शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

किस काम का है नपुंसक नेतृत्व


किस काम का है नपुंसक नेतृत्व

(लिमटी खरे)
  
‘‘भारत गणराज्य में पहली बार एसी सरकार केंद्र में विराजी है जो न तो निर्णय लेने में सक्षम है और ना ही कड़े कदम उठाने में। दो दशक पहले मलेरिया जैसे बुखार के लिए कुनैन की कड़वी गोली को बलात गटकना होता था। आज देश उसी तरह के ज्वर से तप रहा है, कुनैन जैसी कड़वी गोली की दरकार है, पर सरकार है कि उसे गुटकने को राजी नहीं है। सरकार कहती है कि उसके पास वह सूची है जिसमें विदेशों में काला धन जमा है, पर उसे वह उजागर नहीं कर सकती है। विपक्ष अड़ा है नाम उजागर करने को। विपक्ष को चाहिए कि वह सरकार से नाम उजागर करने की जिद न करे। बेहतर होगा कि मुद्दे को राह से न भटकाए विपक्ष। इस फेहरिस्त में विपक्ष के ‘‘अपने चहेतों के नाम‘‘ भी होंगे। विदेश में जो धन जमा है वह काला है इस बात से इसलिए इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि उस धन पर सरकार को आयकर या अन्य कर प्राप्त नहीं हुए हैं। सरकार बेशक इनके नाम सार्वजनिक न करे, किन्तु इन काले धन की सूची वालों पर कार्यवाही से क्यों हिचक रही है?‘‘



इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू योग गुरू रामकिशन यादव उर्फ बाबा रामदेव ने विदेशों में जमा कलेधन के मामले को 2008 में उठाना आरंभ किया था। इसके बाद यह मामला गति पकड़ता गया और फिर अंततः अब यह मामला पूरी तरह सुलग चुका है। सरकार को मजबूरी में स्विस बैंक से खाताधारकों की सूची बुलवानी पड़ी। इस सूची में कितने नाम हैं इस बारे में आधिकारिक तौर पर तो कुछ भी सामने नही आया है, किन्तु कहा जा रहा है कि इसमें 26 हजार लोगों के नाम हैं। काले धन के मामले में सरकार ने एक बात दावे के साथ कह दी कि इसमें पंद्रहवीं लोकसभा के किसी भी सांसद का नाम शामिल नहीं है।

विदेशों में जमा काला धन वाकई एक गंभीर मुद्दा है। अगर कोई भी व्यक्ति भारत से धन लेकर विदेश जा रहा है तो एयरपोर्ट और बंदरगाहों पर तैनात सुरक्षा कर्मी क्या देखते रह गए। निश्चित तौर पर खामी हमारे सिस्टम में ही कहीं रही है। ग्रीन चेनल का लाभ उठाकर हमारे माननीय विदेशों से न जाने क्या क्या आपत्तिजनक वस्तुओं का आयात निर्यात करते रहे। कई बार तो माननीयों को इसके चलते शर्मिंदगी भी उठानी पड़ी।

सरकार ने साफ कर दिया कि विभिन्न देशों के साथ हुए समझौतों की शर्तों के तहत वे विदेशों में जमा काले धन के बारे में जानकारी मिलने पर भी सार्वजनिक नहीं करने के लिए बाध्य हैं। संतोष की बात यह मानी जा सकती है कि सरकार ने इस बात को तो स्वीकार किया कि विदेशों में देश का धन जमा है और उसके संग्रहकर्ताओं की फेहरिस्त उसके हाथ में है। जिस धन को काला धन कहा जा रहा है उस धन पर सरकार को किसी प्रकार का कर नहीं मिला है जिससे यह काले धन की श्रेणी में आ जाता है। अब सवाल यह है कि इस तरह देश की जनता के गाढ़े पसीने की कमाई को चंद पूंजीपतियों ने सरकार की आंख से काजल चुराने के मानिंद इसे ले जाकर विदेशों में सुरक्षित रखवा दिया है।

देश को इस तरह की नपुंसक सरकार की आवश्यक्ता हमारे हिसाब से कतई नहीं है। यह तो वह मिसाल हो गई कि हमें पता है कि चोरी किसने की है। हमारे पास पक्के सबूत हैं किन्तु कुछ शर्तों के कारण हम उनके नाम उजागर नहीं कर सकते हैं। विपक्ष का रवैया भी आश्चर्यजनक ही माना जा सकता है। विपक्ष इन काले धन के संग्रहकर्ताओं के नाम उजागर करने पर आमदा है। पूरा मामला नाम उजागर करने की बहस पर आकर टिका है और यहीं यह दम तोड़ देगा।

जब सरकार के पास काले धन के जमाकर्ताओं के नाम हैं तो सरकार अपनी एजेंसियों के माध्यम से उनके कामकाज का परीक्षण क्यों नहीं करवा लेती। अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सरकार को पता चल जाएगा कि फलां पूंजीपति कितनी कर चोरी कर रहा है? सरकार के पास संसाधनों की कमी तो नहीं है। सरकार चाहे तो अपनी विभिन्न एजेंसियों को इन पूंजीपतियों के पीछे लगा दे और इन देश द्रोहियों के नाम उजागर किए बिना ही एक नजीर पेश कर सकती है।

वस्तुतः इसमें सियासी दलों को चंदा देने वाले बहुतायत में होंगे इसलिए न तो सरकार और न ही विपक्ष चाहेगा कि इस मामले में कोई कठोर कदम उठाया जाए। सत्ता और विपक्ष द्वारा इस मामले में जमकर लड़ाई का स्वांग रचा जाकर देशवासियों को गुमराह करने का ही प्रयास किया जाएगा। सरकार अपनी एजेंसियों को बतौर ट्रबल शूटर उपयोग करती है। लालू प्रसाद यादव जब सरकार को धमकाते हैं तो सीबीआई का शिकंजा कस जाता है। मायावती जब सरकार की गर्दन तक हाथ पहुंचाती हैं तो उनके खिलाफ मामले खुल जाते हैं। बाबा रामदेव जब सरकार के खिलाफ गरजते हैं तो सरकार उनकी जांच आरंभ कर देती है। ये सारे लोग जब सरकार के खिलाफ एक्सीलेटर कम कर देते हैं तो इनके खिलाफ जांच भी लंबित ही हो जाती हैं? क्या विपक्ष को यह नहीं दिखता? दिखता है पर क्या करें हमाम में सभी निर्वस्त्र ही हैं।

एक और संभावना अत्यंत बलवती होती दिख रही है। और वह है कि चूंकि सरकार के पास काले धन के संग्रहकर्ताओं की सूची आ गई है तो अब सरकार कहीं पुलिस कोतवाल की भूमिका में न आ जाए। कोतवाल के हाथ जब सटोरियों, जुआं खिलाने वालों, अवैध शराब बेचने वालों की सूची आ जाती है और अगर वह उन्हें न पकड़ना चाहे तो वह उन्हें बुलाकर धमकाता है और चौथ वसूली करता है। डर है कि केंद्र सरकार इन पूंजीपतियों से पार्टी और निजी फंड में इजाफे के मार्ग न प्रशस्त कर दे।

वित्त मंत्री बड़ी ही शान से कहते हैं कि काले धन की समस्या 1948 से ही है, फिर इस पर तत्काल चर्चा की क्या आवश्यक्ता है? वित्त मंत्री भूल जाते हैं कि 1948 के बाद आधी सदी से ज्यादा देश पर राज किया है कांग्रेस ने। वर्तमान में भी केंद्र में कांग्रेसनीत संप्रग सरकार है। अगर 1948 से समस्या है और अब तक समस्या का हल नहीं निकाला जा सका तो इसके लिए जिम्मेदार कोई और नहीं कांग्रेस ही है। आज गठबंधन अस्तित्व में है, पर तब क्या था जब कांग्रेस ही पूरे बहुमत में सरकार पर काबिज होती थी? मुखर्जी शायद इस मामले को और पचास साल के लिए टालना चाह रहे हैं, जब भी काले धन पर तत्काल चर्चा की बात होगी तो यही कहा जाएगा कि अभी इसकी क्या जरूरत है।

इसकी जरूरत है प्रणव मुखर्जी साहेब, आज और अभी! देश का हर एक नागरिक जो सुबह उठने से लेकर रात को सोते वक्त तक जो कर अदा करता है यह उसी से अर्जित राजस्व का धन है, जिसके बारे में जनता को जानने और उसे वापस लाने का हक है भारत गणराज्य आजाद भारत गणराज्य के हर एक करदाता को, चाहे वह प्रत्यक्ष तौर पर या परोक्ष तौर पर कर अदा कर रहा हो। आप जनता के सेवक हैं शासक नहीं आपको जनता की भावनाओं की उनकी पस्थितियों की कद्र करनी होगी, वरना यह वही जनता है जिसने आपको सर माथे पर बिठाया है। देर नहीं लगेगी जब यही जनता आपको सत्ता के गलियारे से उठाकर बाहर फेंक देगी।

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