. . . . तो टापू बनकर रह जाएगी शिव की नगरी
(लिमटी खरे)
महाकौशल के जबलपुर संभाग में आने वाले सिवनी जिले में राजनैतिक नेतृत्व का अभाव इस कदर खलने लगा है कि अब लोग इसे जिला मुख्यालय के बजाए ग्राम पंचायत का दर्जा देने की बात कहने लगे हैं। पहले राजनैतिक मिलीभगत के चलते लोकसभा सीट और घंसौर विधान के अवसान के रिसते घावों में फोरलेन न बनने देने का नमक छिड़क दिया गया और अब छिंदवाड़ा से मण्डला फोर्ट बरास्ता नैनपुर रेलमार्ग में नैनपुर मण्डला रेलखण्ड का काम आरंभ करवाकर इन घावों पर मिर्च भी भुरकी जा रही है। कमजोर और स्वार्थी राजनैतिक नेतृत्व के चलते सिवनी जिले को एक टापू में तब्दील करने की साजिश रची जा रही है। सिवनी के नागरिक अगर अभी नहीं चेते तो आने वाले समय में इसकी तुलना अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह से की जाने से कोई नहीं रोक सकता है।
तीस साल पुरानी सिवनी लोकसभा सीट को स्थानीय स्तर पर जिले को दिशा और दशा देने वाले राजनेताओं ने अपने निहित स्वार्थ के लिए बलिदान कर दिया। आरोप प्रत्यारोप के दौर के बीच सभी नेतृत्व कर्ताओं ने अपने स्वार्थ जमकर साधे। वर्तमान में अगर उनसे इस बारे में बात की जाए तो -‘‘यार, अपन क्या कर सकते थे, फलां ने खेल खेल दिया, हमने तो फलां को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगा दो, पर उसने नहीं लगाई‘‘, जैसे बहाने बनाकर अपनी खाल बचाने का प्रयास किया जाता है।
इसके उपरांत 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के शासनकाल की महात्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के अंग उत्तर दक्षिण गलियारे मेें सिवनी जिले में पेंच नेशनल पार्क का फच्चर फसाया जा रहा था तब भी सिवनी के स्थानीय नेतृत्वकर्ता मौन साधे रहे। बाद में इन नेताओं ने इस मसले में जमकर राजनैतिक रोटियां सेंकी। लोग आश्चर्यचकित हैं कि फोरलेन बचाने सर्वोच्च न्यायालय की चौखट पर जाया जा सकता है किन्तु लोकसभा बचाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय जाने की महज सलाह ही दी जा सकती है।
सिवनी से होकर गुजर रहे उत्तर दक्षिण गलियारे का काम इसलिए रोका गया था क्योंकि जिला मुख्यालय से दक्षिण की ओर यह सड़क लगभग नौ किलोमीटर के हिस्से में उस स्थान से गुजर रही है जो पेंच कान्हा वाईल्ड लाईफ कारीडोर का कथित तौर पर हिस्सा है। इसी के चलते तत्कालीन जिला कलेक्टर पिरकीपण्डला नरहरि ने 18 दिसंबर 2008 को दिए और 19 दिसंबर 2008 को पृष्ठांकित आदेश में मोहगांव से खवासा तक 22 किलोमीटर में वृक्ष कटाई को रोक दिया गया था।
देखा जाए इससे गंभीर मसला तो पड़ोसी जिले छिंदवाड़ा में है। छिंदवाड़ा से सौंसर होकर नागपुर जाने वाले नवीन नेशनल हाईवे का काम आरंभ किया जा रहा है। इसमें पर्यावरण या वाईल्ड लाईफ अथवा वन का कोई फच्चर ही नहीं है। वस्तुतः एसा नहीं है। छिंदवाड़ा जिले का यह नवीन नेशनल हाईवे मूलतः सतपुड़ा, पेंच और मेलघाट के टाईगर रिजर्व का मार्ग काट रहा है, जो वाईल्ड लाईफ कारीडोर है। इस वाईल्ड लाईफ कारीडोर पर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दो साल पूर्व तक एक हजार करोड़ रूपए खर्च किए जा चुके हैं।
हाल ही में समीपवर्ती नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में जिला कलेक्टर विवेक पोरवाल द्वारा मध्य प्रदेश शासन की ओर से उत्तर समान्य वन मण्डल के माध्यम से अपनी अनापत्ति प्रस्तुत कर दी है जिससे बालाघाट से बरास्ता नैनपुर, जबलपुर अमान परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त हो गया है। राज्य शासन द्वारा 19.822 हेक्टेयर भूमि जो वन एवं आरक्षित वन भूमि थी को रेल्वे के प्रयोजन के लिए प्रदाय कर दिया गया है।
इस रेल मार्ग में उत्तर सामान्य वन मण्डल बालाघाट के वन क्षेत्र की ग्राम पंचायत टिटवा के ग्राम कटेगांव के कक्ष नंबर 1389 का आरक्षित रकबा 0.800 हेक्टेयर, ग्राम मातेगांव के कक्ष नंबर 1283 का आरक्षित रकबा 1.005 हेक्टेयर, लामता के कक्ष नंबर 1278 का आरक्षित रकबा 0.536 हेक्टेयर, परसवाड़ा के कक्ष नंबर 1243 का आरक्षित रकबा 1.473 हेक्टेयर, ग्राम पंचायत अरनामेटा के ग्राम महकाफाटा व ढीमरूटोला के वनखण्ड चमरवाही के कक्ष नंबर 1275 का आरक्षित रकबा 0.246 आदि शामिल है।
अब यक्ष प्रश्न यही खड़ा हुआ है कि सिवनी जिला वासियों से क्या खता हो गई है कि मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार और केंद्र की कांग्रेस नीत संप्रग सरकार द्वारा सिवनी के लोगों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। पेंच से कान्हा प्रस्तावित और काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर के बीच से सिवनी नागपुर फोरलेन सड़क के आलवा, सिवनी कटंगी सड़क मार्ग, सिवनी बालाघाट सड़क मार्ग, सिवनी मण्डला सड़क मार्ग गुजर रहा है। इसके अलवा इस काल्पनिक वाईल्ड लाईफ कारीडोर को नैनपुर से बालाघाट का रेखण्ड भी काट रहा है।
लाख टके का सवाल यही है कि क्या इस वाईड लाईफ कारीडोर से गुजरने वाले रेल मार्ग में समतल पार बनाई जाएगी और सूचना पटल भी लगेगा जानवरों के लिए कि रेल लाईन है सावधानी से दोनों ओर देखकर रेलमार्ग पार करें! जब सड़क मार्ग इन वन्य जीवों के लिए खतरनाक है तो फिर रेल मार्ग की अनुमति आखिर किस आधार पर दी गई है? अगर इसी कारीडोर में रेल मार्ग की अनुमति दी जा सकती है तो फिर सिवनी से खवासा फोरलेन बनाने की अनुमति तो दी ही जानी चाहिए, क्योंकि यह सड़क साढ़े चार सौ साल पहले मुगल बादशाह शेरशाह सूरी द्वारा बनवाई गई थी। इस लिहाज से तो यह मार्ग एतिहासिक महत्व का है।
बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और महाकौशल के क्षत्रप केंद्रीय मंत्री कमल नाथ की व्यक्तिगत रूचि के चलते अब नैनपुर से मण्डला फोर्ट तक ब्राडगेज अमान परिवर्तन के लिए जमीन अधिग्रहण का काम भी आरंभ हो गया है। एक तरफ सिवनी जिले में छटवी अनुसूचि में अधिसूचित घंसौर तहसील में आवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के लिए कोयला आपूर्ति के लिए जबलपुर से बरेला तक अमान परिवर्तन का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर बालाघाट से जबलपुर तथा नैनपुर से मण्डला फोर्ट तक अमान परिवर्तन हेतु जमीन अधिग्रहण का काम किया जा रहा है, जिससे अब नैनपुर से सिवनी होकर छिंदवाड़ा के अमान परिवर्तन की राह धुंधली ही दिखाई पड़ रही है।
लोकसभा सीट सिवनी एवं घंसौर विधानसभा सीट के अवसान, फोरलेन में जबरन के फच्चर के बाद अब आसपास के जिला मुख्यालयों को ब्राडगेज से जोड़ने की बात आकार लेने लगी है। इसे देखकर लगने लगा है कि आने वाले दिनों में सिवनी जिला एक टापू की तरह ही हो जाएगा। इसके लिए यहां का स्वार्थी राजनैतिक नेतृत्व ही पूरी तरह जवाबदेह होगा।