शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

माधुरियों से पटा पडा है देश

माधुरियों से पटा पडा है देश

आखिर कब जागेगा देशप्रेम का जज्बा

क्यों बन्द हो गए देशप्रेम के गीत

किस रास्ते पर ले जा रही है सरकार आवाम को

(लिमटी खरे)

उच्च स्तर पर बैठे एक राजनयिक और भारतीय विदेश सेवा की बी ग्रेड की अफसर माधुरी गुप्ता ने अपनी हरकतों से देश को शर्मसार कर दिया है, वह भी अपने निहित स्वार्थों के लिए। माधुरी गुप्ता ने जो कुछ भी किया वह अप्रत्याशित इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि जब देश को चलाने वाले नीतिनिर्धारक ही देश के बजाए अपने निहित स्वार्थों को प्रथमिक मान रहे हों तब सरकारी मुलाजिमों से क्या उम्मीद की जाए। आज देश का कोई भी जनसेवक करोडपति न हो एसा नहीं है। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और इतिहास खंगाला जाए और आज की उनकी हैसियत में जमीन आसमान का अन्तर मिल ही जाएगा। देश के सांसद विधायकों के पास आलीशान कोठियां, मंहगी विलसिता पूर्ण गाडिया और न जाने क्या क्या हैं, फिर नौकरशाह इससे भला क्यों पीछे रहें।

नौकरशाहों के विदेशी जासूस होने की बात कोई नई नहीं है। जासूसी के ताने बाने में देश के अनेक अफसरान उलझे हुए हैं। पडोसी देश पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में पकडी गई राजनयिक माधुरी गुप्ता पहली अधिकारी नहीं हैं, जिन पर जासूसी का आरोप हो। इसके पहले भी अनेक अफसरान इसकी जद में आ चुके हैं, बावजूद इसके भारत सरकार अपनी कुंभकणीZय निन्द्रा में मगन है, जो कि वाकई आश्चर्य का विषय है। लगता है इससे बेहतर तो ब्रितानी हुकूमत के राज में गुलामी ही थी।

भारतीय नौ सेना के एक अधिकारी सुखजिन्दर सिंह पर एक रूसी महिला के साथ अवैध सम्बंधों की जांच अभी भी चल रही है। 2005 से 2007 के बीच उक्त अज्ञात रूसी महिला के साथ सुखजिन्दर के आपत्तिजनक हालात में छायाचित्रों के प्रकाश में आने के बाद सेना चेती और इसकी बोर्ड ऑफ इंक्वायरी की जांच आरम्भ की। इस दौरान सुखजिन्दर पर विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकेश की मरम्मत का काम देखने का जिम्मा सौंपा गया था। सुखजिन्दर पर आरोप है कि उसने पोत की कीमत कई गुना अधिक बताकर भारत सरकार का खजाना हल्का किया था।

बीजिंग में भारतीय दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी मनमोहन शर्मा को 2008 में चीन की एक अज्ञात महिला के साथ प्रेम की पींगे बढाने के चलते भारत वापस बुला लिया गया था। भारत सरकार को शक था कि कहीं उक्त अधिकारी द्वारा उस महिला के मोहपाश में पडकर गुप्त सूचनाएं लीक न कर दी जाएं। सरकार मान रही थी कि वह महिला चीन की मुखबिर हो सकती है। 1990 के पूर्वार्ध में नेवी के एक अधिकारी अताशे को आईएसआई की एक महिला एजेंट ने अपने मोहपाश में बांध लिया था। उक्त महिला करांची में सेन्य नर्सिंग सर्विस में काम किया करती थी। बाद में अताशे ने अपना गुनाह कबूला तब उसे नौकरी से हटाया गया।

इसी तरह 2007 में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी (1975 बेच के अधिकारी) को हांगकांग में एक महिला के साथ प्रगाढ सम्बंधों के कारण शक के दायरे में ले लिया गया था। उस महिला पर आरोप था कि वह चीन की एक जासूसी कंपनी के लिए काम किया करती थी। रॉ के ही एक अन्य अधिकारी रविन्दर सिह जो पहले भारत गणराज्य की थलसेना में कार्यरत थे पर अमेरिकन खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए काम करने के आरोप लग चुके हैं। रविन्दर दक्षिण पूर्व एशिया में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी के बतौर कर्यरत था। इस मामले में भारत को नाकमी ही हाथ लगी, क्योकि जब तक रविन्दर के बारे में सरकार असलियत जान पाती तब तक वह बरास्ता नेपाल अमेरिका भाग चुका था। 80 के दशक में लिट्टे के प्रकरणों को देखने वाले रॉ के एक अफसर को एक महिला के साथ रंगरेलियां मनाते हुए पकडा गया। उक्त महिला अपने आप को पैन अमेरिकन एयरवेज की एयर होस्टेस के बतौर पेश करती थी। इस अफसर को बाद में 1987 में पकडा गया।

इस तरह की घटनाएं चिन्ताजनक मानी जा सकतीं हैं। देशद्रोही की गिरफ्तारी पर सन्तोष तो किया जा सकता है, पर यक्ष प्रश्न तो यह है कि हमारा सिस्टम किस कदर गल चुका है कि इनको पकडने में सरकारें कितना विलंब कर देतीं हैं। भारत पाकिस्तान के हर मसले वैसे भी अतिसंवेदनशील की श्रेणी में ही आते हैं, इसलिए भारत सरकार को इस मामले में बहुत ज्यादा सावधानी बरतने की आवश्यक्ता है। वैसे भी आदि अनादि काल से राजवंशों में एक दूसरे की सैन्य ताकत, राजनैतिक कौशल, खजाने की स्थिति आदि जानने के लिए विष कन्याओं को पाला जाता था। माधुरी के मामले में भी कमोबेश एसा ही हुआ है।

माधुरी गुप्ता का यह बयान कि वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों से बदला लेने के लिए आईएसआई के हाथों की कठपुतली बन गई थी, वैसे तो गले नही उतरता फिर भी अगर एसा था कि वह प्रतिशोध की ज्वाला में जल रही थी, तो भारत की सडांध मारती व्यवस्था ने उसे पहले क्यों नहीं पकडा। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि भारत का गुप्तचर तन्त्र (इंटेलीजेंस नेटवर्क) पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। आज देश को आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, और हमारे ``सम्माननीय जनसेवकों`` द्वारा खुफिया तन्त्र का उपयोग अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए ही किया जा रहा है। क्या यही है नेहरू गांधी के सपनों का भारत!

गडकरी के लिए मुसीबत बने हेवीवेट नेता

गडकरी के लिए मुसीबत बने हेवीवेट नेता

राज्यों के अध्यक्षों में देरी का कारण नेताओं का एकमत न होना

पूर्व अध्यक्षों ने भी चलाया असयोग आन्दोलन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अप्रेल। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरदहस्त के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी के नए निजाम नितिन गडकरी को पार्टी के हेवीवेट नेताओं को एक सूत्र में पिरोने में पीसना आने लगा है। यही कारण है कि जनाधार वाले सूबों में भी राज्य इकाई के अध्यक्षों के नामों पर अन्तिम मोहर नहीं लगाई जा सकी है। बाहर से तो पार्टी में मतभेद और मनभेद नहीं दिखाई पड रहे हैं, पर अन्दरूनी तौर पर सर फटव्वल की नौबत आ रही है। पार्टी के अन्दर के झगडे अब सडकों पर आने लगे हैं।

भाजपा के स्वयंभू लौहपुरूष का तगमा लेने वाले राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी को अब संघ के निर्देश पर शनै: शनै: पाश्र्व में ढकेलने की कवायद की जा रही है। आडवाणी की नाराजगी का आलम यह है कि भाजपा के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में ही उन्होंने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में रहते हुए किसी भी प्रोग्राम में शिरकत करना मुनासिब नहीं समझा। इतना ही नहीं टीम गडकरी की पहली बैठक में भी उन्होंने अपना मुंह सिल रखा था। इस दौरान उन्होंने उद्बोधन देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। अमूमन आडवाणी एसे मौकों पर पार्टी का मार्गदर्शन अवश्य ही किया करते हैं।

गडकरी के सामने सबसे बडी समस्या यह है कि वे सूबाई राजनीति से एकाएक उछलकर राष्ट्रीय परिदृश्य में आ गए हैं, जहां के रस्मो रिवाज से वे भली भान्ति परिचित नहीं हैं। अब तक हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष भी गडकरी के कदमताल से खुश नहीं हैं। आडवाणी के सुर में सुर मिलाते हुए राजनाथ सिंह, वेंकैया नायडू, मुरली मनोहर जोशी ने भी अघोषित तौर पर असहयोग आन्दोलन चलाया हुआ है। राजनाथ अपनी पूरी ताकत यूपी में अपने पसन्द के व्यक्ति को अध्यक्ष बनाने में झोंक रहे हैं तो मीडिया के दुलारे रहे नायडू ने भी मीडिया से पर्याप्त दूरी बना रखी है। एक समय में एक दिन में तीन तीन सूबों की मीडिया से रूबरू होने वाले नायडू अब अपने आप को आईसोलेटेड रखे हुए हैं। इसी तरह पूर्व अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी अपनी उपेक्षा से दुखी ही नज़र आ रहे हैं। वे भी पार्टी के कामों में दिलचस्पी लेने के बजाए अब अकादमिक सेमीनारों में अपना वक्त व्यतीत कर रहे हैं।

उधर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज और राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली के बीच चल रहे कोल्ड वार के चलते भी गडकरी बुरी तरह परेशान नज़र आ रहे हैं। अरूण जेतली के लिए पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी का प्यार जगजाहिर है, यही कारण है कि सुषमा स्वराज ने पार्टी के कामकाज से अपने आप को अलग थलग ही कर रखा है। कुल मिलाकर हेवीवेट नेताओं ने अपने अहम के चलते नए निजाम नितिन गडकरी की राह में शूल ही शूल बो दिए हैं।

उमा नहीं तो भाजपा के गांधी कूदेंगे राहुल के खिलाफ

उमा नहीं तो भाजपा के गांधी कूदेंगे राहुल के खिलाफ

युवाओं के मोहभंग के खतरे से खौफजदा है नेतृत्व

वरूण की अधिक से अधिक सभाएं कराने का प्रयास

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली 30 अप्रेल। भारतीय जनता पार्टी से नाता तोडकर भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाकर उसके अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने वाली उमा भारती की भाजपा में वापसी की राह बहुत ही कटीली नज़र आ रही है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उमा की वापसी के मार्ग प्रशस्त होने तक भाजपा के गांधी (वरूण गांधी) को कांग्रेस के गांधी (राहुल गांधी) के खिलाफ मैदान में उतारने की रणनीति पर काम आरम्भ कर दिया है। भाजपा अध्यक्ष के करीबी सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को डर सता रहा है कि कहीं कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के मोह में फंसकर उत्तर प्रदेश के युवा भाजपा से किनारा न कर लें।

वैसे भी भाजपा का पूरा ध्यान अब उत्तर प्रदेश की ओर केन्द्रित होकर रह गया है। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा अपनी खोई साख फिर से वापस पा ले। यही कारण है कि नेतृत्व द्वारा उमा भारती, कल्याण सिंह के अभाव में राहुल गांधी की वैकल्पिक काट के तौर पर वरूण गांधी को आगे कर दिया है। वरूण गांधी के भाषणों में हिन्दुत्व को लेकर जो तल्ख तेवर संघ ने देखे हैं, वह चाहता है कि उत्तर प्रदेश में वरूण का भरपूर उपयोग कर युवाओं को भाजपा के और करीब लाया जाए।

गौरतलब है कि दिसम्बर से अब तक यूपी में वरूण गांधी की तीन सभाएं करवाई जा चुकी हैं। सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में वरूण गांधी को युवा, उर्जावान स्टार प्रचारक के तौर पर स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। अगामी दो मई को वरूण की एक सभा जौनपुर के सुजानगंज तो जल्द ही अलीगढ के सिकन्दराराउ में कराने की तैयारी चल रही है। वहीं खबर है कि अनेक नेता अब वरूण गांधी की सभाएं अपने अपने क्षेत्र में करवाने के लिए प्रयासरत हैं। वरूण गांधी के पास से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो उनके राजनैतिक गुरू के तौर पर वे अपनी मां मेनका गांधी का पूरा सम्मान करते हैं, और उन्ही की रणनीति पर वे आगे बढ रहे हैं। कहा जा रहा है कि वे भी उत्तर प्रदेश को लेकर खासे चिन्तित नज़र आ रहे हैं।

उत्तर प्रदेश की सियासत में चल पडी बयार ने कांग्रेस के प्रबंधकों की पेशानी पर पसीने की बून्दे छलका दी हैं। यूपी के भाजपाई चाहते हैं कि वरूण गांधी को यूपी में बतौर मुख्यमन्त्री प्रोजेक्ट किया जाना चाहिए, इससे युवाओं में अच्छा मैसेज जाएगा। यह सच है कि उत्तर प्रदेश की जनता पुराने चेहरों से उब चुकी है, और वह नया चेहरा देखना चाह रही है। यही कारण है कि पिछले लोकसभा चुनावों के उपरान्त वरूण गांधी एकाएक स्टार प्रचारक बनकर उभरे थे, सूबे में उनकी डिमाण्ड अन्य किसी भी नेता से बहुत ज्यादा थी।

उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्यों के बीच चल रही चर्चाओं में भी वरूण गांधी को प्रदेश के हर इलाके में जाने की बात कही जा रही है। गोण्डा, बहराइच, आजमगढ, बनारस, सीतापुर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, गोरखपुर आदि इलाकों से तो वरूण की सभाओं की मांग जबर्दस्त तरीके से आ चुकी है। विधायक तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर उनकी सीट बरकार रहेगी तो सिर्फ और सिर्फ वरूण गांधी की सभाओं के चलते। अनेक विधायक तो वरूण गांधी को तारणहार के तौर पर देख रहे हैं।