शनिवार, 10 अप्रैल 2010

लिमटी खरे को संवाद सम्मान 2009

लिमटी खरे को संवाद सम्मान 2009

नई दिल्ली 10 अप्रेल। ब्लाग जगत में सक्रिय योगदान के लिए संवाद डॉट काम द्वारा दिए जाने वाले संवाद सम्मान 2009 के लिए लिमटी खरे का चयन किया गया है। उन्हें सामाजिक चेतना श्रेणी में नामित किया गया है। एमआरडी लाईफ साईंस द्वारा प्रायोजित इस सम्मान को ब्लाग जगत में योगदान के लिए दिया जाता है।
संवाद सम्मान के लिए सामाजिक चेतना श्रेणी में शास्त्री जे.सी.फिलिप, लिमटी खरे, रणधीर सिंह सुमन, गीत श्रेणी में राकेश खण्डेलवाल, काटूZन में काजल कुमार, यात्रा वृतान्त के लिए मनीष कुमार, नीरज जाट, संस्मरण यूनुस खान, शिख वाष्णेZय, हिन्दी सेवा के लिए हिन्दी युग्म, आशुतोष दुबे `सादिक`, गजल हेतु सर्वत एम.जमाल, नीरज गोस्वामी, कविता श्रेणी में ओम आचार्य, रूपचन्द शास्त्री मयंक, हिमांशु कुमार पाण्डे को चुना गया है।
सम्मान पाने के उपरान्त चर्चा के दौरान लिमटी खरे ने कहा कि 2009 बीतने के साथ ही साथ इंटरनेट पर अब हिन्दी का जबर्दस्त बोलबाला दिखाई पड रहा है। पहले हिन्दी को इंटरनेट पर तिरस्कृत समझा जाता था, किन्तु ब्लाग के चलते हिन्दी ने इंटरनेट पर एक मुकाम हासिल कर लिया है, जो तारीफेकाबिल है। लिमटी खरे ने भारतवासियों और विदेशों में रह रहे भारत वंशियों से अपील की है कि वे भी घरों मेें बोलचाल में और लिखने पढने के साथ ही साथ इंटरनेट पर हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग कर, हिन्दी को विश्व की सबसे शक्तिशाली भाषा बनाने की दिशा में पहल करें।

उमा की घर वापसी : निशाना यूपी या सुषमा!

उमा की घर वापसी : निशाना यूपी या सुषमा!
आडवाणी मण्डली ने झोंकी सारी ताकत
शिवराज, तोमर हैं कि मानते नहीं
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
आसान नहीं दिखती उमश्री की राह
(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 10 अप्रेल। कभी भाजपा की फायरब्राण्ड नेत्री रही साध्वी उमाश्री भारती की भाजपा में घर वापसी के लिए राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी की कीर्तन मण्डली ने सारी ताकत झोंक दी है। अब आडवाणी मण्डली हर तरह से उमाश्री को हर कीमत पर भाजपा में वापसी के मार्ग प्रशस्त करने पर तुल गई है। कहा तो यह जा रहा है कि उमाश्री को उत्तर प्रदेश में भाजपा की मजबूती के लिए वापस लाया जा रहा है, पर कहीं पे निगाहें कहीं पर निशाने साफ तौर पर समझ में आने लगे हैं।
पिछले दिनों भाजपा के शीर्ष नेता एल.के.आडवाणी ने जिस तरह से मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान को बुलावा भेजा और उनसे चर्चा की उससे साफ होने लगा है कि शिवराज सिंह चौहान पर उमाश्री की घर वापसी के लिए दवाब बनाना आरम्भ कर दिया गया है। आडवाणी के करीबी सूत्रों का कहना है कि शिवराज सिंह से बन्द कमरे में गुफ्तगूं करने के बाद दोनो ही नेताओं ने भाजपा सुप्रीमो नितिन गडकरी से भी इस मसले में रायशुमरी की।
सूत्रों ने बताया कि इसके पहले आडवाणी ने उमाश्री भारती को बुलाकर उनसे एकान्त में लंबी चर्चा की थी। आडवाणी से मिलने के उपरान्त उमाश्री भारती ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी की देहरी पर भी मत्था टेका था। उधर उमा विरोधी झण्डा उठाने वाले अरूण जेतली ने भी नितिन गडकरी के आवास पर इसी सम्बंध में चर्चा की। यह चर्चा लगभग तीन धंटे चली। गडकरी के करीबी सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि गडकरी इस बात के पक्षधर हैं कि उमाश्री भाजपा में वापस आ जाएं, किन्तु कुछ वरिष्ठ नेताओं के तगडे विरोध के चलते वे खुलकर इस मसले पर सामने आने से कतरा रहे हैं।
उधर मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के दरबार से जो खबरें छन छन कर बाहर आ रही हैं, उनके मुताबिक चौहान ने उमाश्री की वापसी से मध्य प्रदेश पर पडने वाले असर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सर कार्यवाहक सुरेश सोनी से चर्चा की है।
उमाश्री की भाजपा में वापसी से भयाक्रान्त मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भाजपाई नेताओं ने अब दिल्ली दरबार में मत्थ टेकना आरम्भ कर दिया है। एमपी की पूर्व मुख्यमन्त्री उमा भारती के सक्सेसर रहे पूर्व मुख्यमन्त्री एवं वर्तमान में सूबे में नगरीय कल्याण मन्त्रालय का जिम्मा सम्भालने वाले बाबू लाल गौर ने अपनी पुत्रवधू और भोपाल की महापौर कृष्णा गौर के साथ नितिन गडकरी से लंबी चर्चा की है। बताया जाता है कि इस चर्चा में बाबू लाल गौर ने भी शिवराज सिंह चौहान और मध्य प्रदेश भाजपाध्यक्ष नरेन्द्र तोमर की तान में ही आलाप गाया है, जिसके तहत उमा के वापस लोटने से भले ही देश में भाजपा मजबूत हो पर मध्य प्रदेश में भाजपा कई धडों में बंट सकती है।
गौरतलब है कि उमाश्री भारती की घर वापसी की अटकलें लोकसभा चुनाव के पहले लगाई जा रहीं थीं, तब मामला परवान न चढ सका। इसके बाद निरन्तर उनकी घर वापसी की चर्चा सियासी फिजा में तैरती रहीं। उमाश्री की घरवापसी की घोर विरोधी हैं मध्य प्रदेश इकाई। दरअसल उमाश्री भारती की कर्मभूति रहा है मध्य प्रदेश, सो नेताओं को भय सताए जा रहा है कि अगर उनकी घर वापसी होती है, तो वे अपना असली रंग दिखाएंगी। उस सूरत में उन नेताओं को मुश्किल का सामना करना पड सकता है, जिन्होंने उमा के मुख्यमन्त्री पद से हटने के बाद पाला बदला था।
राजनैतिक फिजां में बह रही बयार के अनुसार उमा के भाजपा में वापस आने को लेकर आडवाणी की आतुरता आश्चर्यजनक ही मानी जा रही है। अगर आडवाणी भाजपा के प्रति इतने ही फिकरमन्द थे, तो उमा को लोकसभा के पूर्व ही भाजपा में ले लिया जाता और आडवाणी का आरक्षण कंफर्म हो जाता, वे पीएम इन वेटिंग से पीएम ही बन जाते। जानकारों का मानना है चूंकि आडवाणी से नेता प्रतिपक्ष हथियाने के बाद सुषमा स्वराज काफी तेजी से अपना ग्राफ आगे बढा रहीं हैं, तो आडवाणी की कीर्तन मण्डली को लगने लगा है कि कहीं 2014 में होने वाले आम चुनावों में आडवाणी की तस्वीर भी अटल बिहारी बाजपेयी के बराबर लगाकर उनके स्थान पर सुषमा स्वराज को पीएम इन वेटिंग न बना दिया जाए। अगर एसा होता है तो लाल कृष्ण आडवाणी का 7 रेसकोर्स रोड (भारत गणराज्य के प्रधानमन्त्री का सरकारी आवास) को आशियाना बनाने का सपना अधूरा ही रह जाएगा।

देश को परिपक्व गृह मन्त्री की दरकार - - - (2)

देश को परिपक्व गृह मन्त्री की दरकार - - - (2)
कहां से पैदा हुआ नक्सलवाद
(लिमटी खरे)

नक्सलवाद का नाम आते ही अब जवानों का या तो खून खौल जाएगा या फिर उनकी रूह कांप उठेगी। कुछ ही सालों में नक्लवाद का चेहरा इतना बर्बर और दर्दनाक हो चुका है जिसकी कल्पना मात्र से रोंगटे सिहर जाते हैं। जमीनी हकीकत से अनजान देश प्रदेश के शासकों द्वारा हमारे जांबाज सिपाहियों को इनके सामने गाजर मूली की तरह कटने को छोड दिया जाता है, जो निन्दनीय है। बीते दिनों छत्तीसगढ में जो कुछ हुआ उसकी महज निन्दा से काम चलने वाला नहीं। नक्सलवादी ``सत्ता बन्दूक की गोली से निकलती है`` के सिद्धान्त पर चल रहे हैं।
दरअसल नक्सलवाद क्या है, क्यों पनपा इसके लिए उपजाउ सिंचित भूमि कहां से और किसने मुहैया करवाई इन पहलुओं पर विचार आवश्यक है, तभी इसका शमन किया जा सकता है। आखिर क्या है नक्सलवाद, इस शब्द की उत्तपत्ति कहां से हुई। पश्चिम बंगाल के एक गांव नक्सलवाडी से इसका उदह होने की बात प्रकाश में आती है। नक्सलवाडी में कम्युनिस्ट नेता कानू सन्याल, जंगल सन्थाल और चारू मजूमदार ने 1967 में सत्ता के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह आरम्भ किया था। ये दोनों ही नेता चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तंग के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित रहे हैं। इनका मानना था कि जिस तरह चीन में तंग ने सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से सत्ता हासिल की थी उसी तरह हिन्दुस्तान में भी दमनकारी शासकों का तख्ता पलट किया जा सकता है। इस विचारधारा के लोगों ने कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर अखिल भारतीय स्तर पर एक समन्वय समिति का गठन किया था।
वैसे आजाद हिन्दुस्तान में शसस्त्र क्रान्ति का इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि सशस्त्र लडाई 1948 में तेलंगाना संघर्ष के नाम पर आरम्भ हुई थी। उस काल में तेलंगाना सूबे के ढाई हजार गांवों के किसानों ने सशस्त्र लडाई का झण्डा उठाया हुआ था। इसके बाद तंग के विचारों पर आधारित इस समन्वय समिति में बिखराव के बीज पड गए और कुछ लोगों ने मार्कस के सिद्धान्त को अपनाकर अपना रास्ता अलग कर लिया इन लोगों ने मार्कसवादी कम्युनिस्ट पार्टी का अलग गठन कर लिया। माकपा ने 1967 में चुनावों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर ली। हो सकता है कि इनका मानना रहा हो कि जब तक माकूल वक्त नही आता तब तक सत्ता का स्वाद चखकर कुछ हासिल ही कर लिया जाए। 2 मार्च 1967 में पश्चिम बंगाल के चुनाव में माकपा ने बंगाल कांग्रेस के साथ मिलकर संविद सरकार का गठन किया। वैसे और खंगाले जाने पर पता चलता है कि हिन्दुस्तान में अमीरी गरीबी के बीच बढते फासले, राजनैतिक, आर्थिक व्यवस्था और दिनों दिन भ्रष्ट होती अफसशाही की उपज है नक्सलवाद। वामपन्थी दलों में अंर्तविरोध के चलतेे वाम दलों में विरोध के बीज प्रस्फुटित होते रहे और अन्तत: 11 अप्रेल 1964 को असन्तुष्ट सदस्यों ने एक नए दल का गठन कर लिया। संवदि सरकार की अवधारणा कानू सन्याल के गले नहीं उतरी और उन्होंने माकपा पर धोखाधडी का सनसनीखेज आरोप लगाकर एक नए गुट की आधारशिला रख दी।
इस आन्दोलन की नींव से अनेक संगठनों का जन्म होता रहा। कालान्तर में या तो वे हावी हाते रहे या फिर उनका शमन ही कर दिया गया। 1969 में एक और पार्टी का गठन किया गया जिसका नाम था, सीपीआई एमएल। आंध्र में आतंक बरपाने वाला पीपुल्स वार ग्रुप इसी पार्टी का एक हिस्सा था। 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप ने एमसीसी नामक ग्रुप के साथ मिलकर सीपीआई माओवादी को जन्म दे दिया।
नक्सलवाद शब्द की उत्तपत्ति के बारे में गहराई से जाने पर पता चलता है कि जब अदालत के आदेश पर जमीन्दार के पास रहन रखी जमीन को जोतने एक किसान गया तो उसे जमीन्दार के लोगों ने बेतहाशा पीटा, जैसे ही यह बात कानू सन्याल और चारू मजूमदार के कानों में आई उन्होंने जमीन्दार के खिलाफ शसस्त्र लडाई लडकर किसान को उसका हक दिलया। तब से नक्लवाडी से आरम्भ इस आन्दोलन का नाम नक्सलवाद रख दिया गया। आज नक्सलवाद और माओवाद की जद में देश के 15 सूबों के 233 से अधिक जिले और 2200 से अधिक थाने हैं।  आज बिहार, झारखण्ड, बंगाल, उडीसा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ आदि सूबों में यह समस्या नासूर बनकर उभ्र चुकी है। उत्तराखण्ड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश आदि सूबों में भी इनकी पदचाप सुनाई देने लगी है। नक्सलवाद 1990 के दशक से जोर पकड रहा है। तीन दशकों में नक्सलवाद का चेहरा बहुत ही ज्यादा वीभत्स हो चुका है। माओवादियों और नक्सलियों की भाषा में जंगल के मायने हैं दण्डकारण्य। आंध्र प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है लाल गलियारा। उधर भाजपा के चीफ कमाण्डर नितिन गडकरी कहते हैं कि लाल गलियारा पशुपतिनाथ से लेकर तिरूपति तक फैला हुआ है।
आज देश के रूपयों पर ही नक्सलवादी पल रहे हैं। कहते हैं बडे बडे नेताओं, अफसरान और उद्योगपतियों के द्वारा इन नक्सलवादी विचारधारा के मुख्यधारा से भटके हुए लोगों का पालन पोषण किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार नक्सलवादियों का रंगदारी टेक्स वसूली का सालाना राजस्व दो हजार करोड से अधिक का है। नक्सलियों की चौथ वसूली के बढते दायरे का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बिहार पुलिस ने पिछले साल नक्सलियों के पास से छ: लाख 84 हजार 140 रूपए बरामद किए थे, जो इस साल महज तीन महीने में बढकर 21 लाख 76 हजार 370 रूपए हो गया है।
(क्रमश: जारी)