शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

मोबाईल टावर बनाम खतरे की मीनारें


खतरे की तरंगें 
मलाई काट रही मोबाईल कंपनियां फैला रहीं अजब प्रदूषण
 
मानव जीवन से खिलवाड़ करती मोबाईल कंपनियां
 
अंधा पीसे कुत्ता खाए की तर्ज पर चल रहा है मोबाईल कारोबार
 
(लिमटी खरे)

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इक्कीसवीं सदी के आगाज के साथ ही भारत गणराज्य में संचार क्रांति चरम पर पहुंच चुकी है। कमोबेश हर हाथ में मोबाईल ही दिखाई पड़ता है। एक समय था जब लेंड लाईन हुआ करती थी, वह भी बड़ी ही सीमित। फोन उठाईए, एक्सचेंज मिलाईए नंबर बताईए, फिर लोकल काल भी वही मिलाकर देगा। धीरे धीरे डायलिंग सिस्टम आरंभ हुआ। फिर ट्रंक काल बुकिंग, एक्सचेंज से आवाज आती थी, लाईटनिंग है, एक्सप्रेस या आर्डनरी। समय बदला राजीव गांधी के जमाने में सेम पित्रोदा ने संचार तकनीकों को बेहद उन्नत बनाया। उस दौरान कार्ड लेस फोन रखना ही स्टेटस सिंबाल होता था। आज हर हाथ में एक मोबाईल वह भी कलर स्क्रीन वाला दिखाई पड़ जाता है।
पिछले कुछ सालों में मोबाईल फोन उपभोक्ताओं की तादाद में विस्फोटक बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इसी अनुपात में मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने जगह जगह टावर लगा दिए गए हैं। इन टावर को लगाने के लिए जगह के मालिक को हर माह मोटी रकम भी अदा करती हैं मोबाईल कंपनियां। इन टावर्स की स्थापना के लिए बाकायदा मानक तय किए गए हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि इन मानकों के पालन में मोबाईल कंपनियां पूरी तरह से संवेदनहीन ही दिखाई पड़ी हैं।
मोबाईल फोन से होने वाले रेडिएशन की वास्तविकता इसके दुष्प्रभावों को जानने के लिए अब तक हम विदेशों में हुए अध्ययन, खोज आदि पर निर्भर थे, उस संदर्भ में अब हमारे सरकारी सिस्टम ने भी अपनी तरह से आंकलन किया है। मोबाईल फोन से निकलने वाले रेडिएशन की वजह से थकान, अनिंद्रा, चक्कर आना, रक्तचाप बढ़ना, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होना, तंत्रिका तंत्र से संबंधित बीमारियां, रिफलेक्शन की कमी, पाचन तंत्र में गड़बड़ी, हृदय संबंधी समस्याएं, एकाग्रता की कमी, नपुंसकता जैसी समस्याएं हो सकती हैं। हाल ही में विभिन्न मंत्रालयों की एक उच्च स्तरीय समिति आईएमसी ने इस तरह की चेतावनी के साथ ही रेडिएशन संबंधी नियम कायदों में देश की जरूरतों के हिसाब से बदलाव की सिफारिश भी की है।
समिति का कहना है कि घनी आबादी वाले इलाकों, स्कूलों, खेल के मैदानों के इर्द गिर्द मोबाईल टावर की स्थापना पर कड़े प्रतिबंध होने चाहिए। गौरतलब होगा कि इलेक्ट्रोमैग्निेटिक रेडएशन के मधुमख्खी, तितली और पक्षियों पर पड़ने वाले प्रभावों के मद्देनजर इस समिति का गठन किया गया था।
कितने आश्चर्य की बात है कि मोबाईल टावर के खतरों को भांपते हुए भी महज चंद सिक्कों की खनक के तले दबकर स्थानीय प्रशासन द्वारा सघन आबादी वाले क्षेत्रों में मोबाईल टावर स्थापित करने की छूट प्रदान कर दी जाती है। सूचना और प्रोद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले साल जुलाई में इस मामले में संज्ञान लिया था। उस समय कहा गया था कि सेवा प्रदाता कंपनियों को इस आशय का प्रमाण पत्र देना अनिवार्य किया गया था कि उनके द्वारा संस्थापित टावर विकिरण के निर्धारित मानकों के अनुरूप है। समयावधि बीत जाने के बाद भी मंत्रालय को सुध नहीं आई है कि उनके निर्देशों का मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने क्या हश्र किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मानकों के अनुसार मोबाईल टावर्स की फ्रिक्वेंसी तीन सौ गीगा हर्ट्ज से ज्यादा किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए। साथ ही साथ इंटरनेशनल कमीशन फॉर नॉन आयोनाइजिंग द्वारा जारी दिशा निर्देशों में साफ कहा गया है कि इन टावर्स से हाने वाले विकिरण की तीव्रता अधिकतम छः सौ माईक्रोवॉट प्रति वर्गमीटर होना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा कव्हरेज और कंजेशन से मुक्त होने की चाह में सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा तीव्रता को साढ़े सात हजार माइक्रोवॉट प्रति वर्गमीटर से अधिक कर रखी है।
अभी कुछ दिनों पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन में मोबाईल रेडियएशन को मानव शरीर की कोशिकाओं के डिफेंस मेकेनिजम के लिए घातक माना गया था। केरल के कोल्लम ताल्लुका में पर्यावरण संगठन केरल पर्यावरण अध्ययनकर्ता एसोसिएशन ने दावा किया है कि गौरैया की संख्या रेल्वे स्टेशन, गोदाम, मानव बस्तियों में कमी हो रही है। अध्ययन में कहा गया है कि गौरैया के अंडे से बच्चे के बाहर आने में दस से चोदह दिए लग जाते हैं, लेकिन मोबाईल टावर के आसपास वाले घोसलों में अंडे तीस दिन में भी नहीं टूट पाए। तेरह साल की औसत आयु वाली गौरैया का चहकना अब कम ही देखने को मिल रहा है।
इतना ही नहीं मेरठ के लाला लाजपत राय आयुर्विज्ञान महाविद्यालय के प्रो.ए.क.ेतिवरी द्वारा भी इस बारे में शोध किया गया। इस शोध में प्रो.तिवारी ने पाया कि इंसानों के साथ ही साथ मधुमख्खी, चिडिया, यहां तक कि चूहों तक पर इसका प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है। उन्होने पाया कि मधुमख्खी के छत्ते, चिडिया के अंडे, और स्पर्म काउंट में कमी दर्ज की गई। इसमें पाया गया कि पराग चूसने गई मधुमख्खी लौटते समय रास्ता भटक जाती हैं, जिससे उनके छत्ते, कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाते हैं। इसके अलावा जेएनयू में इन टावर्स के नीचे रखे गए चूहों के स्पर्म में कमी दर्ज की गई।
एक आंकलन के मुताबिक भारत में वर्तमान में डेढ़ दर्जन से अधिक सेवा प्रदाता कंपनियों के साढ़े तीन लाख से ज्यादा मोबाईल टावर अस्तित्व में हैं इनकी तादाद तेजी से बढ़ रही है। माना जा रहा है कि 2014 तक इनकी संख्या पांच लाख पार कर जाएगी। यूं तो विशेषज्ञों का मानना है कि इन टावर्स के इर्द गिर्द रहने वालों को अपने अपने घरों का रेडिएशन टेस्ट करवाकर अपने घरों को रेडिएशन प्रूफ कर लेना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना अपनी जगह सही है, किन्तु यह कहां का न्याय है कि मुनाफा कमाएं मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियां और भोगमान भुगते देश की गरीब जनता।
पिछले साल अगस्त माह में ही केंद्रीय संचार मंत्रालय ने मोबाईल फोन टावर्स के लिए रेडीएशन की सीमा तय कर दी थी। उस समय संचार राज्यमंत्री सचिन पायलट के नेतृत्व में उच्च स्तरीय समिति ने फैसला लिया था कि 15 नवंबर तक रेडिएशन उत्सर्जन की सीमा लागू कर दे अन्यथा पांच लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान भी किया गया था।
वैसे मोबाईल टावर्स के लिए पर्यावरण विभाग द्वारा स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि स्कूल, अस्पताल, सकरी तंग गलियों के आसपास टावर स्थापित न किए जाएं। इसमें मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनी और जमीन के मालिक की मर्जी से टावर की संस्थापना का काम नहीं किया जा सकता है। इतना ही नहीं टावर के पास लोगों के लिए चेतावनी बोर्ड लगाना भी अत्यावश्यक है।
मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों ने अपने एजेंट के माध्यम से टावर लगाने के खेल को अंजाम दिया जा रहा है। मामला चाहे सरकार की नवरत्न कंपनी भारत संचार निगम का हो या निजी सेवा प्रदाता का। हर मामले में कमोबेश यही आलम है। कंपनियों के एजेंट एक मीटर लेकर आपकी जमीन की जांच करेगा, फिर गांव में पांच हजार रूपए प्रतिमाह से आपके साथ बारगेनिंग आरंभ करेगा। अगर आपको पांच हजार रूपए हर महीने की आवक हो रही हो, वह भी महज चार सौ स्क्वेयर फिट जगह को देने पर तब कौन भला इंकार करेगा। इसके लिए इन एजेंट्स द्वारा एक साल का किराया आपसे अग्रिम ही मांग लिया जाता है। फिर आपके साथ पंद्रह साल का एग्रीमेंट।
बहरहाल आज के समय में मोबाईल दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग बन गया है, तब सरकार रेडिएशन के प्रति चेती है। वैसे भी देश में मंहगाई चरम पर है। सरकार को चाहिए कि सेवा प्रदाता कंपनियों पर उनके पिछले ग्राहकों की संख्या के दावों के हिसाब से ही जुर्माना आहूत करे। इस जुर्माने से ही मोबाईल टावर्स के आसपास की रिहाईश को रेडीएशन पू्रफ बनाया जाए। अभी भी समय है, अगर समय रहते सरकार नहीं चेती तो आने वाले समय में देश में आने वाली पीढ़ी ठीक उसी तरह नजर आएगी जिस तरह नागासाकी और हिरोशिमा में परमाणुबम गिरने के बाद पीढी नजर आ रही थी।

चुनाव लड़ने के बजाए परिषद से प्रवेश चाह रहे मराठा क्षत्रप


मनमोहन की राह पर पृथ्वीराज
 
बिल्डर लाबी बन गई है सबसे बड़ी चुनौति
 
(लिमटी खरे)
 
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण को आदर्श सोसायटी घोटाले में अशोक चव्हाण की बली चढ़ने के उपरांत महाराष्ट्र की कमान सौंप दी गई है। तीन बार लोकसभा तो पिछले दो बार से राज्य सभा के रास्ते संसदीय सौंध पहुंचने वाले चव्हाण विधानसभा चुनावों के स्थान पर अब पिछले दरवाजे अर्थात विधान परिषद से चुने जाने का मन बना चुके हैं।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में चल रही चर्चाओं पर अगर यकीन किया जाए तो चव्हाण के लिए महाराष्ट्र में 288 में से एक भी सीट सुरक्षित नहीं मिल पा रही है। मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मे पृथ्वीराज चव्हाण अब महाराष्ट्र के सतारा निवासी हो गए हैं, सतारा लोकसभा चुनावों में पटकनी खाने के बाद वे वहां से विधानसभा चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।
इसके साथ ही साथ उनके लिए मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह ने कलीना विधानसभा सीट मुख्यमंत्री के लिए छोड़ने की पेशकश कर दी है। उधर बिल्डर लाबी ने इस सीट पर मुख्यमंत्री को हराने के लिए सौ करोड़ रूपयों से ज्यादा चंदा एकत्र किए जाने की खबरों ने चव्हाण की नींद उड़ा रखी है।
चव्हाण के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी राज्यसभा सीट पर सिंह के अलावा महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मणिकराव ठाकरे ने नजरें गड़ा दी हैं। बतौर राज्यसभा सांसद चव्हाण का कार्यकाल अभी चार साल से अधिक का बाकी है। उधर शिवसेना के किरण पावस्कर के त्यागपत्र और गुरूनाथ कुलकर्णी के निधन से रिक्त हुई विधान परिषद की सीटों पर उपचुनाव की अधिसूचना जारी हो चुकी है। चुनाव 21 फरवरी को होना तय है। चव्हाण के सामने मुसीबत यह है कि पावस्कर की सीट पर शिवसेना तो कलकर्णी के बदले एनसीपी अपना दावा पुख्ता करती नजर आ रही है।
दिल्ली की राजनैतिक फिजां में पृथ्वीराज चव्हाण के इस कदम को अच्छी नजरों से कतई नहीं देखा जा रहा है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि यह विडम्बना है कि देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन डॉ.मनमोहन सिंह को लोकसभा में मत देने का अधिकार ही हासिल नहीं है, उसी परिपाटी को आगे बढ़ाते हुए महाराष्ट्र के नए निजाम पृथ्वीराज चव्हाण सीधे जनादेश लेने से बचते हुए पिछले दरवाजे से विधानसभा में पहुंचना चाह रहे हैं।

छपारा को नगर पंचायत बनाओ


0 उच्च न्यायालय ने दी व्यवस्था
छपारा को नगर छः माह में नगर पंचायत बनाओ
जबलपुर (ब्यूरो)। मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि छः माह के अंदर सिवनी जिले की ग्राम पंचायत छपारा को नगर पंचायत मंे तब्दील किया जाए। यह व्यवस्था माननीय उच्च न्यायालय ने छपारा निवासी मदन गोपाल श्रीवास्तव द्वारा दायर जनहित याचिका पर दी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार मदन गोपाल श्रीवास्तव द्वारा अपने अधिवक्ता द्वय एस.बी.शुक्ला और ब्रजेश श्रीवास्तव के माध्यम से इस संबंध में तर्क रखे। तर्कों में कहा गया कि छपारा मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत है, एवं 2003 में जिला कलेक्टर सिवनी द्वारा इसे ग्राम पंचायत से नगर पंचायत बनाने का प्रस्ताव बनाकर राज्य सरकार को भेजा था।
मदन गोपाल श्रीवास्तव द्वारा रखे गए तथ्यों में कहा गया था कि छपरा नगर पंचायत बनने के लिए सारी अहर्ता रखती है, अतः इसे नगर पंचायत का दर्जा दिया जाए। इस संबंध में सुनवाई के उपरांत उच्च न्यायायल ने मध्य प्रदेश सरकार के स्थानीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव को आदेशित किया है, कि छः माह की समयावधि में सिवनी जिले के छपारा को ग्राम पंचायत से नगर पंचायत का दर्जा देने की कार्यवाही की जाए।