ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
सोनिया थीं, विदेशी खरीद में मध्यस्थ!
सनसनीखेज खुलासों के लिए मशहूर विकीलीक्स
द्वारा एक जबर्दस्त खुलासे से कांग्रेस की चूलें हिलती नजर आ रही हैं। इंदिरा गांधी
के दरबार में अमरीकी जासूस, फिर राजीव गांधी को दलाल निरूपित करने के बाद अब विकीलीक्स ने
कांग्रेस और संप्रग अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को भी लपेट लिया है। हाल ही में एक
केबल में अमेरिकी राजनयिको को मारुति हेवी व्हीकल लिमिटेड कंपनी के प्रबंध निदेशक के.
एल. जालान ने बताया था कि इस कंपनी के मालिकों में संजय गांधी, सोनिया गांधी तथा जेके जालान
शामिल है। जालान के अनुसार मारुति कंपनी इटली, स्वीडन और र्जमनी में कार्यरत वाहन
कंपनी इंटरनेशनल हार्वेस्टर के साथ भी जुड़ी है। इस मारुति कंपनी ने अमेरिकी राजनयिको
से एक अमेरिकी कंपनी के विमानों की खरीद के बारे मे सहयोग करने की पेशकश की थी। अब
लगता है कांग्रेस को इन आरोपों का जवाब देने में कठिनाई महसूस हो रही है।
राहुल के बस की नहीं राजनीति!
कांग्रेस की नजर में भले ही राहुल
गांधी भविष्य के प्रधानमंत्री हों, पर हकीकत यह है कि उनके बस की राजनीति नहीं है। राजनीति
में जिस तरह की चालाकी, चपलता और धूर्तता चाहिए वह उनके अंदर नहीं है। राहुल गांधी के
राजनैतिक गुरू एक के बाद एक बदल रहे हैं और वे अपने अपने तौर तरीकों से युवराज को सियासी
पाठ पढ़ा रहे हैं। कभी राजा दिग्विजय सिंह उन्हें सियासत की सीढियां चढ़वाने की कवायद
करते हैं तो कभी उनके नए गुरू सैम पित्रोदा उन्हें दुनिया के चौधरी अमरीका की स्टाईल
में सियासी पाठ पढ़वाते हैं। कभी जनार्दन द्विवेदी राहुल को गरीब हरिजन दलित के घर पर
रात्रि विश्राम का मशविरा देते हैं तो कभी कोई कुछ बता देता है। राहुल बुरी तरह कन्फयूज
ही नजर आ रहे हैं। हालात देखकर लगने लगा है मानो सियासत उनके बस की नहीं उन्हें तो
अपना रास्ता बदल ही लेना चाहिए।
मूल काम से भटके काटजू!
भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय
काटजू एक बार फिर चर्चाओं में हैं। उनका मूल काम मीडिया से संबंधित शिकायतों का निष्पादन
ही माना जाता है। पिछले काफी समय से काटजू अपने बयानों के चलते विवादों में हैं। एक
बार उन्होंने फिल्म अभिनेता संजय दत्त की माफी के लिए पत्र लिख दिया। काटजू ने अब
1993 दिल्ली ब्लास्ट केस में फांसी की सजा पाए खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के आतंकवादी
देविंदर पाल सिंह भुल्लर को माफ करने की अपील की है। काटजू ने भुल्लर की फांसी पर सुप्रीम
कोर्ट के पहले के फैसले को आधार बनाते हुए प्रेजिडेंट प्रणव मुखर्जी को छह पेज की चिट्ठी
लिखी है। इसमें प्रेजिडेंट से संविधान के आर्टिकल 72 के तहत भुल्लर की फांसी की सजा
माफी करने की अपील की गई है। काटजू साहेब को चाहिए कि वे मीडिया की शिकायतों का निष्पादन
करें। हाल ही में मध्य प्रदेश के सिवनी में कर्फ्यू के दौरान अखबार ना बटने और मीडिया
को घरों में कैद किए जाने की शिकायत उनके पास पहुंची पर वह लंबित ही है।
कौन है वह कांग्रेस का क्षत्रप!
भाजपा के निर्वतमान निजाम नितिन गड़करी
ने एक बड़ा अजीब सा खुलासा किया है, उन्होने कहा है कि कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने उन्हें
संपर्क कर वर्तमान संप्रग सरकार को गिराने की चाहत रखी थी। गड़करी का यह खुलासा वाकई
कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। भले ही गड़करी अपने आप को मर्द का बच्चा
बताकर सामने से वार करने की बात कह रहे हों पर उनके करीबी सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस
के एक व्यवसाई सीनियर लीडर जिनसे सोनिया और राहुल गांधी बुरी तरह खफा हैं, ने भाजपा के व्यवसाई अध्यक्ष
गड़करी से संपर्क कर अपनी मंशा का इजहार किया था। जिस समय यह बात की गई थी उस समय देश
में घपले घोटालों की गूंज थी और अगर तब चुनाव हो जाते तो कांग्रेस की लुटिया डूबना
तय था। अब भाजपा के अंदर भी यह बात उठ रही है कि आखिर गड़करी कांग्रेस के हिमायती हैं
या भाजपा के!
क्या कानून हम से उपर है!
देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद
का काम देश में कानून बनाने का है। कानून बनाने के बाद इस पंचायत के पंच ही उस कानून
की धज्जियां उड़ाते दिख जाते हैं। सूचना के अधिकार कानून में सुभाष चंद्र अग्रवाल द्वारा
एकत्र की गई जानकारी के अनुसार आठ सांसदों ने बार बार मांगे जाने के बाद भी अपनी संपत्ति
का ब्योरा नहीं दिया है। इनमें से पांच सदस्य उच्च सदन यानी राज्य सभा और तीन लोकसभा
के हैं। आश्चर्य तो इस बात पर है कि इसमें झारखण्ड के नेता मधु कोड़ा का नाम भी शामिल
है। पता चला है कि इन सांसदों ने अपनी संपत्ति को सार्वजनिक ना किए जाने का लोकसभा
अध्यक्ष से आग्रह किया था जिसे स्वीकार कर लिया गया है। यक्ष प्रश्न तो फिर खड़ा ही
है ना कि देश की सबसे बड़ी पंचायत के आठ सदस्य आखिर अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करने
से हिचक क्यों रहे हैं।
हेमा का नाम लेना भारी पड़ा पांडे
को!
क्या ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी का नाम
लेना अपराध है! जी नहीं शायद नहीं। जब मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदर लाल
पटवा 1997 में केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के खिलाफ भाजपा से उपचुनाव में उतरे थे,
तब वे कमल नाथ
की रिहाईश शिकारपुर की सड़कों की तुलना हेमा मालिनी के गालों से किया करते थे। अब उत्तर
प्रदेश के खादी और ग्रामोद्योग मंत्री राजा राम पांडे को सड़कों की तुलना हेमा मालिनी
के गालों से करना भारी पड़ गया है। इस बयान ने उनकी कुर्सी छीन ली है। पांडेय को देर
रात बर्खास्त कर दिया गया। पांडे की जुबान दूसरी बार फिसली है इसके पहले उन्होंने सुल्तानपुर
की डीएम की तारीफ करते हुए अशोभनीय टिप्पणी कर दी थी। पाण्डे की कुर्सी जाने से अब
कम से कम हेमा मालिनी को तो शांति मिलेगी कि उनके गालों की तुलना सड़क से तो कम से कम
नहीं होगी।
पवार की उलटबंसी!
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में
सहयोगी दल राकांपा के सुप्रीमो शरद पंवार ने अचानक ही उलट बंसी बजाना आरंभ कर दिया
है। उन्होने ठाणे में कहा कि डीएमके के समर्थन वापस लेने के उपरंात यूपीए कमजोर हो
चुका है, और उन्होंने इस बात के संकेत भी दिए कि चुनाव किसी भी वक्त हो सकते हैं अतः चुनाव
की तैयारी में जुट जाना चाहिए। वैसे भी डीएमके के बाहर होने के बाद अब समाजवादी पार्टी
के 22 और बहुजन समाजवादी पार्टी के 21 सांसदों की बैसाखी पर यूपीए टिकी हुई है। मुलायम
सिंह यादव भी सीबीआई के दुरूपयोग के आरोप लगा चुके हैं तो मायावती भी ताज कारीडोर से
परेशान हैं। उधर मुलायम सिंह यादव इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि चुनाव इस साल नवंबर
में हो सकते हैं। अगर एसा हुआ तो यूपीए टू का यह अंतिम खेल हो सकता है।
नमो फोबिया से ग्रसित है कांग्रेस!
कांग्रेस के अंदर अब संगठित राजग
के बजाए एक मात्र फेक्टर ही डराने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है वह है नमो यानी नरेंद्र
मोदी का फेक्टर। कांग्रेस के सारे के सारे थिंक टेंक नमो के फेक्टर से निपटने की रणनीति
में जुट चुके हैं। नमो ने अपनी सारी ताकत सोशल मीडिया में झोंक दी है। उनके करीबी सूत्रों
का दावा है कि नमो ने लगभग दो सौ करोड़ रूपए का दांव सोशल मीडिया में लगाया है। सोशल
मीडिया में अनेक लोगों को नमो के तरह तरह के कार्टून, फोटो, केप्शन आदि के साथ सुसज्जित
कर शेयर करवाया जा रहा है ताकि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया में नमो की तूती बोले। आज आलम
यह है कि घपले घोटाले अनाचार और विशेषकर भ्रष्टाचार पर सोनिया राहुल की चुप्पी ने युवाओं
को कांग्रेस से दूर कर दिया है, वहीं सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी का जादू सर चढ़कर ही
बोल रहा है।
टेक्सी की तरह घूम रहा है हेलीकाप्टर!
देश के कांग्रेस के एक उद्योगपति
नेता जब चुनाव में उतरते हैं तो वे अपनी पारिवारिक कंपनी के हेलीकाप्टर को अपने संसदीय
क्षेत्र में बैलगाड़ी के मानिंद घुमा देते हैं। हेलीकाप्टर को देखने जुटने वाली भीड़
ही उनकी सभा को सुनती है। इसी तर्ज पर अब मां, माटी, मानुष वाली त्रणमूल कांग्रेस
पार्टी ने भी पश्चिम बंगाल से निकलकर अपना प्रभाव अन्य राज्यों में बढ़ाने का प्रयास
किया जा रहा है। हरियाणा में त्रणमूल कांग्रेस द्वारा अपने राज्य सभा सांसद और उद्योगपति
के.डी.सिंह को हेलीकाप्टर मुहैया करवाया गया है। सिंह हरियाणा में हर कस्बे में अपने
हेलीकाप्टर से पहुंच रहे हैं। गांव के लोगों के लिए आज भी हेलीकाप्टर कौतुहल का ही
विषय है सो बच्चों से लेकर बड़े बूढ़ेे जवान सभी वर्ग के लोग हेलीकाप्टर के आसपास जुट
जाते हैं। इसकी वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कर सिंह द्वारा ममता की नजरों में अपने
नंबर बढ़वाने में कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
मोईली ने साध लिया भाजपा को!
सदन में क्या सत्ता पक्ष क्या विपक्ष!
सदन के अंदर सभी एक बराबर हैं। सभी हाड़ मांस के पुतले हैं जिनके निहित स्वार्थ एक दूसरे
से अटके हैं। कार्पोरेट मामलों के मंत्री रहे वीरप्पा मोईली के खिलाफ भाजपा के हाथ
कुछ सबूत लगे जिनमें मोईली द्वारा अपने पुत्र के ट्रस्ट के लिए चंदा उगाहा था। कुछ
अखबारों की कतरने और एक ईमेल की प्रति भी भाजपा नेताओं को मुहैया करवाई गईं। मोईली
के खिलाफ सबूत इतने जबर्दस्त थे कि उनकी कुर्सी जाना तय था। कहा जा रहा है कि इसके
पीछे दक्षिण भारत की ही एक महिला मंत्री का हाथ था। पर यह क्या, भाजपा ने जब शून्य काल में
इसे उठाने का मन बनाया उसके पहले ही मोईली ने भाजपा के नेताओं से संपर्क साधा और सब
कुछ सध गया। ना मामला शून्यकाल में उठा और ना ही मोईली को किसी तरह की परेशानी का ही
सामना करना पड़ा। जय भारत जय जवान, हो रहा भारत निर्माण।
यदुवंशियों के भरोसे यूपी!
उत्तर प्रदेश में यदुवंशी एण्ड सन्स
यानी मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव ने अपने इर्दगिर्द स्वजातीय बंधुओं की खासी फौज
खड़ी कर रखी है। अखिलेश यादव ने अपने सचिवालय में भी तीन यादव अफसर तैनात हैं। शंभू
नाथ यादव को सेवा विस्तार दिया गया है। पंधरी यादव और जगदेव यादव भी अखिलेश यादव की
टीम में शामिल हैं। यदुवंशियों के हाथों में है उत्तर प्रदेश की सत्ता की बागड़ोर,
एसा मंत्रालय
में कमोबेश हर किसी की जुबान पर चढ़ गया है। कहते हैं यदुवंशियों के बढ़ते वर्चस्व को
देखकर राज्य के मुख्य सचिव राकेश गर्ग ने अघोषित तौर पर कलम बंद हड़ताल कर दी है। अब
तो गर्ग किसी भी कागज पर दस्तखत ही नहीं कर रहे हैं। राज्य में उनका काम काज अनीता
सिंह देख रही हैं। गर्ग केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर जाने की जुगत लगाते देखे गए हें।
पुच्छल तारा
बरसात आते ही मेंढ़क सक्रिय हो जाते
हैं। चुनाव की आहट पाते ही अब सियासी हल्कों में भी एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप के
दौर से लगने लगा है कि चुनाव कभी भी हो सकते हैं। सोशल नेटवर्किंग वेब साईट पर इनकी
धूम है। भाजपा कांग्रेस पर दिशाहीन होकर राजनीति करने का आरोप लगाती है तो कांग्रेस
भाजपा को कोसती है। सवाल यह उठता है कि इस सबके लिए सबसे सही मंच लोकसभा और राज्य सभा
के साथ ही साथ राज्यों में विधानसभाएं और विधानपरिषद है। इन सभी मंचों पर किसी भी सियासी
दल ने किसी भी सियासी दल के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है, जाहिर है जो भी सदन के बाहर
होता है वह सिर्फ जनता को भरमाने के लिए ही होता है।