सोमवार, 22 जून 2009

जमीनी लोगों की तरफ कांग्रेस के बढ़ते कदम

(लिमटी खरे)

देश में गणतंत्र की स्थापना के छ: दशक हो चुके हैं। आधी सदी से ज्यादा इस देश पर कांग्रेस ने ही राज किया है। बाबजूद इसके आज भी सामंतशाही व्यवस्थाएं बदस्तूर जारी हैं। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने कांग्रेस में सामंती उपाधियों का चलन बंद करने का सराहनीय फरमान जारी कर दिया है। लगता है आने वाले समय को देखते हुए जमीनी लोगों की तरफ कांग्रेस का यह बढ़ने वाला पहला कदम है।कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी की पे्रस विज्ञप्तियों, बैठकों की कार्यवाही के विवरण, दस्तावेज आदि में नेताओं के नाम के पूर्व उनके राजा, महाराजा, कुंवर, नवाब, बेगम, श्रीमंत, रानी जैसे संबोधनों के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी है। वस्तुत: इस तरह की उपाधियां सामंती जमाने की यादें ताजा करने के लिए पर्याप्त कही जा सकती हैं। वैसे भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इनका चलन ओचित्यहीन ही कहा जाएगा।आजाद भारत में जब एक के बाद एक रियासतों को भारत गणराज्य के अधीन राज्यों का हिस्सा बनाया गया था, तब राजा महाराजाओं को ``प्रिवी पर्स`` की सुविधा राजकीय खजाने से दिए जाने की व्यवस्था दी गई थी। लगभग चार दशक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया था।उस वक्त संभवत: श्रीमति इंदिरा गांधी की सोच यही रही होगी कि कांग्रेस को आम आदमी अपने से जुड़ी अपने हितों को साधने वाली पार्टी माने। श्रीमति सोनिया गांधी ने भी शायद उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए यह कदम उठाकर संदेश देना चाहा है कि कांग्रेस पार्टी आज भी आम आदमी की ही पार्टी है।वैसे देखा जाए तो बोल चाल, पोस्टर बेनर आदि में राजसी संबोधनों का उपयोग आज भी जारी है। नेताओं के मना करने के बाद भी उनके अनुयायी उनके नामों के आगे इस तरह के संबोधनों का प्रयोग कर आम आदमी को कांग्रेस से दूर कर दासता की याद दिलाने पर मजबूर कर देते हैं।पूर्व में मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार का एक फरमान कि तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के नाम के आगे ``श्रीमंत`` लगाया जाए काफी चर्चित हुआ था, इतना ही नहीं राजस्थान में वसुंधरा राजे के कार्यकाल में राजसी उपाधियों का चलन बहुत तेजी से हो रहा था।लगता है कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान की गहलोत सरकार द्वारा रजवाड़ी शब्दावली के लिए जारी निषेधाज्ञा के बाद यह कदम उठाया होगा। वैसे कांग्रेस में राजसी संबोधनों का इतिहास रहा है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दििग्वजय सिंह, कुंवर अजुZन सिंह, केद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, जतिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, कर्ण सिंह, प्रतापगढ़ की सांसद रत्ना सिंह आदि अनेक उदहारण हैं, जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पूर्व राजधराने की रही है।उधर जैसी कि आशंका थी सोनिया के इस कदम का विरोध भी उसी शिद्दत से आरंभ हो गया है। स्व.श्रीमति इंदिरा गांधी की केबनेट के नगीने और गोवा के राज्यपाल रहे पूर्व महाराजा भानु प्रकाश सिंह ने सोनिया के इस कदम की मुखालफत की है। बकौल सिंह सोनिया का यह कदम राजनैतिक वंशवाद से ध्यान हटाने का तुच्छ कदम है। इतना ही नहीं छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी एवं सतारा से राकपां सांसद ने भी सोनिया के इस कदम का विरोध किया है।वैसे यह अकाट्य सत्य है कि किसी अन्य पार्टी की तुलना में वंश को तरजीह देने की परंपरा, चाटुकारिता की संस्कृति और नेहरू गांधी परिवार को सर्वोच्च मानने का मानस कांग्रेस में अधिक है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि अपना उल्लू सीधा करने की गरज से कांग्रेसी नेताओं में चापलूसी और जी हजूरी कूट कूट कर भरी हुई है।कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी हों या कांग्रेस की नजर में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी या फिर अन्य नेता, इन सभी के जन्मदिन के इश्तेहार पोस्टरों में बैगर सामंती संबोधनों के सामंती परंपरा का बखूबी निर्वहन किया जाता है। टिकिट बंटवारे में भी इसकी झलक कहीं न कहीं दिखाई दे ही जाती है।कांग्रेस में अब तक के इतिहास पर नजर डाली जाए तो सामंतशाहों को टिकिट देकर पार्टी ने उनके इलाकों में उनकी पुरानी वफादारी को भुनाने के सारे मार्ग प्रशस्त किए हैं। यही कारण है कि लंबे समय तक पार्टी के लिए समर्पित पार्टी का झंडा उठाकर चलने वाले लोगों को छांछ भी नसीब नहीं होता, जबकि ये सामंतशाही घरानों के वारिस दूध की मलाई ही मलाई चट कर जाते हैं।आजाद हिन्दुस्तान के राजनैतिक परिदृश्य पर अगर नजर डाली जाए तो हम पाएंगे कि भले ही देश के राजनेता या जनप्रतिनिधि राजा या महाराजा न कहलाते हों, पर उनका रहन सहन राजसी ठाठबाट से कम नहीं है। आज भी अनेक सूबों के निजाम अपने अपने यहां ``जनता दरबार`` लगाते हैं। दरबार तो पराधीनता के समय अंग्रेज या मुगल लगाया करते थे। आज भारत आजाद हुए साठ साल से ज्यादा समय बीत चुका है। इन राजनेताओं की सुरक्षा पर भी जरूरत से ज्यादा ही खर्च होता है।बहरहाल कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने सामंती उपाधियों को पार्टी से समाप्त करने का निर्णय तो ले लिया है किन्तु अगर वाकई वे कांग्रेस को आम आदमी की पार्टी बनाना चाह रहीं हैं तो पार्टी में मलाईदार पदों पर मनोनयन के बजाए उन्हें सीधा चुनाव कराना होगा। वर्तमान में सूबों के पार्टी प्रमुखों को कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ से सीधा थोपा जाता है, जो अनुचित है।


कांग्रेस में सूबों के कायकल्प पर विचार

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। देश की सबसे ताकतवर महिला और कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी ने अब राज्यों में कांग्रेस के संगठन को और अधिक ताकतवर बनाने की दिशा में कदम उठाने आरंभ कर दिए हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही आधा दर्जन से अधिक सूबों में कांग्रेस के मुखिया बदले जाएंगे।कांग्रेस के शक्ति के केंद्र 10 जनपथ के सूत्रों का दावा है कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को मिली सफलता से आलाकमान बहुत ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव परिणामों की राज्यवार समीक्षा के बाद आलाकमान ने अब सूबों की हालत पर जोर देने का मन बनाया है। इसके लिए कोर कमेटी ने अपना होमवर्क को अंतिम रूप भी दे दिया है।सूत्रों के अनुसार पर्दे के पीछे के सबसे शक्तिशाली कांग्रेसी अहमद पटेल ने आलाकमान को मशविरा दिया है कि जल्द ही जमीनी स्तर पर कांग्रेस की हालत सुधारी जाए। यही कारण है कि आलाकमान ने महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और बिहार में कांग्रेस के निजामों के पद पर नई तैनाती करने का मन बना लिया है।वैसे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को कहा गया है कि वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर विशेष ध्यान दें। मध्य प्रदेश जहां से कि कांग्रेस के दिग्गज कुंवर अजुZन िंसंह, राजा दििग्वजय सिंह, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सुभाष यादव, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया आदि आधार स्तंभ माने जाते हैं, वहां विधान और लोकसभा में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक क्यों रहा है।इसके साथ ही साथ छत्तीगढ़ में जहां कि मोतीलाल वोरा, अजीत जोगी, विद्याचरण शुक्ल जैसी नामी गिरामी हस्तियां हों वहां कांग्रेस पिछले दस सालों से आैंधें मुंह क्यों गिर रही है। जोगी विरोधियों ने अब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल के इस मामले में कान भरने आरंभ कर दिए हैं कि आखिर क्या वजह है कि अजीत जोगी अपनी पित्न को भी चुनाव नहीं जितवा सके हैं।गौरतलब होगा कि राजस्थान के सी.पी.जोशी और कर्नाटक के एम.ए.खरगे के मंत्री बन जाने के बाद ये पद रिक्त जैसे ही माने जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में प्रणव मुखर्जी के पास पहले भी मंत्री पद रहा है किन्तु अहमद पटेल चाहते हैं कि मुखर्जी किसी एक दायित्व का निर्वहन करें। केंद्र सरकार में महाराष्ट्र को बेहतर प्रतिनिधित्व देने के बाद अब चुनावों को देखते हुए संगठन में भी कसावट लाने की कवायद की जाएगी। पश्चिम बंगाल कांग्रेस की नजर में इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां चुनाव होने वाले हैं, और ममता बनर्जी सरकार में सहयोगी भी हैं, सो तालमेल बनाकर चलने वाले को इस सूबे में तरजीह दी जा सकती है।रही बात बिहार की सो नितीश कुमार की चमक कम न कर पाने वाले अनिल शर्मा से जवाब तलब किया गया है। गुजरात में हिन्दुत्व के पुरोधा माने जाने वाले नरेंद्र मोदी की चमक को कम न कर पाने वाले प्रदेशाध्यक्ष सिद्धार्थ पटेल के स्थान पर तेज तर्रार नेता की तलाश जारी है।इसके साथ ही साथ उड़ीसा में केपी सिंहदेव जिन्हें चुनाव के ठीक पहले बागडोर थमाई थी के इस बार बचने की संभावनाएं कुछ बलवती दिख रहीं हैं, वैसे तो उड़ीसा में पार्टी ने वांछित प्रदर्शन नहींं किया है, किन्तु अहमद पटेल से उनके संबध कहीं न कहीं काम आ सकते हैं। यही आलम झारखण्ड का है, वहां भी प्रदीप बालमुचू की गद्दी डांवाडोल ही लग रही है।


निर्मल ग्राम में पिछड़ा मध्य प्रदेश!

0 ग्रामीण विकास मंत्रालय ने निर्मल ग्राम पुरस्कार राशि छ: राज्यों को दी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की महात्वाकांक्षी योजना निर्मल ग्राम में मध्य प्रदेश बुरी तरह पिछड़ गया है। वर्ष 2008 के लिए जारी राशि में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का दूर दूर तक नामोनिशान नजर नहीं आ रहा है। इस योजना में दक्षिण भारत के राज्यों ने बाजी मार ली है।ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 3219.5 लाख रुपए वर्ष 2008 के दौरान छह राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और महाराष्ट्र के निर्मल ग्राम पुरस्कार (एनजीपी) विजेता पंचायतों को नकद भुगतान करने हेतु जारी किया है।केरल को सबसे सफल पंचायती राज संस्थान राज्य के लिए एनजीपी पुरस्कार की बाकी बची नकद राशि का 5.00 लाख रुपया मंजूर कर दिया गया है। इस राशि को मिलाकर केरल राज्य को 2008 में एनजीपी पुरस्कारों के तहत 2992.00 लाख रुपए जारी कर दिए गए हैं।तमिलनाडु राज्य को सफल पंचायती राज संस्थान राज्यों में निर्मल ग्राम पुरस्कार (एनजीपी) के तहत नकद पुरस्कार के रूप में बाकी बची 2757.00 लाख रुपए की अंतिम एवं पूर्ण राशि जारी कर दी गई। आंध्र प्रदेश को एनजीपी पुरस्कार की बाकी बची 29 लाख रु0 की नकद राशि मंजूर कर दी गई है। इस राशि को मिलाकर आंध्र प्रदेश को एनजीपी पुरस्कारों के तहत 878.00 लाख रुपए जारी कर दिए गए हैं।बिहार को बाकी बची 4 लाख रुपए की एनजीपी पुरस्कार राशि जारी की गई है। इसके साथ ही 658 लाख रुपए की पूर्ण एवं अंतिम राशि जारी हो गई है। कर्नाटक को बाकी बची 188.00 लाख रुपए की एनजीपी पुरस्कार राशि जारी कर दी गई है। इसके साथ ही 1401.00 लाख रुपए की पूर्ण एवं अंतिम राशि एनजीपी पुरस्कारों के तहत कर्नाटक राज्य को जारी कर दी गई है।इसी प्रकार, महाराष्ट्र को 236 लाख रुपए की शेष राशि जारी कर दी गई है। इसके साथ ही 4959.50 लाख रुपए की पूर्ण एवं अंतिम राशि जारी कर दी गई है।इन छह राज्यों में बिहार के सफल पंचायती राज संस्थानों को 20 अक्तूबर, 2008 को गुवाहाटी में आयोजित एक समारोह में पुरस्—त किया गया, जबकि बाकी बचे पांच राज्यों -- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु को 8 दिसम्बर, 2008 को पुणे में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीÇसह पाटिल द्वारा पुरस्—त किया गया।सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत निर्मल ग्राम पुरस्कार और स्वच्छ गांव अवार्ड 2005 में शुरू किए गए थे। अपने परिचालन क्षेत्र में पूर्ण स्वच्छता हासिल करने वाली पंचायती राज संस्थाओं को सम्मानित और प्रोत्साहित करने के लिए ये पुरस्कार दिए जाते हैं। सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान को जन आन्दोलन बनाने के लिए खुले में शौच करने से मुक्त होने तथा स्वच्छ गांव बनने वाले गांवों को स्वच्छ गांव अवार्ड दिया जाता है। इस वर्ष 12,075 ग्राम पंचायतों को निर्मल ग्राम पंचायत पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीÇसह पाटिल ने हरियाणा (हिसार), असम (गुवाहाटी) और महाराष्ट्र (पुणे) में ये पुरस्कार प्रदान किए। विज्ञान भवन में 21 नवम्बर, 2008 को हुए समारोह में 105 ब्लॉक पंचायतों और 8 जिला पंचायतों को भी निर्मल ग्राम पुरस्कार से सम्मानिल किया गया। निर्मल ग्राम पुरस्कार जीतने वाले इन गांवों ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के ध्वजवाही स्वच्छता कार्यक्रम सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत हुई प्रगति को प्रदर्शित किया।