गुरुवार, 26 नवंबर 2009

जरा याद करो कुबाZनी. . . .




जरा याद करो कुबाZनी. . . .

शहीद को ही भूले ``जनसेवक``

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश के चंबल की माटी में जन्मे सुशील शर्मा को मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार दोनों ही ने विस्तृत कर दिया है, वह भी महज एक साल के अंदर ही। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले 26/11 में शर्मा की शहादत को अब तक सम्मान नहीं मिल सका है।

मध्य प्रदेश के मुरेना जिले में पैदा हुए सुरेश शर्मा मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस के कंट्रोल रूम में कार्यरत थे। जब आतंकियों ने सीएसटी में आतंक बरपाना आरंभ किया तब सुरेश शर्मा ने रेल प्रशासन को इस बात की सूचना देते हुए सीएसटी पर रेल गाडियों का आवागमन रूकवाया था।

इसके साथ ही साथ जब उन्होंने एक बच्ची को प्लेटफार्म पर से गुजरते देखा तो आतंकियों के चंगुल से उसे बचाने की गरज से वे उसकी ओर लपके। सौभाग्यवश उक्त बच्ची की जान तो बच गई पर सुरेश शर्मा आतंकियों की गोली का शिकार हो गए। शहीद सुशील शर्मा के पिता को अपने बेटे की शहादत पर नाज है, पर वे इस बात से बुरी तरह आहत हैं कि उनके पुत्र को वह सम्मान नहीं मिला जिसका वह हकदार था।

विडम्बना ही कही जाएगी कि एक तरफ तो 26/11 में आतंकियों से लडने वाले एक एक जवान को ढूंढ ढूंढ कर पुरूस्कृत किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर इस जांबाज रेल कर्मचारी की शहादत को भारतीय रेल ने साधारण मौत मानकर सुशील शर्मा के परिवार को उसकी आर्थिक देनदारियां देकर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर ली।

आश्चर्य की बात तो यह है कि मध्य प्रदेश की भाजपा और केंद्र की कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने भी इस बारे में कोई कदम नहीं उठाया है। देश को गौरवािन्वत करने वाले जांबाज सुशील शर्मा के इस वीरता भरे कारनामे के लिए देश ने उसे नम आंखों से अपनी सलामी दी थी।

मध्य प्रदेश में विधानसभा फिर लोकसभा के बाद अब स्थानीय निकाय के चुनावों में उलझे शिवराज सिंह के सरकारी नेतृत्व ने इस शहीद के लिए 26/11 की पहली बरसी पर एक शब्द कहने की जहमत नहीं उठाई है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी।

सत्ता के मद में चूर शिवराज सिंह चौहान के बर्ताव को तो समझा जा सकता है, किन्तु केंद्र में मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करने वाले भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ, आदिवासी मामलों के मंत्री कांतिलाल भूरिया, वाणिज्य उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ ही साथ अरूण यादव जैसे मंत्रियों ने भी सुशील शर्मा के हक में आवाज न उठाकर उन्हें मिले जनादेश का सरेआम अपमान किया है।

सुशील के पिता विश्वंभर दयाल नगाईच का दर्द उनके कथन में समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें अपने बेटे की कुबाZनी पर नाज है, पर मलाल इस बात का है कि कर्तव्य और मानवता की मिसाल देने वाले उनके पुत्र सुशील को देश की खातिर जान न्योछावर करने के बाद भी इस शहादत को सुरक्षा बलों के जाबांजों की शहादत से कमतर क्यों आंका जा रहा है।

देश की खातिर अपनी जान देने वाले मध्य प्रदेश के सपूतों की याद में तत्कालीन सरकारों ने पलक पांवडे बिछाए थे, जिनमें राजेश, बिन्दु कुमरे आदि के उदहारण हमारे सामने हैं। विडम्बना यह है कि इनकी याद में स्मारकों को मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समय स्थान दिया गया था।

मध्य प्रदेश के वर्तमान हाकिम शिवराज सिंह चौहान एक तरफ तो लाडली लक्ष्मी जनहितकारी योजनाओं के जनक बनकर मीडिया में छाए हुए हैं, वहीं दूसरी ओर सुशील शर्मा की शहादत पर एकाएक इतने निष्ठुर कैसे हो गए हैं, कि उनकी सरकार ने इस शहीद की याद में सम्मान देना तो दूर दो शब्द कहना भी मुनासिब नहीं समझा।

वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के केंद्रीय राजनीति में रहते हुए भी मध्य प्रदेश के इस सपूत के परिजनों को अपने पुत्र की शहादत के सम्मान के लिए यहां वहां ताकना पड रहा है, जो किसी भी दृष्टिकोण से क्षम्य नही कहा जा सकता है।

हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश प्रेम का जज्बा जगाने वाले गाने आज सिर्फ और सिर्फ स्वाधीनता और गणतंत्र दिवस पर ही सुनाई पडते हैं। स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने जब ``ए मेरे वतन के लोगों`` गाया तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की आंखें भी छलछला उठीं थीं।

अभी लोगों की स्मृति से विस्मृत नहीं हुआ होगा कि किसी नेता के आगमन या सरकारी आयोजनों में देशप्रेम से लवरेज गानों की बहार हुआ करती थी,, जो लोगों के मन में देश के प्रति कुछ करने का जज्बा जगा देती थी। विडम्बना ही कही जाएगी कि आज के समय में इस सबसे हटकर नेताओं की चरण वंदना करने वाले गीतों की भरमार हुआ करती है।

देश के लिए मर मिटने वाले जांबाज शहीद पहले युवाओं के पायोनियर (अगुआ, आदर्श) हुआ करते थे। देशप्रेम को लेकर सिनेमा बना करते थे। जगह जगह महात्मा गांधी, नेहरू, पटेल जैसे नेताओं की फोटो नजर आती थी। पर आज इनकी जगह राजनाथ सिंह और सोनिया गांधी ने ले ली है। पार्टियों के कार्यालयों में भी गणेश परिक्रमा साफ दिख जाती है।

बहरहाल, अभी भी देर नहीं हुई है, केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को चाहिए कि 26/11 में शहीद हुए सुशील शर्मा को उसकी शहादत का वाजिब सम्मान दिलाए और लोगों के मन में देश प्रेम का जज्बा जगाने के मार्ग प्रशस्त करे।