पेंच परियोजना पर ताला!
सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की सिंचाई होगी प्रभावित
दो दशकों से लंबित इस परियोजना को बनने के पहले ही बंद किया
कमल नाथ भी नहीं रूकवा पाए महात्वाकांक्षी परियोजना!
बढ़ती लागत आ रही है आड़े
दो दशकों में लागत बढ़ना स्वाभाविक
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। छिंदवाड़ा और सिवनी जिले में सिंचाई की महात्वाकांक्षी ‘‘पेंच सिंचाई परियोजना‘‘ दो दशकों तक सरकारी कार्यालयों की सीढ़ियां चढ़ने उतरने के बाद अंततः फाईलों में दफन हो ही गई। भाजपा की मध्य प्रदेश सरकार की सहमति के उपरांत केंद्र सरकार ने इसकी फाईल बंद कर दी है। नब्बे के दशक में बनाई गई इस परियोजना को रोके रखने के मामले में क्षेत्रीय सांसद की भूमिका पर सवालिया निशान खड़ा किया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि यह परियोजना 1984 में आरंभ हुई थी। इसका विस्तृत प्राक्कलन 1984 में तैयार किया गया था, उस समय इसकी लागत 91.6 करोड़ रूपए आंकी गई थी। इस योजना पर वास्तविक काम 1988 में आरंभ हुआ। 14 साल तक राजनैतिक मकड़जाल में उलझी इस योजना की लागत 1998 में लगभग छः गुना बढ़कर 543.20 करोड़ रूपए हो गई थी। इस परियोजना का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी क्षेत्रीय सांसद कमल नाथ ने इसे अब तक केंद्र की अनुमति दिलवाने में नाकामी ही हासिल की है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि 29 सितंबर 2003 को मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अंतिम समय में इस परियोजना की पुर्नरीक्षित अनुमति प्रदान की थी। इसके उपरांत 22 फरवरी 2006 को केंद्रीय जल आयोग ने इस योजना में 583.40 करोड़ रूपयों की स्वीकृति प्रदान की थी। इसके लगभग ढाई बरस के उपरांत 15 जुलाई 2008 को मिट्टी के बांध के लिए निविदा आमंत्रित की गई थीं। 23 सितंबर 2008 को निविदा प्रक्रिया पूरी की जाकर ठेकेदार का चयन कर लिया गया था। इसी बीच 28 सितंबर को निविदा प्रक्रिया से असंतुष्ट हैदराबाद के ठेकेदार द्वारा उच्च न्यायालय से इस पर स्थगन ले लिया गया था।
सूत्रों ने बताया कि इसके निर्माण के काम के लिए हैदराबाद की कांति कंस्ट्रक्शन कंपनी में ज्वाईंट वेंचर में निविदा जमा की थी। इसमें 55 फीसदी कांति तथा 45 फीसदी साझेदारी पीएलआर प्रोजेक्ट प्राईवेट लिमिटेड की थी। इसमें अनुभव के कम मूल्यांकन पर ठेका कांति के स्थान पर एस.के.जैन इंफ्रास्टक्चर को दे दिया गया था। 27 अगस्त 2009 को उच्च न्यायालय ने स्थगन पर ही स्थगन देकर परियोजना के मार्ग प्रशस्त कर दिए थे।
देखा जाए तो छिंदवाड़ा जिले के चौरई विकास खण्ड के ग्राम माचागौरा के समीप पेंच नदी पर पेंच व्यपवर्तन परियोजना प्रस्तावित थी। वृहद स्तर की इस परियोजना के लिए 543 करोड़ रूपए 2009 में ही प्राप्त हो चुके थे। पेंच नदी पर 6330 मीटर लंबा मिट्टी का बांध और 373 मीटर पक्का बांध का निर्माण प्रस्तावित था। इस बांध में 577 मिलियन घन मीटर जल संग्रहित होना अनुमानित था।
इस परियोजना से सिवनी और छिंदवाड़ा जिले में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करवाने के लिए 543 किलोमीटर नहर का निर्माण भी प्रस्तावित था। इसमें सिवनी जिले के 134 गांव की 44 हजार 439 हेक्टेयर जमीन और छिंदवाड़ा जिले के 108 गांवों की 44 हजार 939 हेक्टेयर जमीन तक सिंचाई के लिए पानी पहुंचने वाला था। इतना ही नहीं कमांड के क्षेत्र में 7.40 मिलियन घन मीटर जल प्रदाय किया जाना भी प्रस्तावित था।
इंडो जर्मन बायलेटरल डेवलपमेंट कोऑपरेशन के तहत पेंच वृहद परियोजना मध्य प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र सरकार को सालों पहले भेजी जा चुकी थी। इसके लिए सांसद कमल नाथ ने केंद्र में वाणिज्य और उद्योग मंत्री रहते हुए अप्रेल 2006 में जापान बैंक ऑफ इंटरनेशनल कार्पोरेशन से आर्थिक इमदाद भी दिलवा दी थी। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि छिंदवाड़ा में लगातार शासन करने वाले केंद्रीय मंत्री कमल नाथ के अलावा छिंदवाड़ा के सांसद रहे सुंदर लाल पटवा, सिवनी के सांसद सुश्री विमला वर्मा, प्रहलाद सिंह पटेल, राम नरेश त्रिपाठी, श्रीमति नीता पटेरिया एवं के.डी.देशमुख द्वारा दोनों जिलों के 242 गांवों की 89378 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की चिंता क्यों नहीं की? क्यों इनके द्वारा केंद्र सरकार से इसे मंजूरी दिलाई गई। यक्ष प्रश्न आज भी यह है कि दो दशकों तक केंद्र और राज्य सरकार के बीच यह महात्वाकांक्षी परियोजना आखिर हिचकोले क्यों खाती रही? केंद्रीय जल संसाधन विभाग के सूत्रों का कहना है कि अब इस परियोजना की बढ़ी लागत से घबराकर प्रदेश सरकार ने इसे बंद करने की गुहार केंद्र से की है। सूत्रों ने कहा कि नई भूअर्जन नीति में मुआवजा चार गुना हो जाने से इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी। वैसे भी पुर्नरीक्षित प्राक्कलन में इसकी निर्माण लागत काफी बढ़ गई है।
गौरतलब है कि नब्बे के दशक में प्रस्तावित इस योजना की लागत दो दशकों में बढ़ना आश्चर्यजनक कतई नहीं माना जा सकता है। अब सवाल यह है कि दो दशकों में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व जो इस मद में व्यय किया गया है उसकी भरपाई किससे की जाएगी? अपने निहित स्वार्थ साधने के लिए नेताओं द्वारा जानबूझकर कराए गए इस विलंब पर तो जवाबदार नेताओं के खिलाफ ‘जनता के धन के आपराधिक दुरूपयोग‘ का मामला चलाया जाना चाहिए। इस मामले को भी अण्णा हजारे की अदालत में भेजने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है। लोगों का कहना है कि इस परियोजना के बंद होने में कांग्रेस और भाजपा दोनों ही बराबरी के हकदार हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें