बुधवार, 6 जनवरी 2010

इस पर भी तो कुछ फरमाईए चिदम्बरम जी


इस पर भी तो कुछ फरमाईए चिदम्बरम जी


(लिमटी खरे)


देश के ताकतवर गृह मंत्री होकर उभरे पलनियप्पम चिदम्बरम के माथे पर मेघालय पुलिस ने कालिख पोतने का दुस्साहस किया है। लालकिले में सन 2000 में हुए बम विस्फोट के हमलावरों रज्जाक, रफाकत अली और सादिक के बीते दिनों देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से भागने की बात को सहजता से नहीं लिया जा सकता है। भले ही विदेशाी क्षेत्रीया पंजीकरण कार्यालय (एफआरआरओ) और दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा अपनी अपनी खाल बचाने का प्रयास कर रही हों पर गणतंत्र दिवस के चंद दिन पहले घटी यह घटना सामान्य कतई नहीं मानी जा सकती है। पुलिस अभिरक्षा से फरार होकर आतंकवादियों ने भारत द्वारा आतंकवाद से निपटने के उच्च स्तर के दावों की हवा वैसे भी निकल जाती है।


मामले की नजाकत इसलिए भी बढ जाती है, क्योंकि भागने वाले चोर उचक्के या उठाईगीरे नहीं वरन आतंकवादी थे। इन तीनों को वर्ष 2000 में लालकिले के पास हुए सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में हौजखास से गिरफ्तार किया गया था। इनके पास से लगभग 15 किलो आरडीएक्स और 50 किलो हेरोईन बरामद की गई थी। अदालत ने इन तीनों आतंकवादियों को इस मामले में पांच साल की सजा सुनाई थी। चूंकि स्पेशल ब्रांच ने इनकी सजा पूरी होने पर एक आदेश जारी कर इनके बाहर घूमने फिरने पर पाबंदी लगा दी थी अत: सजा पूरी होने पर इन्हें एफआरआरओ द्वारा संचालित किए जाने वाले लामपुर स्थित सेवाधाम (डिर्पोटेशन होम) भेज दिया गया था। साथ ही साथ सेवाधाम की चौकसी का जिम्मा डीएपी की पहली वाहिनी (फस्र्ट बटालियन) का है और यहां देश की विभिन्न बटालियनों से जवान और अधिकारी तैनात होते हैं अत: मेघालय के उपनिरीक्षक को भी इसी कारण यहां तैनाती मिली थी।


इन तीनों की सजा पूरी हो चुकी थी। इन आतंकवादियों को चंद औपचारिकताओं के उपरांत पाकिस्तान के लिए रवानगी डालनी थी। जब इनकी सजा पूरी हो ही चुकी थी तब इन्होंने पुलिस को कथित तौर पर चकमा देने का जोखिम क्यों उठाया। जाहिर है कि इन तीनों के मन में किसी न किसी बडे षणयंत्र का तनाबाना बुना जा रहा होगा। ये बेहतर तरीके से जानते होंगे कि अगर ये पकडे गए तो इनकी सजा में इजाफा ही होने वाला है।

पूरा का पूरा घटनाक्रम जिस तरीके से पुलिस ने पेश किया है उससे आम आदमी के जेहन में हजारों सवालों का अनायास घुमडना स्वाभाविक ही है। इन तीनों आतंकवादियों की आंखों में एक साथ कौन सी बीमारी हो गई कि एक ही दिन तीनों को आई टेस्ट के लिए आना पडा। इसके बाद ``केदी`` को चांदनी चौक के साईकिल मार्केट के एक रेस्तरां ``अम्बर रेस्टॉरेन्ट`` में खाना क्यों खिलाया गया। खाने का भोगमान (बिल) किसने भोगा। क्या खाना खिलाने ले जाते वक्त इन आतंकवादियों के हाथों में हथकडी नहीं थी। डिर्पोटेशन होम के पास के एक पीसीओ से इन आतंकवादियों ने पाकिस्तान फोन भी किए बताए जा रहे हैं।


इतना ही नहीं इनकी फरारी के बाद उप निरीक्षक ने तत्काल पुलिस कंट्रोल रूम को क्यों इत्तला नहीं की। सजा काट रहे कैदियों को जरूरत पडने पर लाने ले जाने के लिए निर्धारित नियमों की अनदेखी क्यों की गई। पुलिस ने आतंकवादियों का दस साल पुराना चित्र आखिर किस कारण से जारी किया। सबसे अहम सवाल तो यह है कि एक उपनिरीक्षक के साथ तीन खूंखार आतंकवादी जेल के बाहर चले जाते हैं, बिना पुलिस बल के, तब पुलिस की स्पेशल सेल किस पर नजर रखकर किसकी निगरानी कर रही थी। इसी बीच एक बुर्के वाली महिला का जिकर भी आया है, जो सेवाधाम में रज्जाक से मिलने आई थी। जब सेवा धाम में रखे लोगों से मिलने की किसी को इजाजत नहीं तो फिर यह महिला किन नियमों को शिथिल कर रज्जाक से बतिया कर गई थी।


पुलिस अभिरक्षा के दर्मयान भागने के दौरान जो परिस्थितियां थीं, उससे लगता है कि कहीं सोचे समझे षणयंत्र के तहत तो इन्हें आजाद नहीं किया गया है। विडम्बना ही कही जाएगी कि इतने खूंखार आतंकवादियों के इलाज के लिए अस्पताल जाने के दरम्यान मेघालय पुलिस की इंडियन रिजर्व बटालियन का महज एक उप निरीक्षक डिनोमोनी सिंह ही तैनात था। क्या भारत की पुलिस में इस तरह के `मिट्टी के माधव`` शोभा की सुपारी बनने के लिए भर्ती किए गए हैं।

अमूमन जिनकी सजा पूरी हो जाती है उनके बारे में सजा पूरी होने के लगभग चार माह पहले ही दिल्ली पुलिस की विशेषा शाखा और एफआरआरओ को दे दी जाती है। इस अवधि में औपचारिकताएं भी लगभग पूरी कर ही ली जाती हैं, ताकि अंतिम समय में कोई समस्या सामने न आए। इस मामले में भी कमोबेश यही हुआ होगा। स्वास्थ्य कारणों को ही अगर आधार बनाया जाए तब भी अगर सुरक्षा तंत्र इस कदर लापरवाही बरतेगा तो देश के आम आदमी का तो जीना ही मुहाल हो जाएगा।


सजा के अंतिम पडाव में अगर इन आतंकवादियों ने भागने का जोखम उठाया है तो इस आशंका को निर्मूल नहीं माना जा सकता है कि इनके मन में देश में फिर कहर बरपाने का कोई प्लान हो। जब सुरक्षा तंत्र इतना लापरवाह है तो जेल में इनके आका आकर इन्हें दिशा निर्देश देते रहे हों तो कोई बडी बात नहीं है। फिल्मों में इस तरह की कहानियां दिखाई जाती हैं जिनमें जेल के अंदर बंद रहने के बाद भी योजना का खाका तैयार किया जाता है फिर निर्धारित दिन उसे मूर्तरूप दिया जाता है।

अब जाकर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल हरकत में आई है और जहां ये आतंकवादी बंद थे, उन जेल और लामपुर के सेवासदन के पिछले दो सालों के रिकार्ड खंगाल रही है। अगर समय रहते हर पखवाडे में देश में जहां जहां भी देशद्रोही आतंकवादी बंद हैं, वहां वहां के रिकार्ड पर नजर रखी जाती तो पुलिस को इस तरह की परिस्थिति से दो चार नहीं होना पडता।


आंकडे बताते हैं कि देश की सबसे बडी तिहाड जेल में कुल 11 हजार तीन सौ कैदियों में से 102 आतंकवादी हैं। इनमें खूंखार करार दिए गए आतंकियों की संख्या 25 तो पाकिस्तान के आतंकियों की संख्या 15 है। वर्तमान में कुल 27 आतंकियों को सजा पूरी होने पर वापस भेजने की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें से 20 पाकिस्तान मूल के निवासी हैं।

भले ही नवंबर 2008 में देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में हुए अब तक के सबसे बडे आतंकवादी हमले के बाद गृहमंत्री बने पी.चिदम्बरम एक साल में देश में आतंकी हमला न होने से राहत महसूस कर रहे हों पर तीन दुर्दांत आतंकवादियों के फरार होने की घटना से उनकी पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकना स्वाभाविक ही है। आतंकवाद की आग में झुलसते भारत ने हर तरफ से अपने आप को चाक चौबंद रखने की कवायद अवश्य ही की है, किन्तु जब अपने इर्दगिर्द ही जयचंदों की फौज हो तो फिर बाहर किसी से क्या शिकायत की जाए।


भारत सरकार ने हाल ही में रूस, मलेशिया और ब्राजील से आतंकी गतिविधियों के लिए धन मिलने व मनी लांिड्रंग रोकने के लिए सहमति पर भी हस्ताक्षर किए हैं। इससे एक ओर हिन्दुस्तान की गर्वंमेंट आतंकवादियों के रसद के रास्ते बंद कर रही है, तो वहीं दूसरी ओर सजा पूरी कर चुके आतंकवादी बडी ही आसानी से पुलिस को कथित तौर पर गच्चा दे जाते हैं।

वैसे बहुचर्चित कंधार विमान अपहरण मामले के प्रमुख वार्ताकार रहे अजीत कुमार डोवाल की इस बात से हम पूरा इत्तेफाक रखते हैं कि कसाब और अजमल जैसे प्रकरणों का निपटारा जल्द से जल्द कर देना चाहिए वरना भारतीय जेलों में बंद आतंकवादियों की रिहाई के लिए भी किसी भारतीय विमान का अपहरण हो सकता है।

हमारी अपनी व्यक्तिगत राय में देश में जहां जहां भी आतंकवादियों को जेलों में बंद किया गया है, वहां आतंकवाद से संबंधित मामलों की सुनवाई जेल परिसर के अंदर ही कोर्ट बनाकर कर देनी चाहिए। इसमें संबंधित वकील और न्यायालयीन कर्मचारियों के अलावा किसी अन्य का प्रवेश पूरी तरह वर्जित ही रखा जाना चाहिए। इन मामलों की वीडियो रिकार्डिंग कर उसका रिकार्ड रखना आवश्यक होगा। साथ ही साथ आतंकवाद के मामलों में निश्चित समयसीमा तय कर प्रकरण का निष्पादन कर दिया जाना ही इससे निजात पाने का सबसे सरल तरीका है।

पी चिदम्बरम ने देश की जनता को आतंकवाद और अंदरूनी सुरक्षा मुहैया कराने कटिबद्ध नजर आ रहे हैं। देश की जनता अपने गृह मंत्री पलनिअप्पन चिदम्बरम से यह जानना चाह रही है कि उनके गृह मंत्री रहते हुए बीते साल के अंत में क्रिसमस के मौके पर छोटा राजन जैसे इस साल में हुए भयानक दुर्दांत आतंकवादियों के फरार होने तथा मुंबई में डान छोटा राजन के गुर्गे डी.के.राव की जेल से दी गई रिहाई पर पार्टी में मुंबई पुलिस के उच्चाधिकरी ठुमके लगाते देखे जाने पर चिदम्बरम कुछ तो प्रतिक्रिया दें।

``महाराष्ट्र सदन`` में तब्दील हो सकता है भाजपा कार्यालय

``महाराष्ट्र सदन`` में तब्दील हो सकता है भाजपा कार्यालय


भाजपा में अब ``मराठी मानुस`` का होगा बोलबाला

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे बच्छराज व्यास और भारतीय जनता पार्टी के नए निजाम नितिन गडकरी के बीच क्या समानता हो सकती है। जी हां दोनों के बीच गहरा नाता है। लगभग आधे दशक पहले 1965 में विजयवाडा में बच्छराज व्यास को भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया था और नितिन गडकरी को 2009 में भाजपा नया अध्यक्ष बनाया गया है।

बच्छराज व्यास भी महाराष्ट्र प्रदेश की संस्कारधानी नागपुर के ही मूल निवासी थे। उसके बाद इसी जगह के नितिन जयराम गडकरी की ताजपोशी की गई है। व्यास और गडकरी दोनों ही ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पाठशाला में पल पुसकर संस्कारित हुए हैं। गडकरी और व्यास दोनों ही महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा इनके बीच सबसे बडी समानता के तौर पर यह बात सामने आ रही है कि जब व्यास ने पदभार संभाला था, तब देश में कांग्रेस की जडें काफी हद तक कमजोर हो चुकी थीं, यही बात कमोबेश आज कांग्रेस पर लागू हो रही है।


चूंकि संघ का मुख्यालय नागपुर में है अत: संघ में मराठी मानुष का दबदबा सदा से ही रहा है, किन्तु भारतीय जनता पार्टी इससे अभी तक लगभग अछूती ही मानी जा सकती है। नितिन जयराम गडकरी के अध्यक्ष बनने के बाद अब भाजपा के केंद्रीय कार्यालय में मराठाओं की दखल से इंकार नहीं किया जा सकता है।

गडकरी के करीबी सूत्रों का दावा है कि भाजपा के नए निजाम की इच्छा है कि दो नहीं तो कम से कम एक महासचिव और कोषाध्यक्ष उनके अपने सूबे या मराठा मानुष ही हो। गडकरी की पहल गोवा के पसंद मनोहर पणिकर हैं। पणिकर के सामने सबसे बडी समस्या यह है कि वे कुछ दिनों पहले भाजपा के कथित लौह पुरूष लाल कृष्ण आडवाणी को सडा हुआ अचार की संज्ञा दे चुके हैं। इसके अलावा रविशंकर प्रसाद, तमिलनाडू के धुरंधर नेता एन.गणेशन और राजस्थान की महारानी वसुंधरा को महासचिव बनाया जाना तय ही है। रामलाल को छोडकर शेष पांचों महासचिव की रवानगी इस बार तय ही मानी जा रही है।

सूत्रों ने जबर्दस्त संकेत दिए हैं कि भाजपा के राजकोष को संभालने और उसमें इजाफा करने के लिए गडकरी कोषाध्यक्ष पद पर पार्टी के कोषाध्यक्ष रहे वेद प्रकाश गोयल के पुत्र एवं महराष्ट्र के नेता पीयूष गोयल को सौंपने का मानस बना चुके हैं। गडकरी अपनी टीम में महाराष्ट्र के नेता श्याम जाजू को बतौर सचिव अपने पास रखने की बलवती इच्छा भी गडकरी के मानस पटल पर हिलोरे मार रही है।