सोमवार, 27 जून 2011

10 जनपथ और 7 रेसकोर्स में खिचीं तलवारें



10 जनपथ और 7 रेसकोर्स में खिचीं तलवारें

सोनिया से नहीं मिल रहा पीएम का मन

मंत्रीमण्डल फेरबदल में सामने आ सकती है खटास

मंत्रीमण्डल में चंद ही बचे सोनिया के नामलेवा

अधिकतर ने पाला बदलकर थामा मनमोहन का दामन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। कांग्रेस सत्ता के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) और 7, रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) के बीच वर्चस्व की निर्णायक जंग खेली जाने वाली है। मंत्रीमण्डल में शामिल नेताओं ने अपनी लक्ष्मण रेखा निर्धारित कर ली है। वर्तमान समीकरणों में प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह खासे मजबूत नजर आ रहे हैं, वहीं सोनिया गांधी के नामलेवा चंद मंत्री ही बचे हैं मंत्रीमण्डल में।

10 जनपथ के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि सोनिया मण्डली इन दिनों बेहद परेशान है क्योंकि उम्मीद से हटकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने धीरे धीरे कर अपना खेमा बना लिया है। प्रणव मुखर्जी को प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति न बनाने से दुखी प्रणव ने भी अब मनमोहन सिंह के साथ जुगलबंदी आरंभ कर दी है। प्रणव मनमोहन की जुगलबंदी के चलते मंत्री भी अब सोनिया गांधी को ज्यादा वजन नहीं दे रहे हैं।

कहा जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव राजा दिग्विजय सिंह के द्वारा राहुल को पीएम बनाए जाने के एजेंडे के चलते मनमोहन की मुहिम तेज हो गई है। मनमोहन सिंह के साथ अब कपिल सिब्बल, गुलाम नवी आजाद, कमल नाथ, एस.एम.कृष्णा, पवन कुमार बंसल, मुकुल वासनिक आदि खड़े दिखाई दे रहे हैं। उधर सोनिया के वफादारों मंे जयराम रमेश, अंबिका सोनी और ए.के.अंटोनी ही बचे हैं।

उधर पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि सोनिया को तजकर प्रधानमंत्री में आस्था जताने वालों में अंबिका सोनी, वीर भद्र सिंह और वी.नारायणसामी का नाम जुड़ गया है। सामी वर्तमान में अहमद पटेल के पिछलग्गू समझे जाते थे। साथ ही साथ भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी ने भी अपना पाला बदल लिया है। अब वे भी मनमोहनी वीणा ही बजा रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि उन्होंने भूतल परिवहन मंत्री रहे टी.आर.बालू और कमल नाथ के कामकाज का गए गोपनीय प्रतिवेदन भी प्रधानमंत्री को सौंपा है।

मनमोहन मण्डली ने अब सधे कदमों से राहुल और सोनिया की राजनैतिक समझ बूझ पर प्रश्न चिन्ह लगाने आरंभ कर दिए हैं। सियासी गलियारों में कहा जा रहा है कि अगर वरूण और राहुल गांधी में शास्त्रार्थ कराया जाए तो वरूण बीस ही बैठेगें। यही बात कांग्रेस के सोनिया गुट के प्रबंधकों के लिए परेशानी का सबब बनती जा रही है।
एक समय था जब मनमोहन सिंह को ताकतवर बनाने के लिए सोनिया गांधी द्वारा नैनिताल में मुख्यमंत्रियों की बैठक में मंच से उप प्रधानमंत्री को अर्ताकिक घोषित कर दिया था। उस वक्त प्रणव मण्डली उनके लिए उप प्रधानमंत्री बनाने के मार्ग प्रशस्त कर रही थी। अब प्रधानमंत्री खुद ही प्रणव मुखर्जी को उप प्रधानमंत्री का पद आफर कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि जल्द होने वाला फेरबदल अनेक तरह से राजनैतिक दिशा और दशा तय करने वाला होगा।

नहीं रूक रहा विद्यार्थियों का फिजिकल पनिशमेंट


नहीं रूक रहा विद्यार्थियों का फिजिकल पनिशमेंट

शारीरिक दण्ड के डर से बच्चों मंे शाला जाने से पैदा हो रही अरूचि

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। शालाओं मंे बच्चों को शारीरिक दण्ड देने पर रोक होने के बाद भी इसका सिलसिला नहीं रूक पा रहा है। देश भर में रोजाना अनेक अंचलों में इसकी खबरें आती हैं। शालाओं में फिजिकल पनिशमेंट के प्रकरण बढ़ने पर नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाईल्ड राईट्स (एनसीपीसीआर) ने शालाओं में शारीरिक दण्ड रोकने के लिए दिशा निर्देश तैयार करना आरंभ कर दिया है।

एनसीपीसीआर के अधिकारियों का मानना है कि शालाओं में शारीरिक दण्ड देना एक गंभीर मसला है। इसके साथ ही साथ बच्चों की यूनीफार्म खराब होने, कंघी ठीक न होने, जूते गंदे होने आदि पर दिया जाने वाला अर्थ दण्ड भी पालकों की जेब से ही जाता है जो अनुचित है। इस तरह के मामलों के कारण बच्चा स्कूल जाने से कतराने लगता है, साथ ही उसके मन में शाला और अध्यापक के प्रति डर बैठ जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों से इस तरह के मामले सामने आने से एनसीपीसीआर हरकत में आ गया है।

यद्यपि राईट टू एजूकेशन की धारा 17 में इस पर पाबंदी आहूत की गई है, पर शाला प्रबंधन, शिक्षक आदि इसका खुलेआम माखौल उड़ा रहे हैं। पूर्व में कमीशन द्वारा इस तरह के प्रकरणों की गंभीरता को देखते हुए एक वर्किंग गु्रप का गठन भी किया था, जिसे एसे दिशा निर्देश तैयार करने थे, जिससे शालाओं में शारीरिक दण्ड पर रोक लगाई जा सके। विडम्बना ही कही जाएगी कि इस वर्किंग गु्रप ने निर्धारित समयावधि में कोई ठोस काम नहीं कर दिखाया। उम्मीद की जा रही है कि एनसीपीसीआर द्वारा जल्द ही इस दिशा में काम किया जाकर कठोर दिशा निर्देश जारी किए जा सकेंगे।

राहुल और प्रियंका की बैसाखी पर कांग्रेस


राहुल और प्रियंका की बैसाखी पर कांग्रेस

(लिमटी खरे)

भारत गणराज्य पर पचास सालों से ज्यादा राज किया है सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस की पीढ़ी ने। इसमें से पन्चानवे फीसदी से अधिक समय तक नेहरू गांधी परिवार के हाथ में ही रहा है सत्ता का केंद्र। आज भी कांग्रेस की धुरी नेहरू गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही घूम रही है। नब्बे के दशक में जब कांग्रेस के पास करिश्माई नेतृत्व का टोटा था जब इतालवी गूंगी गुडिया के नाम से विख्यात सोनिया के हाथों में सत्ता की चाबी थमा दी गई। विदेशी मूल के होने का आरोप उन पर था सो वे प्रत्यक्षतः सत्ता से दूर रहीं किन्तु अब उनकी नई पौध सत्ता पर काबिज होने तैयार है। राहुल गांधी का महिमा मण्डन गजब तरीके से किया गया है। कांग्रेस के मठाधीश इस परिवार के नाम पर अपनी दुकानदारी निर्बाध तरीके से चलाना चाहते हैं यही कारण है कि वे नहीं चाहते नई पौध आगे आए। घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार की गूंज के बाद भी कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के त्रिफला राहुल, सोनिया और प्रियंका का मौन आश्चर्यजनक ही है।

आत्म केंद्रित नेताओं ने सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस इन दिनों बैसाखियों पर चलने को मजबूर कर दिया है। पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रमों से साफ होने लगा है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी भ्रमित करने वाले नेताओं की कोटरी से पूरी तरह घिर चुकीं हैं। संप्रग के पिछले सात साल के कार्यकाल में सरकार की जिस तरह से छीछालेदर हुई है, वैसी परिस्थितियों से कांग्रेस पहले कभी भी नहीं गुजरी है। जितने घपले घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए उतने इतिहास में कभी नहीं आ सके।

गौरतलब है कि देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में हुए देश के सबसे बड़े आतंकवादी हमलों के बाद भी केंद्र सरकार कोई ठोस कदम उठाने की स्थिति में नज़र नहीं आ रही थी। जैसे ही प्रियंका वढ़ेरा ने अपनी दादी को केंद्रित करते हुए बयान दिया वैसे ही कांग्रेस हरकत में आई और आनन फानन गृह मंत्री शिवराज पाटिल को चलता कर दिया गया।

उस वक्त प्रियंका ने कहा था कि अगर उनकी दादी अर्थात प्रियदर्शनी स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी जिन्दा होतीं तो वे आतंकवादियों को माकूल जवाब देतीं और फिर कोई इस तरह की हरकत करने की हिमाकत न कर पाता। इसी क्रम में कभी भाजपा की फायर ब्रांड लीडर रहीं साध्वी उमाश्री भारती ने भी मुंबई हमले के उपरांत इंदिरा गांधी की याद कर उनके ज़ज़्बे और हौसले को सराहा गया। उमाश्री ने कहा है कि आज देश को इंदिरा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं की महती जरूरत महसूस हो रही है।

अगर देखा जाए तो उस वक्त प्रियंका वढ़ेरा की इन तल्ख टिप्पणियों ने ही कांग्रेस को कठोर कदम उठाने पर मज़बूर किया है। अगर प्रियंका ने सोनिया की तंद्रा न तोड़ी होती तो आज निश्चित रूप से देश के गृहमंत्री की कुर्सी पर बिना रीढ़ वाले शिवराज पाटिल ही आसीन होते।

इस घटनाक्रम के बाद एक और घटना का जिकर लाजिमी होगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख का। विलासराव पर भी त्यागपत्र का दवाब बढ़ाया गया। देश की सत्ता के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ के विशेष कृपा पात्र विलासराव ने इस दबाव की परवाह न करते हुए भी अपने अभिनेता पुत्र रितिक और एक्शन फिल्मों के निर्माता राम गोपाल वर्मा के साथ ताज का जायजा लेना माकूल समझा। विलास राव ने वीटी स्टेशन की ओर रूख नहीं किया।

बताते हैं कि जब इन बातों से कांग्रेस सांसद और महासचिव राहुल गांधी को आवगत कराया गया, वे बेहद संजीदा हो उठे। कांग्रेस के अनेक कद्दावर नेताओं के विलासराव देशमुख के बचाव में उतरने के बावजूद भी राहुल गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में अपनी बात वजनदारी से रखकर मनवा ही ली। राहुल के तीखे तेवरों के चलते विलासराव देशमुख की छुट्टी संभव हो सकी।

राहुल और प्रियंका दोनों ही के कदम देश और कांग्रेस के हित में कहे जा सकते हैं। ये दोनों ही घटनाएं साफ करने के लिए काफी हैं कि दस साल से कांग्रेस प्रमुख की कुर्सी संभालने वाली श्रीमति सोनिया गांधी किस तरह के सलाहकारों के बीच घिर चुकीं हैं। इन नेताओं का पहला उद्देश्य हर मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को भ्रमित रखकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकना है। कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि कांग्रेस सुप्रीमो की कोटरी में बिना रीढ़ वाले उन नेताओं का शुमार है, निहित स्वार्थों की राजनीति करना जिनका प्रिय शगल है।

अगर प्रियंका और राहुल ने कमान न संभाली होती तो निश्चित रूप से आज कांग्रेस का ढर्रा वही होता जो चला आ रहा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि वर्तमान में कांग्रेस राहुल और प्रियंका की बैसाखी पर ही चल रही है। ये दोनों ही युवा पीढ़ी के पायोनियर बनते जा रहे हैं, और इनकी दखल से ही कांग्रेस कोई ठोस और नेताआंे को अप्रिय लगने वाला कदम उठाने की स्थिति में आ पाई है।

इन नेताओें ने सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस सुप्रीमो और आम कार्यकता के बीच पर्याप्त दूरी बनवा दी है। इसके परिणामस्वरूप अब श्रीमति सोनिया गांधी के आंख नाक और कान कांग्रेस के ही चुनिंदा लोग बनकर रह गए हैं, जो कांग्रेस सुप्रीमो को ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर रखे हुए हैं। यही कारण है कि एक समय में समूचे देश पर एकछत्र राज्य करने वाली कांग्रेस अब सिमटकर उंगलियों में गिने जाने वाले प्रदेशों में ही बची है, जहां आधे से अधिक जगहों पर तो साझा सरकार बनाना कांग्रेस की मजबूरी हो गई है।

यह सही है कि युवाओं में आज राहुल और प्रियंका का जबर्दस्त क्रेज है। वहीं गांधी परिवार के छोटे नवाब यानी संजय गांधी के पुत्र वरूण की लोकप्रियता उतनी नहीं है। इसका कारण है कांग्रेस के रणनीतिकारों का मीडिया मैनेजमेंट। निहित स्वार्थ आगे रखकर चलने वाले मीडिया पर्सन्स जो कांग्रेसी नेताओं के आगे दुम हिलाते नजर आते हैं के माध्यम से राहुल की इमेज बिल्डिंग का काम बड़े ही करीने से किया गया है। आज राहुल गांधी को देखने सुनने हजारों की भीड़ जुटना आम बात है।

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के दूसरे कार्यकाल में एक के बाद एक घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार के जिन्न सामने आते गए। इन पर लोग राहुल, प्रियंका या सोनिया की टिप्पणी को तरस गए। कामन वेल्थ, आदर्श सोसायटी, टूजी जैसे बड़े बड़े घोटाले सामने आए पर कांग्रेस के सत्ता और शक्ति की इस त्रिमूर्ति ने अपनी जुबान नही खोली।
काले धन के मामले पर स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव और उनके हजारों समर्थकों को रामलीला मैदान पर पुलिस ने घसीट घसीट कर बर्बरता के साथ पीटा, फिर भी यह त्रिमूर्ति मौन ही साधे रही। अण्णा हजारे लोकपाल पर अड़िग हैं उनके साथ भी लाखों हाथ हैं, पर फिर भी यह त्रिमूर्ति शांत ही है। डर है कि अगर मुंह खोला तो दांव उलटा न पड़ जाए, क्योंकि सब कुछ तो कांग्रेस के ही खाते में जा रहा है।
यक्ष प्रश्न आज फिर वही खड़ा हुआ है कि आखिर इसी दिन को देखने के लिए कांग्रेस की स्थापना की गई थी? क्या यही सब कुछ दिखाने और भारत की यह तस्वीर दिखाने के लिए ही आजादी के परवानों ने अपने जान की परवाह न करते हुए कांग्रेस के कांधों से कांधा मिलाकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ दिया था? क्या नेहरू और गांधी ने एसे ही भारत गणराज्य की कल्पना की थी? क्या सोनिया गांधी के पति और राहुल के पित राजीव गांधी ने इसी इक्कीसवीं सदी के भारत की कल्पना की थी? क्या लौह महिला प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी के जज्बों को यही उनकी बहू और पोते की श्रृद्धांजली है? इस तरह के अनेक प्रश्नों के जवाब आज भी अनुत्तरित ही हैं, जिनके जवाब नैतिकता के आधार पर राहुल और सोनिया को देना चाहिए, किन्तु वे ताकतवर हैं, धनवान हैं सो पुरानी कहावत इनके लिए ही बनी है शायद कि ‘‘समरथ को नहंी दोस गोसाईं।‘‘