शुक्रवार, 16 सितंबर 2011
हमारे पैसों से ही भारत में आतंक बरपा रही है आईएसआई
हमारे पैसों से ही भारत में आतंक बरपा रही है आईएसआई
(लिमटी खरे)
अपने नापाक इरादों के साथा भारत गणराज्य में आतंक बरपाकर अस्थिरता पैदा करने के अनेक आरोप पाकिस्तान पर लगते रहे हैं। एक के बाद एक सबूत पेश करने के बाद भी वहां की हुकूमत भारत में आतंक फैलाने की बात नकारती आई है। दुनिया के चौधरी अमेरिका के सामने भारत के नेता घुटनों पर खड़े नजर आते हैं। अमेरिका बड़ी ही चतुराई के साथ हमारी पीठ पर हाथ रखकर संवेदना जताता है तो ठीक इसके बाद उसका हाथ पाकिस्तान के सर पर रखा नजर आता है। आतंक के पर्याय बन चुके दाउद इब्राहिम को अघोेषित तौर पर सुरक्षा प्रदान कर उगाही करवा रही है पाक इंटेलीजेंस। इतना ही नहीं वसूली के जरिए भी नायाब हैं। अब तो नकली नोट, गरम गोश्त, मादक दवाओं के माध्यम से हो रही वसूली। वसूली सेठ साहूकारों के साथ ही साथ अंडरवर्ल्ड से वसूली जा रही है चौथ।
एक अर्से से भारत आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए फिकरमंदा है। भारत में दहशतगर्दी के लिए पूरी तरह जिम्मेदार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा अपने नापाक मंसूबों को अमली जामा पहनाने के लिए भारत से ही धन उगाही की जा रही है। भारत सरकार इस बात को जानते बूझते भी किसी तरह का ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। भारत में एक के बाद एक बम धमाके होते जा रहे हैं और देश की बेशर्म और नपुंसक सरकार नीरो के मानिंद चैन की बंसी बजा रही है। भ्रष्टाचार के मामलों में पानी सर के उपर आ चुका है, पर सरकार खामोशी ओढ़े हुए है।
आज दुनिया भर में इस बात को लेकर आश्चर्य के साथ कानाफूसी जारी है कि भारत में आतंक बरपाने वाली पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा अंडरवर्ल्ड सरगना दाउद इब्राहिम के ज़रिए हिन्दुस्तान से ही धन की वसूली कर इसका इस्तेमाल भारत में अपने गुर्गों के माध्यम से दहशत फैलाने के लिए किया जा रहा है और भारत सरकार द्वारा महज पाक को बार बार चेताया ही जा रहा है।
दुनिया जान चुकी है कि पाकिस्तान द्वारा भारत में आंतरिक हालात बेकाबू करने के लिए प्रशिक्षित आतंकवादियों का सहारा लिया जा रहा है। आज आलम यह है कि भारत की तीन चौथाई से ज्यादा सुरक्षा एजेंसियां आतंक को रोकने के काम में लगी हुई हैं। एक तरफ उत्तरी सीमा पर पाकिस्तान, चीन और बंग्लादेश सीमा पर जवानों को घुसपैठ रोकने के लिए झोंका जा रहा है तो दूसरी ओर देश में एक के बाद एक हो रहे धमाकों से निपटने में सेना के साथ ही साथ पेरामिल्ट्री फोर्स के जवान अपने अदम्य साहस का परिचय दे रहे हैं।
खुफिया तंत्र से छन छन कर बाहर आ रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो दाउद और आईएसआई द्वारा भारत से हर साल 800 करोड़ से अधिक की रकम उगाही जा रही है। सर्वविदित है कि दाउद द्वारा ‘‘दम‘‘ देकर धन उगाही लगभग दो दशकों से लगातार की जा रही है। दाउद का बेनामी पैसा हिन्दुस्तान में रियल स्टेट, फिल्म जगत, उद्योग धंधों, परिवहन, के साथ ही साथ गुटखों की फेक्ट्रियों में बड़ी तादाद में लगा हुआ है।
राजनीति, रूपहले पर्दे अथवा उद्योगों आदि में लोगों को आगे बढ़ाने में दाउद द्वारा पर्दे के पीछे से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती रही है। जो भी दाउद से उपकृत हुआ है, वह आज उसके नेटवर्क का मजबूत पाया बनकर ही उभरा है। दाउद की छोटी मोटी पार्टियों में भी रूपहले पर्दे के नायक नायिकाएं मुजरा करते नजर आते हैं। समाचार चेनल्स द्वारा हीरो हीरोईन के कमर मटकाते पार्टियों में लोगों का मनोरंजन करते कई बार दिखाया भी गया है। बावजूद इसके सरकारों द्वारा कोई ठोस कार्यवाही न किया जाना अनेक संदेहों को ही जन्म देता है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि हिन्दुस्तान में दहशतगर्दी का पर्याय बन चुका दुर्दांत आतंकवादी दाउद वर्तमान में पाकिस्तान में ही है, एवं वह आईएसआई के संरक्षण में स्वच्छंद सासें ले रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रही चर्चाओं को सच मानें तो दाउद की सेवा टहल की जिम्मेदारी आईएसआई के जिम्मे ही है, यहां तक कि उसे जब भी मुल्क से बाहर जाना होता है, आईएसआई ही उसे नए नाम से पासपोर्ट और वीसा बनवाकर देती है। इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो आईएसआई जाने या पाक, किन्तु अखबारों में दाउद के पाक मंे पनाह लेने की खबरों को बेमानी नहीं कहा जा सकता है।
गौरतलब होगा कि जनरल कियानी ने जब से पाकिस्तान सेना के प्रमुख बने हैं तब से भारत में आतंकवादी घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। वैेसे भी कियाना पहले आईएसआई के चीफ के ओहदे पर रह चुके हैं। पाकिस्तान और बंग्लादेश में पल रहे आतंकवादी गुटों का खर्चा निकालने के लिए दाउद और सिमी के नेटवर्क के माध्यम से भारत में तरह तरह के गैरकानूनी धंधों के लिए उपजाउ माहौल तैयार कर पैसा उगाहा जा रहा है। एक आश्चर्य जनक सत्य यह भी सामने आया है कि अवैध मादक पदार्थों के लगभग दस हजार करोड़ रूपए के कारोबार में दाउद की हिस्सेदारी सत्तर फीसदी से अधिक है।
वैसे भी भारत की भौगोलिक और राजनैतिक परिस्थितियां आतंकवादियों के लिए काफी हद तक अनुकूल कही जा सकतीं हैं। उत्तर भारत के पर्वतीय इलाके जहां साल में लगभग आठ माह सफेद चादर पसरी होती है, के रास्ते आतंकवादी हिन्दुस्तान में घुसपेठ आसानी से कर लेते हैं। रही कसर हमारा भ्रष्ट तंत्र पूरी कर देता है, जो इन दहशतगर्दों को बाकायदा पासपोर्ट, राशनकार्ड, वोटर आईडी, लाईसेंस आदि बनाकर दे देता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि एक आम भारतीय को इन सब को पाने में एड़ी चोटी एक करनी पड़ जाती है, किन्तु घुसपेठिए इन्हें बहुत ही आसानी से हासिल कर लेते हैं।
पिछले कुछ सालों में हिन्दुस्तान में मादक पदार्थ, नकली नोट के साथ ही साथ जिस्मफरोशी की घटनाओं का ग्राफ तेजी से बढ़ा है, जो चिन्तनीय कहा जा सकता है। केंद्र के साथ ही साथ सूबों की सरकारें इन मामलात को काफी हल्के रूप में ले रही हैं। वोट बैंक की राजनीति से बाज आकर केंद्र सरकार को चाहिए कि हर राज्य की सरकार को इसके लिए पाबंद करे कि उसके राज्य में गैरकानूनी रूप से रह रहे विदेशी एवं संदिग्ध नागरिकों को तत्काल बाहर का रास्ता दिखाए, वरना आने वाले समय में बनने वाली भयावह तस्वीर के लिए वही जवाबदार कहलाई जाएगी।
पेंच परियोजना पर ताला!
पेंच परियोजना पर ताला!
सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की सिंचाई होगी प्रभावित
दो दशकों से लंबित इस परियोजना को बनने के पहले ही बंद किया
कमल नाथ भी नहीं रूकवा पाए महात्वाकांक्षी परियोजना!
बढ़ती लागत आ रही है आड़े
दो दशकों में लागत बढ़ना स्वाभाविक
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। छिंदवाड़ा और सिवनी जिले में सिंचाई की महात्वाकांक्षी ‘‘पेंच सिंचाई परियोजना‘‘ दो दशकों तक सरकारी कार्यालयों की सीढ़ियां चढ़ने उतरने के बाद अंततः फाईलों में दफन हो ही गई। भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार की सहमति के उपरांत केंद्र सरकार ने इसकी फाईल बंद कर दी है। नब्बे के दशक में बनाई गई इस परियोजना को रोके रखने के मामले में क्षेत्रीय सांसद की भूमिका पर सवालिया निशान खड़ा किया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि यह परियोजना 1984 में आरंभ हुई थी। इसका विस्तृत प्राक्कलन 1984 में तैयार किया गया था, उस समय इसकी लागत 91.6 करोड़ रूपए आंकी गई थी। इस योजना पर वास्तविक काम 1988 में आरंभ हुआ। 14 साल तक राजनैतिक मकड़जाल में उलझी इस योजना की लागत 1998 में लगभग छः गुना बढ़कर 543.20 करोड़ रूपए हो गई थी। इस परियोजना का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी क्षेत्रीय सांसद कमल नाथ ने इसे अब तक केंद्र की अनुमति दिलवाने में नाकामी ही हासिल की है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 29 सितंबर 2003 को मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अंतिम समय में इस परियोजना की पुर्नरीक्षित अनुमति प्रदान की थी। इसके उपरांत 22 फरवरी 2006 को केंद्रीय जल आयोग ने इस योजना में 583.40 करोड़ रूपयों की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके लगभग ढाई बरस के उपरांत 15 जुलाई 2008 को मिट्टी के बांध के लिए निविदा आमंत्रित की गई थीं। 23 सितंबर 2008 को निविदा प्रक्रिया पूरी की जाकर ठेकेदार का चयन कर लिया गया था। इसी बीच 28 सितंबर को निविदा प्रक्रिया से असंतुष्ट हैदराबाद के ठेकेदार द्वारा उच्च न्यायालय से इस पर स्थगन ले लिया गया था।
सूत्रों ने बताया कि इसके निर्माण के काम के लिए हैदराबाद की कांति कंस्ट्रक्शन कंपनी में ज्वाईंट वेंचर में निविदा जमा की थी। इसमें 55 फीसदी कांति तथा 45 फीसदी साझेदारी पीएलआर प्रोजेक्ट प्राईवेट लिमिटेड की थी। इसमें अनुभव के कम मूल्यांकन पर ठेका कांति के स्थान पर एस.के.जैन इंफ्रास्टक्चर को दे दिया गया था। 27 अगस्त 2009 को उच्च न्यायालय ने स्थगन पर ही स्थगन देकर परियोजना के मार्ग प्रशस्त कर दिए थे।
देखा जाए तो छिंदवाड़ा जिले के चौरई विकास खण्ड के ग्राम माचागौरा के समीप पेंच नदी पर पेंच व्यपवर्तन परियोजना प्रस्तावित थी। वृहद स्तर की इस परियोजना के लिए 543 करोड़ रूपए 2009 में ही प्राप्त हो चुके थे। पेंच नदी पर 6330 मीटर लंबा मिट्टी का बांध और 373 मीटर पक्का बांध का निर्माण प्रस्तावित था। इस बांध में 577 मिलियन घन मीटर जल संग्रहित होना अनुमानित था।
इस परियोजना से सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने के लिए 543 किलोमीटर नहर का निर्माण भी प्रस्तावित था। इसमें सिवनी जिले के 134 गांव की 44 हजार 439 हेक्टेयर जमीन और छिंदवाड़ा जिले के 108 गांवों की 44 हजार 939 हेक्टेयर जमीन तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचने वाला था। इतना ही नहीं कमांड के क्षेत्र में 7.40 मिलियन घन मीटर जल प्रदाय किया जाना भी प्रस्तावित था।
इंडो जर्मन बायलेटरल डेवलपमेंट कोऑपरेशन के तहत पेंच वृहद परियोजना मध्य प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र सरकार को सालों पहले भेजी जा चुकी थी। इसके लिए सांसद कमल नाथ ने केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए अप्रेल 2006 में जापान बैंक ऑफ इंटरनेशनल कार्पोरेशन से आर्थिक इमदाद भी दिलवा दी थी। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि छिंदवाड़ा में लगातार शासन करने वाले केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के अलावा छिंदवाड़ा के सांसद रहे सुंदर लाल पटवा, सिवनी के सांसद सुश्री विमला वर्मा, प्रहलाद सिंह पटेल, राम नरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया एवं के.डी.देशमुख द्वारा दोनों जिलों के 242 गांवों की 89378 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की चिंता क्यों नहीं की? क्यों इनके द्वारा केंद्र सरकार से इसे मंजूरी दिलाई गई। यक्ष प्रश्न आज भी यह है कि दो दशकों तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह महात्वाकांक्षी परियोजना आखिर हिचकोले क्यों खाती रही? केंद्रीय जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि अब इस परियोजना की बढ़ी लागत से घबराकर प्रदेश सरकार ने इसे बंद करने की गुहार केंद्र से की है। सूत्रों ने कहा कि नई भूअर्जन नीति में मुआवजा चार गुना हो जाने से इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी। वैसे भी पुर्नरीक्षित प्राक्कलन में इसकी निर्माण लागत काफी बढ़ गई है।
गौरतलब है कि नब्बे के दशक में प्रस्तावित इस योजना की लागत दो दशकों में बढ़ना आश्चर्यजनक कतई नहीं माना जा सकता है। अब सवाल यह है कि दो दशकों में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व जो इस मद में व्यय किया गया है उसकी भरपाई किससे की जाएगी? अपने निहित स्वार्थ साधने के लिए नेताओं द्वारा जानबूझकर कराए गए इस विलंब पर तो जवाबदार नेताओं के खिलाफ ‘जनता के धन के आपराधिक दुरूपयोग‘ का मामला चलाया जाना चाहिए। इस मामले को भी अण्णा हजारे की अदालत में भेजने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है। लोगों का कहना है कि इस परियोजना के बंद होने में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही बराबरी के हकदार हैं।
किसके दस लाख लेकर जा रहे थे सांसद!
किसके दस लाख लेकर जा रहे थे सांसद!
गरीब जनसेवक के दस लाख ने खड़े किए अनेक प्रश्न
कामन वेल्थ के भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय देने का आरोप है दीक्षित की माता पर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। बुधवार की रात को भोपाल एक्सप्रेस से निजामुद्दीन से रवाना हुए दिल्ली के सांसद संदीप दीक्षित को लेकर अब सियासत गर्माती दिख रही है। गुरूवार को रेल के सफाई कर्मी को एक बैग मिला जिसमें दस लाख रूपए थे। ये बैग दक्षिण दिल्ली के सांसद संदीप दीक्षित का है। ज्ञातव्य है कि संदीप की मां श्रीमति शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं, जिन पर कामन वेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचारियों को बचाने के संगीन आरोप हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार सुबह सवा सात बजे यह रेल हबीबगंज पहुंची जहां संदीप दीक्षित उतरे। इसके बाद यह ट्रेन आठ बजे के लगभग यार्ड में चली गई। दोपहर को जब सफाई कर्मियोें ने इसकी सफाई आरंभ की तब उन्हें एक बैग मिला। पतासाजी पर यह बैग सांसद संदीप दीक्षित का पाया गया। सांसद विधायक खुद को काफी गरीब ही बताकर अपने वेतन भत्ते बढ़वाते रहते हैं। एक गरीब सांसद के द्वारा दस लाख रूपए की रकम नकद लेकर चलने को लेकर तरह तरह की चर्चाएं फैलना स्वाभाविक ही है।
अगर यह रकम संदीप दीक्षित की है तो वे इसके स्त्रोत को अवश्य ही उजागर करें। अगर वे किसी अन्य की रकम ले जा रहे थे तो इतनी बड़ी रकम ले जाने का जोखम उन्होंने क्यों उठाया? क्या सांसद संदीप दीक्षित किसी के लिए पैसे लाने ले जाने का काम करते हैं? इतनी बड़ी रकम आखिर किस बैंक से निकाली गई? क्या इतनी बड़ी रकम निकासी के वक्त बैंक द्वारा इसकी सूचना आयकर विभाग को दी थी?
आयकर के एक विशेषज्ञ का कहना है कि समरथ को नहीं दोष गोसाईं। अगर किसी आम आदमी के पास एक लाख रूपए भी मिल जाते तो पुलिस और आयकर विभाग नहा धोकर उसके पीछे पड़ जाता। यह मामला एक सम्मानीय और हाई प्रोफाईल सांसद का है, इसलिए इस मामले में ज्यादा कुछ निकलने की उम्मीद नहीं है। मामला जल्द ही ठंडे बस्ते के हवाले कर दिया जाएगा।
हटेंगे मध्य प्रदेश के अवैध धर्मस्थल
हटेंगे मध्य प्रदेश के अवैध धर्मस्थल
सुप्रीम कोर्ट ने अपनाए कड़े तेवर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। देश भर में अवैध धर्म स्थलों को हटाए जाने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अब अपने कड़े तेवर अपना लिए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब ढुल मुल रवैया नहीं चलेगा। सूबों को निर्देश दिए गए हैं कि वे 21 दिनों के अंदर धार्मिक स्थल हटाने के लिए नीति बनाकर हलफनामा कोर्ट में दाखिल करे।
गौरतलब है कि अवैध धर्म स्थलों के मामले में 77,453 के साथ तमिलनाडू पहले तो 58,253 के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर है। तीसरी पायदान पर मध्य प्रदेश का नंबर आता है जहां 51,626 अवैध धर्म स्थल हैं। राजधानी दिल्ली में इनकी संख्या महज 52 है। यहां उल्लेखनीय होगा कि वोट की राजनीति के चलते सूबाई सरकारों द्वारा अवैध धर्मस्थलों के मामले में शिथिलता बरती जाती है, जिससे मजबूरन न्यायालय को ही संज्ञान लेना होता है। राजनैतिक पार्टियां सदा ही धार्मिक उन्माद भड़कने की आशंका से अपने हाथ पीछे खींच लेती हैं। पर जब कोर्ट के डंडे से इन्हे हटाया जाता है तब यह उन्माद नहीं भड़कता। मतलब साफ है कि यह सब कुछ वोट की राजनीति का ही खेल है।
जस्टिस दलबीर सिंह और जस्टिस दीपक वर्मा की बैंच ने कड़े तेवर अपनाते हुए राज्यों से पूछा है कि राज्यों ने सार्वजनिक स्थानों पर बने हुए एसे निर्माणों को हटाने के लिए क्या व्यूह रचना बनाई है। कोर्ट ने इक्कीस दिनों के अंदर इस संबंध में हलफनामा दाखिल करने के निर्देश भी दिए हैं।
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