चिरनिंद्रा में लीन
हिन्दुत्व का पुरोधा!
(निधि गुप्ता)
मुंबई (साई)। चार
दशकों तक देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई पर एकछत्र राज करने वाले हिन्दुत्व के
पुरोधा बाला साहेब ठाकरे चिरनिंद्रा में लीन हो गए। शिवाजी पार्क में रविवार देर
शाम जब उद्धव ठाकरे ने बाल ठाकरे की चिता को मुखाग्नि दी, तो पास ही खड़े उनके
चचेरे भाई और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे बेहद भावुक हो गए। हमेशा बेहद सख्त नजर आने
वाले राज चाचा की चिता के बगल में काफी देर तक सुबकते रहे। राज रोते हुए घुटने के
बल बैठ गए और उन्होंने बाल ठाकरे की जलती चिता को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। बाल
ठाकरे के अंतिम संस्कार के वक्त पूरा शिवाजी पार्क खचाखच भरा था। हर किसी की आंखें
नम थीं। पुलिस के मुताबिक शिवाजी पार्क में करीब 20 लाख लोग बाल ठाकरे
के अंतिम दर्शन के लिए मौजूद थे।
अंतिम दर्शन के लिए
लौटेः इससे पहले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की शवयात्रा को बीच में छोड़कर घर गए
एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे अंतिम संस्कार से ठीक पहले शिवाजी पार्क पहुंचे। शाम करीब
साढ़े चार बजे वह एमएनएस के नेताओं के साथ शिवाजी पार्क में पहुंचे। वहां वह उद्धव
ठाकरे के साथ बातचीत करते देखे गए। राज ठाकरे के शवयात्रा से जाने पर कयास लगाए जा
रहे थे कि भले ही बाला साहेब राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे को एक साथ मिलना चाहते थे, लेकिन दोनों के बीच
की दूरी कम नहीं हुई है। जिस वक्त उद्धव बिलखते हुए दिखाई दे रहे थे, तब उन्हें सहारा
देने के लिए राज ठाकरे आसपास मौजूद नहीं थे।
शवयात्रा बीच में
छोड़ीः अंतिम यात्रा के दौरान जहां उद्धव और परिवार के करीबी लोग बाला साहेब के
पार्थिव शरीर के साथ ट्रक पर सवार थे, वहीं राज ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना
के समर्थकों के साथ पैदल चल रहे थे।बाद में अपने समर्थकों के साथ राज ठाकरे ने अलग
रास्ता पकड़ लिया। वह उस रास्ते से नहीं गए, जहां से अंतिम यात्रा गुजर रही थी। कुछ देर
बाद वह शव यात्रा को बीच में छोड़कर घर की ओर रवाना हो गए।
राज के अचानक शव
यात्रा से लौटने से कयास लगाए जाने लगे कि राज और उद्धव को एक करने का बाल ठाकरे
का सपना क्या पूरा होगा। कई मौकों पर बाल ठाकरे के भाषणों से इस तरह के संकेत मिले
थे कि वह राज ठाकरे के अलग होकर नई पार्टी बनाने के फैसले से दुखी थे। वह चाहते थे
किदोनों भाई एक साथ आ जाएं। उन्होंने दोनों को साथ मिलकर काम करने की सलाह भी दी
थी। बताया जा रहा है कि उन्होंने राज और उद्धव से कहा था कि एक हो जाओ, लेकिन ऐसा हो नहीं
पाया। राज ठाकरे ने भले ही अलग पार्टी बना ली हो, लेकिन वह बाला
साहेब के नक्शे कदम पर ही चले। पार्टी के नाम से लेकर पार्टी के काम करने का तरीका
और मुद्दे भी एक जैसे ही थे। बाल ठाकरे की तरह राज ने भी श्मराठी माणुसश् की
राजनीति की। काफी हद तक राज ठाकरे ने शिवसेना के वोट बैंक में भी सेंध लगाई। लोग
राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते हैं।
भले ही राज ने बाला
साहेब से नाराज होकर अलग पार्टी बनाई हो, लेकिन उनके दिल में अपने चाचा और भाई के
प्रति प्यार और सम्मान कम नहीं हुआ था। पिछले दिनों जब उद्धव हॉस्पिटल में ऐडमिट
हुए थे, तब भी राज
ठाकरे खुद उन्हें अपनी कार से घर लाए थे। एक निजी चेनल को दिए
इंटरव्यू में राज ठाकरे कहा था, श्परिवार का मामला अलग है और राजनीति का
अलग। मैं हर मोड़ पर अपने परिवार के साथ हूं।श् साथ ही भविष्य में एक साथ आने के
सवाल को लेकर भी उन्होंने कहा था कि भविष्य की बात भविष्य में देखेंगे।
बाला साहेब के जाने
के बाद उनके और राज ठाकरे के समर्थकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा
सवाल यही है कि क्या राज ठाकरे की शिवसेना में वापसी होगी और क्या राज और उद्धव
दोनों साथ मिलकर काम करेंगे? लेकिन जानकारों का मानना है बाला साहेब के
रहते हुए ही राज और उद्धव एक हो सकते थे, लेकिन अब यह श्प्रैक्टिकलीश् संभव नहीं
दिखता।
प्रभावशाली संदेश
वाले कार्टून बनाने से लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक मंच पर बेहद अहम भूमिका निभाने
वाले बाल ठाकरे मराठी गौरव और हिंदुत्व के प्रतीक थे, जिनके जोशीले अंदाज
ने उन्हें शिवसैनिकों का भगवान बना दिया। शिवसेना के 86 वर्षीय प्रमुख को
उनके शिवसैनिक भगवान की तरह पूजते थे और उनके विरोधी भी उनके इस कद से पूरी तरह
वाकिफ थे। अपने हर अंदाज से महाराष्ट्र की राजनीति की दिशा बदलने वाले ठाकरे
दोस्तों और विरोधियों को हमेशा यह मौका देते रहे कि वह उन्हें राजनीतिक रूप से कम
करके आंकें, ताकि वह
अपने इरादों को सफाई से अंजाम दे सकें। वह अकसर खुद बड़ी जिम्मेदारी लेने की बजाय
किंगमेकर बनना ज्यादा पसंद करते थे। कुछ के लिए महाराष्ट्र का यह शेर अपने आप में
एक सांस्कृतिक आदर्श था।
एक इशारे से मुंबई
की रौनक को सन्नाटे में बदलने की ताकत रखने वाले बाल ठाकरे ने आर. के. लक्ष्मण के
साथ अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल में 1950 के दशक के अंत में कार्टूनिस्ट के तौर पर
अपना करियर शुरू किया था, लेकिन 1960 में उन्होंने कार्टून साप्ताहिक
श्मार्मिकश् की शुरुआत करके एक नए रास्ते की तरफ कदम बढ़ाया। इस साप्ताहिक में ऐसी
सामग्री हुआ करती थी, जो श्मराठी मानुषश् में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने का
जज्बा भर देती थी और इसी से शहर में प्रवासियों की बढ़ती संख्या को लेकर आवाज बुलंद
की गई।
ठाकरे की यह बात कि
श्महाराष्ट्र मराठियों का है,श् स्थानीय लोगों में इस कदर लोकप्रिय हुई
कि उनकी पार्टी ने 2007 में
बीजेपी के साथ पुराना गठबंधन होने के बावजूद राष्ट्रपति के चुनाव में अलग राय बनाई
और यूपीए की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन किया, जो महाराष्ट्र से
थीं। उन्होंने 2009 में सचिन
तेंडुलकर की आलोचना कर डाली, जिन्होंने कहा था कि मुंबई पूरे भारत की है।
ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की
स्थापना की और उसके बाद मराठियों की तमाम समस्याओं को हल करने की जिम्मेदारी अपने
सिर ले ली।
ठाकरे ने खुद कभी कोई
चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन
शिवसेना को एक पूर्ण राजनीतिक दल बनाने के बीज बोए जब उनके शिव सैनिकों ने बॉलिवुड
सहित विभिन्न उद्योगों में मजदूर संगठनों पर नियंत्रण करना शुरू किया। शिवसेना ने
जल्द ही जड़ें जमा लीं और 1980 के दशक में मराठी समर्थक मंत्र के सहारे बृहनमुंबई नगर निगम
पर कब्जा कर लिया। बीजेपी के साथ 1995 में गठबंधन करना ठाकरे के राजनीतिक जीवन का
सबसे बड़ा मौका था और इसी के दम पर उन्होंने पहली बार सत्ता का स्वाद चखा।
बहुत से लोगों का
मानना है कि 1993 के मुंबई
विस्फोटों के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों में शिवसैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई, जिसके चलते
सेना-बीजेपी गठबंधन को हिंदू वोट जुटाने में मदद मिली। उन्होंने कहा था, श्इस्लामी आतंकवाद
बढ़ रहा है और हिंदू आतंकवाद ही इसका जवाब देने का एकमात्र तरीका है। हमें भारत और
हिंदुओं को बचाने के लिए आत्मघाती बम दस्ते की जरूरत है।श् प्रवासी विरोधी विचारों
के कारण ठाकरे को हिंदी भाषी राजनीतिज्ञों की नाराजगी झेलनी पड़ती थी। बिहारियों को
देश के विभिन्न भागों के लिए श्बोझश् बताकर उन्होंने खासा विवाद खड़ा कर दिया था।
हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के वह प्रशंसक थे।
शिवसेना प्रमुख बाल
ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए शिवाजी पार्क में बड़ी संख्या में
प्रमुख हस्तियां पहुंचीं। इनमें राजनीति, फिल्म और कॉर्पाेरेट जगत के दिग्गज शामिल
हैं। दादर में शिवसेना मुख्यालय से कुछ मीटर की दूरी पर स्थित शिवाजी पार्क मैदान
में ठाकरे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पहुंचे प्रमुख लोगों में एनसीपी
प्रमुख शरद पवार, बीजेपी के
सीनियर नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, ऐक्टर अमिताभ बच्चन
और उद्योगपति अनिल अंबानी शामिल थे।
इसके साथ ही वहां
पर बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह
चौहान, मेनका
गांधी और शाहनवाज हुसैन, सीनियर कांग्रेस नेता डॉ। डी। वाई। पाटिल और महाराष्ट्र
विधानसभा में विपक्ष के नेता एकनाथ खडसे भी उपस्थित थे। इसके अलावा केंद्रीय
मंत्री प्रफुल्ल पटेल, सीनियर बीजेपी नेता अरुण जेटली, वीएचपी नेता प्रवीण
तोगड़िया, कांग्रेस
नेता राजीव शुक्ला और महाराष्ट्र के लोकनिर्माण मंत्री छगन भुजबल भी मौजूद थे।
इस मौके पर बॉलिवुड
अभिनेता नाना पाटेकर, महेश मांजरेकर, संजय दत्त और रितेश देशमुख भी उपस्थित थे।
ठाकरे की शवयात्रा मुंबई की प्रमुख सड़कों से गुजरते हुए 6 घंटे में शिवाजी
पार्क मैदान पहुंची। इस शवयात्रा में लाखों शिवसैनिक और ठाकरे के समर्थक शामिल थे।
फिल्मों के बाद बाल
ठाकरे का दूसरा सबसे पसंदीदा विषय था क्रिकेट। सुनील गावस्कर से सचिन तेंडुलकर तक, सभी उनका आशीर्वाद
लेते रहे हैं। अपने दाहिने हाथ मनोहर जोशी के जरिये ठाकरे ने मुंबई क्रिकेट
असोसिएशन (एमसीए) पर दो दशक तक एकछत्र राज रखा। एमसीए पर शिवसेना के दबदबे के वक्त
वह दलबल के साथ वानखेड़े स्टेडियम जाया करते थे। प्रेस बॉक्स के आगे खुले में बने
प्रेसिडेंट्स बॉक्स में उनका चुरुट पीता चेहरा आज भी नहीं भूलता।
पाकिस्तान का विरोध
शिवसेना की क्रिकेट राजनीति की धुरी रहा है। 1991 में पाकिस्तानी
क्रिकेट टीम के मुंबई दौरे का शिवसेना ने मुखर विरोध किया था, लेकिन सरकार गाफिल
होकर तैयारी में लगी रही। पाक टीम मुंबई पहुंच गई और प्रैक्टिस में लग गई तो
शिवसेना के तत्कालीन विभाग प्रमुख शिशिर शिंदे की अगुवाई में छह शिवसैनिकों ने
वानखेड़े स्टेडियम में तैनात डेढ़ सौ से अधिक पुलिसकर्मियों को चकमा देते हुए पिच ही
खोद डाली। इस घटना के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आज तक मुंबई में कोई टेस्ट मैच नहीं
खेला जा सका है।
2009 में सचिन तेंडुलकर के श्मुंबई पूरे भारत
कीश् वाले बयान पर बाल ठाकरे ने नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने सचिन को कांग्रेस
की श्डर्टी पिक्चरश् बताया था। जब शाहरुख खान ने आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेटरों
को खिलाने की बात कही तो नाराज बाल ठाकरे का मूड देखकर श्माई नेम इज खानश् की
रिलीज पर बादल छा गए थे। मानमनौव्वल के बाद कहीं जाकर मामला ठीक हुआ। बाल ठाकरे का
क्रिकेट प्रेम तो अब पोते तक पहुंच गया है। आदित्य ठाकरे हाल ही में मुंबई क्रिकेट
असोसिएशन से संबंधित क्लब यंग फ्रेंड्स यूनियन के अध्यक्ष चुने गए हैं।
बाल ठाकरे की
कम्यूनिकेशन स्किल गजब की थी। अपने दौर में वह देश के आला कार्टूनिस्ट्स में शुमार
होते थे। अगर ठाकरे के अंतर्मन में झांकना हो तो उनके बनाए कार्टूनों को देखा जा
सकता है। महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अलगाववाद, छुआछूत और सीमा
विवाद जैसे मुद्दों पर उनके कार्टून सिस्टम की पोल खोलकर रख देते हैं। उनके
कार्टूनों में आक्रोश भी झलकता है। अपने कार्टून संग्रह पर आधारित कॉफी टेबल बुक
श्फटकारेश् में बाल ठाकरे ने लिखा है कि उन्होंने कार्टून बनाना सीखने के लिए कोई
डिग्री नहीं ली।
कार्टूनिस्ट से
शिवसेना प्रमुख बने बाल ठाकरे को सिनेमा से काफी लगाव था। अपने भाषणों में वह
कभी-कभी सिनेमा के सुपरहिट डायलॉग्स का इस्तेमाल कर दिल जीत लेते थे। बॉलिवुड के
कई सितारों से उनके घरेलू रिश्ते थे। दिलीप कुमार, लता मंगेशकर और
अमिताभ बच्चन उनके दिल के काफी करीब थे।
किसी ज़माने में
दिलीप कुमार के साथ वह मातोश्री की छत पर बैठकर बियर की चुस्कियों के साथ घंटों
गपशप किया करते थे। लता मंगेशकर ने जब भी अपने किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में
उन्हें आमंत्रित किया, ठाकरे जरूर शामिल हुए। अमिताभ बच्चन जब श्कुलीश् की शूटिंग के
दौरान घायल हुए थे और इमरजेंसी ऑपरेशन के लिए उन्हें बेंगलुरु से मुंबई लाया गया
था, तो हवाई
अड्डे से ब्रीच कैंडी हॉस्पिटल ले जाने के लिए एंबुलेंस का प्रबंध खुद बालासाहेब
ने किया था।
अमिताभ जब मौत के
मुंह से बाहर निकले,
तो ठाकरे ने हॉस्पिटल में उनसे मुलाकात की और अपने हाथों से
बनाया एक खास कार्टून उन्हें भेंट किया था, जिसमें बताया गया था यमराज को अमिताभ ने
पराजित कर दिया! इस यादगार कार्टून को बिग बी ने बड़े प्यार से संभालकर रखा है।
अमिताभ उस दिन उनके मुरीद हो गए थे, जिस दिन ठाकरे ने भारत सरकार से उन्हें भारत
रत्न देने की मांग की थी।