रविवार, 16 सितंबर 2012

आदमी से लंबा है यह श्वान


आदमी से लंबा है यह श्वान

(अभिलाषा जैन)

लंदन (साई)। अमेरिका के ग्रेट डेन कुत्ता जिअस ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड के ताजा संस्करण में अपना नाम सबसे लंबे कुत्ते के रूप में दर्ज करवा लिया है. पिछले पैरों पर खड़ा करके उसकी लंबाई 2.2 मीटर है. तीन साल के इस ग्रेट डेन के पैरों से कंधे तक की लंबाई 44 इंच है.
जिअस मिशीगन का है और पिछले पैरों पर खड़ा करके उसकी लंबाई 2.2 मीटर यानी 7 फुट 4 इंच है. गधे के आकार वाले इस कुत्ते का वजन करीब 70 किलोग्राम है. इसकी लंबाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह किचन के सिंक से बिना सिर ऊपर किये कोई भी तरल पदार्थ पी सकता है.
गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड 2012 के अनुसार इस कुत्ते ने जाइंट जार्ज का रिकार्ड तोड़ा है जो इससे महज एक इंच छोटा था. जार्ज भी ग्रेट डेन था.

अख्खड़ छवि बन रही युवराज की!


अख्खड़ छवि बन रही युवराज की!

प्रियंका का महिमा मण्डन आरंभ

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। नेहरू गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी के खिवैया और कांग्रेस के तारणहार राहुल गांधी की छवि अख्खड़ और किसी की बात ना सुनने वाले अदूरदर्शी युवा की बनती जा रही है। राहुल की छवि के बारे में विदेशी मीडिया के हमलों से अब कांग्रेस बैकफुट पर आ गई है। कांग्रेस में ही राहुल से रश्क रखने वाले अब रणनीतिकारों के निशाने पर बताए जाते हैं। उधर, प्रियंका वढ़ेरा के फैन्स अब राहुल के बजाए प्रियंका के महिमा मण्डन में जुट चुके हैं।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने पहचान उजागर ना करने की शर्त पर समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राहुल गांधी की कार्यप्रणाली से कांग्रेस के अंदरखाने में असंतोष उबलने लगा है। राहुल के बारे में अंदर ही अंदर आम राय बनने लगी है कि राहुल को सियासत की समझ बूझ बिल्कुल भी नहीं है। उत्तर प्रदेश में वे विधानसभा चुनावों में चमत्कार नहीं दिखा सके, जबकि उनका संसदीय क्षेत्र भी इसी राज्य मे है।
उन्होंने आगे कहा कि इसके साथ ही साथ राहुल के बारे में यह भी प्रचारित होने लगा है कि राहुल को उत्तर प्रदेश के सियासी और जातिगत समीकरणों की ही समझ बूझ नहीं है। रीता बहुगुणा के स्थान पर निर्मल खत्री को प्रदेश की कमान सौंपने की प्रतिक्रियाएं भी अच्छी नहीं कही जा रही हैं। उधर, माथुर को विधायक दल का नेता बनाने से माहौल में खुश्की पसर गई है।
कहा जा रहा है कि खाटी कांग्रेसियों को दरकिनार कर राहुल गांधी द्वारा आयतित कांग्रेसियों को ज्यादा तवज्जो देने से कांग्रेस काडर में निराशा पसर चुकी है। उक्त पदाधिकारी ने कहा कि राहुल के बारे में यह बात भी आम होने लगी है कि राहुल अब किसी की सुनते तक नहीं हैं। जब भी कोई नेता उन्हें कोई बात बताने का प्रयास करता है तो राहुल गांधी एक ही तकिया कलाम का उपयोग करते हैं।
राहुल के करीबी सूत्रों ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि राहुल का तकिया कलाम इन दिनों हो गया है -‘‘आई नो एवरीथिंग, आई विल सेटिल डाउन द थिंग्स विदिन मिनिट।‘‘ इसके बाद ही नेताओं की बोलती ही बंद हो जाती है। हाल ही में राहुल ने अपने संसदीय क्षेत्र की टीम में भी फेरबदल किया है।
उधर, सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ के सूत्रों का कहना है कि आईबी की रिपोर्ट में भी राहुल गांधी की टीआरपी में जमकर कमी दर्ज की गई है, जिससे कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकने लगी हैं। इसके साथ ही साथ केंद्र के कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के इशारों पर विदेशी मीडिया भी राहुल गांधी की बखिया उधेडने में लग गया है।
इन परिस्थितियों में सोनिया का ध्यान बरबस ही अपनी पुत्री प्रियंका वढेरा पर जाने लगा है। प्रियंका स्वभाव से शांत और समझदार बताई जाती हैं। वे राजीव गांधी फाउंडेशन का काम बखूबी संभाल रही हैं। हाल ही में प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी के लोगों से मिलना जुलना भी आरंभ कर दिया है।
सूत्रों ने कहा कि हो सकता है 2014 के चुनावों में प्रियंका वढ़ेरा को तुरूप का इक्का बनाकर कांग्रेस मैदान में उतरे और जैसे ही सरकार बनाने की जादुई संख्या को पाए वैसे ही प्रियंका को पीछे कर राहुल को देश की बागडोर पकड़ा दे। दरअसल कांग्रेस के रणनीतिकार भी 2014 के आम चुनाव को राहुल गांधी के लिए करो या मरो की तर्ज पर देख रहे हैं।
वैसे भी पिछले लगभग छः माहों से अपनी बीमार मां की परछाई बनी हुईं हैं प्रियंका वढ़ेरा। समय पर मां को दवाई देना, समय पर खाना, आराम आदि का पूरा पूरा ख्याल रख रही हैं, प्रियंका। सोनिया के करीबी सूत्रों ने तो यहां तक कह डाला कि आने वाले समय में सोनिया आराम करने वाली हैं और कांग्रेस की कमान प्रियंका वढ़ेरा तथा देश की राहुल गांधी के हाथों में हो सकती है।

कोल को छोड़ अब एफडीआई पर रार

कोल को छोड़ अब एफडीआई पर रार

(शरद खरे)

नई दिल्ली (साई)। प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने डीजल के मूल्य में वृद्धि को सही दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताते हुए उचित ठहराया है। नई दिल्ली में कल १२वीं पंचवर्षीय योजना बैठक में उन्होंने कहा कि ईंधन का  क्षेत्र जटिल है और देश में इसकी कीमत विश्व में कीमतों के अनुरूप नहीं है। इसलिए इसकी कीमतों का तर्कसंगत होना महत्वपूर्ण है।
डॉ. सिंह ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति और अन्य उपायों से आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का बचाव करते हुए कहा कि निवेश के अनुकूल माहौल बहाल किए जाने की जरूरत है। वित्तीय घाटा बहुत ज्यादा होने को स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसमें कमी लाई जानी चाहिए ताकि घरेलू संसाधनों का अर्थव्यवस्था में उत्पादक रूप से इस्तेमाल किया जा सके। उन्होंने कहा कि सरकार का लक्ष्य महज सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करना नहीं है बल्कि समग्र और सतत विकास करना है।
उन्होंने यह भी कहा कि तत्काल कार्रवाई के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र यह है कि ढांचागत परियोजनाओं को अमल में लाने की गति बढ़ाई जाए। कृषि क्षेत्र में विकास का जिक्र करते हुए डॉक्टर सिंह ने कहा कि इसे बढ़ा कर लगभग चार प्रतिशत तक ले जाना होगा। यह दर ११वीं योजना में ३ दशमलव ३ प्रतिशत रही थी। उन्होंने देश में रोज$गार के अवसर विकसित करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र के तेजी से विस्तार की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि १२वीं योजना में विकास का लक्ष्य पहले अनुमानित ९ प्रतिशत की बजाय ८ दशमलव २ प्रतिशत रखा गया है। उन्होंने कहा कि आठ दशमलव दो प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए हमें अर्थव्यवस्था में निवेश को दोबारा सुधारना होगा, इसलिए निवेश का माहौल बनाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। डॉ० मनमोहन सिंह ने कहा कि विदेशी ऋण पर निर्भरता कम करने के लिए चालू खाता घाटे को कम किया जाए।
उधर, देश के विभिन्न राज्यों से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से एफडीआई के विरोध की खबरें सतत आ रही हैं। मल्टी ब्रैंड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई को सरकार ने मंजूरी भले दे दी हो, लेकिन उसकी राह इतनी आसान नहीं है। महंगाई के मोर्चे पर सरकार से पहले ही नाराज चल रहे विपक्ष और गठबंधन दलों ने एफडीआई को भी मुद्दा बना लिया है। ज्यादातर राज्य सरकारों ने इसका विरोध किया है, वहीं कुछ ऐसी भी हैं जो इसके समर्थन में हैं।
गुजरात समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से जलपन पटेल ने कहा कि मुख्यमंत्री नरेंद मोदी ने इस पर सरकार और कांग्रेस पर निशाना साधा है। मोदी ने कहा है कि डॉ. मनमोहन सिंह सिंघम बन गए हैं। लेकिन आपकी हड्डियों में उतनी ताकत नहीं है कि आप लड़ते हुए मर सकें। बजाय इसके आपको कहना चाहिए कि हम मरते-मरते लड़ेंगे। आप विदेशी कारोबारियों को भारत आने की इजाजत दे रहे हैं...देश जानना चाहता है कि इसमें इटली से कितने होंगे? वहां से कितने कारोबारी यहां किराने की दुकान चलाने आएंगे?
कोलकता से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से प्रतुुल बनर्जी ने बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसको लेकर काफी खफा नजर आ रही हैं। ममता बनर्जी ने कहा कि हां, हमें सुधारों की जरूरत है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम कुछ लोगों को संतुष्ट करने के लिए सबकुछ बेच दें। मैं इस फैसले का समर्थन नहीं करती। मैं इससे सहमत हूं कि सेंसेक्स स्थिर होना चाहिए। साथ ही नीतियों और योजनाओं का इस्तेमाल आम आदमी पर कमर तोड़ बोझ डालने के लिए नहीं होना चाहिए।
तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि उनकी पार्टी खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति और डीजल की कीमतों में वृद्धि के मामलों पर यूपीए सरकार को नहीं गिराना चाहती । कल दोपहर कोलकाता में जनसभा में उन्होंने कहा कि वे गठबंधन तोड़ने के पक्ष में कभी भी नहीं रही हैं। सुश्री बनर्जी ने यह भी कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने इन मुद्दों पर चर्चा के लिए मंगलवार को बैठक बुलाई है। मुख्यमंत्री ने  कहा कि अगर केंद्र ने डीजल की कीमतों में वृद्धि और मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के फैसले वापस नहीं लिये तो उन्हें कठोर निर्णय लेने पड़ सकते हैं।
उधर, उत्तर प्रदेश भी एफडीआई के विरोध में आकर खड़ा हो गया है। राजधानी लखनउ से समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के ब्यूरो से दीपांकर श्रीवास्तव ने बताया कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि एफडीआई के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी का नजरिया साफ है। हम इसे उत्तर प्रदेश में लागू नहीं करेंगे। अगर वे एफडीआई लाना चाहते हैं तो हम चाहेंगे कि वह इसे बिजली और सड़क के लिए लाएं। अगर इसे रिटेल सेक्टर में लाया गया तो छोटे दुकानदारों का क्या होगा। यूपीए सरकार को समर्थन जारी रखने पर फैसला राष्ट्रीय नेतृत्व करेगा।
देश के हृदय प्रदेश के निजाम इस मामले में बुरी तरह खफा हैं। भोपाल से साई ब्यूरो से सोनल सूर्यवंशी ने बताया कि शिवराज सिंह चौहान का कहना है कि मल्टी ब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मध्य प्रदेश में नहीं लागू किया जाएगा। मैं एफडीआई के खिलाफ नहीं हूं, पर इसे इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में लागू किया जाना चाहिए। देश के लाखों परिवारों की रोजीरोटी किराने की दुकानों और छोटे कारोबारों पर निर्भर करती है। मल्टी ब्रैंड रिटेल में एफडीआई से बेरोजगारी बढ़ेगी और लाखों परिवार आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
उधर, असम में तरूण गोगोई ने इसका स्वागत किया है। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के गुवहाटी ब्यूरो से पुरबालिका हजारिका ने बताया कि मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने मल्टी ब्रैंड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि इससे किसानों, उपभोक्ताओं को फायदा होगा। कोल्ड स्टोरेज और दूसरे बुनियादी ढांचे के बनने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। प्रधानमंत्री और कैबिनेट ने एक साहसिक फैसला लिया है। कुछ लोगों के विरोध के बावजूद उन्हें उस पर कायम रहना चाहिए।
राजद के सुप्रीमो लालू यादव ने भी इसकी भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि किसानों को मल्टी ब्रैंड रिटेल में एफडीआई से फायदा होगा। उन्हें अपनी उपज का ठीक दाम मिलेगा। लोगों को भी इससे फायदा होगा। उन्हें एयर कंडीशंड स्टोर्स से सामान खरीदने का मौका मिलेगा। उन्हें वहां अच्छी क्वॉलिटी का अनाज , फल और दूसरी चीजें मिलेंगी।
उधर, नवीन पटनायक ने इस मामले में अपना फैसला नहीं सुनाया है। उन्होंने कहा कि बीजेडी सरकार ओडिशा में मल्टी ब्रैंड रिटेल में एफडीआई लागू किया जाए या नहीं इसकी पड़ताल करेगी। केंद्र ने इसे राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है। इसलिए हम इस पर सावधानीपूर्वक गौर करेंगे। ओडिशा और यहां के लोगों के लिए जो भी उचित होगा हम वह करेंगे।
विपक्षी दलों ने कहा है कि वे इस महीने की २० तारीख को डीज$ल के मूल्य में बढ़ोतरी और मल्टी ब्रांड खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने वामदलों, जनता दल सेक्यूलर, बीजू जनता दल और तेलुगुदेशम पार्टी के नेताओं के साथ मिल कर जारी संयुक्त वक्तव्य में कहा कि इन फैसलों से जनता पर और बोझ बढ़ेगा। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए ने भी इसी दिन अलग से राष्ट्रव्यापी हड़ताल किए जाने की घोषणा की है।

तीन और कोल ब्लाक निरस्त


तीन और कोल ब्लाक निरस्त

(प्रियंका)

नई दिल्ली (साई)। अंतर मंत्रालय समूह ने तीन और कोयला खंड का आवंटन अपर्याप्त प्रगति के कारण रद्द करने की सिफारिश की है। इनमें एस के एस इस्पात और पावर लिमिटेड के कोयला खंड शामिल हैं जिनमें पर्यटनमंत्री सुबोधकांत सहाय के भाई का कथित रूप से संबंध था।
अंतर मंत्रालय समूह द्वारा कोयला मंत्रालय को आवंटन रद्द किए जाने की सिफारिश वाले कोयला खंडों की संख्या अब बढ़ कर सात हो गई है। अंतर मंत्रालय समूह निजी फर्मों को दिए गए ५८ कोयला खंडों में से २९ विवादित कोयला खंडों के आवंटन की समीक्षा कर रहा है। इन कोयला खंडों को विकसित करने में देरी के लिए कारण बताओ नोटिस दिया गया था।

यूपी में भारी बारिश से तबाही


यूपी में भारी बारिश से तबाही

(दीपांकर श्रीवास्तव)

लखनऊ (साई)। उत्तर प्रदेश में भारी बारिश से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। पिछले चौबीस घंटों में वर्षा से हुए हादसों में बारह लोग मारे गए और छह से अधिक घायल हुए। हमारे गोरखपुर संवाददाता ने बताया कि पीलीभीत में शारदा और बाराबंकी में घाघरा नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं।
बताया जाता है कि नदियों के जल ग्रहण क्षेत्रों में हुई व्यापक वर्षा से जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है। मिर्जापुर में पिछले चौबीस घंटों के दौरान सबसे अधिक २७ सेंटीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की गई है। बुंदेलखंड में अति वृष्टि से खरीफ के फसलों को नुकसान पहुंचा है। नारायणी नदी पानी के तेज$ बहाव के कारण कुशी नगर में अपने तट बंधों को काट रही है। मौसम विभाग ने अगले चौबीस घंटों के दौरान राज्य के लगभग सभी मंडलों में बारिश होने की संभावना व्यक्त की है।

. . . और फिसल गई गृह मंत्री की जुबान!

. . . और फिसल गई गृह मंत्री की जुबान!

(विनीता विश्वकर्मा)

पुणे (साई)। देश के गृह मंत्री जैसे जम्मेदार ओहदे पर बैठे अनुभवी राजनेता सुशील कुमार ंिशंदे से शायद ही उम्मीद की गई होगी कि वे सियासी सीक्रेट्स को जनता के सामने लाएंगे। जी हां, सच है शिंदे का कहना है कि पब्लिक मेमोरी बहुत ही शार्ट होती है यानी जनता की याददाश्त कमजोर होती है, कोल मामले को जनता भूल जाएगी।
एक तो चोरी उसपर से सीनाचोरी. जी हां यह बात वर्तमान केंद्र सरकार पर बिलकुल सटीक बैठती है. कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर चारों तरफ से आलोचना झेल रही सरकार के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का कहना है कि जल्दी ही जनता इस पूरे मामले को भूल जायेगी, क्योंकि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है.
जिस तरह वह बोफोर्स और पेट्रोल पंप आवंटन विवाद को भूल गई उसी तरह कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर पैदा हुए विवाद को भी भूल जाएगी. पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि लोगों की याददाश्त बहुत कमजोर होती है.
कोयले से हाथ कुछ दिन के लिए काले हो जाते हैं लेकिन हाथ को धोकर साफ कर दिया जाता है. कार्यक्रम में दिए बयान के बाद पत्रकारों से बातचीत में भी शिंदे ने यही बात दोहराई. शिंदे ने कहा कि हां, बोफोर्स और पेट्रोल पंप विवाद की तरह जनता कोल ब्लॉक आवंटन विवाद को भी जल्द भूल जाएगी. शिंदे मशहूर मराठी कवि नारायण सर्वे की याद में आयोजित अवॉर्ड समारोह में शिरकत करने के लिए पुणे आए हुए थे.

गैस कनेक्शन में भी मोबाइल पोर्टेबिलिटी


गैस कनेक्शन में भी मोबाइल पोर्टेबिलिटी

(महेश रावलानी)

नई दिल्ली (साई)। रसोई गैस डिस्ट्रीब्यूटरों की मनमानी रोकने और उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए अब एलपीजी ने कस्टमर पोर्टेबिलिटी सुविधा शुरू करने की योजना बनायी है. ग्राहकों को मोबाइल की सेवा बेहतर प्रदान करने के लिए जिस तरह ट्राई ने मोबाइल पोर्टेबिलिटी की शुरूआत की, उसी तरह इंडियन ऑयल ने भी एलपीजी कस्टमर पोर्टेबिलिटी सेवा को धरातल पर उतारने का फैसला किया है. इसके लागू होने पर उपभोक्ताओं को वैसे डिस्ट्रीब्यूटर के साथ होनेवाली किचकिच से छुटकारा मिलेगा, जो आर्थिक रूप से कमजोर है और वह पूरा लोड नहीं उठाता है, जिसके कारण उसके यहां बैकलॉग हो जाता है.
इस सेवा के शुरू होते डिस्ट्रीब्यूटरों का एरिया वार खत्म होगा. आज इंडियन ऑयल ने हर डिस्ट्रीब्यूटर को क्षेत्र की सीमा में बांध रखा है. गैस के लिए आवेदन देनेवाले उपभोक्ता को पहले यह साफ कह दिया जाता है कि किस-किस एरिया में उनके द्वारा गैस की आपूर्ति की जाती है. डिस्ट्रीब्यूटरों के पास अधीन क्षेत्र के बाहर रहनेवालों को नया कनेक्शन देने से इनकार कर देने का अधिकार था.
साथ ही अधिकार क्षेत्र से बाहर चले जाने (घर बदलनेवाले) वाले उपभोक्ता का कनेक्शन बंद करने का कानून है. ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को अपने पूर्व के डिस्ट्रीब्यूटर से एनओसी लेना होगा, जिसे वह अपने नये क्षेत्र के डिस्ट्रीब्यूटर के यहां जमा करायेगा, तो उसे सिलिंडर मिल सके.

अब चार्ट बनने के बाद भी कन्फर्म होंगे रेलवे टिकट


अब चार्ट बनने के बाद भी कन्फर्म होंगे रेलवे टिकट

(महेंद्र देशमुख)

नई दिल्ली (साई)। अबतक रेलवे टिकट का कन्फर्मेशन चार्ट बनने के पहले तक होता था, लेकिन अब ऐसी प्रणाली विकसित की जा रही है कि चार्ट बनने के बाद भी टिकट कन्फर्म हो सकेंगे. खाली सीट की जानकारी टीटीई स्टाफ कंट्रोल रूम को देंगे. इसके बाद कंट्रोल रूम अधिकारी कन्फर्मेशन की सूचना भी यात्रियों के मोबाइल पर देंगे. रेलवे की यह सुविधा केवल काउंटर से टिकट लेने वाले यात्रियों को मिलेगी. इसके लिए रेलवे टीटीई स्टाफ को पोमटॉप उपलब्ध करवाएगा.
टीटीई स्टाफ को दिया जाने वाला पोमटॉप जीपीएस सिस्टम से जुड़ा होगा. टीटीई ट्रेन में सवार होने के बाद फाइनल चार्ट से सीट चेक करेंगे. जितनी खाली सीटें होंगी, उन्हें पोमटॉप में फीड करेंगे. जैसे ही टीटीई ओके बटन दबाएंगे सारी जानकारी कंट्रोल रूम में पहुंचेगी. इसके बाद कंट्रोल रूम से वेटिंग टिकट के कन्फर्म होने की सूचना यात्रियों को भेज देगा. इसकी पुष्टी दिल्ली मंडल के सीनियर पीआरओ वाईएस राजपूत ने की.
राजधानी-शताब्दी के बाद रेलवे 10 नई मेल और एक्सप्रेस ट्रेनों में चार्टिंग सिस्टम को लागू करेगा. सुविधा इसी माह में शुरू हो जाएगी. अभी तक टिकट वेटिंग में होने पर यात्रियों को या तो खड़े होकर जाना पड़ता था या फिर सेटिंग से काम चलाना पड़ता था. टीटीई स्टाफ पर भी खाली सीटों को वसूली कर किसी को उपलब्ध करवाने के आरोप लगते रहे हैं. अब इन पर भी अंकुश लगेगा.

राजस्थान में ऑटो एल. पी. जी. गैस संयंत्रो की स्थापना पर गोष्टी


राजस्थान में ऑटो एल. पी. जी. गैस संयंत्रो की स्थापना पर गोष्टी

(रश्मि सिन्हा)

नई दिल्ली (साई)। राजस्थान चेम्बर ऑफ ट्रेड एण्ड कामर्स के सहयोग से ऑटो एल.पी.जी. सयंत्रो की स्थापना एवं महत्व से सम्बंधित एक दिवसीय गोष्टी का आयोजन सोमवार शाम 17 सितम्बर को किया जा रहा है। उक्ताशय की जानकारी देते हुए इंडियन आटो गैस कंपनी लिमिटेड के जनसंपर्क अधिकारी अमित कौशल ने बताया कि इस गोष्ठी में राजस्थान में ऑटो और एलपीजी संयंत्रों की स्थापना और उनके महत्व को प्रतिपादित किया जाएगा। चेन्नई तमिलनाडू स्थित मुख्यालय वाली इस कंपनी को भारत सरकार से मान्यता दी गई है।

सिनेमा की सेंचुरी...


सिनेमा की सेंचुरी...

(नेहा घई पण्डित)

नई दिल्ली (साई)। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री इस वर्ष अपने सौ साल का जश्न मना रही है। सौ साल के सफर में ऐसे अनेक पड़ाव हैं जिन्होंने इस सफर को कदम दर कदम आगे पंहुचाया है। दादा फाल्के साहब की बनाई पहली फिल्म श्राजा हरिश्चंद्रश् हो या फिर पहली बोलती फिल्म श्आलम-आराश्, 1937 में बनी पहली रंगीन फिल्म श्किसान कन्याश् से लेकर अब 3-डी में बन रही फिल्में इन सभी ने फिल्मों के इतिहास में अहम भूमिका अदा की है। अपने ऐसे ही स्वर्णिम सफर पर एक नजर...सिनेमा के कुछ नए-पुराने पल, कुछ खट्टी-मिठी यादें...पढ़िए और जानिए नेहा घई पंडित के साथ

भारतीय सिनेमा का जन्म (1913) - दादा साहब फाल्के 1913 में पहली मूक फिल्म श्राजा हरिश्चंद्रश् बनाकर भारतीय सिनेमा के जनक बन गए। जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में पढ़े दादा साहब को फिल्म बनाने का विचार ईसामसीह के जीवन पर बनी फिल्म श्द लाईफ ऑफ क्रॉइस्टश् देखने के बाद आय़ा। फिल्म बनाने का जुनून उनपर इस कदर हावी था कि उन्होने अपनी पत्नी के जेवर बेचे और 1912 में फिल्म प्रोडक्शन सीखने इंग्लैंड चले गए। वापस आकर उन्होने फिल्म श्राजा हरिश्चंद्रश् बनाई जिसे लोगों ने बेहद पसंद किया। पहली फिल्म बनाने के कारण दादा साहब फाल्के को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन्होंने स्वयं ही फिल्म के सीन लिखे, फोटोग्राफी की और इसके निर्माता भी बने। फिल्मों में काम करना या फिल्म देखना उस समय शराफत के खिलाफ माना जाता था और औरतों को इसकी इजाजत नहीं थी, इसी कारण फिल्म में किरदार पुरूषों ने ही निभाए थे। लगभग 40 मिनिट की इस फिल्म को छह महीनों में शूट किया गया और इसकी रील 3700 फुट लंबी थी।
दादा साहब ने इसके बाद श्भस्मासुर मोहिनीश्, श्सत्यवान सावित्रिश् और श्लंका दहनश् जैसी कुछ और फिल्में बनाई। 

0 महत्वपूर्ण उपलब्धि -
- 1913 में पहली फिल्म श्राजा हरिश्चंद्रश्                  
- 1913 से 1931 तक कुछ और लोग जैसे धीरेन गांगुली, जमशेद मदन और नितिन बोस भी फिल्में बनाने लगे
- 1931 में दादा साहब की आखिरी मूक फिल्म सेतु बंधनआई

मूक फिल्मों से गाते किरदारों की ओर (1931) -  1913 में शुरू हुआ सफर अब धीरे-धीरे अपने अगले पड़ाव की ओर था। वर्ष 1931 तक आते-आते हिन्दी सिनेमा लगभग सालाना 200 फिल्में बनाने लगा था।  इसी साल आर्देशिर एम. ईरानी ने भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आराका निर्माण किया था। बोलते और गाते हुए किरदारों को देखने का उन्माद लोगों के सर चढ़ बोलने लगा। इसी फिल्म में पृथ्वीराज कपूर में सह-अभिनेता की भूमिका निभाई जिसे बहुत सराहना भी मिली। इससे पहले वह करीब नौ मूक फिल्में कर चुके थे। फिल्म की शूटिंग रात में रेलवे लाइन के पास की गई थी। इस फिल्म में गाने ज़्यादा और डायलॉग कम थे। 

महत्वपूर्ण उपलब्धि - 

    1931 में पहली बोलती फिल्म श्आलम आराश्
    फिल्म श्आलम-आराश् का गाना ष् दे दे खुदा के नाम पर..ष् हिन्दी सिनेमा का पहला गाना बना
    पृथ्वीराज कपूर ने नौ मूक फिल्मों में काम करने के बाद फिल्म श्आलम-आराश् से बोलती फिल्मों में अभिनय की शुरूआत की


श्वेत-श्याम से रंगीन हुए सपने (1931 - 1941) - बोलती फिल्मों के बाद हिन्दी सिनेमा की अगली मंजिल बनी रंगीन फिल्में। 1937 में आर्देशिर एम. ईरानी ने पहली रंगीन फिल्म श्किसान कन्याश् बनाई। हालांकि 1933 में वी शांताराम ने मराठी फिल्म श्सैरन्ध्रीश् (ैंपतंदकीतप) बनाई जिसके कुछ दर्शय रंगीन थे। इस फिल्म की प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग जर्मनी में की गई थी इसी कारण से इस फिल्म को पूर्णतरू पहली भारतीय रंगीन फिल्म नहीं कहा जा सकता। फिल्म श्किसान कन्याश् को मोती बी गिडवानी ने बनाया था और इसे सिनेकलर प्रोसिस से रंगीन किया गया था। 137 मिनिट की इस फिल्म में 10 गाने भी थे जिन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्ड्स द्वारा रीलिज किया गया था।
शुरुआती दौर में धार्मिक और पारिवारिक फिल्में बनीं । इस दौर में कुछ बड़े बैनर और स्टूडियो की स्थापना हुई। इनमें हिमांशु राय की श्बांबे टॉकीजश् और शांताराम और उनके भागीदारों द्वारा श्प्रभात स्टूडियोश् मुख्य रूप से सक्रिय रहे। 

महत्वपूर्ण उपलब्धि -

    1937 में पहली भारतीय रंगीन फिल्म श्किसान कन्याश् बनी
    1931 से 1941 तक कई महत्वपूर्ण एंव सफल फिल्में बनीं - अयोध्या का राजा, चन्द्रगुप्त, हंटरवाली, देवदास, अछूत कन्या, कंगन, जीवन नइया, ताज महल
    1931 से 1941 तक आई फिल्मों ने हिन्दी सिनेमा को कई नामी कलाकार दिए - अशोक कुमार, के.एल. सहगल, देविका रानी, नाडिया, लीला चिट्निस
    इस दौर में फिल्म के कलाकार स्वयं ही गाना गाया करते थे
    वर्ष 1935 में बनी फिल्म श्हंटरवालीश् से हिरोईन द्वारा किए स्टंट की शुरूआत हुई। इसके अलावा नाडिया द्वारा पहनी पोशाक और पहनावे ने समाज में नए फैशन का आगाज़ किया।


आया बेहतरीन कलाकारों का दौर (1942-1952) - इस दशक में फिल्में धार्मिक पृष्टभूमि से हटकर दूसरे विषयों पर बनने लगी। कुछ बेहद रोमांचित कहानियां और सबसे बेहतरीन अभिनेता और अभिनेत्रियों ने इस दशक में अपना जादू बिखेरा। दिलीप कुमार, मीना कुमारी, मधुबाला, नूरजहां, जोहरा सहगल, शशिकला, ललिता पवार, बलराज सहानी, राज कपूर जैसे कलाकारों ने पर्दे पर अपना फिल्मी सफर शुरू किया।

महत्वपूर्ण उपलब्धि -

    1949 में कमाल अमरोही द्वारा निर्देशित श्महलश् पहली हॉरर फिल्म
    1948 में राज कपूर ने 24 वर्ष की आयु में आर.के स्टूडियो की स्थापना की और देश के सबसे कम उम्र के निर्देशक के रूप में फिल्म श्आगश् का निर्देशन किया
    फिल्मों की कहानियों ने और बड़े-बड़े कलाकारों ने अपने अभिनय से हिंदी सिनेमा में स्टारडम जैसी बात पैदा की


आजादी, विभाजन और समाज (1952-1962) - देश नया-नया आजाद हुआ था। आजादी और विभाजन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का प्रभाव उस समय बनीं हिंदी फिल्मों पर छाया रहा। बिमल रॉय की श्दो बीघा ज़मीनश् ने देश के किसानों की दयनीय दशा दर्शायी। यह भारत की पहली ऐसी फिल्म थी, जिसे कॉन फिल्म अवॉर्ड मिला था। श्परिनीताश्, श्जिस देश में गंगा बहती हैश्, श्नया दौरश्, श्श्री 420श् जैसी फिल्में बनी जिनके द्वारा पर्दे पर शहर और गांव, देश के बदलते नए और पुराने हालात और उसकी दिक्कतें बखूबी पर्दे पर पेश की गई। संगीत फिल्मों का महत्वपूर्ण अंग बन गया था। इस दौर में लता मंगेशकर, मोहम्मद ऱफी, मुकेश जैसे गायकों की आवाज़ का जादू फिल्मी दुनिया पर छाने लगा था। दादा साहब फाल्के से शुरू हुए हिन्दी सिनेमा के सफर को पृथ्वीराज कपूर के खानदान ने नया चोला पहनाया।

महत्वपूर्ण उपलब्धि -

    1955 में सत्यजीत रे की फिल्म श्पांथेर पांचालीश् को 11 अंतरराष्ट्रीय पुरुस्कार मिले जिनमें
    1957 में महबूब खान की श्मदर इंडियाश् ऑस्कर में श्बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज फिल्मश् की श्रेणी में नामांकित हुई पहली भारती फिल्म बनी
    1960 में आई श्मुगल-ए-आजमश् ने लोगों में बहुत लोकप्रियता हासिल की
    राज कपूर, दिलीप कुमार, देव आंनद जैसे कलाकारों ने पर्दे पर अपना वर्चस्व कायम किया
    गुरू दत्त, महबूब खान, वी.शांताराम, बीमल रॉय जैसे निर्देशकों ने क्लासिक फिल्में दी
    इस दौर में ही फिल्मी जोडियां जैसे राज-नरगिस, दिलीप कुमार-वैजंतीमाला, गुरू दत्त-वहीदा रहमान प्रचलन में आने लगी

मौनमोहन का मुखर फैसला


मौनमोहन का मुखर फैसला

(संजय तिवारी)

एक झटके में सरकार ने सब हिसाब बराबर कर लिया. कैबिनेट के दो कमेटियों की दो अलग अलग बैठकों में सरकार ने कुछ निर्णय लिये और कोल ब्लाक के डेडलॉक को ध्वस्त कर दिया. पहले कैबिनेट के पोलिटिकल निर्णयों वाली कमेटी सीसीपीए की बैठक होती है और पेट्रो उत्पादों में डीजल की कीमतों में पांच रूपये की बढ़ोत्तरी कर दी जाती है, उसके अगले दिन शुक्रवार को कैबिनेट कमेटी आन इकानॉमिक अफेयर्स की बैठक होती है और सरकार की सेहत सुधारने के नाम पर पूंजी प्रवाह के कुछ अवरुद्ध निर्णयों को स्वीकार कर लिया जाता है. खुदरा क्षेत्र में एफडीआई, उड्डयन में एफडीआई, ब्रॉकास्टिंग कंपनियों में विदेशी निवेश और सरकारी की अपनी कुछ कंपनियों में विनिवेश को मंजूरी दे दी.
कुल जमा 24 घण्टे के अंदर मन्नू सरदार ने वह कर दिया जो वे आठ साल में नहीं कर पाये थे. कैबिेनेट की जिन कमेटियों ने 24 घण्टे के अंदर ये क्रांतिकारी निर्णय लिये हैं, कमोबेश इन आठ सालों में उन कमेटियों के चेरयमैन प्रणव मुखर्जी थे. चाहे वे विदेश मंत्री रहे हों या फिर वित्त मंत्री, कैबिनेट की सीसीपीए और सीसीईए के चेयरमैन वही रहते थे. कैबिनेट की ये दो कमेटियां महत्वपूर्ण हैं क्योंकि राजनीति और अर्थनीति के अलावा सरकार के पास तीसरा कोई खास काम होता नहीं है. लेकिन उधर प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति भवन पहुंचे और इधर मनमोहन सिंह ने चौबीस घण्टे के अंदर वह कर दिया जो वे आठ साल में नहीं कर पा रहे थे.
सरकार के इन निर्णयों के चंद घण्टे भी नहीं बीते थे कि विदेशी समाचार एजंसियों और समाचार माध्यमों ने मनमोहन सिंह में श्मोजोश् खोज निकाला. वही श्मोजोश् जो किसी बूढ़े आदमी में वियाग्रा सी ताकत भर देता है. मनमोहन सिंह की तारीफों के पुल ही नहीं बांधे जा रहे हैं पूरा का पूरा रामसेतु तैयार किया जा रहा है. कल तक जो अमेरिकी या यूरोपीय मीडिया घराने मनमोहन सिंह की मां बहन कर रहे थे, सिर्फ चंद घण्टों के अंदर मनमोहन सिंह से बड़ा दूसरा आर्थिक सुधारवादी नजर नहीं आ रहा है. विदेशी या फिर विदेशी मानसिकता की मीडिया का यह रुख बहुत असहज नहीं है. अर्थ और वित्त की जिस समझ से वे विकसित और संचालित होते हैं उसमें कंपनियों की पूंजी लगी होती है इसलिए कंपनियों का हित इन मीडिया घरानों के लिए सर्वाेपरि होता है. नहीं तो कोई रॉयटर ऐसे वक्त में मनमोहन सिंह की तारीफ करते समय यह भी बताने की कोशिश जरूर करता कि कैसे अमेरिका में ही बाजार के वैकल्पिक रास्ते विकसित किये जा रहे हैं.
रॉयटर, एपी, एएफपी और टाइम, इकोनॉमिस्ट जैसे मीडिया घराने तब खुश होते हैं जब उनमें पूंजी निवेश करनेवाले निवेशकों के हित सुरक्षित होते हैं. भारतीय खुदरा बाजार में विदेशी पूंजी निवेश की वकालत नई नहीं है. भारत के 450 अरब डॉलर के खुदरा व्यापार पर अमेरिकी की वालमार्ट ने भारत के खुदरा कारोबार में पैर गिराने के लिए क्या क्या जतन नहीं किये. अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल से यह कवायद चल रही है कि किसी न किसी तरह खुदरा कारोबार में विदेशी कंपनियों को आने की इजाजत मिल जाए. अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मनमोहन सिंह की सरकार में भी वालमार्ट ने अपनी कोशिशो में कोई कमी नहीं की. मंत्रालयों में नियम बनवाने से लेकर नेताओं और अफसरों को विदेश घुमाने तक का कोई हथकंडा ऐसा नहीं था जिसे वालमार्ट ने इस्तेमाल न किया हो. आखिरी कोशिश दिल्ली की एक प्रतिष्ठित एनजीओ के जरिए की गई जब सेन्टर फार पालिसी रिसर्च की ओर से कुछ चुनिंदा सांसदों को रिसर्च सहायक उपलब्ध करवाये गये. बताया गया कि इन सहायकों की सैलेरी वालमार्ट कंपनी की ओर से दिया जानेवाला था. हालांकि इस कोशिश को गृहमंत्रालय ने रोक दिया लेकिन वह कोशिश काम आई जो विदेशी मीडिया के जरिए की गई.
अब जबकि मनमोहन सिंह ने रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी है तब यकीन से कहा जा सकता है कि विदेशी मीडिया द्वारा मनमोहन सिंह सरकार का जो निंदा कार्यक्रम चलाया गया था, निश्चित रूप से वह सघन अमेरिकी सरकार और कंपनियों की कारस्तानी रही होगी. अमेरिकी प्रेमी मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी की नाराजगी से भी उतनी दिक्कत नहीं होती है जितनी वाशिंगटन पोस्ट में चोरी छिपे लिखे गये एक आर्टिकल से हो जाती है. पूरा देश मनमोहन सिंह को कोसता रह गया उन्हें फर्क नहीं पड़ा. फर्क पड़ा तब जब टाइम मैगजीन ने उन्हें अंडर अचीवर कह दिया. निश्चित रूप से हमारे प्रधानमंत्री महोदय अमेरिका या फिर अमेरिकी मीडिया की नजर में नीचे नहीं गिरना चाहते. उस पर भी तुर्रा यह कि अमेरिकी मीडिया संस्थान भाजपा और नरेन्द्र मोदी में भविष्य देखने लगे थे. निश्चित रूप से इसके बाद तो मनमोहन सिंह को वह करना ही था जो अमेरिकी कंपनी वालमार्ट लंबे समय से चाहती थी.
लेकिन सीसीईए की इस शुक्रवारी बैठक में सिर्फ विदेशी कंपनियों का ही ख्याल रखा गया हो, ऐसा भी नहीं है. भारत के विजय माल्या जैसे डूबते एयरलाइन्स व्यापारियों की लॉबिंग को भी तवज्जो दी गई है. नागरिक उड्डयन क्षेत्र में भी 49 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी गई है. निश्चित रूप से पूंजी का रोना रो रहे एयरलाइन कंपनियों को इससे बड़ी राहत मिलेगी और कम से कम विजय माल्या की हांफती किंगफिशर फिर से पंख फड़फड़ाने लगेगी. इसी तरह कुछ और घरेलू व्यापारियों के लिए समृद्धि का रोडमैप तैयार किया गया है और कुछ सरकारी कंपनियों में 10 से 12.5 प्रतिशत विनिवेश का प्रस्ताव पारित कर दिया गया है. जिनमें विनिवेश का प्रस्ताव किया गया उसमें ज्यादातर खनन कंपनियां हैं. एमएमटीसी, हिन्दुस्तान कॉपर, नेशनल एल्युमुनियम और आयल इंडिया लिमिटेड शामिल हैं. सरकार पिछले वित्त वर्ष में विनिवेश से जो चालीस हजार करोड़ रूपया जुटाना चाहती थी उसमें से सिर्फ 14 हजार करोड़ ही हासिल कर पाई. अब इन कंपनियों में अंशधारिता बेचने से वह 15 हजार करोड़ रूपया अपने खर्चे के लिए जुटाएगी.
इस जोड़ घटाव से सरकार अपना आर्थिक गणित तो ठीक करेगी लेकिन राजनीतिक गणित को भी ठीक रखने की कोशिश की गई है. मसलन जिस सीसीईए ने रिटेल में एफडीआई का निर्णय लिया हैं उसमें केन्द्र राज्य संबंधों में पहली बार राज्य को राष्ट्र का दर्जा दे दिया गया और कहा गया है कि खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश उसी राज्य में आयेगा जो राज्य इसके लिए अपनी सहमति देंगे. यानी ममता बनर्जी और मुलायम सिंह जैसे नेताओं के विरोध का अंदेशा पहले से ही था इसलिए विदेशी कंपनियों को अब राज्यों के मुख्यमंत्रियों का दरवाजा भी दिखा दिया गया है. अगर कोई हिलेरी क्लिंटन कोलकाता जा सकती है तो आनेवाले दिनों में खुदरा कंपनियों के लॉबिस्ट अब राज्य राज्य दौड़ेंगे और अपने प्रवेश का रास्ता साफ करेंगे. निश्चित रूप से यह राजनीतिक चतुराई भरा फैसला है जिसमें राजनीतिक बयानबाजी और विरोध प्रदर्शन तो होगा लेकिन राज्यों की सहमति को सर्वाेपरि बताते हुए उसने विदेशी कंपनियों और विदेशी मीडिया की नजर में अपने आपको हीरो भी साबित कर दिया और राज्यों तथा राजनीतिक दलों को जवाब देने का एक सेफ गलियारा भी छोड़ रखा है. और आखिर में, सबसे बड़ी राजनीतिक राहतरू कोल घोटाले में बवाल अब खुदरा कारोबार की ओर मुड़ जाएगा. इसलिए विदेशी मीडिया मनमोहन में मोजो खोज रही है और उनके फैसले को मुखर बता रही है तो इसमें गलत क्या है?
मीडिया के औद्योगिक घराने इसे मनमोहन सिंह का बिग बैंग डिसीजन बताने में जुट गये हैं. इस बिग बैंग डिसीजन में आखिर कौन हवा में उड़ेगा यह तो समय ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि मनमोहन सिंह का कुछ नहीं बिगड़ेगा. पीएम पद से हटने के बाद जो छवि उन्हें चाहिए, वह उन्होंने हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. मनमोहन सिंह के इन मुखर फैसलों के बिग बैंग में कांग्रेस ही फट जाए तो भी मनमोहन सिंह को भला क्यों चिंता होनी चाहिए? न तो उन्हें पार्टी चलानी है और न ही लोकतंत्र की राजनीति करनी है. हर हाल में उन्हें अमेरिका और अंग्रेजी मीडिया की नजर में अच्छा साबित होना है, और इस फैसले से वे दोनों ही लक्ष्य हासिल कर लेगें.
(लेखक विस्फोट डॉट काम के संपादक हैं)

सरल जीवन का सुंदर दर्शन


सरल जीवन का सुंदर दर्शन

(अनिल सौमित्र / विस्फोट डॉट काम)

81 वर्ष की अवस्था में भी सुदर्शन जी का अपना जीवन दर्शन बहुत बाल सुलभ था। अक्सर लोग उनके इस बाल सुलभ दर्शन को परख नहीं पाते थे और सवाल उठाते थे लेकिन स्वयंसेवक से सरसंघचालक तक की अपनी संघ यात्रा में उनकी सहजता, सरलता और भारतीय परंपराओं के प्रति अगाध श्रद्धा कभी कम नहीं हुई। हृदयरोग जैसी गंभीर बीमारी के बावजूद उन्हें देशज तरीकों और परहेजों से हृदयरोग को दूर रखा। लेकिन आज उसी हृदय पर लगे आघात ने उन्हें हम सबसे हमेशा के लिए दूर कर दिया।
सुदर्शन जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में स्वयंसेवक से सरसंघचालक बने। इस दौरान उनके निर्दाेष, सरल और सहज किंतु स्पष्ट और बेबाक विचारों के कारण कई बार विवाद भी हुआ। श्रीमती सोनिया माइनों पर उनकी टिप्पणी हो या गांधी हत्या के बारे में उनके विचार, अपने तथ्यपरक विचारों को उन्होंने कभी छुपाया नहीं। वे मतभेद और प्रेम कभी छुपाते नहीं थे। एनडीए सरकार की नीतियों और कार्यपद्धति पर उनकी प्रतिक्रियाओं से खासा विवाद भी हुआ था। वे राजनीति की कुटिलता और प्रपंच को बखूबी समझते थे, लेकिन अपने व्यक्तित्व की सरलता के कारण वे कुटिलताओं और प्रपंचों से हमेशा हारते रहे। कई दफे विवादित भी हुए। शायद यही कारण था कि बाद के दिनों में अपना अधिक समय ग्राम विकास, हिन्दी के विकास और विस्तार, तकनीकों के स्थानीकरण और उसे लोकोपयोगी बनाने के रचनात्मक काम में लग गये थे। अगर कोई उनसे मिलने जाता तो पहले तो वे उससे परंपरागत तकनीक और देशभर में हो रहे सैकडों प्रयोगों के बारे में घंटों बताते। फिर अपने पास संग्रहित दसियों माडल बताते। ग्राम विकास, कृषि, गौ-पालन और उर्जा आदि के देशज और परंपरागत अनुभवों और जानकारियों के बारे में बात करके कोई भी उन्हें अपना प्रशंसक बना सकता था।
खालिस्तान समस्या हो या घुसपैठ विरोधी आन्दोलन, उन्होंने संगठन के माध्यम से देश को ठोस सुझाव और सही निदान दिये। संघ के कार्यकर्ताओं को उस दिशा में सक्रिय कर आन्दोलन को गलत दिशा में जाने से रोका। पंजाब के बारे में उनकी यह सोच थी कि प्रत्येक केशधारी हिन्दू हैं तथा प्रत्येक हिन्दू दसों गुरुओं व उनकी पवित्र वाणी के प्रति आस्था रखने के कारण सिख है। इस सोच के कारण खालिस्तान आंदोलन की चरम अवस्था में भी पंजाब में गृहयुद्ध नहीं हुआ। इसी प्रकार उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बंगलादेश से आने वाले मुसलमान षड्यन्त्रकारी घुसपैठिये हैं। उन्हें वापस भेजना ही चाहिए। किसी भी समस्या की गहराई तक जाकर, उसके बारे में मूलगामी चिन्तन कर उसका सही समाधान ढूंढ निकालना उनकी विशेषता थी। खालिस्तान आन्दोलन के दिनों में राष्ट्रीय सिख संगतनामक संगठन की नींव रखी गयी, जो आज विश्व भर के सिखों का एक सशक्त मंच बन चुका है। आरएसएस के मुखिया के तौर पर वे हमेशा तुष्टीकरण के खिलाफ रहे, लेकिन मुसलमानों के भारतीयकरण के पक्षधर। उनकी ही प्रेरणा से राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का गठन हुआ। प्रख्यात स्तंभकार मुज्जफ़्फर हुसैन हों या बुजुर्ग नेता आरिफ बेग, सुदर्शन जी के साथ इस्लाम के विषय पर घंटों चर्चा करते थे। वे मुसलमानों को न सिर्फ उदार बल्कि शिक्षित, सहिष्णु और राष्ट्रवादी बनाने के लिये भी फिक्रमंद थे। यही कारण है कि मुसलमानों के बीच एक बडा वर्ग तैयार हुआ है जो राममंदिर आंदोलन का समर्थन, गोरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून बनाने का आग्रह, रामसेतु विध्वंस का विरोध, अमरनाथ यात्रा में हिन्दुओं के अधिकारों का समर्थन और आतंकवादियों को फांसी देने की मांग करता है। मुसलमानों में ऐसा नेतृत्व उभर रहा है, जो हर बात के लिए पाकिस्तान या अरब देशों की ओर नहीं देखता। इस लिहाज से मुसलमानों के मामले में सुदर्शन जी को प्रगतिशील कहा जा सकता है।
संघ कार्य में सरसंघचालक की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। चौथे सरसंघचालक श्री रज्जू भैया को जब लगा कि स्वास्थ्य खराबी के कारण वे अधिक सक्रिय नहीं रह सकते, तो उन्होंने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से परामर्श कर 10 मार्च, 2000 को अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में श्री सुदर्शन जी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। नौ वर्ष बाद सुदर्शन जी ने भी इसी परम्परा को निभाते हुए 21 मार्च, 2009 को सरकार्यवाह श्री मोहन भागवत को छठे सरसंघचालक का कार्यभार सौंप दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन मूलतः तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर बसे कुप्पहल्ली (मैसूर) ग्राम के निवासी थे। कन्नड़ परम्परा में सबसे पहले गांव, फिर पिता और फिर अपना नाम बोलते हैं। उनके पिता श्री सीतारामैया वन-विभाग की नौकरी के कारण अधिकांश समय मध्यप्रदेश में ही रहे और वहीं रायपुर (वर्तमान छत्तीसगढ़) में 18 जून, 1931 को श्री सुदर्शन जी का जन्म हुआ। तीन भाई और एक बहिन वाले परिवार में सुदर्शन जी सबसे बड़े थे। रायपुर, दमोह, मंडला तथा चन्द्रपुर में प्रारम्भिक शिक्षा पाकर उन्होंने जबलपुर (सागर विश्वविद्यालय) से 1954 में दूरसंचार विषय में बी.ई की उपाधि ली तथा तब से ही संघ-प्रचारक के नाते राष्ट्रहित में जीवन समर्पित कर दिया। सर्वप्रथम उन्हें रायगढ़ भेजा गया। प्रारम्भिक जिला, विभाग प्रचारक आदि की जिम्मेदारियों को सफलतापूर्वक निभाने के बाद 1964 में वे मध्यभारत के प्रान्त-प्रचारक बने।
सुदर्शन जी अनुशासन के मामले में कभी समझौता नहीं करते थे। संघ कार्य में उन्होंने निष्ठा और प्रामाणिकता की ही तरह गुणवत्ता को भी महत्व दिया। वे अंतिम समय तक सक्रिय रहे। निष्क्रियता उन्हें सुहाती नहीं थी। अपने जीवन में उन्होंने प्रशिक्षण और अभ्यास को सिद्धांत के साथ गुंथ दिया था। शाखा हो या प्रशिक्षण वर्ग, वे घंटों शारीरिक और मानसिक श्रम करते देखे गये। संघ के वे इकलौते घ्से ज़्येष्ठ कार्यकर्ता रहे हैं जिन्होंने शारीरिक और बौद्धिक दोनों कार्यों के प्रमुख का दायित्व वहन किया। वे बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न थे। उन्हें संघ-क्षेत्र में जो भी दायित्व दिया गया, उसमें अपनी नव-नवीन सोच के आधार पर उन्होंने नये-नये प्रयोग किये। 1969 से 1971 तक उन पर अखिल भारतीय शारीरिक प्रमुख का दायित्व था। इस दौरान ही खड्ग, शूल, छुरिका आदि प्राचीन शस्त्रों के स्थान पर नियुद्ध, आसन, तथा खेल को संघ शिक्षा वर्गों के शारीरिक पाठ्यक्रम में स्थान मिला। आज तो प्रातःकालीन शाखाओं पर आसन तथा विद्यार्थी शाखाओं पर नियुद्ध एवं खेल का अभ्यास एक सामान्य बात हो गयी है।
आपातकाल के अपने 19 माह के बन्दीवास में उन्होंने योगचाप (लेजम) पर नये प्रयोग किये तथा उसके स्वरूप को बिलकुल बदल डाला। योगचाप की लय और ताल के साथ होने वाले संगीतमय व्यायाम से 15 मिनट में ही शरीर का प्रत्येक जोड़ आनन्द एवं नवस्फूर्ति का अनुभव करता है। 1977 में उनका केन्द्र कोलकाता बनाया गया तथा शारीरिक प्रमुख के साथ-साथ वे पूर्वात्तर भारत के क्षेत्र प्रचारक भी रहे। 1979 में वे अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख बने। शाखा पर बौद्धिक विभाग की ओर से होने वाले दैनिक कार्यक्रम (गीत, सुभाषित, अमृतवचन) साप्ताहिक कार्यक्रम (चर्चा, कहानी, प्रार्थना अभ्यास), मासिक कार्यक्रम (बौद्धिक वर्ग, समाचार समीक्षा, जिज्ञासा समाधान, गीत, सुभाषित, एकात्मता स्तोत्र आदि की व्याख्या) तथा शाखा के अतिरिक्त समय से होने वाली मासिक श्रेणी बैठकों को सुव्यवस्थित स्वरूप 1979 से 1990 के कालखंड में ही मिला। शाखा पर होनेवाले प्रातःस्मरणके स्थान पर नये एकात्मता स्तोत्रएवं एकात्मता मन्त्रको भी उन्होंने प्रचलित कराया। 1990 में उन्हें सह सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी गयी।
वैसे जिस विचार और संगठन परंपरा से वे जीवनपर्यंत आबद्ध रहे उसमें वयक्तित्वों की तुलना कठिन है। वहां लगभग एक जैसे गुण-स्वभाव वाले लोग होते हैं। लेकिन सुदर्शन जी इस मामले में विशेष थे कि वे पहले दक्षिण भारतीय और दूसरे गैर महाराष्ट्रीयन सरसंघचालक हुए। कन्नड और अंग्रेजी से ज्यादा वे हिन्दी पर अधिकार रखते थे। पूर्वांचल में कार्य करते हुए उन्होंने वहां की समस्याओं का गहन अध्ययन किया। अध्ययन करते हुए उन्होंने बंगला और असमिया भाषा पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया। इसके अलावा भी वे कई भाषाओं का ज्ञान रखते थे। हिन्दी के प्रति उनके विशेष आग्रह के कारण ही मध्यप्रदेश में हिन्दी विश्वविद्यालय की कोपलें फूंटी। आज वे नहीं हैं, लेकिन हिन्दी में विज्ञान और तकनीक, चिकित्सा और अभियांत्रिकी जैसे विषयों की साधना करने वालों का स्वप्न साकार होने लगा है।
बढती उम्र ने उन्हें कई समस्याएं दी। वे स्मृतिलोप के शिकार होने लगे थे। उन्होंने अपनी नहीं, अपनों की परवाह की। देह और मन कमजोर होता रहा, लेकिन वे देश-समाज की समस्याओं से जूझते रहे। उनके निकटस्थ लोगों को पता है, वे ज्योतिष के भी जानकार थे। ज़्योतिष के कई विद्वानों के साथ उनकी लंबी चर्चाएं भी हुआ करती थी। शायद वे इस जीवन के अंत और अगले जीवन के प्रारब्ध से परिचित थे। यह भी एक संयोग है कि 15 सितम्बर, 2012 को अपने जन्म-स्थान रायपुर में ही उनका देहांत हुआ। श्री सुदर्शन जी ने एक हिन्दू के रूप में जन्म लिया। एक स्वयंसेवक के रूप में देश-समाज और मानवता की सेवा की। पुनर्जन्म में हिन्दुओं का अकाट्य विश्वास है। अपनी धर्म के प्रति निष्ठा, हिन्दुत्व के प्रति अटूट श्रद्धा, मानवता की सेवा का व्रत और संघ की प्रतीज्ञा उन्हें बार-बार हमारे बीच लायेगा। संभव है सुदर्शन जी ने जैसे अपने पुराने शरीर का त्याग किया है, शायद वैसे ही सर्वथा नूतन शरीर में प्रवेश कर लिया हो! इस दृष्टि से उनके जाने और आने का विषाद और हर्ष दोनों ही होना स्वाभाविक है।