाणक्य राजा दिग्विजय सिंह अब युवराज राहुल गांधी के प्रशिक्षक के तौर पर स्थापित हो चुके हैं। राजा दिग्विजय सिंह का घेरा इतना मजबूत है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता उसे चाहकर भी लांघकर राहुल के करीब नहीं जा पा रहे हैं। यही कारण है कि अनेक वरिष्ठ नेता इन दिनों अपने आप को उपेक्षित ही पा रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिग्विजय सिंह ने राहुल के पीएम बनने का दांव इसलिए भी फेंका है ताकि पीएम के अन्य दावेदारों की हवा निकल सके और अंत में जब पीएम बनने की बारी आए तब राहुल को अमरीका के दबाव के आगे पीएम न बनाया जाए। उस वक्त प्रधानमंत्री राजा दिग्विजय सिंह प्रधानमंत्री के इकलौते सशक्त दावेदार साबित होंगे।
संभवतः राजा दिग्विजय सिंह की इस रणनीति का आभास होते ही इंदिरा गांधी के अति विश्वस्त रहे जाफर शरीफ, वसंत साठे और आर.के.धवन ने राहुल की मुखालफत आरंभ कर दी है, ताकि उनके बहाने वे दिग्विजय सिंह को बेनकाब कर सकें। तीनों नेता चाह रहे हैं कि प्रियंका वढ़ेरा अपने आप को राजीव गांधी फाउंडेशन तक सीमित रखने के बजाए सक्रिय राजनीत में आकर कांग्रेस की नैया को पार लगाने का काम करें। प्रियंका के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रियंका जानती हैं कि लोग उनमें उनकी दादी प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी का अक्स देखते हैं, उन्हें अपनी असीमित राजनैतिक संभावनाओं के बारे मंे मालुम है, बस वे इंतजार कर रही हैं तो माकूल वक्त का, और उनकी नजरें जमीं हैं वक्त की करवटों पर।

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