. . . एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
एक दिन की डीटीसी की आय 3.66 करोड़ रूपए
(लिमटी खरे)
दिल्ली की स्थानीय परिवहन व्यवस्था को घुन की तरह खोखला करने वाली किलर ब्लू लाईन बस को सड़कों से विदा करना आसान नहीं था। न्यायालय के आदेश के बाद सड़कों पर ग्रीन और रेड लो फ्लोर बस दौड़ने लगीं हैं। चुनिंदा मार्गों पर ब्लू लाईन अभी भी दौड़ रही हैं। कोर्ट की सख्ती के बाद इस असंभव काम को संभव कर दिखाया है शीला दीक्षित सरकार ने। यह निश्चित तौर पर शीला सरकार का एक एतिहासिक कदम माना जा सकता है।
वैसे तो दिल्ली का स्थानीय परिवहन एक समय तक दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के जिम्मे हुआ करता था। शनैः शनैः राजनेताओं ने अपने लोगों को उपकृत करने के लिए डीटीसी की वाट लगाना आरंभ कर दिया। डीटीसी की बसें खटारा कहलाने लगीं और वे ऑफ रोड़ होने लगीं। इनका स्थान ब्लू लाईन बस ने ले लिया। ब्लू लाईन बस के कब्जे में आ चुकी दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को बड़ा झटका मेट्रो ने दिया। दिल्ली में मेट्रो रेल ने गजब की क्रांति लाई।
मेट्रो में लोगों को घूमने का एक अलग चार्म देखने को मिला। कालांतर में दिल्ली की जीवन रेखा मेट्रो बन गई। वैसे मेट्रो प्रबंधन ने एक बात दिल्ली के साथ ही साथ समूचे देश को सिखा दी कि किस तरह भीड़ को नियंत्रित और व्यवस्थित किया जा सकता है। पीक अवर्स में राजीव चौक में भीड़ चरम पर होती है और उस समय बिना किसी हादसे या भगदड़ के मेट्रो की सेवाएं आज भी निरंतर जारी हैं।
मेट्रो के बाद कामन वेल्थ गेम्स के लिए चमचमाती लो फ्लोर बस सड़कों पर दिखाई दीं। नान एसी बस हरी तो एयर कंडीशन्ड बस लाल रंग की अलग ही आभा लिए होती हैं। इन यात्री बसों में पहले तो दिल्लीवासी चढ़ने से घबराए क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं डीटीसी की बस अपनी आदतानुसार रस्ते में ही न पसर जाएं। धीरे धीरे डीटीसी ने लोगों का भरोसा अंततः जीत ही लिया।
आज दिल्ली में यूरोप के मानिंद ही लुभावनी बसों को देखकर राजधानी वालों का दिल प्रफुल्लित हो जाता है। दिल्ली घूमने आने वालों के लिए भी ये बस और मेट्रो रेल कोतुहल का विषय ही होती हैं। यद्यपि अभी इन बसों की टाईमिंग बहुत ही अनाप शनाप है क्योंकि एक ही मार्ग पर या तो एक एक घंटे तक बस नहीं आती है या फिर आती है तो एक साथ आधा दर्जन बस, फिर भी इसकी आय में होने वाली रिकर्ड बढ़ोत्तरी के लिए शीला सरकार की पीठ हर कोई थपथपाना चाहेगा।
दिल्ली में 5393 बस प्रथम पाली अर्थात सुबह तो चार हजार पांच सौ बस दूसरी पाली में शाम को छोडी जाती हैं। दिल्ली के यात्री बस बेड़े में 6197 यात्री बस हैं जो प्रतिदिन लगभग 11 लाख किलोमीटर का सफर तय करती हैं। 18 अप्रेल का दिन डीटीसी के लिए एक कामयाब दिन था। इस दिन 44 लाख यात्रियों को ढोकर डीटीसी ने तीन करोड़ 66 लाख रूपए की आय अर्जित की।
ज्ञातव्य है कि पिछले साल 01 से 18 अप्रेल के बीच डीटीसी की कमाई 26 करोड़ रूपए थी, जो इसी अवधि में इस साल बढ़कर 55 करोड़ रूपए तक पहुंच गई है। पिछले साल मार्च माह का कुल राजस्व 45 करोड़ रूपए था जो इस साल दुगने से ज्यादा बढ़कर 91 करोड़ रूपए हो गया है। डीटीसी का लक्ष्य सौ करोड़ रूपए करने का है।
कल तक दम तोड़ रही डीटीसी की यात्री परिवहन व्यवस्था आखिर पटरी पर आ ही गई है। निजी तौर पर संचालित होने वाली किलर ब्लू लाईन बस को सरकार ने अनिच्छा से ही सही सड़कों से खदेड़ ही दिया है। इससे साफ हो जाता है कि अगर पीछे से कोई बांस करता रहे और इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है।
मध्य प्रदेश में कमोबेश यही आलम पसरा हुआ है। निजी तौर पर अवैध तरीके से संचालित होने वाली यात्री बसों की लाबी इतनी हावी हो चुकी है कि मध्य प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को बंद ही करना पड़ा। अस्सी के दशक के आरंभ के साथ ही देश के हृदय प्रदेश में टूरिस्ट परमिट के नाम पर यात्रीयों को स्टेट कैरिज में ढोने का काम आरंभ किया गया था। जिला पुलिस, यातायात पुलिस और परिवहन विभाग की मिली भगत से इन यात्री बसों का धंधा खास फल फूल गया।
इस बिजनिस में एमपीआरटीसी जिसे पहले लोग सेेंट्रल प्रोवेन्हसिस ट्रांसपोर्ट सर्विस (सीपीटीएस) कहते थे के कारिंदों की मिली भगत ने सड़क परिवहन निगम में आखिरकार ताला लगवा ही दिया। आज मध्य प्रदेश में चुनिंदा अनुबंधित यात्री बसों के नाम पर अस्सी फीसदी अवैध बस संचालित हो रही हैं। इससे सरकार को तो राजस्व की हानी हो रही है, किन्तु बस मालिक, पुलिस और परिवहन विभाग के कर्मचारियों के साथ ही साथ जनसेवकों की जेबें खासी फूली दिखाई दे रही हैं।
मध्य प्रदेश के नीति निर्धारकों को डीटीसी की पूर्व और वर्तमान हालत से सबक लेना चाहिए। किस तरह आर्थिक और पहचान के संकट से जूझने वाली डीटीसी आज आर्थिक संपन्न और सर उठाकर चल रही है। नीयत साफ होनी चाहिए बस तभी तो कहा गया है -
‘कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता!
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो‘!!