बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

हरियाणा में नोकरशाहों का शगल बनती राजनीति



देवीलाल ने किया था नौकरशाहों का राजनीति की ओर रूख


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। अधिकारियों के बूते राजनीतिक पायदान चढ़ने वाले राजनेताओं, अधिकारियों के मुंह में राजनीति का खून लगाने से नहीं चूके हैं। सियासत के दलदल में ब्यूरोक्रेट्स को उतारने में हरियाणा ने बाजी मारी है। इस सूबे में चौधरी देवी लाल द्वारा लगाए गए पौधे ने अब बट वृक्ष का स्वरूप धारण कर लिया है।


ज्ञातव्य है कि 1972 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल ने सबसे पहली बार लंदन में कार्यरत एक शिक्षक को राजनीति के दलदल में उतारा था। यह अलहदा बात है कि उस दौर में राजनीति का स्वरूप इतना घिनौना नहीं हुआ करता था। देवी लाल के सहारे श्यामलाल नामक यह शिक्षक सोनीपत से विधायक चुने जाने के बाद लाल बत्ती प्राप्त कर सके थे।


सूबे में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कृपा राम पुनिया, डॉ.रघुबीर कादियान, रघुवीर सिंह, ए.एस.रंगा, श्री सिसोदिया, बी.डी.ढलैया, आई.डी.स्वामी, आर.एस.चौधरी, आबकारी महकमे के अधिकारी राधेश्याम शर्मा, हरियाणा राज्य सेवा के डॉ.के.वी.सिंह, एम.एल.सारवान, विरेंद्र मराठा, बहादुर सिंह, पुलिस महानिदेशक एच.आर.स्वान, ए.एस.भटोटिया, महेंद्र सिंह मलिक, एडीजी रेशम सिंह, के अलावा डॉ.सुशील इंदौरा और बैक अधिकारी हेतराम आदि ने भी सरकारी नौकरी के बाद राजनीति का पाठ सीखा है।


देश भर में अफसरान के राजनीति में कूदने के उदहारण बहुतायत में हैं, किन्तु हरियाणा में सर्वाधिक सरकारी कर्मचारियों ने अपने कर्तव्यों को तिलांजलि देकर (नौकरी से त्यागपत्र देकर) राजनीति के माध्यम से ``जनसेवा`` का मार्ग चुना है। हरियाणा के राजनैतिक परिदृश्य को देखने से साफ हो जाता है कि यहां अफसरशाह जब भी राजनीति में आए हैं, वे अपने आकाओं के कभी विश्वास पात्र बनकर नहीं रह पाए हैं।


पूनिया को देवीलाल राजनीति में लाए, बाद में अनबन होने पर पूनिया ने देवी लाल का साथ छोड़ दिया। डॉ. कदियान को देवी लाल लाए थे, बाद में वे उनका साथ छोडकर कांग्रेस का दामन थाम अपनी राह में आगे बढ़ गए।


आवश्यक है वरूण गांधी के इन तेवरों को अपनाना

आवश्यक है वरूण गांधी के इन तेवरों को अपनाना



(लिमटी खरे)


चुनावों के दौरान पीलीभीत में आक्रमक तेवर अपनाकर विवादों में फंसने वाले नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य अब एवं संसद सदस्य वरूण गांधी अब कुछ परिपक्व राजनैतिक झलक दिखलाने लगे हैं। एक ओर उनके अंदर उग्र हिन्दुत्व की झलक देखने को मिली तो अब उनके अंदर उनके पिता स्व.संजय गांधी के देशहित के तेवर भी देखने को मिल रहे हैं।


हाल ही में उत्तर प्रदेश में विश्व के सात अजूबों में से एक ताज महल को अपने दामन में समेटने वाले शहर आगरा में एक व्यक्तिगत बैठक के दौरान वरूण परिपक्व राजनेता के रूप में नजर आए। उन्होंने कहा कि वे सड़क, पुल जैसी आधारभूत संरचना के निर्माण में विश्वास नहीं रखते, उनकी निजी राय में देश में विस्फोटक आबादी सबसे बड़ी चुनौति है।


वरूण के इस तरह के तेवर ने उनके पिता स्व.संजय गांधी के लगभग पेतीस साल पुराने तेवरों की याद ताजा कर दी है। गौरतलब होगा कि संजय गांधी द्वारा आपातकाल के दौरान नसबंदी को लेकर आक्रमक अभियान का श्रीगणेश किया था, उस दौरान नसबंदी के खिलाफ देश में मुजफ्फर नगर सहित अनेक स्थानों पर हिंसक विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।


संजय गांधी कांग्रेस के सदस्य रहे हैं। दरअसल कांग्रेस में भविष्य दृष्टा इंदिरा और संजय गांधी ही थे। मेनका और सोनिया गांधी के देवरानी जेठानी के विवाद ने संजय गांधी को कांग्रेस के इतिहास में पाश्र्व में ढकेल दिया। कांग्रेस में गांधी के मायने इंदिरा, राजीव, सोनिया और राहुल ही बचे हैं।


सत्तर के दशक में ही इंदिरा और संजय गांधी ने देश की बढ़ने वाली जनसंख्या का अंदाजा सहजता से लगा लिया था, यही कारण था कि फेमली प्लानिंग का काम उन्होंने पहली प्राथमिकता पर रखा और इसका कड़ाई से पालन भी सुनिश्चित करवाया था। आज संजय गांधी की उस महिम के कारण जनसंख्या इतनी है, अगर संजय गांधी परिवार नियोजन योजना में सख्ती न बरतते तो देश की बढ़ी हुई जनसंख्या में आज जीना मुश्किल ही हो जाता।


संजय गांधी की यह मुहिम मुस्लिम धर्मावलंबियों को रास नहीं आई थी। इसका पुरजोर विरोध किया गया था। आज पढ़े लिखे मुस्लिम धर्मावलंबी भी दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर विहिप के प्रवीण तोगडिया सरीसे नेता सनातन पंथियों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए उकसा रहे हैं। सही मायनों में आज देश में सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती आबादी से बड़ा दुश्मन देश के लिए और कोई नहीं है।


समाजशास्त्र में नगरीकरण और औद्योगिकरण एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं। जहां उद्योग धंधे लगेगें उसके आसपास उपनगरों, मजरों, टोलों का बनना स्वाभाविक प्रक्रिया है। महानगरों सहित अनेक नगरों के इर्दगिर्द जंगलों को काटकर कांक्रीट जंगलों की स्थापना कमोबेश यही दर्शा रही है कि देश की आबादी किस तेज गति से बढ़ रही है।


वनों की अधांधुंध कटाई के कारण जलवायू परिवर्तन हमारे सामने है। देश में सबसे ज्यादा बारिश के लिए प्रसिद्ध चेरापूंजी में अब उस तरह बारिश नहीं होती है जो पहले हुआ करती थी। अक्टूबर के माह में देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में कूलर चल रहे हों तो पर्यावरण असंतुलन का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।


हम वरूण गांधी के प्रशंसक नही हैं, किन्तु उन्होंने जिस तरह के तेवर अपनाए हैं, वे निश्चित तौर पर स्वागतयोग्य हैं। वरूण का यह कहना -``मैं वो गांधी नहीं हूं, जिसने अपने आप को उपर उठाने के लिए देश को गिरवी रख दिया हो, मैं देश को बचाने के लिए अपने आप को गिरवी रख सकता हूंं`` हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा बोफोर्स मामला वापस लेने की पहल के चलते सोनिया और राहुल गांधी पर कटाक्ष से कम नहीं है।


यह सच है कि कांग्रेस ने देश में आधी सदी से ज्यादा शासन किया है। आजादी के छ: दशकों के बाद भी देश कहां खड़ा है और देश के ``जनसेवक`` कहां खड़े हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। यह विडम्बना से कम नहीं है कि देश में आज भी करोड़ों लोग एैसे हैं जिन्हें तन पर पूरे कपड़े और दो वक्त की रोटी नसीब नहीं है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के ``जनसेवक`` कथित तौर पर ``अपने खर्चे पर`` महीनों सितारा युक्त आलीशान होटलों में रात बिताते हैं।


कांग्रेस की नजर में देश के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी दलितों के घर रात बिताकर मीडिया की सुर्खियां बटोरने से नहीं चूकते हैं। राहुल राजनीति में नए हैं, अत: वे अपने सलाहकारों के मशविरे के चलते इस तरह का कदम उठा रहे होंगे। हमें यह कहने में संकोच नही है कि राहुल गांधी देश की सवा करोड़ से अधिक जनता की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं।


राहुल गांधी को चाहिए कि वे वरूण गांधी से सीख लेकर देश की सबसे बड़ी दुश्मन केंसर कोशिकाओं की तरह विस्फोटक होती आबादी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाएं। देश में भीख मांगते आधा तन कपड़ा पहनने वाली कमसिनों के हाथों मेें बच्चों को देखकर तरस आ जाता है।


दिल्ली में ही अनेक स्थानों पर नाबालिग युवतियां दो तीन बच्चों को गोद में लेकर भीख मांगती नजर आ जाती हैं। यह सब देश के ``जनसेवकों`` को दिखाई नहीं देता क्योंकि आधे से अधिक जनसेवकों के इर्द गिर्द सुरक्षा तंत्र मौजूद रहता है, जिनके कारण असली भारत की तस्वीर देखने से ये महरूम रह जाते हैं।