सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

सोलह करोड़ का टेंडर किसी को कानो कान खबर नहीं!


सोलह करोड़ का टेंडर किसी को कानो कान खबर नहीं!

इस बार श्रेय लेने का मौदा नहीं दिया सीपी जोशी ने

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। न तो किसी राजनेता को और ना ही एनएचएआई के अधिकारियों को इस बात की भनक लगी कि सिवनी जिले के मोहगांव से खवासा तक के फोरलेन मार्ग का ठेके की 16 करोड़ 41 लाख रूपए की निविदा जारी हो गई है। इस बार केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री सी.पी.जोशी ने कांग्रेस भाजपा के नेताओं को चकमा देते हुए चुपचाप ही निविदा जारी करवा दी गई।
एनएचएआई के भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि मोहगांव से खवासा सेक्शन में किलोमीटर 623 से किलोमीटर 652 तक लगभग 29 किलोमीटर तक के काम को हरी झंडी प्रदान कर दी गई है। सूत्रों ने कहा कि इस मार्ग के पुर्ननिर्माण सुधार कार्य की 1641 लाख रूपए की निविदा जारी की गई है। इसके साथ ही साथ समस्त प्रकार के पूर्ण कार्य 2006 - 2007 से अब तक के लिए निविदा जमा करने की अंतिम तिथि 19 मार्च निर्धारित की गई है।
गौरतलब है कि वर्ष 2008 में विधानसभा चुनावों के समय से इस मार्ग के निर्माण में वन एवं पर्यावरण का फच्चर अशोक कुमार नामक एक व्यक्ति के एनजीओ द्वारा फंसा दिया गया था। राजनैतिक बियावान में सीढीयां चढ़ने उतरने, कांग्रेस भाजपा के आश्वासनों के समुंदर में गोते लगाने के बाद भी इस सड़क के रखरखाव पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया, जिसके परिणाम स्वरूप आज चार सौ साल पुराने शेरशाह सूरी के जमाने के इस मार्ग में गड्ढ़ों में सड़क ढूंढने का काम जारी है।
इस सड़क के रखरखाव की मांग जब भी की जाती तभी सिवनी में बैठे राजनेताओं द्वारा माननीय न्यायालय की अवमानना का भय बताकर लोगों को शांत कर दिया जाता। मजबूर सिवनी वासी इस तरह के जर्जर मार्ग से होकर गुजरने को मजबूर हो रहे हैं। इतना ही नहीं खवासा से मोहगांव के हिस्से में कुरई घाट सहित समूचे भाग में रोजाना ही दुर्घटनाएं घट रही हैं, असमय ही लोग काल कलवित हो रहे हैं, पर मोटी चमड़ी वाले राजनेताओं के कानों में इस चीख पुकार का कोई असर नहीं हुआ।
सिवनी शहर सहित मार्ग में पड़ने वाले सिवनी जिले के शहरों के अंदर की सड़कों के जीर्णोद्धार हेतु भी कांग्रेस ने बड़ी बड़ी विज्ञपितयों के माध्यम से लोगों को दो तीन सालों से भरमाया जा रहा है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही सामने आई है। शहर के अंदर की सड़कों पर चलना अब सर्कस के बाजीगरों के बस की ही बात बची है।
एनएचएआई के सूत्रों का कहना है कि इस साल बारिश के पहले ही मोहगांव से खवासा तक के वर्तमान के टू लेन को सुधारकर ब्लेक टाप का काम अर्थात सड़क को पूर्व जैसी ही टूलेन बनाने के लिए 16 करोड़ 41 लाख की प्रथम निविदा जारी कर दी गई है। माना जा रहा है कि इस साल गर्मी के मौसम में इस सड़क को पूरी तरह सुधार दिया जाएगा। फोरलेन के मामले में वन विभाग के अडंगे की समाप्ति के बाद ही काम आरंभ होने की उम्मीद जताई जा रही है।
इस संबंध में जब एनएचएआई के परियोजना निदेशक श्री सिंघई से फोन पर चर्चा की गई तो उन्होंने इस तरह की किसी निविदा के जारी होने से साफ इंकार कर दिया। वहीं दूसरी ओर सिवनी में पदस्थ श्री पुरी ने दूरभाष पर बताया कि इस मार्ग के सुधार की प्रथम निविदा जारी हो चुकी है। श्री पुरी ने उम्मीद जताई कि बारिश के पहले पहले तक सिवनी से नागपुर मार्ग का सुधार पूरा हो जाएगा।
इस निविदा के बारे में कांग्रेस और भाजपा के विज्ञप्तिवीरों के तरकश इसलिए खाली हैं क्योंकि इस बारे में उन्हें पूर्व में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है। अब जबकि इसकी निविदा ही जारी होकर समाचार पत्रों में स्थान पा चुकी है अतः अब इसका श्रेय लेने की कवायद तेज हो सकती है। 

. . . तो मवेशियों के पीने लायक भी नहीं बचेगी नर्मदा


0 घंसौर को झुलसाने की तैयारी पूरी . . .  69

. . . तो मवेशियों के पीने लायक भी नहीं बचेगी नर्मदा

जानबूझकर पुण्य सलिला को जहरीला बनाने की हो रही तैयारी

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। देश के मशहूर दौलतमंद उद्योगपति गौतम थापर के स्वामित्व वाले अवंथा समूह के सहयोगी प्रतिष्ठान मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के आदिवासी बाहुल्य विकास खण्ड घंसौर में स्थापित किए जाने वाले 1200 मेगावाट के कोल आधारित पावर प्लांट से न केवल पर्यावरणीय खतरा पैदा होने की आशंका है वरन् खेतों की उर्वरक क्षमता कम होगी और आसपास के समस्त जल स्त्रोतों के जहरीला होने की आशंकाएं बलवती हो रही हैं।
जानकारो का कहना है कि थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से पानी इतना प्रदूषित हो जाएगा कि इसे मवेशी भी नहीं पी सकेंगे। गौरतलब है कि 500 मेगावाट के सारणी स्थित सतपुड़ा थर्मल कोल पावर प्लांट से निकलने वाली राख से तवा नदी का पानी इसी तरह प्रदूषित हो चुका है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार तवा नदी में नहाने पर लोगों की चमड़ी जलती है और त्वचा रोग हो जाते हैं। इसकी राख के निस्तारण के लिए हाल ही हजारों पेड़ों की बलि चढ़ा दी गई, जबकि पहले से नष्ट किए गए जंगल की भरपाई नहीं की जा सकी है। इतने दुष्परिणामों के सामने आने के बावजूद मध्यप्रदेश में देवी स्वरूप नर्मदा के किनारे थर्मल कोल पावर प्लांट की अनुमति देना जनहित में नहीं है।
नर्मदा में लाखों लोग डुबकी लगाकर पुण्य का अनुभव करते हैं। उनकी रूह भी इस पानी में नहाने के नाम से कांप उठेगी। राख से नर्मदा की गहराई पर भी असर होगा। वहीं गंगा के जहरीले होने के कारण सरकार ने हाल ही में यह निर्णय लिया है कि इसके किनारे अब ऐसा कोई निर्माण नहीं किया जाएगा, तो नर्मदा की चिंता क्यों नहीं की जा रही है?
मेसर्स झाबुआ पावर लिमिटेड के कोल आधारित पावर प्लांट से उड़ने वाली राख आसपास के खेतों में कहर बरपाएगी। इतना ही नहीं इसकी राख से पुण्य सलिला नर्मदा के प्रदूषित होने का खतरा बरकरार ही है। जानकार बताते हैं कि इससे उड़ने वाली जहरीली राख से नर्मदा का पानी इतना जहरीला हो जाएगा कि इसमें नहाने से खुजली आदि जैसे त्वाचा संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ जाएगा।
पुण्य सलिला नर्मदा का जो हाल होना है वह तो होकर ही रहेगा। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल एवं केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा अथाह जल संपदा अपने दामन में समेटने वाली रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध के पानी को जहरीला करने की तैयारी की जा रही है।
यह सब देखने सुनने के बाद भी केंद्र सरकार का वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, मध्य प्रदेश सरकार, मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल, जिला प्रशासन सिवनी सहित भाजपा के सांसद के.डी.देशमुख विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, कमल मस्कोले, एवं क्षेत्रीय विधायक जो स्वयं भी आदिवासी समुदाय से हैं श्रीमति शशि ठाकुर, कांग्रेस के क्षेत्रीय सांसद बसोरी सिंह मसराम एवं सिवनी जिले के हितचिंतक माने जाने वाले केवलारी विधायक एवं विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ठाकुर चुपचाप नियम कायदों का माखौल सरेआम उड़ते देख रहे हैं।

(क्रमशः जारी)

गैर राजनैतिक होने का खामियाजा भुगतेंगे मनमोहन


बजट तक शायद चलें मनमोहन. . . 91

गैर राजनैतिक होने का खामियाजा भुगतेंगे मनमोहन

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली (साई)। भारत गणराज्य में संभवतः मनमोहन सिंह पहले एसे वज़ीरे आज़म हैं जो गैर राजनैतिक हैं। यही कारण है कि उनके इर्द गिर्द भीड़ भाड़ नहीं हुआ करती है। चापलूस, चाटूकार भी मनमोहन के आसपास नहीं फटक पाते हैं। राजनैतिक लोग भी प्रधानमंत्री के पास जाकर चर्चाओं में बोरियत ही महसूस करते हैं। गैर राजनैतिक होने के बाद भी देश पर आठ साल तक उन्होंने कैसे राज कर लिया इस बारे में लोग शोध ही कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री आवास के सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह खालिस गैर राजनैतिक व्यक्तित्व के धनी हैं। अगर कोई उनके पास जाकर किसी भी विषय पर राजनैतिक दृष्टिकोण से बात करता है तो प्रधानमंत्री बस चुपचाप खामोशी के साथ हल्की मुस्कुराहट भर देते हैं। कुछ देर में चर्चा करने वाला शांत हो जाता है। लोगों को आज भी प्रधानमंत्री के विचार ही नहीं पता है। लोगों को मनमोहन सिंह की रीति नीति के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि देश के सबसे ताकतवर पद पर आसीन डॉ.मनमोहन सिंह के पास कोई फैसला लेने का अधिकार ही नहीं है। वे हर मामले में कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10, जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) पर ही आश्रित हैं। माना जा रहा है कि गैर राजनैतिक होने का खामियाजा मनमोहन सिंह को अपनी कुर्सी से उतरकर ही चुकाना होगा।
सूत्रों ने बताया कि जब मनमोहन सिंह की पुत्री ने मनमोहन सिंह को टीवी पर चल रहे एक चुटकला सुनाया। जिसमें कहा गया है कि मनमोहन सिंह से किसी ने पूछा कि दो और दो कितने होते हैं। जिसके जवाब में मनमोहन सिंह ने कहा कि वैसे तो दो और दो चार होते हैं पर अगर सोनिया जी से एक बार पूछ लेते तो बेहतर होता। यह सुनते ही मनमोहन सिंह ठहाके मारकर हंसने लगे। सूत्रों ने कहा कि यद्यपि उनके ठहाके से पीएमओ गूंज उठा पर उनके चेहरे पर उपेक्षा का दर्द अलग दिख रहा था।

(क्रमशः जारी)

हृदय प्रदेश में भाजपा की हालत पतली


हृदय प्रदेश में भाजपा की हालत पतली

आधी से ज्यादा सीटें खतरे में

(नन्द किशोर)

भोपाल (साई)। लगातार दूसरी पारी खेल रही मध्य प्रदेश भाजपा को 2013 में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारी मशक्कत करना पड़ सकता है। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में 155 सीटों पर भाजपा की हालत पतली ही दिख रही है। इसका कारण शिवराज सिंह चौहान का मूल रूप से नौकरशाहों पर निर्भर होना ही बताया जा रहा है। शिव के इशारों को नौकरशाह बखूबी समझ रहे हैं किन्तु सांसद विधायकों और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा शिवराज पर भारी पड़ने वाली है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी सूत्रों का कहना है कि शिव का राज पांच लोग मिलकर चला रहे हैं। ‘‘मुख्यमंत्री जी की मंशा है‘‘ के जुमले को पूर्व प्रधानमंत्री स्व.राजीव गांधी के शासनकाल की तरह ही इस्तेमाल किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सीएम द्वारा दिए गए निर्देशों को सिर्फ मुख्य सचिव को दिया जाता है। फिर सीएस द्वारा संभागायुक्तों को बुलाकर उन्हें मुख्यमंत्री की इच्छा से आवगत करा दिया जाता है। तीसरी कड़ी में संभागायुक्तों द्वारा जिला कलेक्टर्स को बुलाकर निर्देश दे दिए जाते हैं। अगर कोई कलेक्टर इस बारे में सवाल करता है कि अगर विधायक या सांसद ने कुछ हटकर चाहा तो? इस पर उन्हें कह दिया जाता है कि सीएम साहब की यही इच्छा है बस, बाकी सबको हाशिए पर डाल दिया जाए।
संभवतः यही कारण है कि काडर बेस्ड भारतीय जनता पार्टी का जनाधार दिनों दिन गिर रहा है। इसके साथ ही साथ प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों द्वारा रोजाना करोड़ों रूपए उगले जा रहे हैं। कार्यकर्ता इससे आज़िज आ चुके हैं। कहा जा रहा है कि सांसद और विधायक निधि में भी बंदरबांट जारी है। आलम यह है कि प्रदेश में अनेक सांसद विधायकों द्वारा समाचार पत्रों में विज्ञापन छपवाकर विज्ञापन के देयकों के भुगतान भी पत्रकारों से दो तीन नाम मांगकर उनके नाम पर किए जाने की शिकायतें अब आम हो गई हैं।
शिवराज हैटट्रिक करेंगे या नहीं, इस सवाल का जवाब ढूंढने में लगी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश की 155 से ज्यादा सीटों पर भाजपा की हालत बहुत खराब है। जिन मुद्दों पर भाजपा 2003 में जीती थी, उन्हीं मुद्दों पर अंडरकरंट दिख रहा है। लोकसभा चुनावों के अप्रत्याशित परिणामों का असर भी इन सीटों पर दिखाई दे रहा है। अन्य राज्यों से लगी विधानसभा सीटों पर भी भाजपाविरोधी लहर साफ दिख रही है।
मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव है। लेकिन 2003 में दिग्विजय सिंह को गद्दी से उतारकर भाजपा ने जिन मुद्दों पर सरकार बनाई थी, वह मुद्दे आज उसके खिलाफ जा रहे हैं। इसके बाद भी भाजपा फीलगुड में है। दूसरी ओर कांग्रेस में गुटबाजी हावी है। बावजूद इसके अंडरकरंट कांग्रेस के पक्ष में है। भोपाल से प्रकाशित पाक्षिक बिच्छू डॉट कॉमने खुफिया एजेंसी के सर्वे का हवाला देकर कहा है कि कि 230 सीटों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा की 155 सीटों पर भाजपा की हालत बेहद खराब है।
सरकार विरोधी अंडरकरंट बहुत तेज है। इसकी झलक प्रदेश 2009 के लोकसभा चुनावों में देख चुका है। सालों से संसद जा रहे भाजपा के धुरंधरों को उनकी परंपरागत सीटों पर ही ध्वस्त होते देखा था। 2013 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर सरकार ने एक खुफिया एजेंसी से सर्वे कराया है। इसमें सिर्फ वास्तविक राजनीतिक स्थिति का आकलन करने का काम सौंपा गया था। कई जिलों में 2003 में भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया था। इनमें अधिकांश विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) वर्ग से थी। अब हालात बदल गए हैं। इन जिलों में कांतिलाल भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने (केबी फेक्टर) और विधानसभा में विपक्ष की नेता रहीं जमुनादेवी के सुहानुभूति वोटों का असर दिखाई देगा। उत्तरप्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र की सीमा से लगी सीटों पर दूसरे राज्यों की राजनीति का सीधा असर है।

फीलगुड कहीं शाइन कम न कर दें
2004 के लोकसभा चुनावों में फीलगुड और इंडिया शाइनिंग ने भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था। इसके बाद भी मध्यप्रदेश सरकार इसी फार्मूले पर आगे बढ़ती दिखाई दे रही है। भाजपा के खिलाफ ग्वालियर-चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड में जबरदस्त अंडरकरंट हैं। मालवा के कई आदिवासी क्षेत्रों में जहां भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए तेजी से सक्रिय है वहां बेरोजगारी के चलते तेजी से पलायन हो रहा है। विंध्य में कुपोषण और भुखमरी के कारण लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है तो बुंदेलखंड में बेरोजगारी उसकी मुश्किल बढ़ा सकती है। चुनाव से पहले सड़कों को ठीक करने की सरकार की मंशा भी उसके लिए उल्टा-दांव पड़ सकती है। सड़कों की दुर्दशा से भाजपा के शहरी मतदाता भी उससे नाराज हैं। इन मतदाताओं की माने तो वे भी जानते हैं कि चुनाव से पहले सरकार इन सड़कों को ठीक कर एक बार फिर वोटर को ठगने का जतन करेगी। चुनाव के समय किसानों को भरपूर बिजली देने के लिए बिजली की खरीदी भी होगी, इसके बाद फिर पांच साल तक किसान खाद, बीज, पानी और सड़क के लिए तरसेगा। भाजपा के मंत्रियों का बड़बोलापन और प्रदेश में भ्रष्टाचार भी उसके लिए मुसीबत बन सकता है।

कांग्रेस को दूर करनी होगी गुटबाजी
कांग्रेस की हर बैठक में गुटबाजी के कारण झगड़े होते हैं। बड़े नेता कार्यक्रमों और बैठकों से किनारा कर रहे हैं। इससे कांग्रेस में कलह साफ दिख रही है। भोपाल में पिछले दिनों प्रदेश प्रभारी बीके हरिप्रसाद की मौजूदगी में हुई महत्वपूर्ण बैठक में वरिष्ठ कांग्रेस नेता नदारद थे। सभी सांसदों और विधायकों ने भी इसमें उपास्थिति दर्ज नहीं कराई। जेल भरो आंदोलन से भी बड़े और दिग्गज नेताओं ने दूरियां बना रखी है। बेटे को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर करने के कारण पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष यादव नाराज चल रहे हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष स्वर्गीय जमुना देवी की गैरमौजूदगी में कांग्रेस के लिए आदिवासी वोट बैंक बरकरार रखने के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ेगी। भूरिया क्षेत्र से निकलकर पहली बार प्रदेश के आदिवासी नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं। पार्टी हाईकमान भी उन्हें आदिवासी नेता के रूप में प्रदेश में स्थापित कराना चाहता है, इसमें कितनी सफलता मिलती है यह अगले चुनाव में ही स्पष्ट होगा।

इन इलाकों में भाजपा की हालत खराब
दिमनी, अम्बाह, अटेर, मेहगांव, ग्वालियर पूर्व, सेवढ़ा, शिवपुरी, कोलारस, बामोरी, चंदेरी, जतारा, चंदला (अजा), बिजावर, पथरिया, दमोह, पवई, गुन्नौर (अजा), चित्रकूट, रैगांव (अजा), अमरपाटन, देवतालाब, मनगवां (अजा), सिहावल, कोतमा, पुष्पराजगढ़ (अजजा), निवास (अजजा), बैहर (अजजा), लखनादौर (अजजा), अमरवाड़ा (अजजा), सौंसर, परासिया (अजा), बैतूल, घोड़ाडोंगरी (अजजा), नरेला, भोपाल मध्य, नरसिंहगढ़, हाट पिपलिया, खातेगांव, पंधना (अजजा), नेपानगर (अजजा), अलीराजपुर (अजजा), मनावर, धार, इंदौर-5, राऊ, मंदसौर, मल्हारगढ़, जावद, बीना (अजा), सेमरिया, बडऩगर।

केबी फेक्टर दिखाएगा असर
झाबुआ, धार, बडवानी, खरगोन, खंडवा जैसे महाराष्ट्र-गुजरात से लगे जिलों में उमा भारती की लहर 2003 में दिखाई दी थी, वैसा असर 2008 के चुनावों में नहीं दिखी। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि कांतिलाल भूरिया के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने का फायदा भी उनकी पार्टी को मिल सकता है। केबी फेक्टर का असर उन जिलों में देखने को मिल सकता है, जहां उनका अश्छा-खासा प्रभाव है। जमुनादेवी को लेकर सुहानुभूति भी इन सीटों पर दिखाई पड़ सकती है। आदिवासी सीटों पर वैसे ही भाजपा को जैसा समर्थन 2003 में मिला था, वैसा अब नहीं दिखाई दे रहा।

ग्वालियर-चंबल संभाग में सब दमदार
ग्वालियर-चंबल संभाग में भी उत्तरप्रदेश का फेक्टर काम करेगा। बसपा वहां जीती तो इन इलाकों के जिलों में भी अपना असर दिखा सकती है। इस क्षेत्र में फूलसिंह बरैया की पार्टी भी अच्छा-खासा जनाधार रखती है। बसपा से निकाले जाने पर भाजपा ने उन्हें अपनाया लेकिन उन्हें वहां पर्याप्त तवज्जो नहीं मिली। इसलिए उन्होंने पार्टी छोड़ दी। रीवा से मुरैना तक 31 सीटें ऐसी हैं, जहां बसपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज कराई है।

दिग्गी गुट का कब्जा
प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह गुट का कब्जा है। कांतिलाल भूरिया और दिग्विजय सिंह समर्थकों के कब्जे के कारण दूसरे गुट के नेता और पदाधिकारी वहां सिर्फ बैठकों में ही बुलाने पर हाजिर होते हैं वे भी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए।

अजय-भूरिया में  श्रेय लेने की होड़
कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह में शुरू हुई जुगलबंदी ज्यादा लंबी खिंचती नजर नहीं आ रही है। दोनों में पिछले दिनों जेल भरो आंदोलन की सफलता का श्रेय लेने की होड़ देखी गई। दोनों अलग-अलग दिगी में हाईकमान से मिले और सफलता की जानकारी दी। हालांकि उनके करीबी बताते हैं कि दस जनपथ से दोनों को अलग-अलग समय मिला था लेकिन कांग्रेस में एकता की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को यह तर्क रास नहीं आ रहा है।

कांग्रेस में कलह
कांग्रेस ने विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव और जेल भरो आंदोलन के जरिए अपने इरादे जाहिर स्पष्ट कर दिए हैं। लेकिन कांग्रेस की कथित एकता खंडित हो रही है। बड़े नेताओं की अरुचि की वजह से कार्यकर्ताओं में जोश नहीं है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ओर प्रदेश अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया की जोड़ी प्रदेश सरकार की नींद उड़ाए हुए है। इस जोड़ी ने पिछले दो महीने में जो सक्रियता दिखाई और सरकार पर जोरदार हमले किए उससे कांग्रेस में नई जान आ गई है।

विंध्य क्षेत्र में बसपा का दबदबा
उत्तरप्रदेश चुनावों का सीधा असर विंध्य क्षेत्र के जिलों रीवा, सतना, सिंगरौली, त्योंथर में दिखाई देगा। यदि बसपा ने उत्तरप्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया तो वह यहां भी पैर पसार सकती है। इस इलाके में अर्जुन सिंह को हराने वाले समानता दल के प्रदेश प्रमुख का भी दबदबा है। महाराष्ट्र की सीमा से लगे छिंदवाड़ा व आसपास के जिलों में एनसीपी का प्रभाव है। यहां यह पार्टियां भले ही सीटें जीत न पाए, लेकिन बड़ी संख्या में वोट काटने में कामयाब जरूर रहेंगी।

इनकी नहीं हो रही पूछ परख
सुभाष यादव, श्रीनिवास तिवारी, इंद्रजीत पटेल, मुकेश नायक, गुफरान ए आजम, अजीज कुरैशी, सुरेश पचौरी, शोभा ओझा, बालकवि बैरागी, किसन पंत

इन मुद्दों पर है अंडरकरंट 
खाद संकट, बिजली, पाला , कुपोषण, सड़क, पानी, घोषणाएं ज्यादा, काम कम

छात्र राजनीति के नाम पर खुली एक और नई दुकान


छात्र राजनीति के नाम पर खुली एक और नई दुकान

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। आजकल राजनीति की दुकान हर बेरोजगार और व्यापारी चलाने में सक्षम नजर आ रहा है। यही सिद्ध हुआ जब विगत दिनों एक नामी शिक्षण संस्थान के संचालक ने छात्र शक्ति संगठन नामक छात्र राजनीति में अपनी पकड बनाने के उद्देश्य से समाज सेवा प्रारंभ की है। इस बार भी यह पुण्य काम डीपी चतुर्वेदी महाविघालय के संचालकों के द्वारा किया गया है। बताया जाता है कि विगत एक वर्ष में कोई अनियमितताओं की जांचों से त्रस्त होकर 2 हजार छात्र- छात्राओं के इस महाविघालय के संचालकों ने एक आसान तरीका यह खोजा कि छात्र राजनीति मंे यदि स्वयं की संस्था बनाकर डाल दी जाए तो शायद आगामी भविष्य में परेशानियां न उठानी पडें और जिस प्रकार पूर्व में आसानी से अनियमितताएं की जा सकती थी, वह फिर से शुरू कर दी जाए। अब देखने वाली यह होगी कि इस नई राजनीति की दुकान का विरोध विघार्थी परिषद पहले करती है या फिर एनएसयूआई...।

हिमाच्छादित गांवों की भाजपा सरकार ने सुध लेना तक छोडा


हिमाच्छादित गांवों की भाजपा सरकार ने सुध लेना तक छोडा

(चन्द्रछशेखर जोशी)

देहरादून (साई)। उत्तराखण्ड  विधानसभा चुनावों  के दौरान मनमोहक नारों से लुभाने के बाद हिमाच्छादित गांवों को भाजपा सरकार ने सुध लेना तक छोड दिया है। जिससे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है।
उत्तरकाशी के यमुनोत्री, गंगोत्री तथा टौंस हरकीदून घाटी के ऊंचाई वाले क्षेत्र में कर्फ्यू जैसी स्थिति पैदा हो गई है। बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए हैं। कड़ाके की ठंड और बर्फबारी वाले क्षेत्रों में रास्ते बंद होने से हनुमानचट्टी, चानकीचट्टी, ओसला, पंवाणी, फतेहपर्वत तथा उपला टकनौर क्षेत्र के गांवों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बर्फबारी और बर्फीले तूफान से मोरी, भटवाड़ी, डंडालगांव, राड़ी, जानकीचट्टी, सांकरी और हर्षिल क्षेत्र में तथा यमुनोत्री राजमार्ग पर डंडालगांव से राड़ी टॉप व सयानाचट्टी से आगे तथा हरकीदून घाटी में सांकरी से ऊपर के गांवों में भारी बर्फबारी शुरू होने से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। ऊंचाई वाले हिस्सों में यातायात ठप हो गया है। लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
जनता पूछ रही है कि कौन है जरूरी, विज्ञापनों पर भरोसा करते हुए हमने मतदान कर दिया अब आप भी हमारे लिए क्घ्या है जरूरी, समझ पर हम पर तरस खाओ, आवश्घ्यक सुविधा उपलब्घ्ध कराओ, उत्तरकाशी के ऊंचाई वाले क्षेत्रों के हिमाच्छादित गांवों में कैद लोगों की समस्याएं बढ़ गयी हैं।  यहां सड़क, पेयजल, विद्युत और संचार जैसी ढांचागत सुविधाओं के अभाव से क्षेत्र वीरान पड़े हुए हैं। फरवरी बीतने को है, लेकिन जिले के आठ हजार फिट से अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अब भी दो से छह फीट तक बर्फ जमा है।
वहीं दूसरी ओर जिले के डोडीताल, दयारा, हर्षिल, गंगोत्री, गोमुख, तपोवन, केदारताल, कुश कल्याण, जौराई, यमुनोत्री, सांकरी, हरकीदून और केदारकांठा आदि तमाम पर्यटक स्थल और ट्रैक बर्फ से लकदक हैं। बर्फबारी के बाद खुशगवार हुए मौसम में इन पर्यटक स्थलों का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। समान भौगोलिक परिस्थितियों वाले जम्मू कश्मीर और हिमाचल में हिमाच्छादित पर्यटक स्थलों का लुत्फ लेने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंच रहे हैं, लेकिन यहां पर्यटकों का टोटा है ऐसा नहीं कि पर्यटक यहां आना नहीं चाहते, बल्कि ढांचागत सुविधाओं के अभाव तथा ट्रैकिंग की अनुमति न मिलने से फिलहाल साहसिक पर्यटन पर ब्रेक लगे हुए हैं। ऐसे में यहां पर्यटन का अपेक्षित विकास न होने से इस पर टिकी आजीविका वाले लोग मायूस हैं। 
वहीं बारिश और बर्फबारी के बाद जिले में फिर से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बर्फबारी और घाटी वाले क्षेत्रों में बारिश से जहां कई रास्ते बंद हो गए हैं, वहीं जिले के ऊंचाई वाले गांवों का देश दुनिया से संपर्क कट गया है। हरकीदून और टौंस घाटी में सांकरी ताल्लुका तथा फतेह पर्वत क्षेत्र में बर्फबारी से फिर कई सड़कों पर यातायात ठप हो गया है।
गंगोत्री राजमार्ग का आबादी से जुड़ा 32 किमी हिस्सा बर्फ से पटने से उपला टकनौर के सीमावर्ती क्षेत्र के गांव एक बार फिर बर्फबारी में कैद होकर अलग-थलग पड़ गए हैं। यमुनोत्री, टौस और हरकीदून घाटी में बर्फबारी से क्षेत्र की मुश्घ्किलें बढ गयी है। गंगोत्री राजमार्ग पर गंगनानी से धराली आबादी क्षेत्र तक कई किमी हिस्सा बर्फ से ढक गया है।

बड़े काम की है अरण्डी


हर्बल खजाना ----------------- 29

बड़े काम की है अरण्डी



(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। अरण्डी की खेती भारत के अनेक हिस्सों में की जाती है। आयुर्वेद में अरण्डी के एक विरेचक औषधि के तौर पर उत्तम माना गया है। अरण्डी का वानस्पतिक नाम रिसिनस कम्युनिस है। अरण्डी के तेल को मुख्यतः जुलाब लेने के लिए उपयोग में लिया जाता है।
एक कप दूध में २ चम्मच तेल डालकर सोते समय पीना चाहिए। असर न होने पर इसकी मात्रा दूसरे दिन बढ़ाकर लेना चाहिए। स्तनों की शिथिलता दूर करने के लिए एरण्ड के पत्तों को सिरके या नीबू रस में पीसकर स्तनों पर गाढ़ा लेप करने से कुछ ही दिनों में स्तनों का ढीलापन दूर हो जाता है।
अरण्डी पुराने मल को निकालकर पेट को हल्का करती है। यह वात, साइटिका, पेट में पानी की अधिकता, समस्त वायुरोगों की नाशक है। इसके पत्ते, जड़ और बीज उसका तेल सभी औषधि के रूप में इस्तेमाल किए जाते है। डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार अरण्डी के फूल ठंड से उत्पन्न रोग जैसे खांसी, जुकाम और बलगम तथा पेट दर्द संबधी बीमारी का नाश करते है।
पातालकोट के आदिवासी हर्बल जानकार ऐसे शिशु जिनके सिर पर बाल नहीं उगते हो या बहुत कम हो या ऐसे पुरुष-स्त्री जिनकी पलकों व भौंहों पर बहुत कम बाल हों तो उन्हें एरंड के तेल की मालिश नियमित रूप से सोते समय करने की सलाह देते है। अरण्डी की जड़ का काढ़ा छानकर एक-एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार सेवन करें, ऐसा करने से मोटापा कम हो जाता है।

(साई फीचर्स)