फिर सुलगने लगा है लाल गलियारा!
(लिमटी खरे)
अस्सी के दशक के बाद भारत जिसे हिन्दुस्तान, इंडिया आदि के नाम से भी जाना जाता है को किसी की नजर लग गई है। यही कारण है कि इसके बाद देश में अलगाववाद, आतंकवाद, माओवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद और न जाने कितने वाद हैं सभी के केंसर ने इसे घेर लिया है। देश के रहवासी अपने आप को असुरक्षित महसूस करतेे हैं, पर दूसरी ओर देश के नीति निर्धारक कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में खुद को महफूज रखते हैं। अपनी मनमानी करने के लिए मशहूर जनसेवक और लोकसेवकों ने मीडिया जगत में कार्पोरेट की दखल का फायदा उठाकर इसे अपनी पांव की जूती बना रखा है। इन धनपतियों की डेयोढी पर नाक रगडते मीडिया के वही सुर बाहर आते हैं जो इनकी मंशा के अनुरूप होते हैं। मामला चाहे बाबा रामदेव का हो या अन्ना हजारे का। कोई भी मीडिया हाउस इसमें न तो आंदोलन कारी को ही नंगा कर पाया न सरकार को। अंत में पिसना करदाता जनता को ही है। इसी का फायदा उठाकर अंत में ‘‘वादी‘‘ लगाने वाले देश में आतंक बरपा रहे हैं। हाल ही में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस अध्यक्ष की के काफिले पर हुए नक्सली हमले ने साफ कर दिया है कि हमारा सुरक्षा तंत्र इनके आगे बौना ही है।
पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी से निकलकर समूचे भारत मंे साम्राज्य फैलाने वाले नक्सलवादियों ने लाल गलियारे का दायरा एक के बाद एक कर कमोबेश हर प्रदेश में बढ़ा लिया है। बीते दिनांे मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में नक्सलियों के काडर बेस्ड समर कैंप की खबरों ने केंद्र सहित राज्यों को हलाकान कर दिया था। पूर्व में रांची के पास एक रेलगाड़ी का अपहरण कर नक्सलवादियों ने जता दिया था कि भारत सरकार या प्रदेश सरकारें उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
बीस जुलाई को छत्तीसगढ़ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं संयुक्त मध्य प्रदेश के गृह मंत्री रहे नंद कुमार पटेल के काफिले पर हुआ नक्सली हमला यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि आज भी नक्सली देश के के सुरक्षा तंत्र से ज्यादा मजबूत तंत्र स्थापित कर चुके हैं। पटेल के काफिले में चल रहे पांच में से दो वाहन बुरी तरह क्षति ग्रस्त हुए हैं। पटेल के साथ पूर्व अध्यक्ष धनेंद्र साहू, सत्य नारायण शर्मा आदि मौजूद थे।
वैसे बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में नक्सलवादियांे की बढ़ती गतिविधियों से आम आदमी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। भले ही सरकारें इस पर संजीदा न हों पर आम आदमी अपने जान माल की सुरक्षा के लिए इस गलियारे से फिकरमंद दिख रहा है। देश के आधे से अधिक राज्यों में नक्सलवादी आतंक के बल पर दशकों से अपनी समानान्तर सरकारें चला रहे हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि नक्सली आतंक वाले क्षेत्रों में प्रदेशों अथवा देश का शासन नहीं वरन् उनका अपना कानून चल रहा है। यह एक एसी कड़वी हकीकत भी है, जिसे सरकारों को स्वीकार करना ही होगा।
वस्तुतः नक्सलवादी विचारधारा को खाद किसी कट्टरवादी आधार से नहीं मिल रही है। सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद कर नक्सली स्थानीय लोगों को अपना बना लेते हैं। फिर शुरू होता है व्यवस्था सुधारने के नाम पर आतंक का नंगा नाच। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में ही प्रदेश सरकार के तत्कालीन कबीना मंत्री लिखी राम कांवरे की उनके घर पर ही नक्सलियों ने गला रेतकर हत्या कर दी थी, हमारी प्रदेश और केंद्र सरकार तब भी हाथ पर हाथ रखे बैठी रही।
आमूमन नक्सलियों के निशाने पर पुलिस, राजस्व और वन विभाग के कर्मचारी होते हैं। दरअसल जनता से इन्हीं विभाग के लोगों का सीधा सामना होता है। इन महकमों के सरकारी नुमाईंदो को डरा धमका कर ग्रामीणों को इंसाफ दिलवा, ये नक्सली अपना प्रभाव क्षेत्र तेजी से बढ़ाने में सफल हो गए हैं। हमारी दम तोड़ती सरकारी व्यवस्था में आज भी इसका विकल्प नहीं खोजा गया है। दरअसल भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते सरकारी सिस्टम को सुधारने के लिए उपर से ही सफाई आवश्यक है, जो असंभव है। सरकार यह नहीं सोचती कि इन नक्सलियांे को जहां से खाद पानी मिल रहा है, उसी व्यवस्था को अगर सुधार दिया जाए तो आने वाले समय में इनके भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।
छत्तीसगढ़ में नक्सली पदचाप ने एक बार फिर केंद्र सरकार की नींद में खलल डाल दिया है। खुफिया तंत्र को मिली सूचना के मुताबिक नक्सलियों ने छग मंे अपनी ग्यारहवीं कंपनी तैयार कर ली है। पुलिस महानिरीक्षक की तैनाती के बावजूद भी नक्सली अपने कैडर के प्रशिक्षण के लिए मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिले बालाघाट को मुफीद समझ रहे हैं।
खुफिया तंत्र के सूत्रों का कहना है कि नक्सलवादी अपनी सोची समझी रणनीति के तहत अब बियावान जंगलों से निकलकर शहरों में अपना नेटवर्क मजबूत करने की कवायद में जुट गए हैं। छत्तीसगढ़ में हाल ही में चार वारदातों को अंजाम देकर नक्सलियों ने अपने इरादे जग जाहिर कर दिए हैं।
सूत्रों के मुताबिक छत्त्ीसगढ़ के राजनांदगांव और महाराष्ट्र सीमा के गढ़ चिरोली जिलों में एक के बाद एक धमाकों में दोनों ही राज्यों में सक्रिय नक्सलवादियों का आपस में सामंजस्य स्थापित होने की खबरें हैं। वहीं दूसरी ओर नक्सल प्रभावित जिलों में स्थानीय पुलिस बल और अर्ध सैनिक बलों के बीच तालमेल का अभाव भौगोलिक परिस्थितियों का न समझ पाना भी एक बड़ा कारण माना जा रहा है। इसी बीच नक्सलियों की 11वीं कंपनी की स्थापना की खबर ने खुफिया तंत्र की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलका दी हैं। सूत्रों का कहना है कि यद्यपि इसमें नक्सलियों की तादाद काफी कम है फिर भी नक्सलियों की सक्रियता के चलते इसमें भारी मात्रा में स्थानीय युवा सदस्यों के जुड़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ से 80 से अधिक नक्सलियों की लांजी और बैहर में आमद के संकेत मिले हैं। गौरतलब है कि बालाघाट में टांडा और मलाजखण्ड दलम पहले से ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। सूत्रों की मानें तो नक्सलवादियों ने बालाघाट में अपना ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया है, जिसमें प्रशिक्षण लेने बड़ी तादाद में नए जुड़े नक्सली आ रहे हैं।
गौरतलब होगा कि संयुक्त मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ के प्रथक होने से पूर्व) में बालाघाट और मण्डला में नक्सली गतिविधियों के मद्देनजर पुलिस महानिरीक्षक का पद सृजित किया गया था, जिसका मुख्यालय बालाघाट से लगभग ढाई सौ तो मण्डला से लगभग सवा सौ किलोमीटर दूर जबलपुर में रखा गया था, बाद में इसे बालाघाट स्थानांतरित कर दिया गया है। आईजी नक्सल जोन की तैनाती के बावजूद भी बालाघाट में नक्सली प्रशिक्षण केम्प के संचालन की खबरें आश्चर्यजनक ही कही जाएंगी। इसके पहले मध्य प्रदेश के तत्कालीन परिवहन मंत्री लिखी राम कांवरे की नक्सलियों ने उनके निवास पर ही नृशंस तरीके से गला रेतकर हत्या कर दी थी।
इससे पहले भी नक्सलियों ने अपनी ताकत का अहसास केंद्र और राज्य सरकारों को करवाया है। कितने अश्चर्य की बात है लोकतंत्र के महाकुंभ के दौरान ही नक्सलवादियों ने रांची से महज सवा सौ किलोमीटर दूर एक रेलगाड़ी का अपहरण कर लिया। वह भी तब जबकि देश पर आतंकवादी खतरा मण्डरा रहा था, और आम चुनाव चल रहे हों। इस घटना से साफ हो जाता है कि हमारे देश में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति क्या है? लातेहार में घटी इस घटना से नक्सलवादियों ने साफ संकेत दे दिया था कि वे अपने प्रभाव वाले इलाकों में अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। नक्सलियों ने झारखण्ड में रेलगाड़ी पर कब्जा जमाकर सात सौ से ज्यादा यात्रियों को बंधक बनाया, बिहार में बीडीओ के आफिस में बम विस्फोट किया, बीडीओ कार्यालय और चेंबर को बम से उड़ा दिया। इतना ही नहीं बिहार में ही जीटी रोड़ पर आठ ट्रकों को जला कर एक चालक को गोली से उड़ा दिया। पश्चिम बंगाल में तीन सीपीएम कार्यकर्ताओं की हत्या और चार धमाके बारूदी सुरंग से किए। पलामू के उतारी रोड़ रेल्वे स्टेशन पर भी विस्फोट किया।
सरकारी तंत्र की सुरक्षा को भेदकर नक्सलियों ने इस तरह की ध्रष्टता का परिचय दिया है। चुनाव के दौरान भी व्यापक हिंसा कर नक्सलवादियों ने अपने इरादे साफ कर दिए थे, कि वे साहूकारी, जमींदारी के साथ ही साथ सरकारी व्यवस्था के अर्थात लोकतंत्र के भी खिलाफ हैं। हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि देश की सरकारें नक्सलवाद को कानून और व्यवस्था की ही समस्या मानकार उसका निदान करने का प्रयास करती आईं हैं। वस्तुतः इसकी वजह कुछ लोगों के मुख्यधारा से भटककर अव्यवस्थाओं को अस्त्र बनाने से उभरी है।
दशकों से दलित, आदिवासी और सर्वहारा वर्ग जो सामंतशाही के कुचक्र की चक्की में पिसता आया है, को अपनी ताकत बनाकर नक्सली अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं। कंेद्र और राज्यों की सरकारों के खुफिया तंत्र में यह बात उभरकर सामने आ चुकी है कि धनपतियों, राजनेताओं और इन फिरका परस्त ताकतों की जुगलबंदी के चलते ही देश आंतरिक तौर पर अस्थिर हुआ है। इन नक्सलवादियों को कहीं न कहीं राजनेताओं का बेकअप मिला हुआ है। सरकारों को चाहिए कि पुलिस को वर्दी के साथ ही साथ व्यवहारिक होने का पाठ भी पढ़ाएं ताकि मुख्य धारा से भटके इन भारतवंशियों को वापस मुख्यधारा में लाया जा सके।