रविवार, 20 नवंबर 2011

एक बार फिर छला जाएगा आदिवासियों को


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . . 20

एक बार फिर छला जाएगा आदिवासियों को

लोकसुनवाई की नहीं पिटी मुनादी

पर्यावरण को ताक पर रख रहा झाबुआ पावर

सांसद विधायकों का मौन संदिग्ध

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश के ख्यातिलब्ध थापर गु्रप ऑफ कंपनी के सहयोगी प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा हृदय प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज सौ किलोमीटर दूर आदिवासी विकास खण्ड घंसौर में लगने वाले कोल एवं सुपर क्रिटिकल टेक्नालाजी पर आधारित 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के द्वितीय चरण में 660 मेगावाट के पावर प्लांट की लोक सुनवाई मंगलवार 22 नवंबर को घंसौर तहसील के ग्राम गोरखपुर में गुपचुप आयोजित करने की तैयारियां पूरी कर ली गईं हैं।

ज्ञातव्य है कि इस कंपनी के पहले चरण में छः सौ मेगावाट के संयंत्र की जनसुनवाई भी चुपचाप ही कर ली गई थी। इसका प्रतिवेदन भी किसी को देखना नसीब नहीं हुआ। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की वेब साईट पर चालीस आपत्तियों वाले इस प्रतिवेदन की धुंधली प्रति ही डाली जाना आश्चर्यजनक ही है। इनमें से कंपनी ने कितनी अहर्ता पूरी की हैं इस बारे में प्रशासन और कंपनी दौनो मौन हैं।

इनके अलावा सिवनी जिले के भाजपा विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, श्रीमति शशि ठाकुर एवं कमल मस्कोले के साथ ही साथ कांग्रेस के क्षत्रप और विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर का मौन संदिग्ध ही है। किसी ने भी विधानसभा में प्रश्न उठाने की जहमत नहीं उठाई कि भाजपा सरकार किस तरह आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात कर रही है। इधर आदिवासियों की जमीनें औने पौने दामों में खरीदी गईं वहीं दूसरी ओर आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर को झुलसाने की तैयारी भी चुपचाप पूरी कर ली गई।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि भारत सरकार पर्यावरण एवं वन मंत्रायल की पर्यावरण प्रभाव आंकलन अधिसूचना क्रमांक एसओ 1533 दिनांक 14 सितम्बर 2006 के प्रावधानों के अंतर्गत मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड द्वारा सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के ग्राम बरेला एवं गोरखपुर में प्रस्तावित 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के द्वितीय चरण के लिए भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आवेदन प्राप्त हुआ है।

सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय द्वारा परियोजना को 8 दिसंबर 2010 एवं 6 सितंबर 2009 को जारी टी.टो.आर. पत्र में लोक सुनवाई के निर्देश दिए थे। नियमानुसार इस लोक सुनवाई के लिए बाकायदा मुनादी पिटवाना चाहिए ताकि किसी को आपत्ति हो तो वह अपनी आपत्ति प्रस्तुत कर सके। भोले भाले आदिवासियों के बीच होने वाली जनसुनवाई को लेकर तरह तरह की चर्चाएं आम हो गई हैं। कहा जा रहा है कि गुपचुप होने वाली इस लोक सुनवाई में आदिवासियों को यह कहकर भरमाया जा रहा है कि कंपनी का एक बड़ा प्रोग्राम है जिसमें कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद वहां चाय नाश्ता या भोजन करवा कर आदिवासियों को लुभाया जाएगा।

सबसे अधिक आश्चर्य का विषय तो यह है कि आदिवासियों के नाम पर राजनीति करने वाली कांग्रेस और भाजपा के सांसद विधायक भी इस मसले में मौन ही साधे हुए हैं। इतना ही नहीं मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की आधिकारिक वेब साईट भी लोगों को छलने का ही काम कर रही है। वेब साईट पर इसकी जनसुनवाई का मसला तो दर्ज है पर विस्त्रत प्रतिवेदन के स्थान को क्लिक करने पर पेज केन नाट बी डिस्पलेड का संदेश आ जाता है जिससे साफ है कि कंपनी द्वारा मण्डल को भी पूरी तरह साध रखा है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि जिस तरह कंपनी ने पहले चरण में लोगों की आंखों में धूल झोंककर स्वीकृतियां प्राप्त कर ली थीं, उसी तर्ज पर इस बार भी 22 नवंबर को लोक सुनवाई की औपचारिकता पूरी कर ली जाएगी।

(क्रमशः जारी)