बुधवार, 4 जुलाई 2012

आराम में खलल से नाराज हैं युवराज!


आराम में खलल से नाराज हैं युवराज!

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। कांग्रेस की नजर में देश के युवराज और अगले वज़ीरे आज़म गर्मी के अंतिम दिनों में अपनी नानी के घर आराम फरमा रहे थे कि अचानक ही उन्हें भारत आने का बुलावा आ गया। राहुल कांग्रेस के इस बुलावे से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। देश में महामहिम राष्ट्रपति का चुनाव चल रहा है और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी परिदृश्य से लगभग गायब ही थे।
सियासी गलियारों में यह चर्चा आम हो चुकी है कि सोनिया गांधी के ना चाहने के बाद भी पूर्व वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार इसलिए बनाया क्योंकि प्रणव मुखर्जी ने पद और कांग्रेस से त्यागपत्र देने की धमकी दे डाली थी। इन बातों में कितना दम है यह बात तो कांग्रेस जाने और प्रणव मुखर्जी, किन्तु ममता बनर्जी के साथ चर्चा के बाद जब ममता मीडिया से रूबरू हुईं तब कांग्रेस की दो पसंद के बारे में बताकर उन्होंने सभी को चौंका दिया था।
इसके बाद प्रणव मुखर्जी का नाम सामने आया और आनन फानन बाबू मोशाय को फेयरवेल देने का प्रस्ताव रखा गया। कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि यह तय किया गया कि 25 जून को अपरान्ह ग्यारह बजे बाबू मोशाय को कांग्रेस की ओर से फेयरवेल देकर उनकी औपचारिक बिदाई कर दी जाए।
सूत्रों का कहना है कि इस प्रोग्राम में अगर राहुल गांधी अनुपस्थित रहते तो इन खबरों को बल मिल जाता कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी वास्तव में प्रणव मुखर्जी की उम्मीदवारी के इच्छुक नहीं थे। फिर क्या था कांग्रेस के अतिउत्साहित प्रबंधकों ने इटली के तुरीन में आराम फरमा रहे युवराज राहुल गांधी को वापस बुला भेजा। आराम में खलल से पहले तो युवराज काफी खफा हुए फिर अपने सियासी चाणक्यों से मशविरे के बाद उन्होंने नानी से विदा ली।
कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि विमानन के क्षेत्र में दखल रखने वाले एक चर्चित केंद्रीय मंत्री के द्वारा इटली से भारत आने के लिए जेट एयरवेज के एक्जीक्यूटिव क्लास की टिकिट युवराज के लिए बुक करवाई गई और राहुल 25 जून को सुबह सवेरे दिल्ली में लेण्ड कर गए।
बताते हैं कि युवराज राहुल गांधी की जेट उड़ान थोड़ा विलंब से नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंची तो विमान में ही कपड़े बदलकर राजा बाबूबनकर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी घर जाने के बजाए भागे भागे प्रणव मुखर्जी के बिदाई समारोह में जा पहुंचे, तब जाकर कांग्रेस के रणनीतिकारों की सांस में सांस आई। वरना भावी महामहिम राष्ट्रपति की पार्टी से औपचारिक बिदाई में भावी प्रधानमंत्री का ना होने की खबर मीडिया की सुर्खियां बनते देर नहीं लगती।

राजीव, जेल सिंह के रिश्तों की तल्खी ने गिराई महामहिम की साख!


खण्डित हो गई है राष्ट्रपति भवन की गरिमा! . . . 3

राजीव, जेल सिंह के रिश्तों की तल्खी ने गिराई महामहिम की साख!

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। ज्ञानी जेल सिंह को देश का महामहिम राष्ट्रपति बनाकर कांग्रेस ने पंजाब में हुए अत्याचारों पर मरहम लगाने का प्रयास किया किन्तु जब राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली उसके बाद राजीव और जेल सिंह के बीच रिश्तों में जबर्दस्त तल्खी महसूस की जाने लगी। इसी के चलते रायसीना हिल्स स्थित महामहिम आवास की गरिमा को ठेस लगना आरंभ हो गया।
राष्ट्रपति भवन के सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच रिश्ते इस कदर खराब हो गए थे कि राजीव सरकार ने महामहिम को सबक सिखाने के लिए उनके विदेश दौरों पर ही अघोषित प्रतिबंध लगा दिया था।
लंबी चली वर्चस्व की लड़ाई के अंतिम समय राजीव सरकार ने तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति को विदेश दौरे पर जाने की अनुमति दी। वे लंबे समय के उपरांत इकलौते विदेश भ्रमण पर यूगोस्लाविया, ग्रीस और पोलेण्ड राजकीय यात्रा पर जा सके। इस दौरान राजीव सरकार को खासी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। राजीव गांधी पर ज्ञानी जेल सिंह को दुबारा महामहिम चुनाव लड़ने के लिए उस समय चालीस करोड़ रूपए की रिश्वत देने के आरोप भी लगे थे।
सेवा निवृत्ति के बाद भारत गणराज्य के महामहिम राष्ट्रपतियों को सरकारी आवास की सुविधा की नज़ीर तो नहीं मिलती किन्तु पंजाब की आतंकवादी धमकियों के चलते ज्ञानी जेल सिंह को चाणक्यपुरी में एक सरकारी आवास अवंटित करवा दिया गया। इसके बाद से सेवा निवृत महामहिम राष्ट्रपतियों ने सेवानिवृति के साथ ही सरकारी आवास का आवंटन पेंशन के साथ ही साथ अपना सबसे बड़ा हक समझा जाने लगा है।
इसी माह रिटायर होने वाली देश की पहली महामहिम महिला राष्ट्र प्रमुख प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने पुणे के खिड़की में केंटोनमेंट क्षेत्र में बंग्ला बनाने का सपना देखा तो विवादों में फंस गईं। मीडिया में बार बार खबरें उछलने पर मजबूरी में प्रतिभा ताई को अपना विचार ही त्यागना पड़ा।

एमपी नहीं मालवा के कांग्रेस अध्यक्ष हैं भूरिया!


एमपी नहीं मालवा के कांग्रेस अध्यक्ष हैं भूरिया!

बी.के.हरिप्रसाद पर भी आ रही आंच

महाकौशल को अनाथ छोड़ा कांग्रेस के नेताओं ने

(संजीव प्रताप सिंह)

सिवनी (साई)। क्या महाकौशल क्षेत्र को सवा सौ साल पुरानी और देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस द्वारा अनाथ छोड़ दिया गया है? इस क्षेत्र का कोई धनी धोरी नहीं रह गया है? क्या महाकौशल की माटी कांग्रेस के सपूतों से रीत गई है? क्या महाकौशल के सारे कांग्रेसी योद्धा वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं? क्या कांतिलाल भूरिया महज मालवा की कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं? इस तरह के प्रश्न महाकौशल अंचल की सियासी फिजां में गूंज रहे हैं।
मध्य प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए 5 जुलाई को मतदान होना है। महाकौशल के कमोबेश हर जिले में (सिवनी को छोड़कर) स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। बावजूद इसके महाकौशल की ओर नजरें इनायत करने किसी भी कांग्रेस के नेता को चिंता नहीं है। कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी उस वक्त उभरकर सामने आ जाती है जब महाकौशल के ही क्षत्रप स्थानीय निकाय चुनावों से खुद को दूर रखे हुए हों।
गौरतलब है कि महाकौशल अंचल में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में केंद्रीय मंत्री कमल नाथ (छिंदवाड़ा), रामेश्वर नीखरा (नरसिंहपुर), बसोरी सिंह मसराम (मण्डला सिवनी), उदय प्रताप सिंह (होशंगाबाद, नरसिंहपुर), हरवंश सिंह ठाकुर (सिवनी), दीपक सक्सेना (छिंदवाड़ा), तेजी लाल सरेयाम (छिंदवाड़ा), संजय पाठक (कटनी), निथीश पटेल (कटनी), लखन घनघोरिया (जबलपुर), गंगा बाई उरेती (डिंडोरी), ओमकार सिंह मरकाम (डिंडोरी), नारायण सिंह (मण्डला), प्रदीप जायस्वाल (बालाघाट), विश्वेश्वर भगत (बालाघाट), नर्मदा प्रसाद प्रजापति (नरसिंहपुर), साधना स्थापक (नरसिंहपुर), सुनील जायस्वाल (नरसिंहपुर), चौधरी मेर सिंह (छिंदवाड़ा) आदि का शुमार है।
बावजूद इसके किसी ने भी स्थानीय निकाय के चुनावों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का प्रयास नहीं किया है। हद तो भगवान शिव की नगरी सिवनी में लखन कुंवर की नगरी लखनादौन में हो गई जहां कांग्रेस ने सीधे सीधे भाजपा अथवा किसी कारण विशेष से एक निर्दलीय के सामने घुटने टेक दिए। मतदान से महज 36 घंटे पहले भी कांग्रेस ने किसी भी प्रत्याशी को समर्थन देने की घोषणा नहीं की है।
उल्लेखनीय होगा कि नाम वापसी के वक्त मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया ने कहा था कि उनके संज्ञान में यह बात लाई गई है कि लखनादौन में कांग्रेस के उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेने से अब अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस का कोई प्रत्याशी नहीं रह गया है। 18 जून को श्री भूरिया ने कहा था कि कांग्रेस द्वारा एक निर्दलीय को अपना डमी खड़ा करवाया था और उसे ही कांग्रेस समर्थन की घोषणा कर देगी।
उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशियों में से एक श्रीमति सुधा राय थीं, जिनके अघोषित चुनाव संचालक उनके पुत्र दिनेश राय हैं। गोरतलब है कि दिनेश राय द्वारा पूर्व में नगर पंचायत लखनादौन के उपाध्यक्ष रहते हुए सिवनी से विधानसभा का चुनाव लड़ा था और इनके कारण ही कांग्रेस प्रत्याशी प्रसन्न चंद मालू की जमानत जप्त हो गई थी। इसके अलावा नूर बी भी निर्दलीय प्रत्याशी हैं।
इन दोनों में से कांग्रेस ने किसे डमी केंडीडेट के बतौर खड़ा किया गया है, यह बात अभी तक साफ नहीं हो सकी है। इस बारे में जब समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया द्वारा मध्य प्रदेश के प्रभारी महासचिव बी.के.हरिप्रसाद से चर्चा की गई थी तो उन्होंने कहा था कि वे बंग्लुरू में हैं और आकर इस संबंध में पड़ताल करेंगे कि एसा आखिर कैसे हुआ? लगभग पंद्रह दिन बीतने के बाद भी हरिप्रसाद की चुप्पी से शक की सुई उनकी ओर भी घूमती नजर आ रही है।
इस संबंध में जब कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह से दूरभाष पर संपर्क किया गया तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कह दिया कि किसे प्रत्याशी बनाना है किसे समर्थन देना है यह उनका काम नहीं है। इस संबंध में जो भी जानकारी लेना है वह जानकारी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया से ही ली जाए।
जब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया से उनके मोबाईल पर संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाईल सदा की ही भांति स्विच्ड ऑफ ही मिला। श्री भूरिया के निज सचिव प्रवीण कक्कड़ ने दूरभाष पर बताया कि वे श्री भूरिया के साथ नहीं हैं, और श्री भूरिया मालवा में सरदारपुर में व्यस्त हैं।
यहां उल्लेखनीय होगा कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कांति लाल भूरिया ने महाकौशल अंचल को अपनी प्राथमिकता सूची से एकदम बाहर ही कर रखा है। इन चुनावों में उन्होंने मालवा को छोड़कर अन्य किसी अंचल में रूख ही नहीं किया है। अब तो कांग्रेस के ही लोग उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष की बजाए मालवा कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष मानने लगे हैं।

कमल के बजाए कमल नाथ भा रहे गौर को


कमल के बजाए कमल नाथ भा रहे गौर को

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। भाजपा के उमर दराज नेता बाबू लाल गौर जिन्हें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने और सबसे सीनियर एमएलए होने का रूतबा हासिल है के कदम ताल देखकर लगने लगा है मानों उनका रूझान कांग्रेस की ओर बढ़ गया है। कभी वे केंद्र के कांग्रेस के मंत्रियों के गुणगान करते हैं तो कभी केंद्र की इमदाद लाने का दावा करते हैं। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की तारीफ में कशीदे गढ़कर सभी को चौंका दिया है।
पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की किताब में हुए खुलासों से राजनीतिक हलकों में मची हलचल के बीच मध्य प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर ने सोनिया गांधी को बड़े दिल वाली महिला करार दिया है। किताब में कहा गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया था।
कलाम के खुलासे के बाद भले ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सोनिया की तारीफ करने से कतरा रही हो, लेकिन गौर ने उनकी खुलकर सराहना की है। एक निजी चौनल से बातचीत में गौर ने कहा कि कलाम ने अपनी किताब में कहा है कि सोनिया गांधी 2004 में जब उनसे मिलने पहुंचीं तो उन्होंने स्वयं प्रधानमंत्री बनने से इंकार करते हुए मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने की सिफारिश की। यह बड़ी बात है।
गौर ने आगे कहा कि जब किसी मंत्री या मुख्यमंत्री को पद से हटा दिया जाता है तो वह बेचौन हो जाता है, मगर एक महिला ने प्रधानमंत्री बनने से इंकार कर दिया। गौर ने कहा, ‘परिस्थितियां चाहे जो रही हों, मगर यह बड़े दिल का काम है। सोनिया का प्रधानमंत्री न बनने का फैसला यह बताता है कि उनका हृदय और मन बड़ा है। गौर ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री देश का सबसे बड़ा पद है, और इसे पाने के लिए प्रतियोगिता व संघर्ष तक होता है। इस पद का त्याग करना बड़े दिल का प्रमाण है।
सियासी गलियारों में बाबू लाल गौर के बयानों पर अब शोध होने लगा है। एक तरफ शिवराज सिंह चौहान की सरकार द्वारा कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पर मध्य प्रदेश के साथ अन्याय का आरोप लगाया जाता है, वहीं दूसरी ओर बाबू लाल गौर द्वारा केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कमल नाथ से लगभग हर सप्ताह मिलकर उनसे जो इमदाद प्रदेश को दिलाई जाने का दावा जनसंपर्क विभाग के माध्यम से किया जाता है उसकी तादाद ढाई हजार करोड़ रूपयों से कहीं अधिक हो चुकी है।
दिल्ली के सियासी गलियारों में भी मध्य प्रदेश के भाजपाई मंत्री बाबू लाल गौर का कमलके बजाए ‘‘कमल नाथ‘‘ के प्रति प्रेम भी चर्चाओं में ही है। कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में परासिया के प्रकरण में समूची भाजपा एक तरफ होने के बाद भी गौर ने कमल नाथ का ही साथ दिया बताया जाता है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि कमल नाथ और सोनिया गांधी की स्तुति करने वाले बाबू लाल गौर अगर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर लें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।