टिकिट की आपाधापी
में संवेदनाएं ताक पर!
(लिमटी खरे)
प्रमुख सियासी दल
कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में टिकिट की मारामारी मची है। टिकिट की मारामारी
में किसी को सिवनी में क्या हो रहा है इस बात की परवाह नहीं रह गई है। प्रशासन
चुनाव की तैयारियों में व्यस्त है। नेता टिकिट के लिए दिल्ली, भोपाल और नागपुर एक
किए हुए हैं। सिवनी में जनता कराह रही है। जनता के रूदन की आवाज शायद ही किसी के
कानों में पड़ रही हो। मीडिया भी खौफजदा है ‘पेड न्यूज‘ के डर से। पेड
न्यूज क्या मीडिया पर अघोषित सेंसरशिप है? पेड न्यूज क्या है इस बात की स्पष्ट
व्याख्या आज तक सामने नहीं आ पाई है। निर्वाचन आयोग द्वारा गठित एमसीएमसी के विवेक
के आधार पर पेड न्यूज का फैसला होगा? दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि इसके लिए स्पष्ट
गाईड लाईन अभी तक सामने नहीं आ पाई हैं। पेड न्यूज अर्थात पैसा लेकर प्रकाशित या
प्रसारित की गई खबर। अब यह तय कौन करेगा कि कौन सी खबर पेड न्यूज है और कौन सी
नहीं? कौन सी खबर
पैसा लेकर छापी गई है, कौन सी नहीं? आलम यह है कि समस्याएं उठाने में भी मीडिया
को सौ बार सोचना पड़ रहा है कि उसमें कहीं किसी नेता का नाम सामने आया तो वह पेड न्यूज
के दायरे में तो नहीं आ जाएंगे।
बहरहाल, टिकिट की आपाधापी
में प्रदेश तथा नगर पालिका परिषद् सिवनी में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी
कांग्रेस की संवेदनाएं तार तार हो चुकी हैं। सिवनी शहर के अंदर बारापत्थर में टूटी
पुलिस के पास एमपीईबी कार्यालय है। इसके ठीक पीछे वाली गली में पानी नहीं आने की
शिकायत रहवासियों ने नगर पालिका से की। शिकायत के उपरांत लंबे समय बाद पालिका ने
वहां पाईप लाईन बदली। 20 अक्टूबर को यहां के आधा दर्जन लोगों के घरों का नल कनेक्शन
काट दिया गया। 21 को नई
पाईप लाईन डाली गई। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 28 अक्टूबर को आठ दिन
बाद भी इस गली में नगर पालिका प्रशासन द्वारा लोगों की काटी गई पाईप लाईन को जोड़ा
नहीं गया है।
आश्चर्य तो इस बात
पर भी है कि 21 तारीख के
बाद से लगातार इस आशय की खबरों का प्रकाशन हो रहा है। बावजूद इसके वार्ड पार्षद से
लेकर कांग्रेस और भाजपा के नुमाईंदों ने इस क्षेत्र में जाकर वास्तविकता का पता
करना भी उचित नहीं समझा! क्या टिकिट लाने, पाने और झपटने की जुगत में मानवीय संवेदनाएं
मर गई हैं? नगर पालिका
के कारिंदों या नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी से बात की जाए तो आचार संहिता का
हवाला देकर मौन हो जाते हैं। किसी भी निर्वाचन के कार्य को अत्यावश्यक माना जा
सकता है पर यक्ष प्रश्न तो यह खड़ा है कि क्या ‘निर्वाचन के चलते
लगी आचार संहिता‘ में आज़ाद
भारत गणराज्य के लोगों का हवा पानी ही बंद कर दिया जाएगा? क्या सिवनी आज़ाद
भारत गणराज्य का हिस्सा नहीं है? अगर है तो यहां मची चीखपुकार से क्या
कांग्रेस भाजपा के नुमाईंदों को कोई सरोकार नहीं है?
हालात देखकर यह
कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि कांग्रेस और भाजपा की संवेदनाएं मर चुकी हैं। आठ
दिन तक कोई भी यहां के रहवासियों की सुध लेने नहीं आया। मोहल्ले के लोगों ने इस
बात की जानकारी भारतीय जनता पार्टी के सदस्य और शहर के प्रथम नागरिक राजेश
त्रिवेदी, कांग्रेस
के सदस्य और नगर पालिका परिषद् के उपाध्यक्ष राजिक अकील के साथ ही साथ सत्तारूढ़
भाजपा के जिला अध्यक्ष नरेश दिवाकर से भी की। दुर्भाग्य तीनों ने इस ओर कोई ध्यान
देना मुनासिब नहीं समझा। हो सकता है कांग्रेस भाजपा में टिकिट का बंटवारा नहीं हुआ
है इसलिए तीनों ही टिकिट की दौड़ में भोपाल, दिल्ली, नागपुर एक कर रहे
हों। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस इलाके की लगभग दो सौ मीटर की परिधि में ही
भाजपा के बरघाट विधायक कमल मर्सकोले, सिवनी विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, भाजपा के पूर्व
विधायक नरेश दिवाकर और डॉ.ढाल सिंह बिसेन, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष वेद सिंह ठाकुर, सुजीत जैन, भाजपा उपाध्यक्ष
राकेश पाल सिंह, के साथ ही
साथ कांग्रेस के विधानसभा चुनाव लड़ चुके आशुतोष वर्मा, राजकुमार खुराना, प्रसन्न चंद मालू
निवास होने के बाद भी आठ दिनों से इस क्षेत्र में मचे पानी को लेकर कोहराम में
किसी ने भी जाकर मोहल्लावासियों के रिसते घाव पर मरहम लगाने का जतन करना मुनासिब
नहीं समझा। हो सकता है इन सभी ने यही सोचा हो कि अगर टिकिट नहीं मिली तो फोकट की
जनसेवा करने का क्या मतलब!
बहरहाल, जिन तीन लोगों से
मोहल्ले के निवासियों ने अपनी व्यथा बताई वे तीनों जनसेवक हैं। नरेश दिवाकर दो बार
विधायक रह चुके हैं। नरेश दिवाकर के विधायक सिवनी के कार्यकाल में सुआखेड़ा से
सिवनी तक भीमगढ़ जलावर्धन योजना का आगाज हुआ था। इस योजना में सिवनी को 2025 तक दो समय पानी
मिले, यह
सुनिश्चित किया गया था। दो समय तो छोड़िए महीने में तीस दिन भी सिवनी के निवासियों
को पानी नसीब नहीं होता है। जब चाहे तब या तो मोटर खराब हो जाती है (दो स्थानों पर
चार चार मोटर्स के जरिए पानी पम्प कर सिवनी लाया जाता है) या लाईन फट जाती है।
पीएचई विभाग द्वारा जब लाईन डाली जा रही थी, उस वक्त केवलारी के तत्कालीन कद्दावर विधायक
स्व.हरवंश सिंह ठाकुर प्रदेश में पीएचई मंत्री थे।
स्व.हरवंश सिंह के
कार्यकाल में उन्हीं के नेतृत्व वाले विभाग ने सिवनी में न केवल घटिया पाईप लाईन
डाली, वरन
ग्रामीण अंचलों में इस पाईप लाईन का पानी खोलकर सिवनी का हक मारा। नगर पालिका
परिषद् को जलकर अदा करने वाले कम ही लोग जानते होंगे कि वे ईमानदारी से जो राशि
अदा कर रहे हैं, उस राशि का
बड़ा हिस्सा सुआखेड़ा से सिवनी के मार्ग में पड़ने वाले लगभग डेढ़ दर्जन गांव के
वाशिंदे मुफ्त में पचा रहे हैं। दरअसल जहां जहां से यह पाईप लाईन गुजरी है वहां के
गांव या वहां से कुछ दूरी वाले गांव में ग्रामीणों को पानी देने के लिए, मेन सप्लाई जिससे
पानी की टंकियां भरती हैं वाले पाईप को खोल दिया जाता है। जाहिर है इससे कम दबाव
में पानी, सिवनी आकर
टंकियों को भरता है। टंकियों का पेट खाली रह जाता है और नागरिकों को उनके हक से
काफी कम मात्रा में पानी मिल पाता है।
ऐसा नहीं कि यह बात
तत्कालीन विधायक नरेश दिवाकर के संज्ञान में नहीं थी। कई बार उनसे चर्चा के दौरान
हमने यह बात उनके संज्ञान में लाई है। पता नहीं क्यों और किस दबाव में नरेश दिवाकर
ने अपने दस साल के विधायक के कार्यकाल में इस बात को विधानसभा में पुरजोर तरीके से
नहीं उठाया। हमारी व्यक्तिगत राय में अगर यह मामला विधानसभा में कभी भी उठा दिया
गया होता तो आज सिवनी के नागरिक पानी की त्राही त्राही से रोजाना रूबरू न होते।
इसके बाद जब एनएचएआई द्वारा फोरलेन प्रस्तावित हुई तब, इस पाईप लाईन को
उखाड़कर नई पाईप लाईन डालने की बात भी सामने आई। यह मामला ठंडे बस्ते के हवाले कर
दिया गया।
हमने तत्कालीन
विधायक नरेश दिवाकर को यह भी मशविरा दिया था कि बेहतर होगा कि सुआखेड़ा वाली पाईप
लाईन को बबरिया में एक बड़ा टांका बनाकर उसमें मिला दिया जाए। इस तरह रोजाना भीमगढ़
बांध का पानी बबरिया में आकर मिलता रहेगा। साथ ही साथ श्रीवनी फिल्टर प्लांट की
मशीनों को निकालकर बबरिया के पास संस्थापित करवा दिया जाए, ताकि जनता को फिल्टर
किया हुआ पानी 22 किलोमीटर
के बजाए महज एक किलोमीटर की दूरी से ही मिल पाए। पता नहीं क्यों यह बात भी परवान
नहीं चढ़ पाई।
हमें यह कहने में
कोई संकोच नहीं है कि कांग्रेस और भाजपा में टिकिट की गलाकाट स्पर्धा के बीच
मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं। आज की स्थिति देखकर यह सोचने पर हर आदमी विवश होगा
कि क्या विधायक का पद इतने लाभ का है कि आम जनता की दुख तकलीफ को तिलांजली देकर
जनसेवा का दंभ भरने वाले अपने अपने टिकिटों की दौड़ में आम जनता को ही भुला रहे हैं
जो जनता जनादेश देकर उन्हें जिता या हराने का माद्दा रखती है। यह कहने के पीछे
हमारा ठोस आधार यह है कि लगातार एक मोहल्ले में आठ दिन से पानी नहीं आ रहा है। नगर
पालिका प्रशासन ने अपने खर्च पर पाईप लाईन का आकार बदला है। उसके बाद मोहल्ले के
निवासियों से बलात शिफ्टिंग चार्ज मांगा जा रहा है। जब मोहल्ले के लोग इसके लिए
डिमांड नोट की मांग करते हैं तो पालिका प्रशासन मौन हो जाता है। आखिर लोगों की
सुनवाई हो तो कहां?
कौन है जो नगर पालिका प्रशासन से यह पूछेगा कि आखिर क्या वजह
है कि इस मोहल्ले की पाईप लाईन जोड़ी क्यों नहीं गई? क्या कारण है कि आठ
दिन तक डिमांड नोट जारी नहीं किया गया? बाकी सब तो छोड़िए इन मतलब परस्त नेताओं के
जेहन में क्या यह बात नहीं आई कि आठ दिन किसी के घर पानी नहीं आए तो उसके घर के
क्या हाल होंगे? दिशा मैदान
और अन्य दैनिक जरूरतों के लिए बारापत्थर में दूर दूर तक सुलभ शौचालय भी नहीं है!
क्या यह इन जनसेवकों का कर्तव्य नहीं था कि कम से कम जब तक कनेक्शन नहीं हो जाता
(कारण चाहे जो भी हो) तब तक इस मोहल्ले में पानी का टेंकर ही भिजवा दिया होता, वस्तुतः अभी सभी के
दिल दिमाग में बस टिकिट ही घूम रही होगी, इसलिए किसी ने भी जनता की दुख तकलीफ के बारे
में सोचना मुनासिब नहीं समझा है।