हार ने लाया युवराज
को धरातल पर!
जमीनी संपर्क की
कवायद में राहुल
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली (साई)।
उत्तर प्रदेश में बड़े नेताओं के कांधों पर बैठकर सत्ता हासिल करने का सपना देखने
वाले कांग्रेस के युवराज जब अपने ही संसदीय क्षेत्र वाले सूबे उत्तर प्रदेश में
औंधे मुंह गिरे तो हाथ पैर झटककर वे मंथन में लग गए। राहुल के करीबी सूत्रों का
कहना है कि यूपी चुनाव में हार के ‘गमजे‘ से अब युवराज उबर आए हैं और नई पारी खेलने
की तैयारी में जुट गए हैं।
टीम राहुल के एक
सदस्य ने नाम उजागर ना करने की शर्त पर राहुल की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालते हुए
कहा कि पहले राहुल गांधी से मिलना बेहद कठिन काम था। इसका कारण राहुल का चाटुकारों
से घिरा होना ही था। टीम राहुल में कथित तौर पर सियासी धुरंधर समझे जाने वाले सुधा
और जोया नामक चेहरों का जबर्दस्त प्रभाव था।
इक्कीसवीं सदी के
हिसाब से कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी सारे डाटा को कलेक्ट कर उसे कंप्यूटर में
डालकर मथते फिर उस पर विचार विमर्श होता। राहुल से मिलना आसान नहीं था। राहुल से
जो भी बात कहना करना हो उसका बाकायदा नोट तैयार कर सौंपना होता था, जिसे कंप्यूटर में
डाल दिया जाता। बाद में इसके प्वाईंट बनाकर राजनैतिक विश्लेषक इस पर मंथन कर उससे
निकला अमृत राहुल के सामने परोस देते थे।
टीम राहुल के उक्त
सदस्य ने बताया कि यह सब एक नेता विशेष के इशारे पर विशेष रणनीति के तहत हो रहा था, जिससे राहुल के
सामने निचोड़ के रूप में अमृत के बजाए विष ही जा रहा था, जिसकी परणीति उत्तर
प्रदेश चुनाव में साफ दिख रही है। उत्तर प्रदेश में सूपड़ा साफ होने के बाद राहुल
की तंद्रा टूटी है और उन्होंने जमीन पर रहने का फैसला किया है।
कहा जा रहा है कि
पहले जिन नेताओं को राहुल गांधी तो क्या टीम राहुल से मिलने का मौका नहीं मिल पाता
था आज उन्हें ढूंढ ढूंढ कर बुलाया जा रहा है। नेता विशेष के इशारे पर राजीव सोनिया
के विशेष और सलाहकारों को दूर रखा गया था, उनकी भी पूछ परख अब बढ़ गई है। राहुल उनकी
बातों को भी तरजीह दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश के
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की टीम ने मीडिया में इस बात को बो दिया था कि
राजा दिग्विजय सिंह ही राहुल गांधी के राजनैतिक गुरू हैं। यही कारण है कि राजा
दिग्विजय सिंह की तूती जमकर बोल रही थी। सितारों की उल्टी चाल ने राजा साहेब को भी
हाशिए में जाने पर मजबूर कर दिया। अब राजा दिग्विजय सिंह की पूछ परख राहुल के
दरबार में समाप्त हो चुकी है।
राजा दिग्विजय सिंह
की भूमिका अब दूसरी पारी में सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल को सौंपी जा
चुकी है। अहमद पटेल भले ही जमीनी राजनीति करने के बजाए पिछले दरवाजे अर्थात
राज्यसभा के रास्ते राजनीति कर रहे हों, उन पर बिना रीढ़ का होने का आरोप लग रहा हो
पर पिछले दिनों राहुल गांधी के साथ अहमद पटेल की तीन लंबी बैठकों की सीरिज ने
कांग्रेस के अंदर की फिजां को गरमा दिया है। कहा जा रहा है कि यूपी की हार से
युवराज राहुल गांधी जमीन पर आ चुके हैं। अब देखना यह है कि कितने दिनों तक यह
समीकरण बना रहता है।